Friday, May 30, 2008

भोर का सपना


स्वप्न कभी कभी एक नये वैचारिक विमा (डायमेंशन) के दर्शन करा देते हैं हमें। और भोर के सपने महत्वपूर्ण इस लिये होते हैं कि उनका प्रभाव जागने पर भी बना रहता है। उनपर जाग्रत अवस्था में सोचना कभी कभी हमें एक नया मकसद प्रदान करता है। शायद इसी लिये कहते हैं कि भोर का सपना सच होता है।
भोर का सपना सच होता हो चाहे न होता हो, उसका प्रभाव देर तक चलता है। और सवेरे उठते ही आपाधापी न हो - ट्रेने ठीक चल रही हों, सवेरे दो तीन कप चाय धकेलने का इत्मीनान से समय हो; तो उस स्वप्न पर एक दो राउण्ड सोचना भी हो जाता है। मै‍ यह काम सप्ताहान्त पर कर पाता हूं। पता नहीं आप इस सुख की कितनी अनुभूति कर पाते हैं। अव्वल तो इन्सोम्निया (अनिद्रा) के मरीज को यह सुख कम ही मिलता है। पर नींद की गोली और दो-तीन दिन की नींद के बैकलॉग के होने पर कभी कभी नींद अच्छी आती है। रात में ट्रैन रनिंग में कोई व्यवधान न हो तो फोन भी नींद में खलल नहीं डालते। तब आता है भोर का सपना।

ऐसे ही एक सपने में मैने पाया कि मैं अपने हाथों को कंधे की सीध में डैने की तरह फैला कर ऊपर नीचे हिला रहा हूं। और वह एक्शन मुझे उछाल दे कर कर जमीन से ऊपर उठा रहा है। एक बार तो इतनी ऊंचाई नहीं ले पाया कि ग्लाइडिंग एक्शन के जरीये सामने के दूर तक फैले कूड़ा करकट और रुके पानी के पूल को पार कर दूर के मैदान में पंहुच सकूं। मैं यह अनुमान कर अपने को धीरे धीरे पुन: जमीन पर उतार लेता हूं।

Hang Gliding

क्या आपको मालुम है?

  • हेंग ग्लाइडर ७०० किलोमीटर से ज्यादा उड़ चुके हैं
  • वे २०,००० फिट से ज्यादा ऊंचाई पर जा चुके हैं
  • वे अमूमन घण्टों उड़ सकते हैं।
  • उनकी उड़ान १०० मील/घण्टा तक हो सकती है।

अचानक कुछ विचित्र सा होता है। दूसरा टेक ऑफ। दूसरा प्रॉपेल एक्शन। इस बार कहीं ज्यादा सरलता से कहीं ज्यादा - कई गुणा ऊंचाई ले पाता हूं। और फिर जो ग्लाइडिंग होती है - सिम्पली फेण्टास्टिक! कहीं दूर तक ग्लाइड करता हुआ बहुत दूर तक चला जाता हूं। हरे भरे फूलों से सुवासित मैदान में उतरता हूं - हैंग ग्लाइडिंग एक्शन की तरह। सपने की ग्लाइडिंग हैंग ग्लाइडिंग नहीं, हैण्ड ग्लाइडिंग है!

कैसे आता है बिना किसी पूर्व अनुभव के ऐसा स्वप्न? असल में मुझे हैंग ग्लाइडिंग नामक शब्द पहले मालुम ही न था। इस स्वप्न के बाद जब ग्लाइडिंग को सर्च किया तो यह ज्ञात हुआ। और फिर एक विचार चला कि अधेड़ हो गये, एक हैंग ग्लाइडर क्यों न बन पाये!

स्वप्न कभी कभी एक नये वैचारिक विमा (डायमेन्शन) के दर्शन करा देते हैं हमें। और भोर के सपने महत्वपूर्ण इस लिये होते हैं कि उनका प्रभाव जागने पर भी बना रहता है। उनपर जाग्रत अवस्था में सोचना कभी कभी हमें एक नया मकसद प्रदान करता है। शायद इसी लिये कहते हैं कि भोर का सपना सच होता है।

अब शारीरिक रूप से इतने स्वस्थ रहे नहीं कि ग्लाइडिंग प्रारम्भ कर सकें। पर सपने की भावना शायद यह है कि जद्दोजहद का जज्बा ऐसा बनेगा कि बहुत कुछ नया दिखेगा, अचीव होगा। यह भी हो तो भोर का स्वप्न साकार माना जायेगा।

आओ और प्रकटित होओ भोर के सपने।

कल अरविन्द मिश्र जी ने एक नया शब्द सिखाया - ईथोलॉजी (Ethology)। वे बन्दरों के नैसर्गिक व्यवहार के विषय में एक अच्छी पोस्ट लिख गये। मैं अनुरोध करूंगा कि आप यह पोस्ट - सुखी एक बन्दर परिवार, दुखिया सब संसार - अवश्य पढ़ें।
ईथोलॉजी से जो मतलब मैं समझा हूं; वह शायद जीव-जन्तुओं के व्यवहार का अध्ययन है। वह व्यवहार जो वे अपनी बुद्धि से सीखते नहीं वरन जो उनके गुण सूत्र में प्रोग्राम किया होता है। मैं शायद गलत होऊं। पर फीरोमोन्स जन्य व्यवहार मुझे ईथोलॉजिकल अध्ययन का विषय लगता है।
याद आया मैने फीरोमोन्स का प्रयोग कर एक बोगस पोस्ट लिखी थी - रोज दस से ज्यादा ब्लॉग पोस्ट पढ़ना हानिकारक है। इसमे जीव विज्ञान के तकनीकी शब्दों का वह झमेला बनाया था कि केवल आर सी मिश्र जी ही उसकी बोगसियत पकड़ पाये थे!
Batting Eyelashes 

 



24 comments:

  1. बन्दरों के पास बहुत से आयातित बोझे नहीं होते।

    ReplyDelete
  2. जी हां इथोलोजी का दूसरा नाम एनीमल बेहविएर भी है. कुछ सामान्य से एनीमल बिहाविअर जो की आप रोज आपने आस पास देखते है, जैसे कुत्ते का टेरेतोरिअल बेहविअर, जिसमे कुता (या जंगल मे शेर या बाघ ) अपनी टेरेतोरी को सिमंकित करने के लिए जगह जगह मूत्र त्याग करता रहता है, और उसी टेरेतोरी मे आपना जीवन यापन करने की कोशिश करता है. टेरेतोरी मे दूसरा कुत्ता तभी जा सकता है जब वो डोमिनेंस बेहविअर दिखाए. यानी एक टेरेतोरी मे एक समय मे एक ही दोमिनातिंग कुता रह सकता है. दूसरा सामान्य उदाहरण है इंट्रा एनीमल डिस्तांस, बिजली के तार पर बैठी या पेडो की डाल पर बैठी चिडिया अपने बीच एक निश्चित दूरी रखती है. तीसरा सबसे बढ़िया उदाहरण भैंष के नजदीक बैठी हुई सफ़ेद रंग की चिडिया, जिसको कैटल एग्रेट कहते है.

    ReplyDelete
  3. Aur haa pheromons kewal keet hi nahee chhodate hai.

    ReplyDelete
  4. महर्षि तो अब तहे नहीं, मगर मैं आपको उनके मेडिटेशन विधि के जरिये हैंग ग्लाडिंग सिखा सकता हूँ, फिर आप भी उड़न तश्तरी की तरह उड़ सकते हैं :)

    बहुत विचारोत्तेजक आलेख, मजा आया और अब भी सोच में पड़ा हूँ.

    ReplyDelete
  5. ज्ञान भाई साहब,
    आपने ओपरा का नाम सुना होगा -
    उसे भी ऐसे ही हेन्ग ग्लाँइडीँग जैसा स्वप्न आया था -'सपनोँ का विश्लेषण करनेवाले " एक सज्जन ने उसे बतलाया था कि, जब भी ऐसा स्वप्न इन्सान देखे तो उसकी तरक्की होती है - आप जरुर बतलायेँ , जब ऐसा होगा आपके साथ :) ..मजाक नहीम कर रही ...सच कह रही हूँ !
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
    और प्रवीण जी,
    'फेरोमोन" नामका एक पर्फ्युम भी मिलता है यहाँ पर - टेरीटोरीयल होना इन्सान ने भी सीखा है -

    ReplyDelete
  6. भोर के कई सपने हमारे मामले में सच हुए हैं ।
    विचारों की ग्‍लाईडिंग करने वाले ज्ञान जी जब आकाश में विचरेंगे तो आनंद आएगा । वैसे रोमांच के शौकीन हम इसमें आपका साथ निभाने में पीछे नहीं हटेंगे । हमारा तो वजन भी ज्‍यादा नहीं है । :D

    ReplyDelete
  7. सुना तो मैंने भी यही था कि उड़ने का सपना आने पर बहुत तरक्की होती है लाभ मिलता है.
    अपन के साथ तो ऐसा हुआ नही अओके साथ हो तो जरुर बताइयेगा

    ReplyDelete
  8. एक रोचक विचार करने योग्य लेख है यह ..:)

    ReplyDelete
  9. वाह वाह हमे तो बस वही गाना याद आया, पंछी बनो उडते फ़िरो मस्त गगन मे, आपकी ख्वाहिशे पूरी हो आमीन

    ReplyDelete
  10. कहते हैं कि अगर कोई सपना देखना हो तो सोने से पहले बार बार उसी विषय के बारे में सोचो. कुछ अभ्यास की आवश्यकता है फ़िर जो चाहे वही सपना देखो, बस सोने से पहले स्वयं से कहो कि आज रात को यह या वह देखना है. यानि कि तरक्की मिलना तो बहुत आसान, उड़ने के सपने का सोचो, उसे देखो और तरक्की मिल गयी? मुझे यह तर्क कुछ कमजोर दिखता है, मेरे विचार में तरक्की के लिए अपने boss को भी कोई सपने दिखाने पड़ते हैं! :-)

    ReplyDelete
  11. पकका आपका प्रमोशन होने वाला है।
    आप रेलवे बोर्ड के चेयरमैन बनने वाले हैं।
    और आशा ही नहीं वरन विश्वास है टाइप कि आप ब्लागरों को एक आजीवन मुफ्त यात्रा का पास दिलवायेंगे।
    भगवान आपके सपने को सच करे और हम ब्लागरों के सपने को भी।

    ReplyDelete
  12. सर जी हमे ३५ साल हो गए है बिना सपनो के सोये ......मुए इतना परेशां करते है की पूछिये मत.....कल ही हम वापस १० की परीक्षा मे चले गए थे .....वैसे एक सलाह......सुबह सुबह एक चाय ही पिया करे......

    ReplyDelete
  13. भोर के सपने सच होने की बात तो हमने भी खूब सुनी... सपनोके सच होने पर कई कहानिया भी हैं... बेन्जीन के अरोमैटिक रिंग स्ट्रक्चर की खोज केकुले ने किया जो की उनके एक सपने पर आधारित था (उन्होंने देखा किकी एक साँप अपनी पूँछ को मुंह में डाल रहा है) इसी प्रकार सिलाई मशीन के अविष्कार करता ने भी सपने में देखा था की कोई भाला लेकर उन्हें मार रहा है और भाले की नोक में आंखें बनी हुई थी इसी से प्रेरणा लेकर उन्होंने सुई के के नोक की तरफ़ छेद बना दिया...

    आप भी हैंग ग्लाइडिंग करें तो बताइयेगा, या फिर लोगो की अनालिसिस के अनुसार अगर आपका प्रोमोसन हो जाय तो पार्टी :-)

    ReplyDelete
  14. आलोक पुराणिक जी कितने अच्छे है न जो इतने अच्छे अच्छे सपने देखते हैं ;)

    ReplyDelete
  15. स्वप्न विशेषज्ञ नही हूँ पर कुछ ज्ञान अर्जित किया है। आपको जब समय मिले तो अपने बचपन को दिल खोलके याद कीजियेगा और उसके कुछ सुनहरे पलो को फिर से जीने का प्रयास करियेगा। देखियेगा उसके बाद ये स्वप्न अपने आप बन्द हो जायेगा। भले ऐसे स्वप्न मन को अच्छे लगे पर साउंड स्लीप मे खलल डालते है।

    ReplyDelete
  16. स्वप्न भी छल, जागरण भी.

    ReplyDelete
  17. भईया
    उनका क्या जो बिना सपना देखे ही हवा में उड़ते रहते हैं..??
    नीरज

    ReplyDelete
  18. आपके सपने की बात भी मान ली... भोर के सपने सच होते हैं ये भी मान लिया ... और उड़ने वाले सपने आये तो प्रमोशन होता है ये भी मान लिया .... अब इस जड़बुद्धि को आप ये बताइए की आप ट्रेन उड़ायेंगे कैसे ? :D :D :D

    ReplyDelete
  19. यह तो अद्भुत बात हुयी ,'सपने का सच' शीर्षक से मैंने कुछ समय पहले एक विज्ञान कथा लिखी थी .आपके उड़ने के स्वप्न अनुभव और कथा नायक के उड़ने के अनुभवों में अत्यधिक या यूं कहें कि पूरा साम्य है .कथा डिजिटल रूप में लाकर आप को भेजूंगा .लगता है ऐसे स्वप्न हमें भविष्य के मनुष्य का पूर्वाभास कराते हैं -जब मनुष्य ख़ुद उड़ सकेगा .मनुष्य की तकनीकी निर्भरता को देख कर यह सम्भव तो नही लगता ,पर कौन जाने .
    आपने मेरे ब्लॉग को रेफेर किया ,यह बड़ा अनुग्रह है -आभार .

    ReplyDelete
  20. सबसे लास्ट में टिप्प्णी करने के बहुत फ़ायदे हैं। अब हमें बीसवीं टिप्पणी करने का गौरव प्राप्त हो रहा है और हमेशा की तरह हम इस बार भी आलोक जी से सहमत है और पंकज जी की बात से भी। ड्रीम एनालिसिस पर कभी पोस्ट लि्खेगे

    ReplyDelete
  21. मैं तो सपनों में उड़ती ही रहती हूँ। ये सपने बहुत लम्बे भी चलते हैं।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  22. @ नीरज भइया
    किसे कह रहे हैं?

    ReplyDelete
  23. चित्रों पर आप के पूरे नाम के बदले जी डी पी देखकर लगता है गरास डोमेसटिक प्राडक्ट । जो कि सही भी है, चित्रों की विषय वस्तु देखकर यही लगता है, जारी रखें।
    - सफेद घर

    ReplyDelete
  24. sir kya hal hai. aaj ki post jankari,philosophy aur jivantta tino liye hai. achi lagi. khas kar box me choti si jankari.

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय