Saturday, May 17, 2008

राजाराम मांझी


Dr Kalla
डा. एन के कल्ला
नाम तो ऐसा लग रहा है जैसे कोई स्वतंत्रता सेनानी हो। जैसे तिलका मांझी। मैं इन सज्जन पर न लिखता अगर डा. एन के कल्ला ने एक रेखाचित्र बना कर मेरी ओर न सरकाया होता। डा. कल्ला हमारे चीफ मैडिकल डायरेक्टर हैं। हम उत्तर-मध्य रेलवे की क्षेत्रीय उपभोक्ता सलाहकार समिति की बैठक में समिति के सदस्यों के भाषण सुन रहे थे। ऐसे में इधर उधर कलम चलाने और डॉडल (dawdle - फुर्सत की खुराफात) करने को समय मिल जाता है। उसी में एक अलग से लग रहे चरित्र श्री राजाराम मांझी का रेखाचित्र डा. कल्ला ने बना डाला।

आप श्री राजाराम मांझी का रेखा चित्र और उनका मोबाइल से लिया चित्र देखें -


श्री राजाराम मांझी

Rajaram Manjhi Rajaram

राजाराम मांझी चुपचाप बैठे थे बैठक में। अचानक उनकी गोल के एक सदस्य पर किसी स्थानीय सदस्य ने टिप्पणी कर दी। इतना बहुत था उन्हें उत्तेजित करने को। वे खड़े हो कर भोजपुरी मिश्रित हिन्दी में धाराप्रवाह बोलने लगे। बहुत ही प्रभावशाली था उनका भाषा प्रयोग। वैसी भाषा ब्लॉग पर आनी चाहिये।

बाबा तिलका मांझी (1750-84) पहले संथाल वीर थे जिन्होने अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासी संघर्ष किया। उनका गोफन मारक अस्त्र था। उससे उन्होने अनेक अंग्रेजों को परलोक भेजा। अन्तत: अंग्रेजों की एक बड़ी सेना भागलपुर के तिलकपुर जंगल को घेरने भेजी गयी। बाबा तिलका मांझी पकड़े गये। उन्हे फांसी न दे कर एक घोड़े की पूंछ से बांध कर भागलपुर तक घसीटा गया। उनके क्षत-विक्षत शरीर को कई दिन बरगद के वृक्ष से लटका कर रखा गया।

भोजन के समय सब लोग प्लेट में खा रहे थे। मांझी जी अखबार को चौपर्त कर उसमें भोज्य सामग्री ले कर खाते हुये टहल रहे थे हॉल में। किसी ने कौतूहल वश कारण पूछ लिया। उन्होंने बताया कि प्लेट अशुद्ध होती है। यह समझ नहीं आया कि कृत्रिम अजैव रसायन से बनी स्याही के साथ छपा अखबार कैसे शुद्ध हो सकता है? पर यह भारत है और उपभोक्ता सलाहकार बैठक में विचित्र किन्तु सत्य भारत के दर्शन हो जाते हैं!

श्री राजाराम मांझी के दो अन्य चित्र

Rajaram2 Rajaram3


18 comments:

  1. सुप्रभात।
    (आपको)

    आपने लिखा है


    'उपभोक्ता सलाहकार बैठक में विचित्र किन्तु सत्य भारत के दर्शन हो जाते हैं!'


    सबको दर्शन नही होते। इसके लिये पारखी नजर चाहिये जो आपके पास है।


    यदि मै गलत नही हूँ तो डाँ कल्ला इस ब्लाग पर कुछ लिखने वाले थे। उनके लेखो की प्रतीक्षा है।


    अब शुभरात्रि। (मेरे लिये)

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  2. सही है.थोड़ा उनकी भाषा का नमूना भी पेश करते तो सीखने को मिलता कि किस तरह की भाषा को ब्लॉग पर आना चाहिये.

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  3. जी हां, अखबार कौन सी अशुद्द नहीं है....। और पांडे जी , एक बात याद आ रही है कि कुछ महीने पहले आपने कहा था कि आप के चीफ मैडीकल डायरैक्टर ने स्ट्रैस मैनेजमैंट पर आप को कुछ लेख लिख कर देने का वायदा किया है....कृपया उन तक यह संदेश पहुंचाइए कि जल्दी करें क्योंकि भारतीय रेल चिकित्सा सेवा का एक सीनीयर डिवीज़नल मैडीकल ऑफीसर उन के इस लेख की बेहद व्यग्रता से प्रतीक्षा कर रहा है कि वे कब लिखें और मैं कब डाउन-लोड कर के रेल के मरीजों के साथ यह ज्ञान बांटूं।

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  4. बिन्दु नंबर एक- गरमी के सीजन में मुम्बई से यूपी के टिकट का जुगाड़मेंट कर सकते हैं क्या?
    रेखा नंबर एक- अखबार से नंबर वाला ऐनक साफ कर सकते हैं क्या?

    शेष:- बुरी पोस्ट कब लिखेंगे?

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  5. कृत्रिम अजैव रसायन से बनी स्याही के साथ छपा अखबार कैसे शुद्ध हो सकता है?
    यह सवाल राजाराम जी से पूछते तो जवाब जरुर मिलता।

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  6. राजाराम मांझी जी की भाषा का नमूना भी तो पेश किया जाना चाहिये।

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  7. बड़े दिलचस्‍प लगे ये राजाराम मांझी

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  8. सब की तरह मुझे भी उत्सुक्ता थी उनकी भाषा जानने की मगर ऐसे बहुतरे को जानता हूँ. सब नौटंकी है-शुद्ध व अशुद्ध-सब दिखावा है अपने आपको अलग दिखाने का. आईडेन्टी क्राईसिस से जुझने का ये इनका अपना तरीका. आप समझ रहे होंगे कि मैं क्या कह रहा हूँ.

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  9. दिव्‍य संत लग रहे है

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  10. यह दुनिया वीरों से खाली नहीं है। जरूरत है उन्हें पहचानने की।…और ईश्वर ने आपको यह दिव्यदृष्टि दे रक्खी है।

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  11. दिलचस्प, न केवल राजाराम जी की भाषा को यहां जगह मिलनी चाहिए बल्कि उनसे पूरी एक बातचीत को भी!!

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  12. नामों में तो विकट लोचा है।
    बरसों पहले वीरजारा नामक फिल्म में इस लपेटे में देखने चला गया कि किसी स्वतंत्रता सेनानी पर होगी।
    पर फिलिम कुछ और निकली।
    ये उपभोक्ता सलाहकार समिति में लेखकों और व्यंगकारों, ब्लागरों का भी कोटा होना चाहिए। उन्हे भी तो रेलवे के सामने अपनी बात रखने का हक मिलना चाहिए।

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  13. बहुत दिलचस्प शख्स है.....

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  14. गजबे हैं, माझी साहब .......

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  15. आज़ादी हासिल करने मेँ,
    अनगिनती शहीदोँ का खून बहा है -
    राजाराम माँझी,
    क्या वास्तव मेँ
    मल्लाह कौम के थे ?
    उनके बारे मेँ और भी बतायेँ--
    - लावण्या

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  16. टैगोर और निराला की छवि धूमिल कर देने वाले माझी को प्रणाम...
    आपको भी...

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  17. bhashan ke ansh ki bahut jor se pratiksha hai.Please sir,jaldi daliye post par.

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  18. आपके डा. कल्ला तो कमाल का रेखाचित्र बनाते हैं...

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय