Thursday, March 29, 2007

निरालाजी के इलाहाबाद पर क्या गर्व करना?

मुझे एक सज्जन ने पूरे फख्र से टिप्प्णी में कहा है कि वे निराला के इलाहाबाद के हैं. उसपर एक अन्य मित्र ने बेनाम टीप करते हुये निरालाजी की मन्सूर से तुलना की है - "अगर चढ़ता न सूली पर तो वो मन्सूर क्या होता". निराला, जैसा मुझे मालूम है, इलाहाबाद में फक्कडी और बदहाली में जिये (और मरे). पत्नी व पुत्री की अकाल मौत, कौडी़ के मोल अपनी पुस्तकों का कापीराइट बेचना, बेहद पिन्यूरी में जीवन और अनेक प्रकार के दुखों ने उन्हे स्किट्ज़ोफ्रेनिया का मरीज बना दिया था - ऐसा विकीपेडिया पर एन्ट्री बताती है. उनकी कविता की गहराइयों का आकलन करने की मेरी काबलियत नहीं है. पर एक शहर जो ऐसे साहित्यकार को तिल-तिल कर मारता हो - और इलाहाबाद में (जुगाडू़ साहित्यकारों को छोड दें तो) वर्तमान में भी साहित्यकार लोअर मिडिल क्लास जीवन जीने को अभिशप्त होंगे - कैसे निराला पर हक जमाता है?

मैने मन्सूर को भी इन्टर्नेट पर छाना. अल-हुसैन इब्न मन्सूर अल हल्लाज सूफी सम्प्रदाय का था. उसने मक्का, खोरासान और भारत की यात्रायें की थीं. अंत में बगदाद में सेटल हो गया. बगदाद की बजाय बरेली में होता तो शायद बच जाता. बगदाद में उसे कुफ्र बोलने के कारण सूली पर चढा़ दिया गया. सूली पर न चढ़ता तो मन्सूर मन्सूर न होता. निरालाजी भी अगर इलाहाबाद में थपेडे़ न खाते तो इलाहाबाद के आइकॉन न बनते! जो शेर बेनाम सज्जन ने टिप्पणी में लिखा है:
  • kiya daava analahak ka,hua sardar aalam ka

Agar charhta na shooli par,to woh Mansoor kyon hota.

Allahabad Nirala ji tak aakar ruk jaata hai.....

उसका लब्बोलुआब यही है. यह समझनें में मेरी ट्यूब लाइट ने २४ घण्टे से ज्यादा ले लिये. बेनाम जी को निश्चय ही सशक्त समझ है.
निराला जी की ग्रेट्नेस इलाहाबाद के बावजूद आंकी जानी चाहिये. इलाहाबाद को उनकी महानता में हिस्सेदारी न मिलनी चाहिये न वह उसको डिजर्व करता है. जैसे कि मन्सूर की शहादत पर बगदाद का कापीराइट नहीं है.

मेरे इस लेखन से मेरे पिताजी को कष्ट होगा जो इलाहाबादी हैं. पर मुझे तो इलाहाबाद के इतिहास से अटैचमेण्ट नहीं है .

(वर्तमान में इलाहाबाद व उसके आस-पास का अंचल कैसे प्रगति कर रहा है या सड़ रहा है; उसपर फिर कभी लिखूंगा.)

5 comments:

  1. आपकी बात में दम है हुज़ूर-ए-आला . उनके जीवित रहते तो हम अपने 'आइकन्स' की मिट्टी पलीद करते हैं ,उन्हें ठीक से जीने भी नहीं देते . पर बाद में मरने पर उन्हें सम्मान बख्शते हैं और गर्व-सर्वनुमा बयानबाज़ी करने लगते हैं .

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  2. निरालाजी की महानता का इलाहाबाद से क्या संबंध। वे जहाँ कहीं भी होते निराला ही होते।

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  3. निराला जी का उल्लेख करने का मेरा आशय, अपनी प्रतिक्रिया में दंगल के मेरे उपयोग को एक संदर्भ देना था.. निराला जी कई दफ़े साहित्यिक मसलों को दंगल में सुलझाने में भी भरोसा रखते थे.. ऐसी अफ़वाहें रहती थी जब मैं आपके शहर में पढ़ता था..उसके अलावा निराला जी के प्रति या आपके प्रति किसी अभद्रता का कोई विचार नहीं था..

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  4. Thanks Abhay (I am purposefully avoiding addressing Abhayji, for I now consider you more dear to me!) Allahabad is not mine - it is yours. And I intend being more critical to this city in my future posts.
    I think it will be a favour to me if you can eliminate/reduce/divert my misgivings towards scribes.

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  5. निराला जी का उल्लेख करने का मेरा आशय, अपनी प्रतिक्रिया में दंगल के मेरे उपयोग को एक संदर्भ देना था.. निराला जी कई दफ़े साहित्यिक मसलों को दंगल में सुलझाने में भी भरोसा रखते थे.. ऐसी अफ़वाहें रहती थी जब मैं आपके शहर में पढ़ता था..उसके अलावा निराला जी के प्रति या आपके प्रति किसी अभद्रता का कोई विचार नहीं था..

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय