रीडर्स डाइजेस्ट के अगस्त-2007 अंक में “गिविंग बैक” स्तम्भ में “फ्रूट्स ऑफ प्लेण्टी” नामक शीर्षक से पद्मावती सुब्रह्मण्यन का एक लेख है (पेज 39-40). मुम्बई में 66 वर्षीया सरलाबेन गांधी हर रोज 6 दर्जन केले खरीदती हैं. इतने केले क्यों? कितने नाती-पोते हैं उनके?
सरलाबेन केले ले कर 300 मीटर दूर घाटकोपर के राजवाड़ी म्युनिसिपल अस्पताल में जाती हैं. वहां गर्भ की परीक्षा के लिये आउट-पेशेण्ट-विभाग (ओपीडी) में गर्भवती महिलायें प्रतीक्षारत होती हैं. उनमें से बहुत सी कुपोषित प्रतीत होती हैं. सरलाबेन मेज पर अपना केलों वाला थैला रख कर उन स्त्रियों को केले देती हैं. वे औरतें कृतज्ञता से स्वीकार करती हैं.
“केले के छिलके जमीन पर मत फैंकना” – सरलाबेन कहती हैं. कुछ देर बाद वे केले के छिलके एक प्लास्टिक की थैली में जमा करती हैं और घर के लिये रवाना हो जाती हैं.
“इनमें से बहुत सी औरतें दूर-दूर से आती हैं और थक चुकी होती हैं.” राजवाड़ी अस्पताल की गायनिक डा. कृपा अशोक बताती हैं. “केला बहुत अच्छा ऊर्जादायक फल है.” वास्तव में केले में पोटैशियम, मैग्नीशियम, विटामिन और लौह तत्व हैं, जो गर्भावस्था में बहुत लाभदायक हैं.
सरलाबेन यह जानती हैं. उनके पति डॉक्टर हैं. वे नर्स बनना चाहती थीं, पर उनकी जल्दी शादी हो गयी. फिर तीन बच्चियां हुईं. दस साल पहले उन सब की शादी हो गयी. सरलाबेन के पास बहुत सा वक्त खाली बचने लगा. वे एक स्वयमसेवी संस्था के साथ जुड़ कर गर्भवती स्त्रियों को राजवाड़ी अस्पताल में केले बांटने लगीं. बाद में यह काम वे अलग से स्वयम करने लगीं. अब वे सप्ताह में 5 दिन सुबह शाम (दो बार) यह करती हैं. सवेरे वे बच्चों को बिस्कुट-ब्रेड देती हैं और दोपहर में गर्भवती स्त्रियों को केले. शनिवार को उनकी बड़ी लड़की यह काम सम्भालती है. रविवार को ओपीडी नहीं होती, सो छुट्टी होती है.
“कब तक करेंगी वे यह कार्य?” पूछने पर सरलाबेन मुस्कुरा कर कहती हैं – “जब तक जियूंगी.”
मित्रों यह पढ़ने पर कई दिन मैं सोचता रहा. ध्येय खोजने के लिये लम्बी-चौड़ी योजना चाहिये क्या? शायद नहीं.
और मैं रीडर्स डाइजेस्ट से यह अनुवाद कर प्रस्तुत करने में दो प्रकार का जोखिम ले रहा हूं – पहला यह कि कुछ मित्र कह सकते हैं कि इस व्यक्ति के पास कुछ ओरीजिनल तो होता नहीं, अंग्रेजी से टीप कर प्रस्तुत करता है. दूसरा यह कि शायद इसका कॉपीराइट पद्मावती सुब्रह्मण्यन या/और रीडर्स डाइजेस्ट के पास हो.
(ऊपर दायें सरलाबेन और महिलाओं का धुंधला चित्र रीडर्स डाइजेस्ट से)
वाकई जी बस इच्छा होनी चाहिये..शुरुआत चाहे तिनके से ही हो बस जारी रहे..तो भी मिसाल बन जाती है..और आप एक बडा काम कर जाते है..
ReplyDeleteधन्यवाद सर,
ReplyDeleteआपने इसे यहां देकर अच्छा किया, प्रेरक विचारों को ब्लाग प्लेटफार्म में प्रस्तुत करना ही चाहिए भले ही वह पूर्व प्रकाशित हो । सरलाबेन एक आदर्श नारी हैं उनका कार्य न केवल सराहनीय है वरण हम सब के लिए अनुकरणीय है ।
सही किया आपने. यह सहज अनुवाद आवश्यक था इस विचारधारा को विस्तार देने के लिये. यह भी एक सेवा है कि ऐसे विचारों को सबके सामने लाया जाये भले ही अंग्रेजी को अंग्रेजी मे या अंग्रेजी को हिन्दी में करके ज्यादा विस्तार देकर.
ReplyDeleteहर हाल में आप साधुवाद के अधिकारी हैं.
नकल का अपराध बोध मिथ्या है। कमलेश्वर जी अपनी उम्र ५०५० साल बताते थे। यह कहते हुये कि उनसे पहले के जितने लेखक हुये उनके अनुभव भी उनकी ही विरासत हैं। आपकी बात सच है कि करने को तमाम काम हैं। कही से शुरू कर दें।
ReplyDeleteनिश्चित ही ध्येय खोजने के लिए लंबी-चौड़ी योजना की जरुरत नही होती है बस मन मे विश्वास होना चाहिऐ। सरला बेन का कार्य सराहनीय है और आप के द्वारा किया गया अनुवाद भी।
ReplyDeletesorry for comment in english-
ReplyDeleteu said-
मित्रों यह पढ़ने पर कई दिन मैं सोचता रहा. ध्येय खोजने के लिये लम्बी-चौड़ी योजना चाहिये क्या? शायद नहीं.
great inspiring post
is kahani se hame yeh shiksha milti hai ki plan nahin banae chaiye jyada
kuch na karne ki haramkhori 2 tarah se ho sakti hai
1-paehle plan karke
2-pahle plan nahin karke
jahir hai plan na kare banda to, urja bach jati hai, use aur jyada sone mein lagaya ja sakta hai
great lesson
शायद समय आ गया है, जब आम इंसान प्रेरणा के लिए महापुरुषों की तरफ न देखें. एक आम इंसान के अच्छे काम को दोहराना ज्यादा व्यावहारिक होता है. इसलिये ऐसे लोगों के द्वारा किए गये अच्छे काम को सामने लाना ज्यादा जरूरी है.
ReplyDeleteसही बात है. ध्येय खोजने के योजना नहीं सिर्फ सच्ची चाहत की जरुरत होती है. इस प्रेरक प्रसंग के लिए साधुवाद.
ReplyDeleteसच आप का प्रयास जैसा भी है, मेरे लिए तो प्रेरणादाई है धन्यवाद
ReplyDeleteमेरी टिप्प्णी यहाँ है
ReplyDeletehttp://nahar.wordpress.com/2007/08/16/sewa/
इस तरह के प्रेरक प्रसन्ग को इसी तरह जन-जन को बताने की जरुरत है।
ReplyDeleteज्ञानद्त्त जी,आप ने बहुत बढिया कार्य किया है जो ऐसे प्रेरणा देने वाले विचार यहाँ दिए हैं। हम जैसे लोग जिन्हें अंगेजी नही आती,उन के लिए किया गया यह आपका कार्य बहुत महत्व रखता है। आशा है आप अपना यह कार्य जारी रखेगें।
ReplyDeleteसराहनीय कार्य है, प्रेरणापद भी... काश मुझ मे भी ऐसी स्वतः भावना पैदा हो :)
ReplyDeleteज्ञानजी को नमस्कार
ReplyDeleteपरमजीत जी की बात से सौ फीसद सहमत हूं पांडेय साहब। ये पुण्यकर्म चलता रहे तो सचमुच भला होगा जीवन में आस्था बनी रहेगी।
आपका ईमेल क्या है ?
आपसे प्रेरणा लेकर ऐसे रचनात्मक/प्रेरक समाचार सभी हिन्दी ब्लॉग लेखकों को उद्धृत करना चाहिए।
ReplyDeleteइस पोस्ट के आगे तो मेरी केले वाली पोस्ट बहुत बेजान लगती है। इस जानकारी के लिए ह्रदय से आभार।
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