अमन चैन के माहौल में कल दफ्तर में बैठा था. कुछ ही समय पहले श्रीश के ब्लॉग पर हरयाणवी लतीफे पर टिप्पणी की थी. अचानक सवा बारह बजे कण्ट्रोल रूम ने फोन देने शुरू कर दिये कि जोधपुर हावडा एक्सप्रेस का कानपुर सेण्ट्रल पहुंचने के पहले डीरेलमेण्ट हो गया है. आलोकजी की माने तो मुझे कहना चाहिये अवपथन हो गया है. पर न कण्ट्रोल ने अवपथन शब्द का प्रयोग किया न आज सवेरे तक बातचीत में किसी ने अन्य व्यक्ति ने इस शब्द का प्रयोग किया है. लिहाजा मैं अपने "भाषा वैल्यू सिस्टम" बदलने के पहले पुराने तरीके से ही लिखूंगा.
ताबड़ तोड़ तरीके से हमने तय किया कि मुख्यालय से महाप्रबन्धक और अन्य विभागाध्यक्षों की टीम भी दुर्घटना स्थल पर जायेगी. मण्डल रेल प्रबन्धक की टीम तो आधे घण्टे में ही रवाना हो गयी थी. पीछे से महाप्रबन्धक महोदय की टीम के साथ हम भी रवाना हुये. दुर्घटना स्थल से अधिकारी गण जो बता रहे थे – उसके अनुसार ट्रेन का मल्टीपल इंजन और आगे के तीन डिब्बे डीरेल हो गये थे. इंजन तिरछे हो गये थे और आगे का एक डिब्बा इंजन पर चढ़ कर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था. कुल मिला कर स्थिति गम्भीर दुर्घटना की थी. पूरा यातायात अवरुद्ध था.
हम लोगों का पहला ध्यान इस बात पर होता है कि किसी की मृत्यु तो नहीं हुई है. साइट से अधिकारी बराबर बता रहे थे कि किसी मौत को वे नहीं देख रहे. कुछ घायल अवश्य हैं. हमारे डॉक्टर भी साइट पर हैं. पर तबतक टीवी चैनलों की खबरें आने लगी थीं. उनके संवाददाताओं ने यात्री मारने प्रारम्भ कर दिये थे. हमारे अधिकारी कुछ घायलों की बात कर रहे थे और चैनल 8-10 मौतों की. अधिकारी और टीवी वाले दोनो घटनास्थल पर ही थे. दबाव में साइट से एक अधिकारी बेचारा बोल भी गया कि साहब मुझे तो कोई मौत नहीं दिख रही पर मेरे सामने टीवी चैनल वाला बता रहा है मौतें!
कानपुर पहुंच कर हम लोगों ने साइट का मुआयना किया. दुर्घटना बडी थी. पर तब तक दुर्घटना राहत की टीम दो लाइनों में से एक लाइन रिस्टोर कर चुकी थी और दुर्घटनाग्रस्त गाड़ी भी रवाना की जा चुकी थी. महाप्रबन्धक महोदय तीन अस्पतालों में भरती 31 घायलों को देखने चले गये. उनमें से कुल 7 गम्भीर घायल थे. शेष साधारण रूप से. तीनों अस्पतालों में रेलवे के लोग और डाक्टर उपस्थित थे. टीमें वरिठ अधिकारियों की लीड़रशिप में रिस्टोरेशन में लग गयीं. एक लाइन से हमारी मेल-एक्सप्रेस गाड़ियां 22 मिनट के अंतर पर आने-जाने लगीं. सामान्य अवस्था में यह अंतर 10-12 मिनट होता. लिहाजा कुल 16 गाड़ियां हमें दूसरे रास्तों से डायवर्ट भी करनी पड़ीं.
अभी तक दो कोच और एक इंजन टेकल हो चुके हैं साइट से मण्डल रेल प्रबन्धक का सन्देश हैं कि शेष एक इंजन और एक कोच 10 बजे तक उठ जायेंगे और दोपहर 1 बजे तक यातायात सामान्य हो जायेगा.
सर आज लेट कईसे हो गये सोंच रहे थे हम अब पता चला आप अपने रेल कर्तव्यों में व्यस्त थे ।
ReplyDeleteयही तो मीडिया का सनसनी फ़ैलाने और टी.आर.पी.बढ़ाने का तरीका है।
ReplyDeleteघायलों के प्रति संवेदना
ReplyDeleteघायलों के प्रति सद्भावना, आप अपने राहत कार्य में सफल रहे। ऐसी शुभकामना
ReplyDeleteचलिये जी आपका नेटवर्क काम कर रहा था,वरना आप भी हमारी तरह मानने को तैयार नही होते की ज्यादा मरे है..सरकार छूपा रही है..
ReplyDeleteपर सच यही है की फ़टाफ़ट न्यूज के चक्कर मे ये लोग छोटी सी घटना को इतना बढा चढा कर बताते है कि कई बार जो घटना हुई ही नही उसके समाचार के कारण उससे बडी घटना या दुर्घटना हो जाती है
और यही लोग समाचारो की वैधता को स्माप्त करते जा रहे है.
अच्छी खबर यही है कि कोई घायल नही हुआ और जल्द ही सब स्वास्थय लाभ कर ले..
ज़रूरी नहीं कि अवपथन ही हो, गाड़ी पटरी से लुढ़क भी सकती है।
ReplyDeleteकामना है कि सभी घायल जल्द स्वस्थ्य हो जाएं!!
ReplyDeleteअगर ऐसी दुर्घटनाओं में जो चैनल जितने लोगों के मरने की खबर दे उसे उतने ही लोगों का अंतिम संस्कार करने की ज़िम्मेदारी दे दी जाए फ़िर देखिए कौन सा चैनल कितने कम लोग मारता है!!(आलोक जी के अगड़म-बगड़म लेखन के लिए एक और मसाला)
लेकिन दिक्कत यही है कि हमारे यहां का मीडिया खासतौर से इलेक्ट्रानिक मीडिया सिर्फ़ और सिर्फ़ दोषारोपण करना जानता है किसी बात की ज़िम्मेदारी लेना नही। समाज की बुराईयों को उजागर करने की ज़िम्मेदारी उसने ओढ़ी भी हुई है तो वह किस अंदाज़ में यह हम आप सभी देखते ही हैं।
@ आलोक - लुढ़कना, रपटना, धसकना, खिसकना, उछलना, पलटना.... शब्द तो ढ़ेरों आते हैं मेरे दिमाग में भी – और यह किसी समांतर कोष प्रेरित नहीं है. पर आलोकजी कोई डिरेममेण्ट का प्रमाणिक और मस्त (मेरे भरतलाल के पास मस्त का नया संस्करण है “गच्च”, यह अभी समांतर कोश में नहीं है पर भदोही के गावों में खूब चल रहा है!) विकल्प नहीं है. अवपथन प्रमाणिक है पर रसहीन है! सो भाषा पर हम दोनो खूब लड़ सकते हैं!!!
ReplyDeleteआप लोग तुरंत स्थिति संभालने में जुट गये और जल्दी ही स्थिति को सामान्य कर पाए यह जानकर अच्छा लगा . पर इंज़न और डिब्बे के पटरी से उतरने के कारणों पर एक पोस्ट ज़रूर लिखिएगा .
ReplyDelete'पटरी से उतरना' तो खूब चलता हुआ प्रयोग है . पर जब समय का दबाव हो और तुरंत कुछ करना अपेक्षित हो तो दुनिया की किसी भी भाषा का शब्द चलेगा . ज़िंदगी है तो भाषा है .
इसी को कहते हैं मीडिया का गिद्ध्भोज और रेलवे का बिद्ध भोज.
ReplyDeleteजहाँ तक सवाल अवपथन का है, क्या पटरी से उतरना काफी नहीं है?
ईश्वर करें, घायल लोग जल्दी स्वस्थ हों.
@ प्रियंकर और इष्टदेव - पटरी से उतरना सही है, पर बात एक शब्द की भी है. फिर भी काहे की जिद, अगली बार (भगवान न करे हो) तो पटरी से लुढ़का या गिरा देंगे भले ही एक की जगह तीन शब्द लिखने पड़ें. आप लोगों से क्या पंगा लेना!
ReplyDeleteआज तक मीडीया की बदौलत यही समझते थे कि दुर्घटना होने पर सरकारी संस्थान संसिटिव नहीं होते और अपने कानूनों की प्रती ज्यादा सजग रहते हैं. आपके लेख से यह भ्रम तो दूर हुआ.धन्यवाद
ReplyDeleteBefore reading this article i used to be under impression that government agencies remain insensitive and do not respond urgently to emergencies...thank you for removing my prejudices...what was the quality of medical assistance given to the injured:)
ReplyDeleteAnita kumar> ...what was the quality of medical assistance given to the injured:)
ReplyDeleteयह एक्सीडेण्ट कानपुर में था तो हमारे डॉक्टर और मेडीकल वान घण्टे भर के अन्दर वहां थे. डेढ़ घण्टे में लगभग आधे घायल अस्पतालों में थे. सभी घायल कानपुर के तीन अस्पतालों में ले जाये गये. उनके घर पर खबर की गयी. शाम 7 बजे तक सिवाय 4 घायलों के, सबको अनुग्रह राशि - 5000.- गम्भीर घायल और 500.- साधारण घायल को बांट दी गयी थी. मैं यह नहीं कहूंगा कि इससे बेहतर नहीं हो सकता. पर यह सब तो हमारे क्राइसिस मेनेजमेण्ट का हिस्सा है और इसमें कोई कोताही करने वाले को विभागीय दण्ड का सामना करना पड़ता है.
दुर्घटना जांच में इस प्रकार की व्यवस्था पर भी टिप्पणी होती है. और अगर आलोचनात्मक टिप्पणी हो तो उसे हल्के से उड़ाना सम्भव नहीं होता.
हम तो टी वी पर ही देख रहे थे. घायल यात्री शीघ्र स्वास्थय लाभ करें, यही कामना है. आपके द्वारा प्रेषित रिपोर्ट से राहत मिली. यही मीडीया की कलई खोलने का सही तरीका है कि घटना से संबंधित लोग अपनी आँखो देखी बयानी करें. चिट्ठाकारी की यही सार्थकता है. आभार.
ReplyDeleteअरे! हमका काहे हड़काते हैं,हम तो आपके पाले में थे . हम तो कौनो पंगा किये नहीं .
ReplyDeleteअगर 'अंग्रेज़ी' शब्द जल्दी दिमाग में आ रहा हो और उससे आकस्मिक निर्णय लेने में या 'क्राइसिस मैनेजमेंट' -- आपदा प्रबंधन -- में फ़ौरी तौर पर मदद मिल रही हो और इससे जनता को तुरत-फ़ुरत राहत मुहैया हो रही हो दुनिया की किसी भी भाषा का कोई भी शब्द अभीष्ट है .
ऐसी स्थिति हो तो अंग्रेज़ी के 'दाग अच्छे हैं' .
दुर्घटना का कारण क्या था? भविष्य में ऐसे कारणों का निवारण करने हेतु क्या क्या कार्यवाही हुई?
ReplyDeleteसाधन-सम्पन्न रेल्वे क्यो नही अपना एक चैनल लाता जो तमाम जानकारी के साथ समय-समय पर सच को सामने लाये।
ReplyDeleteएक अलग बात पूछ्ना चाहूँगा। रेल्वे जो नया ड्राय बाथरूम लगवा रहा है उसके विषय मे कहाँ से जानकारी मिलेगी? उसमे कौन-कौन से सूक्षम जीव प्रयोग होंगे इसकी जानकारी मिल सके तो अच्छा रहेगा।
@ हरिराम - विचित्र थी यह दुर्घटना. किसी यार्ड में, जहां गाड़ी की गति वैसे ही कम होती हो, इतनी भीषण तरीके से इंजन व डिब्बे पलटें - अजीब लगता है. सम्भवत: कमिश्नर रेलवे सेफ्टी की उच्चस्तरीय जांच होगी. उसपर कार्रवाई कसी हुई होती है. कमिश्नर रेलवे सेफ्टी रेलवे के इतर एजेंसी होते हैं और उनपर रेलवे का पक्ष लेने के कोई दबाव भी नहीं होते.
ReplyDeleteदर्द हिन्दुस्तानी> ... एक अलग बात पूछ्ना चाहूँगा। रेल्वे जो नया ड्राय बाथरूम लगवा रहा है उसके विषय मे कहाँ से जानकारी मिलेगी? उसमे कौन-कौन से सूक्षम जीव प्रयोग होंगे इसकी जानकारी मिल सके तो अच्छा रहेगा।
ReplyDeleteमैं आपको पता कर बाद में बताऊंगा. वैसे इस बाथरूम के प्रशंसक मैने पाये नहीं!
Sarkari afsar jab tak apne vibhaag ke alaawa baaki cheejon par post likhe, tabhi tak bachane kee ummeed hai..Nahin; to nateeja saamne hai.
ReplyDeleteAb to lagta hai 'Railway Safety Week' blog par hee manaana padega aapko...
'Prashn (kaal)' ho gaya..Uttar dena hi padega..(Waise blog par uttar RTI ke daayre mein aata hai kya?)
@ Anonymous - आरटीआई के चक्कर को सोचा नहीं बेनाम जी!. ब्लॉग तो उसके फन्दे में नहीं आता. इस ब्लॉग के लिये तो रेलवे या सरकार एक पैसा भी नहीं लगाती. गूगल का कोई सूचना नियम हो तो पता नहीं. उसकी नियमावली तो हमने बिना पढ़े "यस" कर के एकाउण्ट खोल लिया है! :)
ReplyDeleteवैसे लोगों में रेल के प्रति जिज्ञासा है - यह देख अच्छा लग रहा है!
रेल बेपटरी हो गयी।
ReplyDeleteकानपुर में घायलों की संख्या सौ बतायी अमर उजाला अखबार ने।
एक बार हम सबेरे उठ गये थे। दिल्ली के बाहर एक स्कूल बस दुर्घटनाग्रस्त हो गयी। सबसे तेज चैनेल ने समाचार दिया- बस दुर्घटनाग्रस्त, पांच बच्चे मरे। कुछ देरे बार बच्चों के मरने की आशंका बताई। इसके बाद घायल। घंटे भर में सारे बच्चे सुरक्षित। यह मीडिया हुनर है जो जीवन-मरण यात्रा को अनुत्क्रमणीय (irrversible)से उत्क्रमणीय बना देता है।
ज्ञानदत जी
ReplyDeleteसादर प्रणाम
आपने इतने धेर्य के साथ हर किसी की जिज्ञासा को शातं किया और रेल्वे के बारे में इतनी विस्तर्त जानकारी दी....धन्यवाद
रेलवे की जानकारी के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteअतुल