ट्रैक्टर और ट्रॉली का युग्म मुझे हाथी की तरह एक विचित्र जीव नजर आता है। हाथी में हर अंग अलग-अलग प्रकार का नजर आता है - एक लटकती सूंड़, दो तरह के दांत, भीमकाय शरीर और टुन्नी सी आंखें, जरा सी पूंछ। वैसे ही ट्रैक्टर-ट्रॉली में सब कुछ अलग-अलग सा नजर आता है। मानो फॉयरफॉक्स में फुल्ली जस्टीफाइड हिन्दी का लेखन पढ़ रहे हों।@ सारे अक्षर बिखरे बिखरे से।
रेलवे, लेवल क्रॉसिंग के प्रयोग को ले कर जनजागरण के लिये विज्ञापन पर बहुत खर्च करती है। पर आये दिन दुर्घटनाओं, बाल बाल बचने या बंद रेलवे क्रॉसिंग के बूम तोड़ कर ट्रैक्टर भगा ले जाने की घटनायें होती हैं। लगता है ढ़ेरों फिदायीन चल रहे हों ट्रैक्टरों पर।
मुझे एक रेल दुर्घटना की एक उच्चस्तरीय जांच याद है - ट्रैक्टर ट्रॉली का मालिक जांच में बुलाया गया था। याकूब नाम का वह आदमी डरा हुआ भी था और दुखी भी। ट्रैक्टर चालक और ४-५ मजदूर मर गये थे। कुछ ही समय पहले लोन ले कर उसने वह ट्रैक्टर खरीदा था। जांच में अगर ट्रैक्टर चालक की गलती प्रमाणित होती तो उसके पैसे डूबने वाले थे और पुलीस केस अलग से बनने वाला था। पर याकूब जैसा भय व्यापक तौर पर नहीं दीखता। रेलवे, लेवल क्रॉसिंग के प्रयोग को ले कर जनजागरण के लिये विज्ञापन पर बहुत खर्च करती है। पर आये दिन दुर्घटनाओं, बाल बाल बचने या बंद रेलवे क्रॉसिंग के बूम तोड़ कर ट्रैक्टर भगा ले जाने की घटनायें होती हैं। लगता है ढ़ेरों फिदायीन चल रहे हों ट्रैक्टरों पर।
ट्रैक्टर ट्रॉली की ग्रामीण अथव्यवस्था में महत भूमिका है। और किसान की समृद्धि में वे महत्वपूर्ण इनग्रेडियेण्ट हैं। पर भारत में सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी को हलाल कर सब अण्डे एक साथ निकाल लेने का टेम्प्टेशन बहुत है। ट्रैक्टर - ट्रॉली के रखरखाव पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता। जुगाड़ का न केवल ग्रामीण खेती और माल वहन में योगदान है, वरन यात्री वाहन के रूप में बहुपयोगी है। बहुत सी शादियां जुगाड़ परम्परा में जुगाड़ और ट्रॉली के प्रयोग से होती हैं।
मैं यह अन्दाज नहीं लगा पा रहा हूं कि डीजल और अन्य पेट्रोलियम उत्पादों की बढ़ती कीमतों के चलते ट्रेक्टर-ट्रॉली-जुगाड़ सीनारियो में कुछ बदलाव आयेगा या इनका जू-जू कायम रहेगा।
@ आजकल हर रोज डबल डिजिट में नये ब्लॉग उत्पन्न हो रहे हैं और उनमें से बहुत से फुल्ली जस्टीफाइड तरीके से अपनी पोस्ट भर रहे हैं। फॉयरफॉक्स में आप उनपर क्लिक करने के बाद दबे पांव वापस चले आते हैं। वर्ड वेरीफिकेशन तो बहुतों ने ऑन कर रखे हैं। नयी कली सुनिश्चित करती है कि वह कांटों से घिरी रहे! कोई उसे पढ़ने-टिप्पणी करने की जहमत न उठाये!
ट्रेक्टर ट्रोली
ReplyDeleteजैसे वाहनोँ को
रास्तोँ पे , रेल्वे क्रासिँग पे,
सावधानी बरतनी ही चाहीये
..अच्छा आलेख है-
-लावण्या
मैं रोज सोचा करता हूँ कि अब तो विषय का आकाल पड़ गया होगा ज्ञान जी के पस. आज देखता हूँ क्या लिखते हैं! मगर जिस बखूबी से आप नया विषय लाते हैं, बस दाँतों तले ऊंगली दबा लेता हूँ. साधुवाद आपको और आपकी इस अद्वितीय प्रतिभा को.
ReplyDeleteमानो फॉयरफॉक्स में फुल्ली जस्टीफाइड हिन्दी का लेखन पढ़ रहे हों।---क्या बात कही है.
नयी कली सुनिश्चित करती है कि वह कांटों से घिरी रहे!--शायद यह अज्ञानतावश हो रहा है क्योंकि ब्लॉगस्पाट की डिफॉल्ट यही है. हमें उनको बताना होगा और कहना होगा कि अन्यथा हमारे लिए आपको कमेंट देना संभव नहीं होगा.
मुझे मालूम है आप मुझसे सहमत होंगे. :)
भारत एक देश है,
ReplyDeleteसब से अधिक आबादी वाला,
सब से अधिक सांस्कृतिक विविधताओं वाला,
सब से अधिक विचित्रताओं वाला,
सब से अधिक अव्यवस्थाओं वाला.....
मगर चल रहा है
एक बहुत बड़े जुगाड़,
या जुगाड़ों के समूह सा....
आवश्यकता आविष्कार की जननी है
व्यवस्था अव्यवस्था में से जन्म लेती है।
बधाई!
अव्यवस्थाओं के महासागर में अन्दर झांकने की
आप तो संजय सा काम कर रहे हैं
धृतराष्ट्रों के लिए.....
ट्रैक्टर पर लदे भूसा देखते हैं अक्सर। लगता है सड़क इसके आगे खतम हो गयी है। नये लिखने वाले इसे पढ़ें तो शायद वर्ड वेरीफ़िकेशन हटा दें।
ReplyDeleteजुगाड़ ब्राण्ड के ट्रैक्टर हमारे यहां तो सबसे ज्यादा चंबल से अवैध रेत लाने के काम आते हैं.
ReplyDeleteऔर यही यहां की अर्थव्यवस्था है.
ट्रैक्टर-ट्रॉली पर बढि़या लेख
रेल के जरिये मरना हो तो क्रासिंग पे नहीं मरना चाहिए।
ReplyDeleteसुना है उसमें रेलवे कुछ मुआवजा नहीं देती।
बरसों पहले पांच प्रेमों में विफलता के बाद आगरा में एक क्रासिंग पर लेट गया, तो तब एक रेलवे के परिचित टीटीई बोले-डीयर रेलवे के भरोसे ना रहना। सच्ची में उस दिन सारी गाड़ियां पांच घंटे लेट थीं।
रेलवे के भरोसे तो कायदे से मरा नहीं जा सकता। इस कहानी से मुझे यह शिक्षा मिली।
महाराज इतना बता दें कि यह रोज रोज अनोखे विषय कहाँ से ले आते है, लिखने को...स्रोत सार्वजनिक किया जाय :) चिट्ठाकारों के हित में...
ReplyDeleteहमसे मत पूछिये हम जी टी रोड के मेन मुहाने से कुछ दूर पर एक ऐसे ही जुगाड़ के कारण घंटो जाम पे फंसे रहे थे ....
ReplyDeleteऔर हाई वे पर तो अक्सर ऐसे ट्रेक्टर और ट्रोली पलटे नजर आते है।
ReplyDeleteऔर आपकी मिसालें तो बिल्कुल बेमिसाल है। :)
फ़ायर्फ़ाक्स के खिंचाव का इलाज हो चुका है और अब फ़ायर्फ़ाक्स बिल्कुल दुरुस्त है।
ReplyDeleteदुरुस्त वाले फ़ायर्फ़ाक्स की नब्ज़ टटोलना चाहें तो बीटा आजमा सकते हैं, वैसे जून में आपका फ़ायर्फ़ाक्स स्वतः ही फ़ायर्फ़ाक्स ३ में बदल जाएगा।
साल भर विशेषकर गर्मी के दिनो मे बारातियो से लदी ट्रेक्टर ट्रालियो के पलटने के हादसे अखबारो मे छपते रहते है। बचपन मे साइकल मे पुली लगी होती थी ताकि संतुलन बिगडने पर चोट न लगे। ट्रेक्टर मे भी ऐसा कोई जुगाड लगाकर उसे काफी हद तक स्टेबल बनाया जा सकता है।
ReplyDeleteअजी ग्रामीण इलाके मे तो ये ट्रैक्टर बहुतै काम की चीज है, इनकी हेडलाईट में शादियां तक निपटते देखी है हमनें।
ReplyDeleteबाकी आपके विषय चुनने के तो पहले ही कायल है अपन!!
गजब का प्रेक्षण रहता है आपका भी -आस पास के वातावरण ,परिवेश का .आप को तो वैज्ञानिक होना हाहिये था ,कहाँ छुक छुक मे फँस गए .
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