मैने पाया कि लोगों ने मेरे ब्लॉग का संक्षिप्तीकरण समय के साथ कर दिया है - "हलचल" या "मानसिक हलचल"। मेरे ब्लॉग को मेरे नाम से जोड़ने की बजाय वे इन शब्दों से उसे पुकारते रहे हैं। कभी कभी तो इस प्रकार की टिप्पणियां मिली हैं - "हलचल एक्स्प्रेस आज समय पर नहीं आयी"; अर्थात सवेरे मैने नियत समय पर पोस्ट पब्लिश नहीं की।
मेरा अंग्रेजी के ब्लॉग के शीर्षक में शब्द था म्यूजिंग। उसके समीप पड़ता है "मानसिक हलचल"। लिहाजा मैने इस ब्लॉग के शीर्षक संक्षिप्तीकरण में उसे बना दिया है -
"मानसिक हलचल"
ऐसा किये कुछ दिन हो गये हैं। पता नहीं आप ने संज्ञान में लिया या नहीं।
डेढ़ साल में ब्लॉग की कुछ पहचान बन पायी है! अब तो रेलवे में भी (जहां ब्लॉग साक्षरता लगभग शून्य है) लोग पूछने लगे हैं मुझसे ब्लॉग के विषय में। हमारी उपमुख्य राजभाषा अधिकारी इस बारे में एक लेख देना चाहती है, उत्तर-मध्य रेलवे की पत्रिका में। मुझसे कहा गया है कि मैं अधिकारियों को एक कार्यशाला के माध्यम से कम्प्यूटर पर हिन्दी लिखना सिखाऊं। यह मुझे अगले सप्ताह करना है और मैं अपनी सोच को पावरप्वॉइण्ट शो में डालने में लगा हूं।
पिछली पोस्ट पर आलोक जी की टिप्पणी का अंश - (ब्लॉग पर) लोग अपने लिए नहीं, भीड़ में जगह पाने के लिए लिख रहे हैं। जो चीज़ असली दुनिया में न मिल सकी, उसे आभासी दुनिया में पाने की कोशिश कर रहे हैं। (और) यह भूल जाते हैं कि एक बार लॉग ऑफ़ किया तो वापस वहीं जाना है! |
मेरी ब्लॉग की हाफ लाइफ वाली पोस्ट पर मित्रगणों ने एक बार पुन: अंग्रेजी के अधिक प्रयोग पर अपना विरोध जताया है। पहले तो हिन्दी वाले बहुत लखेदा करते थे। तब शायद मेरी हिन्दी के प्रति श्रद्धा पर उन्हें विश्वास नहीं था। अब कुछ विश्वसनीयता बढ़ी है। जिहाजा, बावजूद इसके कि पहले ही वाक्य में ~९५% अंग्रेजी के अक्षर थे, मुझे हिन्दी विरोधी नहीं माना गया। इसके लिये मैं अपने सभी पाठकों का विनम्र आभारी हूं। विशेषत: घोस्ट बस्टर (जिनका १००% नाम अंग्रेजी में है), सागर नाहर और आलोक ९-२-११ जी का।
एक मजेदार स्पैम!
परसों एक मजेदार चीज हुई। मेरी एक पुरानी पोस्ट "ज्यादा पढ़ने के खतरे(?)!" पर एक टिप्पणी अनजान भाषा में मिली। इसे पोस्ट करने वाले के पास ब्लॉगस्पॉट की आइडेण्टिटी थी पर उसपर क्लिक करने पर कोई प्रोफाइल नहीं मिला। मैं तो इसे स्पैम मान कर चलता हूं। शायद आपको भी मिला हो यह स्पैम। स्पैम के चलते मैने इसे पब्लिश भी नहीं किया। पर २५ जनवरी की इस पोस्ट, जिसपर मार बवाल मचा था, यह स्पैम(?) टिप्पणी चार महीने बाद क्यों है, यह समझ नहीं आया। स्पैमर साहब को अब भी अपेक्षा है कि अब भी लोग वह पोस्ट देखते होंगे! पर क्या पता मुझे मन्दारिन में अब जा कर किसी ने "प्रवचन" दिया हो। आपकी समझ में आ जाये तो मुझे बताने का कष्ट करें। टिप्पणी का चित्र यूं है -
अब चाहे इसमें सलाह हो, स्नेह हो या गाली हो, अक्षर तो किसी शिलालेख से लग रहे हैं! वैसे इस स्पैम का हर शब्द एक हाइपरलिंक है जो "बीजे.सीएन" अर्थात चीन की वेब साइटों के वेब पतों पर ले जा रहा है! एक दो साइट यह हैं -
चलिये, अण्ट-शण्ट लिख कर एक पोस्ट बन गयी। अब चला जाये। जै रामजी की!
आप की पोस्ट में अंग्रेजी शब्द कुछ कहते प्रतीत होते हैं। वे ससम्मान आते हैं इसलिए कि उन के समानार्थक हिन्दी शब्द नहीं होते। उन से से हिन्दी की गरिमा को कहीं चोट नहीं पहुँचती। फिर वे मेहमान की तरह आते हैं और चले जाते हैं घर के किसी कमरे पर कब्जा नहीं करते। इसलिए चलेंगे। हाँ रोज रोज विदेशी मेहमान आएंगे तो लोग उंगलियाँ उठाएंगे ही। दो हिन्दी मुहावरों "अण्ट-शण्ट" और विदाई संबोधन "जै राम जी की" के प्रयोग के लिए बधाई।
ReplyDeleteजै सिया राम! (जय श्री राम)नहीं।
यह समझने के लिए आपको मेरी उस पोस्ट पर जाना पड़ेगा जिस पर मैंने दयाराम साहनी और राखालदास बैनर्जी से ज़्यादा सिंधु लिपि की डिकोडिंग की थी. यहीं हँस दूँ क्या ? लेकिन वह बाद में....
ReplyDeleteऔर उसका क्या जिसके लिए हम पाटी लेकर बैठे हैं? एक बिटिया ने सिखाना शुरू किया था लेकिन वह भी आज कल पसमंजर से गायब है.
लीजिये, हम आपसे नाराज़ हुए जाते हैं (प्रेमचंदकालीन). आप उपन्ने से क्यों रेझ रहे हैं मुख्य या प्रधान से क्यों.नहीं? हूहूहू........हीहीही ...................
अच्छा है यह परिवर्तन !
ReplyDeleteसादर
ज्ञान जी, मैंने देखा था कि आपने नाम बदल के "मानसिक हलचल" किया है - पर मुझे लगता है कि पहले वाला नाम, "ज्ञानदत्त पाण्डे की मानसिक हलचल" काफ़ी ठीक था। शायद लोग हलचल एक्स्प्रेस या हलचल मात्र इसलिए लिखते होंगे कि बगलपट्टी में जगह कम होती है। पर वास्तव में यहाँ लोग आपका लिखा पढ़ने आते हैं! आपके नाम से भी इस चिट्ठे की पहचान है।
ReplyDeleteपर दुबारा सोचने पर - मुझे लगता है सबसे बढ़िया नाम होगा - "ज्ञानदत्त की हलचल एक्स्प्रेस"! और नीचे - रोज सुबह पाँच बजे प्लेट्फ़ार्म नम्बर एक पर। :)
और चीनी के बारे में - आप गूगल भैया को कैसे भूल गए? चीनी >> हिन्दी।
वैसे आपके चिट्ठे की खूबी यह है कि आपने अपने पाठकों को अपने लेखन में बहुत अच्छी तरह बाँधा है, उनकी बात को तवज्जो देते हुए और उनकी टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा है। यह परस्पर संवाद शायद हिन्दी चिट्ठाजगत में सबसे अच्छी तरह आपने किया है।
@ आलोक - आपने अच्छा याद दिलाया। गूगल ट्रांसलेशन मेरे मन में आया था पर मैने सोचा कि शायद चीनी>हिन्दी सुविधा न हो।
ReplyDeleteखैर ट्रान्सलेशन यह है -
क्रिसमस का पेड़ लघु व्यवसाय
लघु निवेश
बार कोड प्रिंटर Zhengka प्रिंटर
Zhengka मशीन मुद्रक Zhengka
लेबल प्रिंटर टैग प्रिंटर
अनुसंधान प्रयोगशाला के वैज्ञानिक अनुसंधान प्रयोगशाला में प्राथमिक स्कूल
डिजिटल प्रायोगिक अनुसंधान प्रयोगशाला अनुसंधान
डिजिटल प्रोजेक्टर प्रयोगशाला
बीजिंग चलती प्रोजेक्टर
बीजिंग चलती स्थान परिवर्तन कम्पनी
बीजिंग चलती स्थान परिवर्तन कम्पनी
बीजिंग चलती कंपनी Yuesao
Yuesaoyuesao
उन्होंने बच्चों के पालन वह पिता की
वह पिता की Yuesao
वे बच्चे के पिता की देखभाल प्रभाग
वेडिंग ड्रेस
वेडिंग बच्चों फोटोग्राफी
क्रिसमस का पेड़ बेल्ट
Kraft कागज टेप मोहरी टेप
उच्च तापमान प्लास्टिक पर्ण टेप
फोम टेप चेतावनी टेप
विशेष Tape किराए के लिए उच्च तापमान
टिकट के लिए हवाई टिकट
घरेलू हवाई टिकट अंतरराष्ट्रीय हवाई टिकट
ई टिकट बट्टा टिकट
ई टिकट बट्टा टिकट
विशेष ऑफर विशेष अंतरराष्ट्रीय हवाई किराया टिकट
छात्र टिकट बुकिंग
अनुसूचित अंतरराष्ट्रीय हवाई टिकट बुकिंग हवाई टिकट
अनुसूचित अंतर्राष्ट्रीय हवाई टिकट अनुसूचित घरेलू हवाई टिकट
घरेलू हवाई टिकट बुकिंग बीजिंग हवाई टिकट बिक्री
बीजिंग टिकट के लिए टिकट
बीजिंग भुनाई अंतरराष्ट्रीय हवाई टिकट के लिए हवाई टिकट
घरेलू कीमतों के लिए टिकट के लिए हवाई टिकट
छात्रों के लिए अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्रा के लिए टिकट।
:)
अब नाम परिवर्तन आपने किया है तो कैसा प्रश्न चिन्ह. पहला भी आपका था और यह भी. हम तो आपके और आपके लेखन के कायल हैं. चाहें चिरकुट नाम रख लें. :)
ReplyDeleteकल की अपनी पोस्ट पर सुभाषित आपके डेली एसिन्शियल थाटस से चुरा कर अनुवाद किये थे, पता नहीं कैसे आपका साभार किस सोच में रह गया वहाँ पर, उस पर अब ग्लानि का अहसास हो रहा है,(जबकि पक्का सोचा हुआ था कि साभार आपके लिखना है, यही तो बढ़ती उम्र के लक्षण हैं :)) आशा है आप माफ करेंगे.
आप कहेंगे तो मैं अपने ब्लॉग से सार्वजनिक तौर पर धृष्टता के लिए क्षमा मांग सकता हूँ बिना एतराज.
या फिर एक बार कहिये कि माफ किया. :)
@ उड़न तश्तरी - क्या बात करते हैं समीर जी, वे विचार कौन से मेरे हैं। पुस्तकों और नेट से ही लिये गये हैं। और आपने भी तो लेखकों को उद्धृत किया है। कोटेशन्स तो सारी मानवता की धरोहर हैं!
ReplyDeleteनाम बदल लिये। इतने दिन बाद। बहुत बहादुर हैं। बधाई!
ReplyDeleteकुछ गड़बड़ हो गयी. हम तो आपके आंकडों से लगाव को लेकर थोडी सी छेड़खानी के मूड में थे. इसलिए प्रतिशत में हिन्दी और अंग्रेजी को तौल रहे थे. स्माइली भी कमेन्ट में लगाया था. मगर ज्यादातर लोग (प्रशांत प्रियदर्शी जी समेत) उस अंग्रेजी विरोध का आभास देने वाले कमेन्ट को गंभीरता से ले बैठे.
ReplyDeleteअपनी सफ़ाई विस्तार में प्रशांत जी की पोस्ट पर दे चुके हैं. संक्षेप में फिर दोहरा देते हैं. वाक्य के प्रवाह की सरसता बनाये रखने के लिए अगर कहीं अंग्रेजी शब्द का प्रयोग आवश्यक हो तो अपन कोई हर्ज नहीं मानते. मगर यथासंभव हिन्दी का प्रयोग करना उचित समझते हैं.
और घोस्ट बस्टर नाम से आईडी हमने जनवरी २००८ में बनाया था जब हिन्दी में ब्लॉग्स की जानकारी भी नहीं थी. जब हिन्दी ब्लॉग संसार में कूदे (मार्च २००८) तो आलस्यवश नया आईडी बनाने से बचते रहे. वैसे url (प्रेत विनाशक) तो हिन्दी शब्द ही है, आपका ही दिया हुआ. उसके लिए बेहद आभारी हैं.
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अगर किसी पर इन्कम टेक्स का छापा पड़ता है तो वो बधाई का पात्र हो जाता है. लोग ईर्ष्या से देखते हैं. इसी प्रकार ब्लौगर की सबसे बड़ी उपलब्धि इसमें है कि उसे किस स्तर के स्पैमर अपना निशाना बनाने योग्य समझते हैं. तो आपको इतना महत्वपूर्ण स्पैम पाने पर बधाई. चाइनीज हैकर्स विदेश मंत्रालय की साइट्स को हैक करते हैं और चाइनीज स्पैमर्स आपके ऊपर धावा बोलते हैं. निःसंदेह जान गए होंगे कि हिन्दी ब्लॉगर्स में किस की तूती बोलती है. :D
मैं भी लम्बे नाम से त्रस्त हूं और उसे छोटा करने की सोचता हूं, मुझे भी "महाजाल" या सिर्फ़ "सु्रेश चिपलूनकर" लिखकर काम चला देते हैं :) :)
ReplyDeleteनाम बदलने की बधाई , लेकिन पहला ज्यादा अच्छा था
ReplyDeleteअब मेरे लिये भी एक अच्छा सा नाम बता दीजीये (मतलब ब्लोग के लिये)हम भी बदल डाले जी :)
नाम बदल दिया आप ने कोई बात नहीं पर बकटुट कभी मत हटाइएगा यह अनुरोध है ।-हमारी भानी उसे देखती है ,अरे- अरे रूको -रूको मुझे वो चलता हुआ आदमी गेखना है, कहती है ..समय खराब करती है ,हमारा पर आप का ब्लाग तो पहचान गई है ।
ReplyDeleteजमाये रहिये
ReplyDeleteसही है जी.. जो भी नाम रखें बस मस्त रहें और लिखते जायें..
ReplyDeleteऔर आपने भी हिंदी चीनी भाई भाई बोल ही परे.. सही है.. :)
कुछ दिनो पहले किसी ब्लागर ने लिखा था कि चलता नही हल फिर भी हलचल है। शायद अविनाश वाचस्पति जी ने यह कविता की थी।
ReplyDeleteयदि आम सूचना की जगह आम चूसना छप जाये अखबारो मे तो भी लोग उसे आम सूचना ही पढेंगे। रच बस जो गया है यह। वैसे ही आप ब्लाग का नाम कुछ भी रखे नियमित पाठको पर शायद ही कोई असर हो। :)
स्पैम कहाँ है ये? लगता है आपको हवाई यात्रा के लिए कुछ ऑफर मिलें हैं ... हो आईये बीजिंग-विजिंग...
ReplyDeleteमैं तो रोज़ २-४ लोट्री जीत-जीत के परेशान हो गया हूँ... इधर कई दिनों से द.अफ्रीका के कई धनी लोग मुझे अपना वारिस बनाना चाहते हैं... संसार में लगता है मैं ही एक योग्य आदमी बचा हूँ :-)
जै रामजी की!
आलोक जी से सहमत हूं, दर-असल किसी ब्लॉग की सफलता सिर्फ़ लेखन से ही नही होती पाठकों को जोड़ने से होती है और वह आप बखूबी कर रहे हैं।
ReplyDeleteआपको पढ़ने वाले तकरीबन सभी पाठक अपने को आपसे जुड़ा हुआ महसूस करते हैं, इससे ज्यादा एक ब्लॉगर को और क्या चाहिए!!
नाम तो पहले वाला ही ज्यादा जंचा था मुझे.
ReplyDeleteपर मेरे जंचने का क्या?
आपकी इस पोस्ट से कई एक पोस्ट लिखने का ख्याल और समान मिला.
रायल्टी नही मिलेगी.
धन्यवाद.
शुरू मे तो हम आपके नाम (ज्ञानदत्त पांडे)से ही ब्लॉग ढूँढते थे और आपके ब्लॉग का नाम तो हमे याद नही रहता था (लंबा नाम था ना )पर हाँ आपकी रेलगाडी और फ्लिन स्टोन हमेशा याद रहते थे। :)
ReplyDeleteखैर नाम आप बदले या नही आपको पढने वाले आते ही रहेंगे।
आप नाम बदलें या नाम बिल्कुल हटा दें, हम तो वैसे ही आपको पढ़ते रहेंगे, जब अच्छा नहीं लगेगा कह देंगे। :)
ReplyDeleteचाईनीज भाषा को हिन्दी में बदलने के बाद जो कुछ दिखा वो पढ़ने में हंसी आ गई, लगा अधकचरी सी कविता हो।
अब तो आप नाम कुछ भी रख लो... ऐसे ही पढ़े जायेंगे...
ReplyDeleteबाकि जै राम जी की. :)
आप कोई भी नाम रखे हमने तो अपने यहाँ "पांडे जी का ब्लोग्स "नाम रख दिया है...
ReplyDeleteअईसा है कि ज्ञान बिड़ी की आदत आपने लगाई है । तो ज्ञान वाला ब्रांड तो हम छोड़ेंगे नहीं । ज्ञान बिड़ी पीने का हमारा ठिया तो यही रहेगा ना, आप जितने बोर्ड बदलने हैं बदलते रहिए । हमने रूमाल बिछाकर अपनी जगह पक्की कर ली है । और ज्ञान बिड़ी पढ़ने से कोई हटा तो सकता नहीं ।
ReplyDelete:D
आप जो वर्क शॉप लेगें उसके बारे में जानने की उत्सुकता तो रहेगी, पावर पॉंइंट आप पोस्ट पर भी दिखाएगें न?
ReplyDeleteयह मिट्टी के पहियों वाली गाड़ी कुछ ज्यादा ही भा रही है मुझे।
ReplyDeleteइसे मैं बचपन में गड़ारी कहता था।
हिंदी सेवा के नाम पर मचने वाली चिलगोजईयां तो लोगों की चलती ही रहेंगी....मैं सोच रहा हूं कि 'गड़ारी' शब्द की अंगरेजी क्या हो सकती है ?