भरतलाल का नाम अगर चण्डीप्रसाद होता और मेरी पत्नी भरत-भरत की जगह चण्डी-चण्डी टेरती होती तो हर सप्ताह मेरी पत्नी को लक्ष चण्डी जाप का पुण्य मिलता. इतना महत्वपूर्ण है भरतलाल.
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|| MERI MAANSIK HALCHAL ||
|| मेरी (ज्ञानदत्त पाण्डेय की) मानसिक हलचल ||
|| मन में बहुत कुछ चलता है ||
|| मन है तो मैं हूं ||
|| मेरे होने का दस्तावेजी प्रमाण बन रहा है यह ब्लॉग ||
भरतलाल का नाम अगर चण्डीप्रसाद होता और मेरी पत्नी भरत-भरत की जगह चण्डी-चण्डी टेरती होती तो हर सप्ताह मेरी पत्नी को लक्ष चण्डी जाप का पुण्य मिलता. इतना महत्वपूर्ण है भरतलाल.
जांच करके आप केस रफ़ा-दफ़ा कर दिये! :)
ReplyDeleteदेखिये उसने अपने ठेले पर अपना प्रतिदावा(डिस्क्लेमर) लगाया हुआ है अब आपने खुद देख लिया है तो कोई कानूनी कार्यवाही नही हो सकती
ReplyDeleteहमारे देश में अंग्रेजी में लिखा मान्य होता है, अतः कुल्फी वाले का पक्ष भारी है. अच्छा हुआ आपने पंगा नहीं लिया :)
ReplyDeleteमै संजय बैंगाणी जी से सहमत हूँ ।अंग्रेजी की महिमा ही निराली है।
ReplyDeleteबड़ा ईमानदार प्राणी निकला राम आसरे ! यदि सब इतने ईमानदार हो जाएँ तो सोचिये कैसे कैसे बोर्ड लगे होंगे सब जगह ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
मुझे इसमें 'व्यर्थ से अर्थ' के पुरस्कर्ता और प्रचारक श्रद्धेय रामआसरे पटेल जी की देशज व्यापार-कुशलता और क्षमता के साथ-साथ हिंदुस्तान में अंग्रेज़ी की दुलची हुई दयनीय उपस्थिति के भी मनोरम दर्शन होते हैं .
ReplyDeleteहा हा, मजेदार:
ReplyDeleteमेरी पत्नी भरत-भरत की जगह चण्डी-चण्डी टेरती होती तो हर सप्ताह मेरी पत्नी को लक्ष चण्डी जाप का पुण्य मिलता.
--यह घर में पुलिसिया वातावरण काहे भाई जो दबिश दी गई. अब जब पुलिस थाना बना ही लिया है तो वैसा ही व्यवहार होना चाहिये-ले देकर मामला रफा दफा करिये. :)