Monday, November 3, 2008

नैनो-कार की जगह सस्ते-ट्रैक्टर क्यों नहीं बनते?


मेरे प्रिय ब्लॉगर अशोक पाण्डेय ने एक महत्वपूर्ण बात लिखी है अपनी पिछली पोस्ट पर। वे कहते हैं, कि टाटा की नैनो को ले कर चीत्कार मच रहा है। पर सस्ता ट्रेक्टर बनाने की बात ही नहीं है भूमण्डलीकरण की तुरही की आवाज में। उस पोस्ट पर मेरा विचार कुछ यूं है:

green_farm_tractorवह बाजारवादी व्यवस्था दिमागी दिवालिया होगी जो ट्रैक्टर का जबरदस्त (?) मार्केट होने पर भी आर-एण्ड-डी प्रयत्न न करे सस्ते ट्रेक्टर बनाने में; और किसानों को सड़ियल जुगाड़ के भरोसे छोड़ दे।
 
खेती के जानकार बेहतर बता सकते हैं; पर मुझे लगता है कि खेती में लोग घुसे हैं, चूंकि बेहतर विकल्प नहीं हैं। लोग अण्डर एम्प्लॉयमेण्ट में काम कर रहे हैं। सामुहिक खेती और पर्याप्त मशीनीकरण हुआ ही नहीं है। जोतें उत्तरोत्तर छोटी होती गयी हैं। खेड़ा में मिल्क कोऑपरेटिव सफल हो सकता है पर कानपुर देहात में कोऑपरेटिव खेती सफल नहीं हो सकती।  सौ आदमी सामुहिक खेती करें तो एक चौथाई लोगों से चार गुणा उपज हो। उससे जो समृद्धि आये, उससे बाकी लोगों के लिये सार्थक रोजगार उत्पन्न हो।

विकसित अर्थव्यवस्थाओं में यह हुआ है। यहां यूपी-बिहार में कोई इस दिशा में काम करे तो पहले रंगदारी और माफिया से निपटे। वो निपटे, उससे पहले ये उसे निपटा देंगे। उसके अलावा सौ लोगों के सामुहिक चरित्र का भी सवाल है। लोग सामुहिक लाभ के लिये काम करना नहीं जानते/चाहते। एक परिवार में ही मार-काट, वैमनस्य है तो सामुहिकता की बात बेमानी हो जाती है। फिर लोग नये प्रयोग के लिये एक साल भी सब्र से लगाने को तैयार नहीं हैं।

मैं जानता हूं कि यह लिखने के अपने खतरे हैं। बुद्धिमान लोग मुझे आर्म-चेयर इण्टेलेक्चुअल या पूंजीवादी व्यवस्था का अर्थहीन समर्थक घोषित करने में देर नहीं करेंगे। पर जो सोच है, सो है।

लोगों की सोच बदलने, आधारभूत सुविधाओं में बदलाव, मशीनों के फीच-फींच कर दोहन की बजाय उनके सही रखरखाव के साथ इस्तेमाल, उपज के ट्रांसपेरेण्ट मार्केट का विकास … इन सब से ट्रैक्टर का मार्केट उछाल लेगा। और फिर नैनो नहीं मेगा ट्रैक्टर की डिमाण्ड होगी - जो ज्यादा कॉस्ट-इफेक्टिव होगा। तब कोई टाटा-महिन्द्रा-बजाज अपने हाराकीरी की बात ही करेगा, अगर वह ध्यान न दे! 

और कोई उद्योगपति हाराकीरी करने पैदा नहीं हुआ है!


क्या ख्याल है आपका?

~~~~~     

Angad सन २००४ में महिन्द्रा ने रु. ९९,००० का अंगद ट्रैक्टर लॉंच किया था। क्या चला नहीं? smile_sad

दमदार काम में बच्चा ट्रैक्टर शायद ज्यादा फायदेमन्द नहीं है!

एक हजार में उन्नीस किसानों के पास ही ट्रैक्टर है। लिहाजा बाजार तो है ट्रैक्टर का। पर बॉटलनेक्स भी होंगे ही।


Gyan Small
चमेली का तेल लगाये ज्ञानदत्त
और पुछल्ले में यह मस्त कमेण्ट -

नये ब्लॉगर के लिये क्या ज्ञान दत्त, क्या समीर लाला और क्या फुरसतिया...सब चमेली का तेल हैं, जो नजदीक आ जाये, महक जाये वरना अपने आप में चमकते रहो, महकते रहो..हमें क्या!!!

फुरसतिया और समीर लाल के चमेली का तेल लगाये चित्र चाहियें।


41 comments:

  1. दोनों की जरूरत है. जब सस्ते (मगर अच्छे) ट्रैक्टर समृद्धि ले आयेंगे, तो परिवार को तफरीह के लिए सस्ती (मगर अच्छी) कार की भी तो चाहिए होगी. सोचिये, अगर ट्रैक्टर पर ही सभी निकल पड़ेंगे, तो सड़क पर ट्रैफिक और मॉल्स में पार्किंग की समस्या नहीं आयेगी? :-)

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  2. आपको शायद याद हो कि राज ठाकरे ने अपने शुरूवाती दौर में ( शुरूवाती दौर क्या....बाद का दौर क्या....जब दौर हो तब न) कहा था कि मैं ऐसे किसान देखना चाहूँगा जो कि जिन्स और टी शर्ट पहन कर ट्रैक्टर चलाये.....आप की इस पोस्ट ने उसी की याद दिला दी । अब सोचता हूँ ट्रैक्टर की R&D मे इस पोस्ट को भी शामिल किया जा सकता है....कल को कोई उद्योगपति...फुद्योगपति यह पोस्ट पढे तो कह सके....मैने ब्लॉग पर वह पोस्ट पढी....तो मुझे लगा ऐसा बनाना चाहिये और मैने बना दिया:)

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  3. पोस्ट मस्त है...और चमेली का तेल लगा कर कल फोटो भेजता हूँ. :)

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  4. आज के दौर में देश् में प्रगति हुई है तो सिर्फ खर्च की न की उत्पादकता की। आज का युवा उत्पादन में पैसा लगाने की अपेक्षा टीवी, वीसीडी और मोवाईल में पैसा लगाता है।

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  5. पाण्डेय जी! चमेली का तेल लगाकर गंगा जी में डुबकी लगाने का अलगअ आनन्द है। खैर, ट्रैक्टर चलाने में सरकार की रुचि नहीं है। उसके कान में चमेली का तेल पड़ा हुआ है।

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  6. हम फ़ुरसतिये हैं लेकिन समीरलालजी की तरह ह्ड़बड़िये नहीं। आपने दीपावली वाली पोस्ट में लिखा था कि जो सूरन न खायेगा वो अगले जमन में छछूंदर बनेगा। सो नहीं खाये तो अगले जनम में बनेंगे न जी। जब छछूंदर बनेगे तब न चमेली का तेल लगायेंगे (छछूंदर के सर पर चमेली का तेल) आप लोग एडवांस में लगा लिये लेकिन हम समय से करेंगे। बकिया पोस्ट के बारे में विद्वान लोग बता ही रहे हैं-धांसू है। नये ब्लागर को महक से दूर रहकर चमकने का इंतजाम और भरोसा रखना चाहिये। शेर भी पेशे खिदमत है:-
    ओ माये काबा से जा के कह दो
    अपनी किरणों को चुन के रख लें
    मैं अपने पहलू के जर्रे-जर्रे को
    खुद चमकना सिखा रहा हूं।

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  7. अरे, एक जरुरी व्यक्तव्य छूट गया...आप चमेली कातेल लगाये बहुत क्यूट टाईप लग रहे हैं..और पुरसतिया तो लगबे करेंगे क्यूट..रेस्ट अस्यूरड.. :)

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  8. सब का अपना अपना स्थान है कार, सस्ती कार, ट्रेक्टर और जुगाड़। कोई एक दूसरे को नहीं हटाता। और बाजार आज कल जरूरत पर नहीं मार्केटिंग पर चलता है और घोर मंदियों का शिकार होता है।

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  9. अभी-अभी समीरजी ने मेरी पोस्ट मे कहा कि मौज मे रहो और मौज लो....जाकर ज्ञानजी की तस्वीर देख आओ जिसमें चमेली का तेल लगाये आपकी फोटू है...सो फिर आ गया मौज लेने.....लेकिन ये बताईये ज्ञानजी कि आपने रीताजी की बनी सूरन की सब्जी तो मन से खाई थी न,..... फिर ये सिर पर चमेली का तेल क्यों :D

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  10. आज तो बस आपका चमेली का तेल लगा हुआ फोटू ही देख पा रहे हैं ! बहुत मस्त लग रहा है ! कल तक शायद समीर जी का भी आपके पास आ ही जायेगा और फुरसतिया जी मना कर गए ! पर कभी तो फुरसतिया जी मौज में आकर अपना चमेली के तेल वाला फोटू दिखा ही देंगे ! बहुत मजा आया इस चमेली के तेल वाले प्रकरण में !

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  11. बहुत अच्छा विचार है आपका . समाचार पत्रों के अनुसार नैनो का कारखाना लगवाने के लिए तो लाइन लगी थी
    और जो सुविधाएँ उद्योग लगाने पर उद्योगपतियों को मिल रही हैं वो तो ट्रक्टर का कारखाना लगाने पर भी मिलेंगी .रोज़गार के अवसर भी बहुत सारे उपलब्ध होंगे .
    दरअसल हिंदुस्तान के हिसाब से यह विचार अतिउत्तम है.

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  12. सही है गुरु.. चमेली का तेल भी, क्यूट वाली फोटू भी और यह पुसर भी.. तीनो मस्त.. :)

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  13. चमेली का तेल बिक रहा है। ट्रैक्टर बन ही नहीं पा रहा! :)

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  14. " चमेली के मँडवे तले"
    ..(ये गीत याद आ गया )..
    पर होता तो बढिया है कोई शक्क !! :)
    और जोक्स अपार्ट,
    ट्रेक्टर नँदा परिवार के ऐस्कोर्टवाले भी बनाते थे ना ...?
    अशोक जी की पोस्ट हमेँ बहुत पसँद आई ..आगे इस प्रकरण का इँतज़ार रहेगा
    - लावण्या

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  15. पहले छछूदर फिर चमेली का तेल -कुछ अजब गजब हो रहा है !

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  16. आपने सही लिखा है.

    मेरा मानना है, खेती पर निर्भर लोगो की सखंया को कम कर खेती को फायदे का काम बनाया जा सकता है. उसका आधुनिकिकरण किया जा सकता है. फिलहाल जरूरत से ज्यादा लोग इसमें घूसे हुए है.

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  17. मुझे लगता है भारतीयों में मूर्खतापूर्ण होड़ अधिक है। खेती-किसानी की पृष्ठभूमि कभी नहीं रही। फिर भी छोटा ट्रैक्टर भारतीय किसानों के लिए उपयुक्त है इसीलिए सर्वे के बाद अंगद निकाला गया था। मगर वहीं होड़....पड़ोसी ने लिया इसलिए हम भी लेंगे बड़ा। विडम्बना देखिये कि भारतीय किसान के पास वैसे ही कम जोत वाली खेती होती है। पारिवारिक झगड़ों की वजह से और कम होती जाती है। ऐसे में बड़े ट्रैक्टर वैसे ही अनुपयोगी हैं। कहां तो हमारे खेतों को इन्सान द्वारा जोतने के कारुणिक उदाहरण मिलते हैं और कहां कर्ज लेकर ट्रैक्टर ...यहां तक की ज़मीन का टुकड़ा बेचकर ट्रैक्टर लिया जाता है।
    विदेशों में बड़ी जोतें होती है। हमारे यहां चार कदम चले नहीं कि मेड़ आ गई। वहां मेड़ देखने के लिए बाइनाकुलर की ज़रूरत पड़ती है। बड़ी जोत के बावजूद वहां पावर टिलर खूब लोकप्रिय हैं जबकि हमारे यहां पावर टिलर के बारे में किसान अभी तक कम जानते हैं जबकि पावर टिलर एक ग़रीब किसान के दिन फेर सकता है।
    ग्रामीण पृष्ठभूमिवाले हमारे लठैत जनप्रतिनिधि ही खेत, खेती और किसान की बदहाली के जिम्मेदार हैं।

    ज्ञानदा, यह मेरा विषय नहीं है इसलिए चाहूंगा कि आप मेरे विचारों पर कुछ कहें। सही है या नहीं ?

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  18. "ya very well suggested, nice artical to read"

    Regards

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  19. ह्म्म, बात तो आप यूपी-बिहार के मामले में सही कहे हैं!! और सामूहिक श्रम के बारे में भी, लोग वाकई साथ में काम करने लायक नहीं हैं, हर कोई सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना लाभ देखता है चाहे वह छोटा ही हो और बड़े लाभ की कीमत पर मिलता हो। लोग हज़ारपति बन कर खुश हो लेना चाहते हैं यह सोचे बिना कि साथ काम करें तो लखपति हो लें। जब तक वैमनस्य की भावना नहीं जाती तब तक लोग ऐसे ही विभाजित रहेंगे और माफ़िया का ऐसे ही राज रहेगा।

    खेती में इंडस्ट्रियलाइज़ेशन हो तो पैदावार काफ़ी बढ़ सकती है इसमें कोई शक नहीं। लेकिन मुझे इसके आगे खेती के बारे में और उसकी मौजूदा स्थिति के बारे में अधिक ज्ञान नहीं इसलिए आगे कुछ कहना उचित न होगा।

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  20. सूरन खिला के चमेली तो गयी बाग में अब तेल लगा छुछूँदर बनके बैठनें के इलावा उपचार ही क्या?कुछ लोग होते हैं दिखते नहीं,कुछ लोग दिखते हैं होते नहीं।लेकिन आप आज इन्टेलीजेन्ट होते हैं।बेअदबी के लिए मुआफी चाहता हूँ।

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  21. शायद उद्योगपतियों की सोंच ये है:


    ट्रैक्टर का बाजार बहुत छोटा है और नैनो जैसी कार का बड़ा. क्योंकि केवल नैनो खरीदने वाले ट्रैक्टर कभी नहीं खरीदेंगे भले ट्रैक्टर वाले नैनो जरूर खरीद लेंगे !

    कार हमारी मानसिकता में बहुत बड़ी जगह रखता है... 'फलां कार वाले हैं !' की इमेज.

    अगर कम पैसों में मिले तो भारतीय किसान खेती की आमदनी के पैसे बचाकर नैनो खरीदना ज्यादा पसंद करेगा... खेती तो हो ही रही है... रामभरोसे खेती हो जाना अभी भी हमारे किसानों की मानसिकता है.

    और असली समस्या ये है की खेती करने के लिए ट्रैक्टर खरीदने वालों की संख्या बहुत कम है क्योंकि जनसँख्या के साथ-साथ खेत छोटे होते जा रहे हैं... बहुत छोटे. ट्रैक्टर साधारणतया बड़े किसान ही खरीदते हैं नहीं तो वे जिन्हें ट्रैक्टर को अपनी कमाई का जरिया बनाना होता है. अगर किसी गाँव में एक भी ट्रैक्टर हो (वैसे तो बगल के गाँव से भी ट्रैक्टर आ जाते हैं) तो बाकी किसान उसे किराए से काम पर लेते हैं, जुताई हो या दंवनी. अगर कुछ पैसे या अनाज देकर काम हो जाता है तो एक टुकड़े जमीन के लिए कौन ट्रैक्टर लेगा?

    पर कार के साथ ऐसा नहीं है !

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  22. यह बड़ी विडंबना है की कृषि प्रधान देश होने के बाद भी देश मैं कृषि क्षेत्र की अनदेखी की जाती रही है . यह भी एक कारण देश मैं बेरोजगारी और शहर की और पलायन का कारण है . जिससे शहर मैं पर्याप्त संसाधनों की कमी और अपराधी गतिविधियों मैं इजाफा हो रहा है . अतः ट्रक्टर ही क्यों खेती कार्य मैं अन्य सहायक उपकरणों को भी सस्ते और छोटे रूप मैं बनाया जाना चाहिए . इससे कृषि क्षेत्र मैं रोजगार का सृजन और लोगों की रूचि जागेगी . धन्यवाद .

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  23. मांग, आपूर्ति और लाभ का सिद्धांत यहाँ भी काम करता है....जब एक कोठी भरी हो तो दूसरी भरने की सोची जाती है....उसे उलचने की नहीं,..... सही कहना है आपका.

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  24. Sou baat ki ek baat kah di aapne....bas yahi ek satya hai........
    विकसित अर्थव्यवस्थाओं में यह हुआ है। यहां यूपी-बिहार में कोई इस दिशा में काम करे तो पहले रंगदारी और माफिया से निपटे। वो निपटे, उससे पहले ये उसे निपटा देंगे। उसके अलावा सौ लोगों के सामुहिक चरित्र का भी सवाल है। लोग सामुहिक लाभ के लिये काम करना नहीं जानते/चाहते। एक परिवार में ही मार-काट, वैमनस्य है तो सामुहिकता की बात बेमानी हो जाती है। फिर लोग नये प्रयोग के लिये एक साल भी सब्र से लगाने को तैयार नहीं हैं।

    bakee gareeb kisaan aur gareeb bhookhe nange rahen ....isme sabka hit hai.so koun kya karega aur kahega.

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  25. अजीत भाई के विचारों से मैं सहमत हूँ, मैने यहाँ अमेरिका में अपने घर के पास मक्के के बडे बडे खेतों में मशीनीकरण का जोर देखा है। अपने देश में मशीनीकरण की बहुत संभावनायें है लेकिन सामाजिक व्यवस्था, मूर्खतापूर्ण होड़, गरीबी, शिक्षा की कमी और अदूदर्शी लठैत जनप्रतिनिधि, ये होने नहीं देंगे।

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  26. ट्रेक्टर किसानो की बर्बादी का कारण साबित हुआ है आजतक .छोटे जोत के किसान दलालों के चक्कर मैं फस कर लोन पर ट्रेक्टर ले लेते है और अपनी जमीन नीलाम करनी पड़ती है .मैंने भी एक ट्रेक्टर खरीदा है दो साल में ब्याज ही दे पाया हूँ मूल धन में एक रुपया भी कम नहीं हुआ इश्वर जानेआगे क्या होगा .

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  27. विचारणीय प्रश्न् है भैय्या...लेकिन आप ख़ुद ही जवाब दे दिए हैं...कोई उद्योग पति हाराकिरी करने को पैदा नहीं हुआ है...
    नीरज

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  28. ठीक कहा आपनेपहले तो हमें ठिकाने लगाने वाली आदतों से छुटकारा पाना होगा.

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  29. ग्याण जी अब एक दो खेतॊ के लिये किसान अकड मै आ कर ट्रेकटर तो ले लेते है, लेकिन बाद मै उन्हे मुस्किल होती है... ओर फ़िर ट्रेकटर के साथ खेत भी चला जाता है...
    चमेली का तेल तो आज आप पर खुब चमक रह है.
    धन्यवाद

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  30. देर से आने का मलाल है। काफी अच्छी चर्चा हो गयी यहाँ तो। :D

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  31. हमारा देश 'कृषक प्रधान' है और नीतियां 'पूंजीपति/उद्योगपति प्रधान' । जिस दिन हमारे किसान को केन्‍द्र में रखकर नीति निर्धारण शुरु हो जाएगा, उस दिन आपकी पोस्‍ट का जवाब मिल जाएगा ।
    फिलहाल तो नैनो ही चलेगी ।

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  32. जो कहना चाहता था वह सब औरों की टिप्पणी में है।
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    अभिषेक ओझाजी कहते हैं
    ..... नैनो खरीदने वाले ट्रैक्टर कभी नहीं खरीदेंगे भले ट्रैक्टर वाले नैनो जरूर खरीद लेंगे
    -----------------------
    पूरी तरह सहमत हूँ।

    वैसे किसानों के पास एक सस्ता ट्रैक्टर तो पहले सी ही है।
    क्या बैल एक जीता जागता ट्रैक्टर नहीं है?
    जिसके लिए बैल काफ़ी नहीं है वे ट्रैक्टर किराए पर ले सकते हैं।

    हर कोई कार नहीं खरीदता। Auto Rickshaw / या सारवजनिक यातायात (बस/ट्रेन) से अपना काम चला लेता है।

    मन में विचार आता है कि क्या साइकल या साइकल रिक्शा में कुछ जुगाड़ करके एक प्रकार का साधारण और छोटा ट्रैक्टर नहीं बन सकता जिसे दो या तीन आदमी जोर लगाकर चला सकेंगे? छोटे किसानों के लिए बैल की जगह, इसका प्रयोग कैसा रहेगा?

    इसके अलावा यहाँ सही प्राथमिकता का भी सवाल उठता है।
    सस्ता ट्रेक्टर पहले? या सस्ता प्म्प/पानी/उर्वर्क?
    सस्ता ट्रेक्टर पहले? या सस्ती रोशनी/बिजली?
    सस्ता ट्रेक्टर पहले? या सस्ती शिक्षा/स्वास्थ्य पालन-पोषण?
    सस्ता ट्रेक्टर पहले? या सस्ता संचार?

    मेरी राय में प्राथमिकता न नैनो को दी जानी चाहिए न ट्रैक्टर को।
    ============

    चमेली के तेल लगाने के बाद आपके ब्लॉग पर अधिक महक आने लगी है। कल दिन भर सूंघता ही रहा और टिप्पणी करना भूल गया था।

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  33. आदरणीय जी विश्‍वनाथ जी से पहली बार असहमत हो रहा हूं, क्षमा करेंगे।
    उन्‍होंने सस्‍ते ट्रैक्‍टर बनाम सस्‍ता पंप, पानी, उर्वरक, रोशनी, बिजली, शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, पालन-पोषण, संचार के बीच प्राथमिकता का सवाल उठाया है। बड़े भाई, जब जमीन जुतेगी तभी तो बीज, पानी, खाद, बिजली, पंप आदि कुछ काम के हो पाएंगे। और जब ये सभी बेकाम के रहेंगे तो किसान रोशनी, बिजली, शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, पालन-पोषण, संचार आदि के लिए अर्थसक्षम कहां से हो पाएंगे?
    मत भूलिए कि हाल ही में जब पूरी दुनिया भीषण खाद्यान्न संकट से जूझ रही थी तब भी भारत ठीक-ठाक रहा तो यहां के खेत-खलिहानों की ही बदौलत। मौजूदा विश्‍ववयापी मंदी में भी भारत की ताकत संभवत: यहां की अर्थव्‍यवस्‍था का परंपरागत कृषिप्रधान ढांचा ही है।
    खेती में पहला काम खेत की जुताई होता है। आप मत दीजिए सस्‍ता ट्रैक्‍टर, लेकिन खेत जोतने के लिए किसानों को कुछ तो उपलब्‍ध कराइए जो सस्‍ता और उपयोगी हो। शायद आप पावर टिलर की बात करें, लेकिन किसानों का अनुभव है कि भारी, दलदली, व उबड़-खाबड़ जमीन में पावर टिलर जवाब देने लगते हैं।
    आप बैल के होने की बात कह रहे हैं, मैं अनुनाद सिंह जी की टिप्‍पणी को उद्धृत करना चाहूंगा जो उन्‍होंने मेरी पोस्‍ट में की थी – ''आधुनिक अनुसंधान की सबसे बड़ी त्रासदी यही है कि बहुसंख्यक जनता को लाभ देने वाली तकनीक पर बहुत कम विचार होता है। टैकों के जितने संस्करण निकले, उतने हलों के क्यो नहीं या सायकिलों के क्यों नहीं। बेचारी बैलगाड़ी में आजतक ब्रेक की व्यवस्था नहीं है । कितने ही बैल ब्रेक के अभाव के कारण अपनी जान गवाँ चुके।''
    जो भारतीय किसान ट्रैक्‍टर से जुताई कराने में समर्थ नहीं हैं, उनके हाथ में आज भी वैसा ही हल है, जैसा हजारों साल पहले था। यह सोचने की बात नहीं है? क्‍या औद्योगीकरण और विकास किसानों को सिर्फ उपभोक्‍ता बनाने के लिए है? उनके हाथों की तकनीकी ताकत भी तो बढ़नी चाहिए, जिससे वे अपना और देश का भला कर सकें।
    बहरहाल, इस चर्चा के लिए ज्ञान दा और आप सभी टिप्‍पणीकार मित्रों को धन्‍यवाद।

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  34. आपको टैग किया है ज्ञान जी, अपनी पढ़ी पुस्तकों में से कोई पाँच कथन उद्धृत करने हैं, यहाँ देखिए:
    http://hindi.amitgupta.in/2008/11/04/read-and-remember/

    और जल्द ही लिखिए! :)

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  35. आपका सवाल वाजिब है। पर ट्रैक्‍टर खरीदने वाले कितने लोग होंगे। जाहिर सी बात है, नैनों के मुकाबले बेहद कम। तब फिर कोई ट्रैक्‍टर बनाके अपने पैरों पर कुल्‍हाडी क्‍यों मारे।

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  36. अशोक पान्डेजी,
    बहस जारी रखने के लिए धन्यवाद।
    आप मुझसे असहमत हैं तो इतना "apologetic" क्यों होते है?
    हम कोई expert तो नहीं है !

    किसान की भलाई हम थी चाहते हैं और मेरी भी इच्छा है कि किसी प्रकार सस्ता ट्रैक्टर उन्हें भी उपलब्ध हो। शहरी लोगों को हम pamper कर रहे हैं और ग्रामीण लोगों की उपेक्षा हो रही है।
    लेकिन जैसे औरों ने कहा, कोइ उद्योगपति इसमें पूँजी नहीं लगाएगा।
    केवल सरकार कुछ कर सकती है ट्रैक्टर बनाकर किसानों को घाटे में बेच सकती है।
    इतने सारे subsidies हैं, एक और सही।
    खैर, जाने दीजिए। आप की बात भी ठीक लगी।
    शुभकामनाएं

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  37. भारत के किसान शायद आज भी सीधे सच्चे हैं. दिखावों में यकीन नही करते. शायद इसीलिए लोग उनकी फिकर नही करते... (सिवाय चुनाव के दिनों के अलावा )

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  38. ट्रेक्टर किसानो की बर्बादी का कारण साबित हुआ है आजतक .छोटे जोत के किसान दलालों के चक्कर मैं फस कर लोन पर ट्रेक्टर ले लेते है और अपनी जमीन नीलाम करनी पड़ती है .मैंने भी एक ट्रेक्टर खरीदा है दो साल में ब्याज ही दे पाया हूँ मूल धन में एक रुपया भी कम नहीं हुआ इश्वर जानेआगे क्या होगा .

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  39. बहुत अच्छा विचार है आपका . समाचार पत्रों के अनुसार नैनो का कारखाना लगवाने के लिए तो लाइन लगी थी
    और जो सुविधाएँ उद्योग लगाने पर उद्योगपतियों को मिल रही हैं वो तो ट्रक्टर का कारखाना लगाने पर भी मिलेंगी .रोज़गार के अवसर भी बहुत सारे उपलब्ध होंगे .
    दरअसल हिंदुस्तान के हिसाब से यह विचार अतिउत्तम है.

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  40. आपको शायद याद हो कि राज ठाकरे ने अपने शुरूवाती दौर में ( शुरूवाती दौर क्या....बाद का दौर क्या....जब दौर हो तब न) कहा था कि मैं ऐसे किसान देखना चाहूँगा जो कि जिन्स और टी शर्ट पहन कर ट्रैक्टर चलाये.....आप की इस पोस्ट ने उसी की याद दिला दी । अब सोचता हूँ ट्रैक्टर की R&D मे इस पोस्ट को भी शामिल किया जा सकता है....कल को कोई उद्योगपति...फुद्योगपति यह पोस्ट पढे तो कह सके....मैने ब्लॉग पर वह पोस्ट पढी....तो मुझे लगा ऐसा बनाना चाहिये और मैने बना दिया:)

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आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय