Saturday, November 1, 2008

इण्टेलेक्चुअल्स बड़े “डाइसी” पाठक होते हैं।


diceढ़ेरों बुद्धिमान हैं जो दुनियां जहान का पढ़ते हैं। अलावी-मलावी तक के राष्ट्र कवियों से उनका उठना बैठना है। बड़ी अथारिटेटिव बात कर लेते हैं कि फलाने ने इतना अल्लम-गल्लम लिखा, फिर भी उसे फुकर प्राइज मिल गया जब कि उस ढ़िमाके ने तो काल जयी लिखा, फिर भी फुकर कमेटी में इस या उस लॉबी के चलते उसे कुछ न मिल पाया। यह सब चर्चा में सुविधानुसार धर्मनिरपेक्षता/अल्पसंख्यक समर्थन/मानवाधिकार चाशनी जरूर लपेटी जाती है। ऐसे पाठक बहुत विशद चर्चा जेनरेट करते हैं, आपके हल्के से प्रोवोकेशन पर। पर उनका स्नेह दुधारी तलवार की माफिक होता है। कब आपको ही ले गिरे, कहना कठिन है।

बाई-द-वे, सभी इण्टेलेक्चुअल ऐसे नहीं होते। कुछ की वेवलेंथ को आपका एण्टीना पकड़ता भी है। यह जरूर है कि आपकी समझ का सिगनल-टू-न्वॉयज रेशो (signal to noise ratio) कम होता है; कि कई बातें आपके ऊपर से निकल जाती हैं। अब कोई दास केपीटल या प्रस्थान-त्रयी में ही सदैव घुसा रहे, और उसे आलू-टमाटर की चर्चा डी-मीनिंग (de-meaning – घटिया) लगे तो आप चाह कर भी अपनी पोस्टें सुधार नहीं पाते।

असल में, आप जितना अपने में परिवर्तन का प्रयास करते हैं, बुद्धिमानों की आशानुसार; उतना आप वैसा का वैसा ही रह जाते हैं। मन में कोई न कोई विद्रोही है जो मनमौजी बना रहना चाहता है!

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sumant mishraखैर, विषय को जरा यू-टर्न दे दिया जाये। सुमन्त मिश्र “कात्यायन” एक बड़े ही बड़े महत्व के पाठक मिले हैं। उनके प्रोफाइल में लिखे उनके इण्टरेस्ट – धर्म/दर्शन/संस्कृति/सभ्यता/सम्प्रदायों का उद्भव… बड़े प्रभावी हैं। समस्या हमारे साथ है, हम यदा-कदा ही उनके मोड में आ कर कुछ लिख सकते हैं। अपनी नियमित मानसिक हलचल तो टमाटर/आलू/टाई/बकरी पर टिक जाती है।

यह अवश्य है कि अपना नित्य लेखन पूर्णत: उथला नहीं हो सकता। क्रौंच पक्षी की टांगें पूरी तरह डूब जायें, इतना गहरा तो होता है। पर उसमें पर्याप्त (?) गहराई होने की भी कोई गारण्टी नहीं दे सकता मैं। लिहाजा ऐसे पाठक केवल तीन कदम साथ चलेंगे, या मैत्री की ट्रॉसंण्डेण्टल (transcendental – उत्तमोत्तम) रिलेशनशिप निभायेंगे; अभी कहना कठिन है।

अजीब है कि ५०० से अधिक पोस्टों के बाद भी आप अपने ब्लॉग और पाठकों की प्रकृति पर ही निश्चयात्मक न हो पायें। Don't Know

सुमन्त जी का स्वागत है!


चिठ्ठाजगत हर रोज ई-मेल से दर्जन भर नये चिठ्ठों की सूची प्रदान करता है शाम सात बजे। अगर उन्हें आप क्लिक करें और टिप्पणी करने का यत्न करें तो पाते हैं कि लगभग सभी ब्लॉग्स में वर्ड वैरीफिकेशन ऑन होता है। वर्ड-वैरीफिकेशन आपको कोहनिया कर बताता है कि आपकी टिप्पणी की दरकार नहीं है। इस दशा में तो जुझारू टिप्पणीकार (पढ़ें – समीर लाल) ही जोश दिलाऊ टिप्पणी ठेल सकते हैं।

(नये ब्लॉगर्स से अनुरोध: गूगल ब्लॉगर में ब्लॉग के डैशबोर्ड में Settings>Comments>Show word verification for comments?>No का विकल्प सेट कर दें वर्ड-वेरीफिकेशन हटाने को। जैसा टिप्पणियों से लगता है, नये ब्लॉगर यहां से पढ़ने से रहे। लिहाजा यह काट दे रहा हूं। दूसरी जुगत लगाऊंगा!)

अमित जी की देखा देखी इंक ब्लॉग ठेलाई, एमएस पेण्ट से:
 Fursatiya  

33 comments:

  1. भई जिन लोगों को दास-कैपिटल और बाकी भारी-भरकम ग्रंथ पढकर विद्वान होने की ग्रंथी पालनी हो तो जरूर पाले....लेकिन हम तो आपके सीधे-साधे आलू -टमाटर वाले पोस्टों से ही खुश हैं। ज्ञानजी, वैसे Simplicity बनाये रखना बहुत ही दुरूह काम है...बावर्ची फिल्म में राजेश खन्ना ने सुना नहीं क्या कहा था - It is so simple to be happy, but it is so difficult to be simple.

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  2. असल में, आप जितना अपने में परिवर्तन का प्रयास करते हैं, बुद्धिमानों की आशानुसार; उतना आप वैसा का वैसा ही रह जाते हैं। मन में कोई न कोई विद्रोही है जो मनमौजी बना रहना चाहता है!

    क्या बात कही है....जय हो

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  3. मन में कोई नहीं...मन खुद ही विद्रोही है जो वैसा ही बना रहना चाहता.

    रही नये ब्लॉगर को टिप्पणी में:

    डैशबोर्ड में Settings>Comments>Show word verification for comments?>No का विकल्प सेट कर दें वर्ड-वेरीफिकेशन हटाने को।

    ---का समाधान देने की तो वो न तो अपका ब्लॉग जानते हैं और न हमारा. उनको तो उनके पास जाकर ही बताना पडेगा. यहाँ तो आप आलरेडी जानकारों के लिए लिख बैठे जिन्हें तरीका मालूम है मगर हटाना नहीं चाहते. नये ब्लॉगर के लिये क्या ज्ञान दत्त, क्या समीर लाला और क्या फुरसतिया...सब चमेली का तेल हैं, जो नजदीक आ जाये, महक जाये वरना अपने आप में चमकते रहो, महकते रहो..हमें क्या!!!


    इसलिए जाकर बताना पड़ता है. ऎक सा मैसेज..आराम से कट पेस्ट कर सकत हैं. कोई बुराई नहीं ऐसे प्रोत्साहन में..नार्मल से कम समय लगता है. एक बार कट पेस्ट ट्राई तो करिये इस क्षेत्र में. आपका जो गया सो गया मगर उन्हें बहुत प्रओत्साहन मिल जायेगा. विश्वास मानिये, कई नये लोग जुडेंगे यह देख.

    यही तो आप हम सब चाहते हैं इन्क्लूडिंग फुरसतिया!! (जी) ल्गा लिजिये जहाँ बुरा लगे. ";)"

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  4. सुमन्त जी का स्वागत है! यह हम भी कह रहे हैं!! आपके साथ ही!!

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  5. बहुत अच्‍छी बातें कही आपने ! पर नए चिटठाकारों के लिए वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के बारे में जो अनुरोध आपने किया है , उसे एक नए शीर्षक के साथ पोस्‍ट करें , ताकि नए चिटठाकार उसे पढ सकें । मुझे नहीं लगता कि पोस्‍ट के अंदर लिखे गए इस बात को वे पढ पाएंगे ,पढेंगे ही नहीं तो आपके अनुरोध को मानने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता।

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  6. सत्‍यवचन।

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  7. आप वर्ड वेरिफिकेशन पर पोस्ट ही लिखें और शीर्षक भी यही दें तो शायद नए चिट्ठाकार ध्यान दें।

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  8. पाण्डेय जी, इतनी गंभीर पोस्ट न लिखा करें, हम जैसे सरल ग्रामीण की तो पगडी के ऊपर से ही गुज़र गयी.

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  9. " अब कोई दास केपीटल या प्रस्थान-त्रयी में ही सदैव घुसा रहे, और उसे आलू-टमाटर की चर्चा डी-मीनिंग (de-meaning – घटिया) लगे तो आप चाह कर भी अपनी पोस्टें सुधार नहीं पाते।

    असल में, आप जितना अपने में परिवर्तन का प्रयास करते हैं, बुद्धिमानों की आशानुसार; उतना आप वैसा का वैसा ही रह जाते हैं। मन में कोई न कोई विद्रोही है जो मनमौजी बना रहना चाहता है! "


    आ.ज्ञानजी आज तो आपने पूरी त्रिवेणी पोस्ट लिखी है ! दास केपिटल में घुसे रहने वालो को भी लौटना तो आलू टमाटर की तरफ़ ही है ! आख़िर आलू टमाटर भी कहीं ना कहीं उसी का अंग हैं !

    पर आपकी आज की पोस्ट ने वाकई में मेरी "मानसिक हलचल" तो अवश्य बढ़ा दी है ! सोचना पडेगा ! पर आपका ये कथन बड़ा सटीक लग रहा है " मन में कोई न कोई विद्रोही है जो मनमौजी बना रहना चाहता है! "

    इस पोस्ट के लिए बहुत धन्यवाद !

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  10. १.मन में कोई न कोई विद्रोही है जो मनमौजी बना रहना चाहता है!
    २.फ़ुरसतिया की सतत मौज की सप्लाई की नाब का रेग्युलेटर कहां है?
    ३. दूसरे सवाल का जबाब पहले में छिपा है। मन की मौज पर कोई रेग्युलेटर मत लगाइये। सप्लाई जारी रहेगी।

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  11. .

    सर जी, ग़र ज़ाँ की सलामती का भरोसा मिले ( न मिले तो भी क्या.. )
    तो हज़ूर की शान में चंद लफ़्ज़ अर्ज़ करने की ग़ुस्ताख़ी करूँ ?
    आज के तफ़सरे के शुरुआती 814 अल्फ़ाज़ मेरे पास मौज़ूद एक रिसाले में पहले ही फ़रमाये जा चुके हैं । क्या शक्ल ओ सूरतें इस क़दर भी मिला करती हैं ? ओह्हः ज़िन्दगी में कैसे हसीं इत्तफ़ाकों से सामना हुआ करता है ? यह कोई मौज़ लेने का मसला नहीं.., मेरे ओरिज़िनल नुक़्तायत हैं !

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  12. गुरुदेव,
    अपनी विशिष्टता को अपनी पहचान के लिए बनाए रखना अच्छा भी है, और जरूरी भी है। …दूसरों को देखकर हमारा मन बदल जाय यह सम्भव भी नहीं है, और जरूरी भी नहीं है। आप तो बस ऐसे ही जमाए रहिए जी…।

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  13. घणी चोख्खी कही आपने-इंटेलेक्चुअल डाइसी पाठक होते हैं। अजी सच्चे इंटेलेक्चुअल तो पाठ्ठक ही ना होते। ओ तो सिर्फ उपदेशक होते हैं। जो पढ़ ऊढ़ रा है, इसका मतलब अभी समझदार ना है। समझदार तो सिर्फ बताता है। पढना ऊढना काम नासमझों का है।
    येसी नासमझी आप छोड़ दीजिये, सिर्फ ठेलिये। विद्वान ज्ञान बांटते है, बेवकू पढ़ते हैं।
    नहीं ना समझे।

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  14. दर्शन और साहि‍त्‍य में यही तो फर्क है, जब साहि‍त्‍य पर दर्शन हावी रहेगा, तब उसे पढ़ना दुरूह रहेगा, पर यदि‍ साहि‍त्‍य में आम चीजें शामि‍ल रहेंगी, तब वह आम लोगों से जरूर जुडेंगी, जैसे प्रेमचंद से हम सभी जुड़ें हैं।

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  15. हमारे सर के ऊपर से चली गयी ये पोस्ट ....दो बार पढ़ी तो समझ में आया की आप क्या कहना चाहते है ?समीर जी का बड़प्पन है जिन्होंने नए चिट्ठाकारो का प्रोत्साहन किया ....वैसे आप भी इण्टेलेक्चुअल पाठको में आते है सर जी !

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  16. वर्ड वेरीफिकेशन पर तो अलग से ही पोस्ट लिखी जानी चाहिए। इससे नये ब्लॉगरों और कमेंटरों का बहुत भला होगा।

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  17. बात आप बिलकुल सही कहे हैं। यहीच्च कारण है कि अपन हाई-फाई धांसू च फांसू ग्रंथ पढ़ने में अपना समय खालीपीली वेस्ट नहीं करते, सधारण समझ वाले फंतासी और जासूसी उपन्यास पढ़ते हैं जिनको पढ़ने के बाद चिन्तन की आवश्यकता नहीं, पढ़ा मजा लिया और बात खत्म!! :) नहीं तो अपने को भी डर होता कि कहीं दास कैपिटल टाइप ग्रंथ पढ़ कहीं अपने को भी विद्वान होने की खुशफहमी न हो जाए!! ;) बाकी ऐसे विद्वानों को तो आप जानते ही हैं क्या कहा जाता है, लिख भी चुके हैं इस विषय में पहले!! ;)

    और रही आलू टमाटर की बात तो टमाटर मुझे बहुत प्रिय है, स्वादिष्ट होता है और ऑयरन से भरपूर होता है!! :)

    और माइक्रोसॉफ़्ट पेन्ट से काफ़ी अच्छा लिख लिया आपने, यह अपने से नहीं लिखा जाता, आढ़ी तिरछी रेखाएँ ही खिंचती हैं बस!! :)

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  18. मानसिक हलचल निश्चयात्मक हो सकती है क्या? ये तो रैंडम वाक या मर्कोव चेन की तरह है... इसे प्रेडिक्ट करना बड़ा मुश्किल है.

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  19. दास केपिटल ?? अरे हम तो प्रेमचन्द जी के दिवाने है, ओर यह लेख तो हमारी भी समझ से बाहर है,मुझे तो शोक नही अगर किसी को चाहिये दास केपिटल तो... यहां से लेलै...
    http://www.marxists.org/archive/marx/works/download/Engels_Synopsis_of_Capital.pdf

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  20. > अभिषेक ओझा - ये तो रैंडम वाक या मर्कोव चेन की तरह है...
    बिल्कुल 4-5 डायमेंशन में रेण्डम वाक। और मुझे खुद को अन्दाज नहीं होता कि अन्तत: क्या निकलेगा पोस्ट के रूप में।
    हाईली अन-इण्टेलिजेण्ट रेण्डम वाक! :)

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  21. जितनी इस पोस्ट की बातें गहन थीं, उतनी ही टिप्पणियॉ. लोगों ने अलग समां ही बांध दिया. लिखते जाइए. इसका मजा ही कुछ और है.

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  22. नहीं ऐसी बात नहीं, निश्चिंतता होगी....!! लेकिन एक बात नहीं होने देती वो है...ब्लॉग जगत की अनिश्चितता.....!
    जैसे ही यह आप जैसे गंभीर लोगों के अथक परिश्रम से स्थायित्व पायेगा...इसका लाभ सभी को मिलेगा. फ़िर भी कुछ अवश्यम्भावी परिवर्तन तो सदैव चलते रहेंगे...!

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  23. आप और अन्य सभी अपनी स्वभावगत लेखन प्रक्रिया को जारी रखेँ यही मेरा मानना है -
    - लावण्या

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  24. आपके लिखें की विविधता एवं सौम्यता का मैं प्रसंशक हूँ भाई जी ! ताऊ की पोस्ट से सहमत हूँ !

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  25. ज्ञानजी,त्रुटि की ओर संकेत करनें तथा निराकरण के निर्देशके लिए धन्यवाद।मुझे लगता है कि सम्भवतः कार्य यथानिर्देश सम्पन्न हो गया है।समीर भाई को भी अनेकशः धन्यवाद।अभय तिवारीजी के आदेश पर जैसे तैसे ब्लाग तो बना लिया था किन्तु अभी भी बहुत सी तकनीकियाँ सीखनीं हैं।

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  26. १)
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    आलू, टमाटर, बैंगन, सूरन, टिड्डा और हम जैसे नगण्य पाठकों वगैरह पर लिखना कभी मत छोड़ना। हम साधारण लोगों को यही सब आकर्षित करते हैं।

    आपके "बुद्धिजीवी" पाठकों को प्रसन्न करने के लिए भले ही आप इनके botanical/zoological नामों का प्रयोग करें। या इनके लिए एक अलग ब्लॉग आरंभ कीजिए और हमें लिंक भी बता दीजिए ताकि हम गलती से भी वहाँ कभी न जाएं!
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    २)
    moderation से हमें कोई परेशानी तो नहीं होती। हम जैसे अधीर टिप्पणीकारों को सब्र सिखाता है। पर जब किसी ब्लॉग्गर के यहाँ टिप्पणी करने से पहले word verification की भी औपचारिकता पूरी करनी होती है, तो टिप्पणी करता ही नहीं हूँ।

    मेरे प्रिय चिट्टे वही हैं जहाँ मेरी टिप्प्णियाँ, बिना moderation के, उसी क्षन छपते हैं और बाद के सभी टिप्पणियों की notice मुझे भेजी जाती है।

    spam से बचने के लिए शायद आप जैसे सफ़ल और नामी ब्लॉग्गरों को moderation का सहारा लेना पढ़ता होगा। काश कोई ऐसी सुविधा होती जिससे आप कुछ चुने हुए विश्वसनीय मित्रों को "Free pass" दे सकें।
    Application Number 1 मेरे लिए आरक्षित कीजिए।
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    ३)
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    सुमन्त मिश्राजी की तरफ़ मेरा भी ध्यान आकर्षित हुआ था।
    २० October को टॉल्सटॉय और हिन्दी ब्लॉगरी का वातावरण विषय पर उनकी टिप्प्णी पढ़कर मैने लिखा था:

    सुमन्त मिश्राजी,
    आप से विनम्र अनुरोध है कि आप बार बार यहाँ आकर टिप्पणी करें।
    यह आपका "दुस्साह्स" नहीं होगा। उल्टा, हम सब अपने आप को धन्य समझेंगे।
    शुभकामनाएं
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    ४)
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    कभी कभी तो ब्लॉग से ज्यादा टिप्पणी पढ़ने में हमें मज़ा आता है।
    एक प्रश्न पर आज भी बार बार सोचता हूँ।
    क्या टिप्पणी सबसे पहले करना अच्छा होगा या अंत मे ?
    अंग्रेज़ी में कहावत है He laughs best who laughs last.
    क्या टिप्प्णी करने की कला पर भी यह कहावत लागू होता है?
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    ५)
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    आपका इंक ब्लॉग देखा। यदि hand writing आपको पसन्द है तो इसके लिए अलग उपकरण मिल जाएंगे। Electronic note pad और Stylus / pen का प्रयोग कर सकते हैं । बिना scan किए आपका handwriting सीधा pdf format में बदल जाएगा। एक डाक्टर विशेषज्ञ के पास देखा था। उनका एक विशेष pad पर हाथ का लिखा हुआ prescription उसी क्षण अपने आप कंप्यूटर के स्क्रीन पर दिखने लगा और hard disk पर सहेज लिया गया था।
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  27. मैं भी स्‍मार्ट इण्डियनजी का अनुयायी हूं । सब कुछ सर से उपर ही निकल गया ।

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  28. स्‍मार्ट इण्डियनजी अकेले नहीं हैं । मैं उनके पीछे ही खडा हूं ।

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  29. इस डर के कारण तो हम कई बार टिप्पणी देने में भी घबरा जाते हैं...बड़े, ज्ञानी लोग हैं, पता नहीं क्या सोचेंगे.

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  30. इस डर के कारण तो हम कई बार टिप्पणी देने में भी घबरा जाते हैं...बड़े, ज्ञानी लोग हैं, पता नहीं क्या सोचेंगे.

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  31. आप और अन्य सभी अपनी स्वभावगत लेखन प्रक्रिया को जारी रखेँ यही मेरा मानना है -
    - लावण्या

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  32. जितनी इस पोस्ट की बातें गहन थीं, उतनी ही टिप्पणियॉ. लोगों ने अलग समां ही बांध दिया. लिखते जाइए. इसका मजा ही कुछ और है.

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  33. घणी चोख्खी कही आपने-इंटेलेक्चुअल डाइसी पाठक होते हैं। अजी सच्चे इंटेलेक्चुअल तो पाठ्ठक ही ना होते। ओ तो सिर्फ उपदेशक होते हैं। जो पढ़ ऊढ़ रा है, इसका मतलब अभी समझदार ना है। समझदार तो सिर्फ बताता है। पढना ऊढना काम नासमझों का है।
    येसी नासमझी आप छोड़ दीजिये, सिर्फ ठेलिये। विद्वान ज्ञान बांटते है, बेवकू पढ़ते हैं।
    नहीं ना समझे।

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आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय