|| MERI MAANSIK HALCHAL ||
|| मेरी (ज्ञानदत्त पाण्डेय की) मानसिक हलचल ||
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|| मेरे होने का दस्तावेजी प्रमाण बन रहा है यह ब्लॉग ||
Saturday, March 3, 2007
हरिश्चंद्र - आम जिन्दगी का हीरो
आपकी आँखें पारखी हों तो आम जिन्दगी में हीरो नजर आ जाते हैं. च्यवनप्राश और नवरतन तेल बेचने वाले बौने लगते है. अदना सा मिस्त्री आपको बहुत सिखा सकता है. गीता का कर्म योग वास्तव के मंच पर घटित होता दीखता है.
आपकी आँखों मे परख हो, बस!
हरिश्चंद्र पिछले महीने भर से मेरे घर में निर्माण का काम कर रहा था. उसे मैने घर के addition/alteration का ठेका दे रखा था. अनपढ़ आदमी होने पर भी मैने उसमें कोई ऐब नहीं पाया. काम को सदैव तत्पर. काम चाहे मजदूर का हो, मिस्त्री का या ठेकेदार का, हरिश्चंद्र को पूरे मनोयोग से लगा पाया.
आज काम समाप्त होते समय उससे पूछा तो पता चला कि उसने मजदूरी से काम शुरू किया था. आज उसके पास अपना मकान है. पत्नी व दो लड़कियां छोटी सी किराने की दुकान चलाती है. बड़ी लड़की को पति ने छोड़ दिया है, वह साथ में रहती है. पत्नी पास पड़ोस में ब्यूटीशियन का काम भी कर लेती है. लड़का बारहवीं में पढता है और हरिश्चंद्र के काम में हाथ बटाता है.
मेहनत की मर्यादा में तपता, जीवन जीता - जूझता, कल्पनायें साकार करता हरिश्चंद्र क्या हीरो नहीं है?
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स्वागत है आपका चिट्ठाजगत में ज्ञानदत जी। शायद आप वही ज्ञानदत्त हैं जिनकी आज ही मेरे पास मेल आई थी। संयोग की बात है कि ब्लॉग सर्च से अचानक आज ही आपके दूसरे चिट्ठे पर पहुँचा।
ReplyDeleteफिलहाल मैं यही मान कर चलता हूँ कि आप वही ज्ञानदत्त हैं।
मेरी आदत है कि जब भी किसी नए चिट्ठे पर पहुँचता हूँ तो जाँच पड़ताल करता हूँ कि यह महाशय कौन हैं, कब आए, कितनी पोस्ट लिख चुके हैं फिर टिप्पणी करता हूँ।
अतः जिस दिन यह पोस्ट लिखी गई उस दिन से अब तक आप बहुत कुछ हिन्दी टाइपिंग/ब्लॉगिंग के बारे में सीख चुके हैं। तो मैंने आपके तीनों चिट्ठों पर सबसे पहली पोस्ट ढूंढी लेकिन तब मैंने पाया कि आप आजकल इस वाले ब्लॉग पर नियमित लिख रहे हैं अतः यहाँ टिप्पणी करने का निश्चय किया।
आपके ब्लॉग को देखकर अंदाजा आ रहा है कि आप ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव रखते हैं, हाँ हिन्दी जगत में नए हैं।
अब केवल दो टिप्पणियों से ये भी पता चल रहा है कि या तो आपको नारद के बारे में नहीं पता या फिर किसी अन्य कारण से अभी तक वहाँ अपना चिट्ठा पंजीकृत नहीं कराया। इसके अतिरिक्त ऐसा भी ध्यान नहीं कि परिचर्चा में आपसे मिला होऊं। खैर मैं बता देता हूँ, आपको पता हो तो भी ठीक है न हो तो लग जाएगा।
'नारद' एक साइट है जिस पर सभी हिन्दी चिट्ठों की पोस्टें एक जगह देखी जा सकती हैं। हिन्दी चिट्ठाजगत में चिट्ठों पर आवागमन नारद के जरिए ही होता है।
अतः नारदमुनि से आशीर्वाद लेना न भूलें। इस लिंक पर जाकर अपना चिट्ठा पंजीकृत करवा लें। नारद आशीर्वाद बिना हिन्दी चिट्ठाजगत में कल्याण नहीं होता।
'परिचर्चा' एक हिन्दी फोरम है जिस पर हिन्दी टाइपिंग तथा ब्लॉग संबंधी मदद के अतिरिक्त भी अपनी भाषा में मनोरंजन हेतु बहुत कुछ है।
अतः परिचर्चा के भी सदस्य बन जाइए। हिन्दी लेखन संबंधी किसी भी सहायता के लिए इस सबफोरम तथा ब्लॉग संबंधी किसी भी सहायता के लिए इस सबफोरम में सहायता ले सकते हैं।
उम्मीद है जल्द ही नारद और परिचर्चा पर दिखाई दोगे। अन्य कोई प्रश्न हो तो निसंकोच पूछें।
श्रीश शर्मा 'ई-पंडित'
ज्ञानदत्त साहब, मेरे मन मैं आज फिर अहो ध्वनि के भाव आ रहे हैं. लिखते रहिये, धुरविरोधी पढता रह्वेगा.
ReplyDeleteबे-शक वह नायक है ! और ऐसे नायकों की कमि नही है। चाहे कर्म हो या 'त्रप्ति किस चीज़ में मिलगी' अगर इस का ग्यान पाना है, तो छोटी छोटी चीज़ों और और आम लोगों में मिलेगा।
ReplyDeleteलिखते रहें।
रिपुदमन पचौरी