यह मजबूरी बहुतों की है. लोग मुसलमान यार-दोस्तों की यारी एक पत्थर के मंदिर के नाम पर तोड़ना नहीं चाहते. भारत के धर्म-निरपेक्ष संविधान में आस्था (?) राम पर मूर्त-आस्था से भारी पड़ती है. नहीं तो; विश्व हिन्दू परिषद के भगवाधारियों, तोगड़ियाजी जैसे "श्रिल" आवाज बोलने वालों और त्रिशूल भांजने वाले बजरंगीयों से एलर्जी के चलते; आप राम मंदिर से अपने को अलग कर लेते हैं. कईयों को अपनी मजदूरी पर असर आने की आशंका होती है.
पर राम के विषय में सोच पर यह मजबूरी आडे़ नहीं आने देनी चाहिये.
राम और कृष्ण भारत के अतीत या मिथक नहीं हैं. वे; जो अद्भुत होने जा रहा है; उसकी नींव रखने वाले हैं. मैं इस बारे में श्री अरविन्द का प्रसिद्ध कथन प्रस्तुत कर रहा हूं:
There are four very great events in history , the siege of Troy, the life and crucifixion of Christ, the exile of Krishna in Brindavan and the colloquy with Arjuna on the field of Kurukshetra. The siege of Troy created Hellas, the exile in Brindavan created devotional religion, (for before there was only meditation and worship), Christ from his cross humanised Europe, the colloquy at Kurukshetra will yet liberate humanity.Yet it is said that none of these four events ever happened.
-Sri Aurobindo
यह कथन गीता के विषय में है. पर वही राम के चरित्र पर भी सटीक है.
अत: राम को मन मन्दिर में बिठाना तो है ही; टेण्ट में उपेक्षित रामलला की प्रतिमा से जो अभीप्सा को ठेस लगती है, उसे भी दूर करना है. यह ठेस गली कूचों में उपेक्षित हनूमानजी या शिवजी की पिण्डी से लगने वाली ठेस से तुलनीय नहीं है.
आप यह कह सकते हैं कि मंदिर बनाने में साम्प्रदायिक सद्भाव बिगड़ने का खतरा है (पर इतने बडे़-बडे़ नेता बड़ी तनख्वाह या रुतबा समस्या का समाधान निकालने के लिये ही तो लेते हैं!). और आप यह भी कह सकते हैं कि वर्तमान स्थितियों में मंदिर बनाना फिजिबल नहीं है. पर यह तो न कहिये कि राम वहां कैद हो कर रह जायेंगे. कैद तो हमारी मानसिकता हो सकती है - राम नहीं.
अभय से पंगा लगता है सलटेगा नहीं!
खूब लें पंगा लेकिन यह भी एक पोस्ट में बता दें कि नीचे लिखा शीर्षक क्यों बदला ?
ReplyDeleteभईया, मन्दिर तो वहीं बनने दो.
अभय तिवारी ने बडी़ सुन्दर पोस्ट लिखी भगवान राम पर. लेकिन किसी मजबूरी वश पोस्ट में चलते-चलते लीप-पोत दिया. राम मन्दिर अयोध्या में बनाने में आस्था डगमगा गयी. मंदिर में राम बंधक नजर आने लगे. यह मजबूरी ब...
ज्ञानदत्त पाण्डेय द्वारा Fri Mar 30 03:06:00 PDT 2007 पर प्रेषित स्रोत: ज्ञानदत्त पाण्डेय की मानसिक हलचल
अफलातूनजी, ब्लॉगिंग का एक सबक आपसे सीखा. "ऑन द नेट" एडिटिंग नहीं करना चाहिये. पोस्ट फाइनल शेप ले रही थी और कैसी लगेगी जानने को पब्लिश बटन दबा दिया. मेरे विचार से वर्तमान हेडि़ग लेख के मैटर के ज्यादा अनुरूप है.
ReplyDeleteWaiting to see
ReplyDeletewhat happens
in the coming years ..........