नारद पटा पडा़ है "नन्दीग्राम लाल सलाम" और इसी तरह की चिठ्ठा पोस्टों से. इस एक नन्दीग्राम को मीडिया भी प्रॉमिनेण्टली हाईलाइट कर रहा है. पर और कितने नन्दीग्राम हैं? और केवल कमीनिस्ट ही क्यों, जितने भी तरह के इस्ट वाले हैं, दबंगई में नन्दीग्राम-नन्दीग्राम खेलते हैं. कितने लाल सलाम के ब्लॉग बनायेंगे आप?
लाल सलाम के ब्लॉग बनाने में एक और झगडा है. आप तो केवल ब्लॉगर हैं, हर दमन का विरोध करेंगे. पर जो सडक पर लडा़ई कर रहे हैं, उनकी प्रतिबद्धता का क्या भरोसा है? दमन के विरोधमें लड़ने वाले कब खुद वही खेल खेलने लग जाते हैं - कहना मुश्किल है. जेपी (भगवान उनकी आत्मा को शान्ति दे) के साथ वाले "सिंघासन खाली करो कि जनता आती है" का गायन छोड़ खुद सिंघासन पर बैठ गये. जनता वहीं है, जहां थी. असम में छात्रनेता सत्तासीन हुये और पता नहीं उन सिद्धान्तों का क्या हुआ, जिनकी दुहाई से वे जनता के सिरमौर बने थे. आदिवासियों के मसीहा एक झारखण्डी नेता तो हत्या के मामले में सजा पा रहे हैं. सब कुओं में भांग घुली है तो लाल सलाम का ब्लॉग क्या करेगा?
नन्दीग्राम लाल सलाम वाले चिठ्ठे पर मैं हो आया हूं. उस में जो लिखा है उसके प्रति मैं प्रतिबद्ध नहीं हूं पर वह सही है, इसपर कोई मतभेद भी नहीं है. एक निरीह सी टिप्पणी भी कर दी है उसमें ताकि ये न लगे कि मैं कमीनिस्टों की साइड वाला हूं. पर नन्दीग्राम घिसने से ज्यादा महत्वपूर्ण काम किये जा सकते हैं.
बहुत जगह महाभारतें चल रही हैं. बस यही नही मालूम कि कौन पाण्डव हैं, कौन कौरव. कृष्ण कहां हैं यह भी पता नहीं. ब्लॉगर संजय है या महाभारत लड़ रहा है - यह सोचने का विषय है. फिर कौन पाण्डव कब कौरव बन जाता है - पता ही नहीं चलता.
बिल्कुल सही फरमाया आपने। विचारणीय बात है।
ReplyDeleteमहाभारत एक घटना थी, ब्लॉग भी एक घटना है और अनन्त ब्रह्माण्ड में हम आप भी एक घटना हैं। महत्व इसका नहीं है कि कौन किसका चरित्र निभा रहा है, अपितु इसका है कि संपुर्ण क्रम की प्रगति किधर हो रही है। और इसके निर्धारण में घटनाओं की हमारी समझ व प्रतिक्रियायें निर्णायक हैं। लाल सलाम पर पृष्ठ काले करने को इसी रुप में लेना चाहिए। मैं आपसे सहमत हुं कि विचारार्थ और भी महत्वपुर्ण विषय हैं, किन्तु इस विषय ने इस लिये भी लोगों को आकर्षित किया कि इससे कई रुढिबद्ध धारणायें टूटी।
ReplyDeleteआपने तो विचार में डाल दिया.
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