ऐसे ही एक सपने में मैने पाया कि मैं अपने हाथों को कंधे की सीध में डैने की तरह फैला कर ऊपर नीचे हिला रहा हूं। और वह एक्शन मुझे उछाल दे कर कर जमीन से ऊपर उठा रहा है। एक बार तो इतनी ऊंचाई नहीं ले पाया कि ग्लाइडिंग एक्शन के जरीये सामने के दूर तक फैले कूड़ा करकट और रुके पानी के पूल को पार कर दूर के मैदान में पंहुच सकूं। मैं यह अनुमान कर अपने को धीरे धीरे पुन: जमीन पर उतार लेता हूं।
क्या आपको मालुम है?
|
अचानक कुछ विचित्र सा होता है। दूसरा टेक ऑफ। दूसरा प्रॉपेल एक्शन। इस बार कहीं ज्यादा सरलता से कहीं ज्यादा - कई गुणा ऊंचाई ले पाता हूं। और फिर जो ग्लाइडिंग होती है - सिम्पली फेण्टास्टिक! कहीं दूर तक ग्लाइड करता हुआ बहुत दूर तक चला जाता हूं। हरे भरे फूलों से सुवासित मैदान में उतरता हूं - हैंग ग्लाइडिंग एक्शन की तरह। सपने की ग्लाइडिंग हैंग ग्लाइडिंग नहीं, हैण्ड ग्लाइडिंग है!
कैसे आता है बिना किसी पूर्व अनुभव के ऐसा स्वप्न? असल में मुझे हैंग ग्लाइडिंग नामक शब्द पहले मालुम ही न था। इस स्वप्न के बाद जब ग्लाइडिंग को सर्च किया तो यह ज्ञात हुआ। और फिर एक विचार चला कि अधेड़ हो गये, एक हैंग ग्लाइडर क्यों न बन पाये!
स्वप्न कभी कभी एक नये वैचारिक विमा (डायमेन्शन) के दर्शन करा देते हैं हमें। और भोर के सपने महत्वपूर्ण इस लिये होते हैं कि उनका प्रभाव जागने पर भी बना रहता है। उनपर जाग्रत अवस्था में सोचना कभी कभी हमें एक नया मकसद प्रदान करता है। शायद इसी लिये कहते हैं कि भोर का सपना सच होता है।
अब शारीरिक रूप से इतने स्वस्थ रहे नहीं कि ग्लाइडिंग प्रारम्भ कर सकें। पर सपने की भावना शायद यह है कि जद्दोजहद का जज्बा ऐसा बनेगा कि बहुत कुछ नया दिखेगा, अचीव होगा। यह भी हो तो भोर का स्वप्न साकार माना जायेगा।
आओ और प्रकटित होओ भोर के सपने।
कल अरविन्द मिश्र जी ने एक नया शब्द सिखाया - ईथोलॉजी (Ethology)। वे बन्दरों के नैसर्गिक व्यवहार के विषय में एक अच्छी पोस्ट लिख गये। मैं अनुरोध करूंगा कि आप यह पोस्ट - सुखी एक बन्दर परिवार, दुखिया सब संसार - अवश्य पढ़ें। ईथोलॉजी से जो मतलब मैं समझा हूं; वह शायद जीव-जन्तुओं के व्यवहार का अध्ययन है। वह व्यवहार जो वे अपनी बुद्धि से सीखते नहीं वरन जो उनके गुण सूत्र में प्रोग्राम किया होता है। मैं शायद गलत होऊं। पर फीरोमोन्स जन्य व्यवहार मुझे ईथोलॉजिकल अध्ययन का विषय लगता है। याद आया मैने फीरोमोन्स का प्रयोग कर एक बोगस पोस्ट लिखी थी - रोज दस से ज्यादा ब्लॉग पोस्ट पढ़ना हानिकारक है। इसमे जीव विज्ञान के तकनीकी शब्दों का वह झमेला बनाया था कि केवल आर सी मिश्र जी ही उसकी बोगसियत पकड़ पाये थे! |
बन्दरों के पास बहुत से आयातित बोझे नहीं होते।
ReplyDeleteजी हां इथोलोजी का दूसरा नाम एनीमल बेहविएर भी है. कुछ सामान्य से एनीमल बिहाविअर जो की आप रोज आपने आस पास देखते है, जैसे कुत्ते का टेरेतोरिअल बेहविअर, जिसमे कुता (या जंगल मे शेर या बाघ ) अपनी टेरेतोरी को सिमंकित करने के लिए जगह जगह मूत्र त्याग करता रहता है, और उसी टेरेतोरी मे आपना जीवन यापन करने की कोशिश करता है. टेरेतोरी मे दूसरा कुत्ता तभी जा सकता है जब वो डोमिनेंस बेहविअर दिखाए. यानी एक टेरेतोरी मे एक समय मे एक ही दोमिनातिंग कुता रह सकता है. दूसरा सामान्य उदाहरण है इंट्रा एनीमल डिस्तांस, बिजली के तार पर बैठी या पेडो की डाल पर बैठी चिडिया अपने बीच एक निश्चित दूरी रखती है. तीसरा सबसे बढ़िया उदाहरण भैंष के नजदीक बैठी हुई सफ़ेद रंग की चिडिया, जिसको कैटल एग्रेट कहते है.
ReplyDeleteAur haa pheromons kewal keet hi nahee chhodate hai.
ReplyDeleteमहर्षि तो अब तहे नहीं, मगर मैं आपको उनके मेडिटेशन विधि के जरिये हैंग ग्लाडिंग सिखा सकता हूँ, फिर आप भी उड़न तश्तरी की तरह उड़ सकते हैं :)
ReplyDeleteबहुत विचारोत्तेजक आलेख, मजा आया और अब भी सोच में पड़ा हूँ.
ज्ञान भाई साहब,
ReplyDeleteआपने ओपरा का नाम सुना होगा -
उसे भी ऐसे ही हेन्ग ग्लाँइडीँग जैसा स्वप्न आया था -'सपनोँ का विश्लेषण करनेवाले " एक सज्जन ने उसे बतलाया था कि, जब भी ऐसा स्वप्न इन्सान देखे तो उसकी तरक्की होती है - आप जरुर बतलायेँ , जब ऐसा होगा आपके साथ :) ..मजाक नहीम कर रही ...सच कह रही हूँ !
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
और प्रवीण जी,
'फेरोमोन" नामका एक पर्फ्युम भी मिलता है यहाँ पर - टेरीटोरीयल होना इन्सान ने भी सीखा है -
भोर के कई सपने हमारे मामले में सच हुए हैं ।
ReplyDeleteविचारों की ग्लाईडिंग करने वाले ज्ञान जी जब आकाश में विचरेंगे तो आनंद आएगा । वैसे रोमांच के शौकीन हम इसमें आपका साथ निभाने में पीछे नहीं हटेंगे । हमारा तो वजन भी ज्यादा नहीं है । :D
सुना तो मैंने भी यही था कि उड़ने का सपना आने पर बहुत तरक्की होती है लाभ मिलता है.
ReplyDeleteअपन के साथ तो ऐसा हुआ नही अओके साथ हो तो जरुर बताइयेगा
एक रोचक विचार करने योग्य लेख है यह ..:)
ReplyDeleteवाह वाह हमे तो बस वही गाना याद आया, पंछी बनो उडते फ़िरो मस्त गगन मे, आपकी ख्वाहिशे पूरी हो आमीन
ReplyDeleteकहते हैं कि अगर कोई सपना देखना हो तो सोने से पहले बार बार उसी विषय के बारे में सोचो. कुछ अभ्यास की आवश्यकता है फ़िर जो चाहे वही सपना देखो, बस सोने से पहले स्वयं से कहो कि आज रात को यह या वह देखना है. यानि कि तरक्की मिलना तो बहुत आसान, उड़ने के सपने का सोचो, उसे देखो और तरक्की मिल गयी? मुझे यह तर्क कुछ कमजोर दिखता है, मेरे विचार में तरक्की के लिए अपने boss को भी कोई सपने दिखाने पड़ते हैं! :-)
ReplyDeleteपकका आपका प्रमोशन होने वाला है।
ReplyDeleteआप रेलवे बोर्ड के चेयरमैन बनने वाले हैं।
और आशा ही नहीं वरन विश्वास है टाइप कि आप ब्लागरों को एक आजीवन मुफ्त यात्रा का पास दिलवायेंगे।
भगवान आपके सपने को सच करे और हम ब्लागरों के सपने को भी।
सर जी हमे ३५ साल हो गए है बिना सपनो के सोये ......मुए इतना परेशां करते है की पूछिये मत.....कल ही हम वापस १० की परीक्षा मे चले गए थे .....वैसे एक सलाह......सुबह सुबह एक चाय ही पिया करे......
ReplyDeleteभोर के सपने सच होने की बात तो हमने भी खूब सुनी... सपनोके सच होने पर कई कहानिया भी हैं... बेन्जीन के अरोमैटिक रिंग स्ट्रक्चर की खोज केकुले ने किया जो की उनके एक सपने पर आधारित था (उन्होंने देखा किकी एक साँप अपनी पूँछ को मुंह में डाल रहा है) इसी प्रकार सिलाई मशीन के अविष्कार करता ने भी सपने में देखा था की कोई भाला लेकर उन्हें मार रहा है और भाले की नोक में आंखें बनी हुई थी इसी से प्रेरणा लेकर उन्होंने सुई के के नोक की तरफ़ छेद बना दिया...
ReplyDeleteआप भी हैंग ग्लाइडिंग करें तो बताइयेगा, या फिर लोगो की अनालिसिस के अनुसार अगर आपका प्रोमोसन हो जाय तो पार्टी :-)
आलोक पुराणिक जी कितने अच्छे है न जो इतने अच्छे अच्छे सपने देखते हैं ;)
ReplyDeleteस्वप्न विशेषज्ञ नही हूँ पर कुछ ज्ञान अर्जित किया है। आपको जब समय मिले तो अपने बचपन को दिल खोलके याद कीजियेगा और उसके कुछ सुनहरे पलो को फिर से जीने का प्रयास करियेगा। देखियेगा उसके बाद ये स्वप्न अपने आप बन्द हो जायेगा। भले ऐसे स्वप्न मन को अच्छे लगे पर साउंड स्लीप मे खलल डालते है।
ReplyDeleteस्वप्न भी छल, जागरण भी.
ReplyDeleteभईया
ReplyDeleteउनका क्या जो बिना सपना देखे ही हवा में उड़ते रहते हैं..??
नीरज
आपके सपने की बात भी मान ली... भोर के सपने सच होते हैं ये भी मान लिया ... और उड़ने वाले सपने आये तो प्रमोशन होता है ये भी मान लिया .... अब इस जड़बुद्धि को आप ये बताइए की आप ट्रेन उड़ायेंगे कैसे ? :D :D :D
ReplyDeleteयह तो अद्भुत बात हुयी ,'सपने का सच' शीर्षक से मैंने कुछ समय पहले एक विज्ञान कथा लिखी थी .आपके उड़ने के स्वप्न अनुभव और कथा नायक के उड़ने के अनुभवों में अत्यधिक या यूं कहें कि पूरा साम्य है .कथा डिजिटल रूप में लाकर आप को भेजूंगा .लगता है ऐसे स्वप्न हमें भविष्य के मनुष्य का पूर्वाभास कराते हैं -जब मनुष्य ख़ुद उड़ सकेगा .मनुष्य की तकनीकी निर्भरता को देख कर यह सम्भव तो नही लगता ,पर कौन जाने .
ReplyDeleteआपने मेरे ब्लॉग को रेफेर किया ,यह बड़ा अनुग्रह है -आभार .
सबसे लास्ट में टिप्प्णी करने के बहुत फ़ायदे हैं। अब हमें बीसवीं टिप्पणी करने का गौरव प्राप्त हो रहा है और हमेशा की तरह हम इस बार भी आलोक जी से सहमत है और पंकज जी की बात से भी। ड्रीम एनालिसिस पर कभी पोस्ट लि्खेगे
ReplyDeleteमैं तो सपनों में उड़ती ही रहती हूँ। ये सपने बहुत लम्बे भी चलते हैं।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
@ नीरज भइया
ReplyDeleteकिसे कह रहे हैं?
चित्रों पर आप के पूरे नाम के बदले जी डी पी देखकर लगता है गरास डोमेसटिक प्राडक्ट । जो कि सही भी है, चित्रों की विषय वस्तु देखकर यही लगता है, जारी रखें।
ReplyDelete- सफेद घर
sir kya hal hai. aaj ki post jankari,philosophy aur jivantta tino liye hai. achi lagi. khas kar box me choti si jankari.
ReplyDelete