आपका मोबाइल, आपका ई-मेल, आपकी डाक, आपके सामने से गुजरने वाले ढ़ेर सारे विज्ञापन - सभी इंश्योरेंश पॉलिसी बेचने में जुटे हैं। आपकी बहुत सी ऊर्जा इन सब से निपटने में लगती है। आपके फोन पर जबरन चिपके उस इंश्योरेंस कम्पनी वाले लड़के/लड़की को स्नब करने के लिये आपको गुर्राना पड़ता है। उसके बाद कुछ क्षणों के लिये मन खराब रहता है। आप गुर्राना जो नहीं चाहते।
पर आपने कभी सोचा है कि हमारा शारीरिक स्वास्थ्य हमारी बेस्ट इंश्योरेंस पॉलिसी है।
इस पॉलिसी का प्रीमियम रोज अदा करना होता है। पर यह भी है कि अगर आप जबरदस्त डिफाल्टर रहे हों प्रीमियम जमा करने में, तो भी एक दिन तय कर लें और प्रीमियम जमा करना शुरू कर दें, पॉलिसी रिन्यू हो जायेगी।
और इस इंश्योरेंस पॉलिसी में कई बोनस हैं। असल मे यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य के विषय मे इनीशियल गारण्टी भी देता है। आप अगर स्वस्थ रहते है तो काम भी ज्यादा और बेहतर कर सकते है। उससे आपकी माली हालत मे भी सुधार होता है।
पर आपको अगर शुरुआत करनी है तो कपड़े के अच्छे जूते और पैतालीस मिनट से एक घण्टे के बीच में घूमने का स्लॉट निकालना है। इसके अलावा प्राणायाम की एक्सरसाइज - चाहे वह किसी पद्धति की हो, फयदेमन्द है।
एक उदाहरण मैं श्री अरविन्द का देना चाहूंगा। श्री अरविन्द की आदत थी कि वे कमरे में लम्बे समय तक टू एण्ड फ्रो चला करते थे और लम्बे समय तक यह करते थे। चलना उनके मेडीटेशन (ध्यान) का अंग भी था। उनके चलने का समय प्रबन्धन के लिये कमरोँ में दीवाल घड़ियां लगा दी गयी थीं।
मुझे एक रॉबिन शर्मा की पुस्तक का उद्धरण याद आ रहा है - अच्छा स्वास्थ्य एक ताज है जो स्वस्थ व्यक्ति के सिर पर सजा है। यह केवल रुग्ण लोग ही देख सकते हैं।
यह सन्देश हमें समय रहते हुये चेतने की प्रेरणा दे रहा है.एक दमदार सन्देश बहुत ही रोचक दंग से परोसा है आपने.
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने.
ReplyDeleteउचित संदेश महाराज, साधु साधु।
ReplyDeleteसेहत के महत्व का पता तब लगता है, यह नहीं रहती है।
जमाये रहिये।
मार्निंग वाक गर्मियों में और रोचक हो जाती है। भांति भांति की पब्लिक वाकने आ जाती है।
असली मार्निंग वाकर कौन है, इसकी परीक्षा तो दिसंबर च जनवरी में ही होती है।
लगातार मानसिक श्रम से त्रस्त होकर अब मैने भी शाम को टेबल टेनिस शुरु किया है। एक घंटे का व्यायाम तो पिछले कुछ वर्षो से कर ही रहा हूँ। मुश्किल लगता है पर शरीर रोज ही देखबाल माँगता है।
ReplyDeleteअच्छा स्वास्थ्य इश्वर की सब से बड़ी मेहरबानी है...आप ने बिल्कुल सही कहा. घूमने जैसी क्रिया सर्वोत्तम है.
ReplyDeleteनीरज
मुझ जैसे आलसियों के लिए प्रेरणादायक पोस्ट.
ReplyDeleteकल से ही वाकना शुरू करता हूं :)
बड़े भाई!
ReplyDeleteये रोज सुबह या शाम का घूमना हम से कभी नियमित नहीं हो पाता है। लेकिन हमारे काम के दौरान हम कम से कम चार किलोमीटर रोज चलना होता ही है, उसे हम तेज चाल से चलते हैं। उस का लाभ तो मिलता ही है फिर सप्ताह में कम से कम तीन दिन इतनी ही जॉगिंग करते हैं। हिसाब बराबर, खाने पर थोड़ा नियन्त्रण जरुरी है। पर खानदानी ब्राह्मण हैं सो मीठे का लालच रहता है और रतलामी सेव पसंद है जो कोटा में खूब बनता है। लेकिन चपाती में घी बन्द कर चुके हैं। तेल का सब्जी में सावधानी पूर्वक प्रयोग करते हैं। स्वास्थ्य इसी लिये संयत है।
हे ज्ञान के सागर स्वामी ज्ञानानन्द जी
ReplyDeleteअब आप से क्या छिपा है? आप तो अन्तर्यामी हैं. न भी होते, तो साक्षात मिल ही चुके हैं.
आपने एक पूरी पोस्ट मुझ पर समर्पित कर दी, देखकर अच्छा लगा. जब मुलाकात हुई थी तब आपके सिर पर सजा ताज देखा था( रेफ: रॉबिन शर्मा)
अब आपकी पोस्ट टहलते हुए पढ़ रहा हूँ कमरे में टू एण्ड फ्रो बिना घड़ी के.
वैसे अदृश्य ताज तो रॉबिन शर्मा के सर पर भी है, बालों के आभाव में टिक नहीं पाता. :)
आज से एक घंटे रोज टहलना है, भले ही टिप्पणियाँ छूट जायें, यह प्रण किया है.
आपकी जय हो!!!!!
इधर आपका लेख पढ़ रहे थे तो उधर ऊपर की पट्टी पर ICICI Lombard का उड़ते हवाई जहाज वाला एड मुंह चिढा रहा था. ये मुए एड इतना भी नहीं जानते कब किस पोस्ट के साथ दिखें किस के साथ नहीं.
ReplyDeleteइस पोस्ट ने तो बड़े सुहाने दिनों की याद ताजा कर दी. किसी पोस्ट में जिक्र करेंगे. अभी तो कोशिश करते हैं पोलिसी रिन्यु करवाने की.
अपने घरवालों को (खासकर घरवाली को) आपकी पोस्ट पड़वाउंगा ...... कि कोई बात कहने का ये तरीका होता है. :) अख़बार में कार्यरत होने से मेरे कार्यालय का समय थोड़ा अजीब है इस वजह से खाना-पीना और सोना जागना सब का समय गड़बड़ा गया है और सेहत भी .इसी कारण से रोज़ उल्टे सीधे ताने मारते रहते हैं ....खैर उनकी तो नही सुनी लेकिन आपकी बात मान लेता हूँ जी....कल से में भी वाकने जाऊंगा........वैसे मेरे वाकने जाने को थोड़ा क्रेडिट आलोकजी को भी मिले .....बड़ी पते कि बात कह गए कि "सेहत के महत्व का पता तब लगता है, यह नहीं रहती है।"
ReplyDeleteअजी जब से ब्लाग की बिमारी लगी हे तब से सब कुछ छुट गया हे, लेकिन अब धीरे धीरे ब्लाग कम करने की आदत डाल रहा हुं फ़िर टहले गे.धन्यवाद
ReplyDeleteअपने घरवालों को (खासकर घरवाली को) आपकी पोस्ट पड़वाउंगा ...... कि कोई बात कहने का ये तरीका होता है. :) अख़बार में कार्यरत होने से मेरे कार्यालय का समय थोड़ा अजीब है इस वजह से खाना-पीना और सोना जागना सब का समय गड़बड़ा गया है और सेहत भी .इसी कारण से रोज़ उल्टे सीधे ताने मारते रहते हैं ....खैर उनकी तो नही सुनी लेकिन आपकी बात मान लेता हूँ जी....कल से में भी वाकने जाऊंगा........वैसे मेरे वाकने जाने को थोड़ा क्रेडिट आलोकजी को भी मिले .....बड़ी पते कि बात कह गए कि "सेहत के महत्व का पता तब लगता है, यह नहीं रहती है।"
ReplyDeleteइधर आपका लेख पढ़ रहे थे तो उधर ऊपर की पट्टी पर ICICI Lombard का उड़ते हवाई जहाज वाला एड मुंह चिढा रहा था. ये मुए एड इतना भी नहीं जानते कब किस पोस्ट के साथ दिखें किस के साथ नहीं.
ReplyDeleteइस पोस्ट ने तो बड़े सुहाने दिनों की याद ताजा कर दी. किसी पोस्ट में जिक्र करेंगे. अभी तो कोशिश करते हैं पोलिसी रिन्यु करवाने की.
हे ज्ञान के सागर स्वामी ज्ञानानन्द जी
ReplyDeleteअब आप से क्या छिपा है? आप तो अन्तर्यामी हैं. न भी होते, तो साक्षात मिल ही चुके हैं.
आपने एक पूरी पोस्ट मुझ पर समर्पित कर दी, देखकर अच्छा लगा. जब मुलाकात हुई थी तब आपके सिर पर सजा ताज देखा था( रेफ: रॉबिन शर्मा)
अब आपकी पोस्ट टहलते हुए पढ़ रहा हूँ कमरे में टू एण्ड फ्रो बिना घड़ी के.
वैसे अदृश्य ताज तो रॉबिन शर्मा के सर पर भी है, बालों के आभाव में टिक नहीं पाता. :)
आज से एक घंटे रोज टहलना है, भले ही टिप्पणियाँ छूट जायें, यह प्रण किया है.
आपकी जय हो!!!!!
बड़े भाई!
ReplyDeleteये रोज सुबह या शाम का घूमना हम से कभी नियमित नहीं हो पाता है। लेकिन हमारे काम के दौरान हम कम से कम चार किलोमीटर रोज चलना होता ही है, उसे हम तेज चाल से चलते हैं। उस का लाभ तो मिलता ही है फिर सप्ताह में कम से कम तीन दिन इतनी ही जॉगिंग करते हैं। हिसाब बराबर, खाने पर थोड़ा नियन्त्रण जरुरी है। पर खानदानी ब्राह्मण हैं सो मीठे का लालच रहता है और रतलामी सेव पसंद है जो कोटा में खूब बनता है। लेकिन चपाती में घी बन्द कर चुके हैं। तेल का सब्जी में सावधानी पूर्वक प्रयोग करते हैं। स्वास्थ्य इसी लिये संयत है।
आज इस पोस्ट तक पहुँचे हैं, और अब लगभग रोज १ घंटा घूम भी रहे हैं।
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