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Sunday, August 5, 2007
सन 2097 की पांच घटनायें (अनुगूँज 22)
# अनुगूँज 22: हिन्दुस्तान अमरीका बन जाए तो कैसा होगा #
अब हिन्दुस्तान, अमेरिका आज तो बनने से रहा. यह इस सदी के अंत तक होगा. तब की कल्पना निम्न है. @
सन 2097 की पांच घटनायें:
1. दलाल स्ट्रीट जर्नल को रूपर्ट भाई अम्बानी (अनिल अम्बानी के परपोते) की कम्पनी अम्बीको (रिलायंस वल्डवाइड का मीडिया फेस) ने अधिग्रहीत कर लिया है. इस कम्पनी में अर्थ जगत की बहुत सी मीडिया कम्पनियों का गुच्छा भी है. वाल स्ट्रीट जर्नल और उसकी तर्ज पर दुनियां के 27 देशों के शेयर मार्केटों के नाम पर जर्नल्स अब यह कम्पनी ही एकाधिकार से छापेगी. इसके साथ 108 देशों में उपस्थित अम्बीको मीडिया कम्पनी नम्बर 1 बन गयी है. मुकेश मर्डोक जो आजकल सेन फ्रांसिस्को में रह रहे हैं, ने रूपर्ट अम्बानी को बधाई दी है. वैसे एक फ्री लांसर ने कहा है कि पहली रियेक्शन के रूप में उसने मुकेश मर्डोक को "फ* इट!" कहते सुना. यह भी अफवाह है कि मुकेश मर्डोक सेन फ्रांसिस्को से सिकन्दराबाद शिफ्ट होने की सोच रहे हैं.
2. रूपर्ट भाई ने गिन्नी चौधरी (जीतेन्द्र चौधरी की सगी परपोती) को अम्बीको का सीईओ नियुक्त कर दिया है. गिन्नी ने अम्बीको को डाइवर्सीफाई करते हुये अपने प्रपितामह की स्मृति में नेरड नामक एग्रीगेटर (जो नेट की सारी मीडिया सामग्री को एक क्लिक पर आपके नर्वस सिस्टम में सीधे फीड कर देगा) को तीन साल में(सन 2100 तक) लांच करने की प्लानिंग की है. यह केवल एक रालर (रुपया+डॉलर) में उपलब्ध होगा. उल्लेखनीय है कि ब्लागानी नामक एग्रीगेटर जो फ्री में चार पीढ़ी पहले मैथिली जी ने शुरू किया था और जो अब 750 रालर में लोड होता है के साथ यह स्वीट रीवेंज होगा. यह रीवेंज गिन्नी चौधरी निश्चय ही लेना चाहेंगीं. मैथिली गुप्त के परपोते सिरिल III ने इस परियोजना पर अपनी गहरी असहमति व्यक्त करते हुये कहा है कि रूपर्ट अम्बानी ने ऐसी किसी परियोजना को हरी झण्डी नहीं दी है. अम्बीको में उनके भी 12% शेयर हैं और उनसे इस तरह पैसे बरबाद करने की कोई सहमति नहीं ली गयी. (यह अलग बात है कि गिन्नी की घोषणा के बाद अम्बीको के शेयर में उछाल आया है!) वरुण अरोड़ा (पंगेबाज IV) ने सिरिल III का समर्थन किया है. पर अनूप IV शुक्ल ने बीचबचाव में कहा है कि किसी भी विवाद को फुर्सत से निपटा लिया जाये.
3. हिन्दी ब्लॉग-साहित्य लेखक फाउडेशन जो गूगल एडसेंस से हुई कमाई का कमर्शियल ट्रस्ट है; ने रोमनिया गांधी और प्रतिमा पाटीळ के विरोध में अश्रद्धा अभियान की घोषणा की है. अश्रद्धा को समूह में जलती मोमबत्तियां बुझाकर अनूठे अन्दाज में व्यक्त किया जायेगा. ब्लॉग-साहित्य लेखक फाउडेशन के संयोजक (समय तिवारी - अभय के परपोते) के अनुसार यह तरीका ऋग्वेद सम्मत है.
यह कमर्शियल ट्रस्ट जबलपुर में तीन कमरे के घर में रहने वाले गरीबों को बदले में हिसार - जो दिल्ली का सबर्ब है, में 111 वीं मंजिल पर 4 बेड रूम वाले फ्लैट देता है. जबलपुर में रिलीज होने वाली रीयल एस्टेट पर कमर्शियल ट्रस्ट की योजना एक बड़ा रीटेल आउटलेट बनाने की है जहां अश्रद्धावानों को श्रद्धा सस्ते दाम पर मिलेगी. इस प्रकार अश्रद्धा अभियान और श्रद्धा का रीटेल आउटलेट का एक साथ काम जबरदस्त मार्केटिंग स्ट्रेटेजी के रूप में देखा जा रहा है. इसको लेकर सारे हिन्दी ब्लॉग-साहित्य लेखक लामबन्द हैं और अपने अपने ब्लॉग लेखन की बजाय फुल टाइम अश्रद्धा अभियान के प्रचार में जुटे हैं. हिन्दी ब्लॉग पोस्ट जो प्रतिदिन 405 लाख के आस-पास होती थीं , घट कर 203 लाख/दिन रह गयी हैं. इससे गूगल इण्डिया डैमेज कण्ट्रोल में लग गया हैं. वैसे उनके अनुसार एडसेंस की आमदनी घटते ही लेखक झख मार कर ब्लॉग लेखन पर जल्दी लौटेंगे.
4. ज्ञानोदय नामक एनजीओ जो इलाहाबाद के पास करछना में बेस्ड है; ने अमेरिका में ब्रेन ट्रांसप्लाण्ट कैम्प की श्रृंखला लगा कर गरीब अमेरिकनों को उनके ब्रेनडैमेज के बारे में जानकारी देने का काम किया है. उसकी पूरे अमेरिका भर में भूरि भूरि प्रशंसा हुई है. एक मामले में जहां एक अमेरिकी महिला ने अपने प्रेमी का ब्रेन मिक्सी में पीस दिया था, पुन: यथावत रिस्टोर करने में इस एनजीओ के डाक्टरों को सफलता हाथ लगी है. पर इसे भारत के बेनाम ब्लॉगर ग्रुप (बीबीजी) ने स्टण्ट और प्राचीन काल से चली आ रही हाथ की सफाई करार दिया है.
5. हिन्दी की अभूतपूर्व वृद्धि को देखते हुये कलकत्ते के शुभंकर जी (जो प्रियंकर जी के सुयोग्य प्रपौत्र हैं) ने यह घोषणा की है कि वे किसी भी कम्प्यूटर में अंग्रेजी या योरोपीय भाषा का माइक्रोसोवेयर (सॉफ्टवेयर का फ्यूचर संस्करण) बर्दाश्त नहीं करेंगे. ऐसे कम्प्यूटरों की होली सार्वजनिक रूप से जलाई जायेगी. बिल-नारायण मूर्ति; जो माइक्रोसोवेयर की दुनिया की सबसे बड़ी फर्म "खिड़की" के मालिक हैं, ने केम्पेगौड़ा रिजॉर्ट मे छुट्टियां मनाते हुये यह कहा बताया है कि भविष्य के "खिड़की" माइक्रोसोवेयर संस्करण केवल संस्कृत बेस्ड भाषाओं को मान्यता देंगे. इससे पूरे पश्चिम में असंतोष फैल गया है. पर वे देश अपने को इस तकनीकी जॉयेण्ट के सामने असहाय पा रहे हैं. शुभंकर ने इसे भारत की ऐतिहासिक जीत बताते हुये मांग की है कि "खिड़की" को परिष्कृत कर "वातायन" या "गवाक्ष" ब्राण्ड से उतारा जाये, जिससे हिन्दी की और सेवा हो सके.
(बस, इससे ज्यादा लिखवायेंगे तो हम अंग्रेजी उगलने लगेंगे और मसिजीवी को महान कष्ट होगा!)
टैगः anugunj, अनुगूँज
@- इटैलिक्स में जो लिखा है वह सन 2007 का लिखा है. शेष सन 2097 का है.
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1-2577 में ज्ञानदत्तजी, जो लैस कोलस्ट्रोल और मोर मार्निंग स्ट्रोल के बूते स्वस्थ हैं और करीब पांच सौ साल के हो लिये हैं, अमेरिका में यह कहते पाये जाते हैं कि इंगलिश भारतीय भाषा है।
ReplyDelete2-ज्ञानदत्तजी इंगलिशियों के सामने हिंदी ठेल रहे हैं और डांट रहे हैं कि हिंदी इज वर्ल्ड लेंगवेज और हिंदी वालों को हड़का रहे हैं कि अंग्रेजी सीखो। जब दोनों भाषाओँ के जानकार लोग सामने हों, तो ज्ञानजी कह रहे हैं कि रेल में अब आंखखुरानी हो रही है, एक मुसाफिर आंख से देखकर दूसरे मुसाफिर को बेहोश कर देता है। परदेसियों से ना अंखियां लड़ाना-टाइप कुछ सुझाव दे रहे हैं।
3-शिरीषजी आलोक पुराणिक को फोन पर बता रहे हैं कि आप खुद को मैन-कंप्यू साफ्टवेयर के जरिये कंप्यूटर फाइल में कनवर्ट कर लो और चाहे तो मल्लिका सहरावत सप्तम के लैपटाप पर ईमेल हो जाओ या वैजयंती माला एकादश के। आलोक पुराणिक की इस शंका का समाधान करने में शिरीषजी असमर्थ हैं कि मल्लिका सहरावत सप्तम अगर कंप्यूटर पर आलोक.मैन.कंप्यू फाइल को बिना डाउनलोड किये उड़ा देगी, तो क्या होगा। और वैजयंती माला एकादश लैपटाप और रेडियो का अंतर पूछेंगी तो कौन जवाब देगा।
4-मनीषेक (अभिषेक बच्चन की पांचवी पीढ़ी के सुयोग्य पुत्र)पूछेंगे कि परदादा के दादा यानी अमिताभ बच्चन जी ने सारे एड किये,बस लिपस्टिक और डाइपर को छोड़कर, क्यों। क्या उस जमाने में लिपस्टिक और डाइपर नहीं बिकते थे क्या।
बहुत धांसू परिकल्पना है। अनुगूंज में सबसे माडर्न पोस्ट। मसिजीवी के कष्ट देखेंगे तो उनको सच में कष्ट होगा। :)
ReplyDeleteजबरदस्त उड़ान, बहुत बढ़िया. इसी का इन्तजार था.
ReplyDeleteGyandutt Pandey ye bhut hi badiya vichar hai aapke pr aap bhart ko america banane par kyo tule ho.
ReplyDeletewww.kaalchakraa.blogspot.com
सही है ..मजा आ गया.
ReplyDeleteधांसू पोस्ट और उस पर आलोक जी की धांसू
ReplyDeleteटिप्पणी।
ज्ञानदत्त जी,
ReplyDeleteबहुत मजेदार। एक दम जम कर चिकाई की गई है।
पंकज
गजब, ऐसा धो धो कर मारा है कि क्या बताएं।
ReplyDeleteबहुत सही, झकास, मजा आ गया।
वैसे इसका सिक्वल होना मांगता।
ये सब क्या हो रहा है...? हम जरा आजकल व्यस्त चल रहे है तो हमारा पूरा का पूरा पंगे लेने का ठेका ही जड से उखाड दिये है ज्ञान जी और आलोक जी ..भाइ अब ऐसा भी मत करो की हमे वापसी की जरुरत ही ना महसूस हो..:)
ReplyDeleteखुब मजा लगा दिया जी ...:)
ज्ञानदत्तजी,
ReplyDeleteआपने तो फ़ंतासी लेखन में भी किला फ़तेह कर लिया । अब मेरी राय में एडसेंस के भरोसे न रहकर कोई अपने लेखन को छपवाकर माल कमाने के बारे में विचार करें ।
लोगों के नाम बडे अच्छे चुने आपने, एक बार तो ऐसे लगा जैसे चंपक फ़िर से पढ रहे हों ।
बाप-रे आप तो कमाल का लिखे है।
ReplyDeleteवाह जी वाह, फ्यूचरिस्टिक पोस्ट है, मज़ा आया!! :)
ReplyDeleteज्ञान दद्दा, मैदान मार लिया आपने तो!!
ReplyDeleteज्ञानदत जी, बहुत बड़िया लिखा है.काफी दूर की सोची है. बधाई
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