शिव मिश्र लिखते हैं कि क्रिकेट पर मीडिया का रुख अच्छा नहीं है. मीडिया माने टीवी वाले. कई दिनों से टीवी वाले माइक और कैमरा ताने हैं. कई आतंकवादी बैनर हेडलाइन दिखा रहे हैं - "शेर हो गये ढेर" या "नाक कटा दी". टीवी पर जो कहते हैं, उसका सार है कि "क्रिकेट वाले अच्छा नहीं खेलते. खिलाडी़ कमर्शियल हो गये हैं. उन्होंने क्रिकेट को बजारू बना दिया है. आदि-आदि."
शिव के अनुसार इन मीडिया वालों ने क्या न्यूज को बजारू नहीं बनाया? अगर न्यूज बजारू बन सकती है तो कुछ भी बजारू बन सकता है. टीवी वाले अब भी क्रिकेट वालों की मदद से प्रोग्राम बेच रहे हैं. उसके लिये अब क्रिकेटरों को बुला कर हार पर चर्चा करते हैं.
क्रिकेट को मीडिया धार्मिक उन्माद की तरह हवा दे रहा है. धार्मिक उन्मादी जिस तरह व्यवहार करते हैं, क्रिकेट के उन्मादी उससे अलग नही हैं.
लोग (मीडिया उनमें शामिल है) जहां हाथ डालते हैं, फेल होते हैं. फेल होना राष्ट्रीय चरित्र है. पर लोग क्रिकेट में फेल होना बर्दाश्त नहीं कर सकते!
अब क्रिकेट टीम हार गयी है. बेचारों को घर जाने दें. कुछ तो रिटायर हो जायेंगे या कर दिये जायेंगे. कुछ अपने होटल-रेस्तरॉ चला लें. लड़कीनुमा औरतों को, जो क्रिकेट के फाईन-लेग पर अपना फाईन लेग चिपका कर मीडिया वालों की टीआरपी रेटिंग बढा़ रही थीं; रैम्प-वैम्प पर जाने दें. झाड़-पोंछ कर निकाले गये पुराने क्रिकेटर जो बहुत बतिया चुके, वे भी अब घर जायें.
टीवी पर जो विश्व कप में हार की चर्चा को फेंटा जा रहा है, उसकी बजाय अमिताभ बच्चन/शाहरुख खान/आमिर खान आदि से नवरतन तेल या कोका कोला बिकवाया जाये.
भगवान के लिये ये जिहाद बन्द हो!
(फुटनोट: शिव मिश्र मेरे छोटे भाई हैं, इसलिये उनके व्यस्त समय में मैं कभी भी धकिया कर घुस जाता हूं और आर्थिक सलाह तो फोकट में लेता हूं. वे सटायर लाज़वाब लिखते हैं. उनसे कह रहा हूं कि ब्लॉग प्रथा का वरण कर लें; पर अभी झिझक रहे हैं.)
Cricket ke puraane Bharteey khiladi aaj ke khilaadiyon ki aalochna karte nahin thak rahe.Yash Pal Sharma, Maninder Singh, Ashok Malhotra, Sandeep Patil jaise poorv khiladiyon ne kis tarah se cricket kheli hai, hum sabhi jaante hain.
ReplyDeleteJab bhi cricket ka world cup hota hai, jo Bharateey khilaadiyon ke 1983 World Cup mein kaarnaamon ki charcha hoti hai.Lekin kya hum ye sochte hain ki 1983 World Cup mein Bharteey team ki jeet ka ek kaaran unpar kisi tarah ka pressure na hona bhi tha.Bangladesh team ke ooper bhi kisi tarah ka pressure na hona shaayad unke liye achchha saabit hua.
Puraane Bharteey cricketers coach bankar team ka 'bhala' karna chaahte hain.Lekin coaching ke liye jo sabse jyaada zaroori hai, woh hai communication skills.Hum in puraane cricketers ko roj TV par bolte sunte hain.Lekin kya ek bhi poorv khiladi aisa hai jo 5 minutes tak lagataar apni baat hindi ya angrezi mein kah sake?Bina duhraaye huye?Jinke paas is tarah ki skills hai, woh coach bankar aana nahin pasand karte.
Jahan tak media ki baat hai, to yahi saare TV News channels aur Media house cricket ki telecast rights ke liye kitne paise dene ke liye taiyaar rahte hain, hum sabhi jaante hain.Phir yahi shikaayat karte hain ki cricket ko commercialised kar diya gaya hai.Jyaada din pahle ki baat nahin hai.Yahi saare News Channels desh ke kone-kone se team ka hausla 'barhaane' ke liye banaaye gaye 'gaanon' ka telecast kar rahe the.Ab yahi log puraane 'bade' khilaariyon ko bulakar kis tarah se aaj ke khilaadiyon ki aisi taisi kar rahe hain, hum sabhi dekh rahe hain.
Ek baat saaf hai.Inki wajah se khilaadiyon ka nuksaan ho ya na ho, cricket ka nuksaan zaroor ho raha hai.
सही कहा ज्ञानदत्त जी आपने,
ReplyDeleteबहुत हो गया अब! पिछले दिनों जहाँ देखो क्रिकेट-क्रिकेट। किसी को इसके अलावा कुछ और नजर ही नहीं आता। कई तो इस तरह व्यक्त कर रहे हैं और कह रहे हैं मानो ये ग्यारह बारह खिलाड़ी ही देश का प्रतिनिधित्व करते हों, जो इनके हार जाने से देश की नाक कट गई।
देश में अभी विश्वनाथन आनंदों, पुल्लेला गोपी चंदो और मेजर राज्य वर्धनों की कमी नहीं है। बस कमी है तो पारखी नजर की।
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