गंगा १०० कदम पर हैं नारायणी आश्रम| वहां सवेरे एक हजार लोग घूमने आते होंगे। गंगा के कछार में आजकल ककड़ी, नेनुआँ, खीरा, टमाटर और लौकी की फसल हो रही है। वहीं से यह सामग्री ले कर यह कुंजड़िन सवेरे सवेरे अपनी दुकान लगा कर बैठ जाती है। आज सवेरे साढ़े पांच बजे वह तैयार थी।
आसपास की कालोनियों से लोग इस जगह तक घूमते हैं और यहां से वापस लौटते हैं। वापस लौटते हुये सब्जी/सलाद ले कर जाते हैं। सस्ती और ताजा मिलती है। कुंजड़िन को भी ज्यादा मेहनत नहीं करनी होती। दो घण्टे में वह सारा माल बेच चुकी होती है। भले ही वह सस्ता बेचे, उसका प्रॉफिट मार्जिन गली में फेरी वालों से कम नहीं होता होगा। और मार्केट में दुकान लगाने वालों से कहीं बेहतर बिजनेस है यह।
मैने बिग बाजार के पास मेकडोनॉल्ड के आउटलेट को देखा है। लगभग यही विचार वहां भी लागू होता है। बिग बाजर के क्लॉयेण्ट को मेकडोनॉल्ड झटकता है।
सवेरे की सैर के समय इस जगह लौकी का जूस कोई बेचने लगे तो शायद खूब कमाये। गंगा के कछार की रसायन विहीन शुद्ध लौकी, साथ में पुदीना का सत्त, बाबा रामदेव का वजन कम करने का टैग, सस्ता रेट और सैर से थोड़े पसीना युक्त प्यासे लोग। नौकरी न कर रहा होता तो हाथ अजमाता!
बड़े भाई! डोल दूर से ही सुहाने लगते हैं। हम वही कर सकते हैं जो कर रहे हैं। अपने लिखने-पढ़ने का काम ही सही है। और जगह हाथ आजमाया तो नुकसान की संभावना 70% बनती है।
ReplyDeleteज्ञान जी मुंबई में अपन जहां रहते हैं उसके बगल में पेप्सी ग्राउंड है जिसका पेप्सी से कोई लेना देना नहीं है । सबेरे सबेरे लोग सैर करने निकलते हैं । चार बजे से धूप निकलने के बहुत बाद तक । यहां एक महिला मेज़ पर कुछ बर्तन लेकर बैठती है । पूछा तो पता चला कि लौकी का रस, टमाटर और चुकंदर का रस । भांति भांति के रस हैं । बंधे हुए ग्राहक । घंटा डेढ़ घंटा दुकान चलती है । सामान फटाफट खत्म और फिर चले जाओ घर । देखा इलाहाबाद में आपने सोचा मुंबई में साकार हो गया ।
ReplyDeleteनौकरी न कर रहे होते तो ध्यान भी न जाता इस तरफ... खैर..ये राम देविय फार्मूला बोगस है.. हम पिछ्ले ६ महिने अजमा चुके है..खूब जूस पी कर लौकी का.. :) आपका चिंतन लेखन के हिसाब से जायज है.
ReplyDeleteए एस ए पी
ReplyDelete-- अर्थात --
अनूप शुक्ल आलोक पुराणिक
-- अर्थात --
सही है जमाये रखिये.
फ़ोर्न पेटेंट करा लिजीये ,फ़्रेन्चाईजी देना शुरू कर दीजीये बस धंधा शुरू खुद काहे दर्द लेते है जी :)
ReplyDeleteपैसे ब्रांडिंग में हैं, बनाने में नहीं।
ReplyDeleteउस सब्जी वाली से लौकी जूस बनवाइये।
उस पर स्लिम्रा या स्लिक्रा के ब्रांड की चिप्पी चिपकवाईये।
साथ में करीना कपूर का फोटू, ये जूस पीते हुए।
और बेचने की सही जगह होगी, इलाहाबाद युनिवर्सिटी के बाहर या किसी गर्ल्स कालेज के बाहर या इलाहाबाद की किसी पौश कालोनी में।
यह बिजनेस का माइक्रोसाफ्ट माडल है।
अरे नौकरी है तो समस्या क्या है, पार्ट टाइम कर लीजिये वैसे भी सुबह के २ घंटे ही तो चाहिए :-)
ReplyDeleteज्ञान जी मुम्बई मे तो जुहू बीच पर इस तरह के जूस बेचने वाले होते है।जिनके यहां सिर्फ़ हर्बल टी और जूस ही मिलते है। और अपनी पिछले साल की मुम्बई यात्रा के दौरान हमने भी जूस पिया था।और जो महिला बेचती है वो खूब अच्छी इंग्लिश बोलती है और हीरे के इय्ररिंग और कम से कम ३-४ अंगूठियां भी पहने रहती है।माने वेल ड्रेस। खूब अच्छा बिजनेस है।
ReplyDeleteवैसे कम्पनी बाग़ के गेट के बाहर भी कुछ नारियल पानी और मुरब्बा बेचने वाले खड़े होते है। जूस बेचते है या नही ये हमे याद नही है।
रिटायड होने के बाद यह धंधा आजमाने मे कोई नुकसान नहीं है ,सोचिए .....हाहाहा
ReplyDelete'गंगा के कछार की रसायन विहीन शुद्ध लौकी'
ReplyDeleteएक बार कंफर्म कर लीजिये। हो सके तो बाडी वाले से मिल आइये। मुझे नही लगता कि वे जैविक खेती कर रहे होंगे। प्रतिवर्ष भारतीय नदियो मे इस तरह की खेती से कृषि रसायन सीधे नदी मे पहुँच जाते है। और पहला नुकसान उन्हे होता है जो अगले घाट मे नहा रहे होते है।
मन से करे तो सभी काम बढिया है पर यह भी सही है कि कभी-कभी अपने काम की तुलना मे दूसरो का काम ज्यादा अच्छा लगता है। :)
ह्म्म्म,सही है॥
ReplyDeleteरायपुर में कई गार्डन है जहां सुब्बो-सुब्बो लोग मॉर्निंग वाक के लिए पहुंचते हैं।
एक-दो गार्डन में आम आदमी पहुंचते हैं और एक-दो में सब आई ए एस और आई पी एस ऑफ़िसर, मंत्रालय से लेकर मुख्यालय वाले।
तो जिस गार्डन में आम आदमी पहुंचते है उसके बाहर सुबह रस वाला ठेला नही होता लेकिन साहब लोग जिस गार्डन में पहुंचते हैं उसके बाहर जरुर यह लौकी,टमाटर आदि के रस वाला ठेला खड़ा होता है।
बहुत बढ़िया ....हजूर......सोचियेगा ...
ReplyDeleteउड़न तश्तरी ने सही टिपियाया नौकरी न कर रहे होते तो उधर धयान न जाता ,आरामदायक नौकरी ऐसे ही चिंतन को बढावा देती है .
ReplyDeleteकिसी को पेट पालने की मजबूरी है और कोई वैश्वीकरण के नजरिये से देख सोच रहा है .बेचारी कहीं काम से ही न हांथ धो बैठे !
धंधा तो चोखा है.
ReplyDeleteनौकरी के बाद सोचिएगा.
पसीनायुक्त लोग.. :D
ReplyDeleteवैसे पसीनाग्रस्त लोग भी उपयुक्त होता..!
सौरभ
बरसोँ पहले देहली मेँ खीरा खाया था
ReplyDeleteलच्छेदार पतला पतला ..और दुकानदार
बोले जा रहा था,
" ले लो ले लो मजनू की पसलियाँ हैँ लैला की ऊँगलियाँ हैँ "
चाँदनी चौक पुरानी दिल्ली का किस्सा याद आ गया !
स्नेह्,
- लावण्या
अरे, कहीं हमारा आईडिया चोरी न हो जाये इसलिये टिप्पणी कर रहे हैं और १-२ दिन में पोस्ट भी ठेल देंगे । हम और हमारे एक इलाहाबादी मित्र ने सोचा है कि हम एक वेबसाईट बनायेंगे:
ReplyDeleteभांग एट गंगा तट. काम (bhaangatgangatat.com) |
अभी १००० डालर देकर सीट बुक करो, जब रिटायर होगे तो हमारी कंपनी साल के ४ महीने इलाहाबाद, ४ महीने मथुरा और ४ महीने हरिद्वार में रूकने का इंतजाम करायेगी । भांग खाओ और ईश्वर भजन करो । बाकायदा आश्रम बनेंगे और प्रवचन चलेंगे ।
चाहो तो आप भी एक सीट बुक करवा लीजिये :-) वरना अपने चिट्ठे से प्रचार तो करवा ही दें ।
राय बढ़िया है। अमल मुश्किल । जैसा दिनेश राय द्विवेदी जी कहते हैं।
ReplyDeleteजैसा यूनुस जी ने बताया बम्बई में ऐसे जूस वाले हर गार्डन के बाहर मिलते हैं। रिटारय होने के बाद का प्लान अच्छा है। आलोक जी को कंसल्टेंट रख लिजिएगा।
ReplyDeleteSir ji ye business har vyakti k liye thik nahi hai,qki repo bhi to koi cheeg hoti hai,me ye manta hun ki kam bada ya chota nahi hota par status mantain bhi to jaruri hai,aapko kya lagta hai.
ReplyDelete@ Rajeev - मैं केवल कॉंसेप्ट की बात कह रहा हूं बन्धुवर!
ReplyDeleteबाकी, सरकारी अफसरी बहुत चीजों के लिये नकारा बना देती है। यह बिजनेस भी एक है! :)
Sir ji ye business har vyakti k liye thik nahi hai,qki repo bhi to koi cheeg hoti hai,me ye manta hun ki kam bada ya chota nahi hota par status mantain bhi to jaruri hai,aapko kya lagta hai.
ReplyDeleteह्म्म्म,सही है॥
ReplyDeleteरायपुर में कई गार्डन है जहां सुब्बो-सुब्बो लोग मॉर्निंग वाक के लिए पहुंचते हैं।
एक-दो गार्डन में आम आदमी पहुंचते हैं और एक-दो में सब आई ए एस और आई पी एस ऑफ़िसर, मंत्रालय से लेकर मुख्यालय वाले।
तो जिस गार्डन में आम आदमी पहुंचते है उसके बाहर सुबह रस वाला ठेला नही होता लेकिन साहब लोग जिस गार्डन में पहुंचते हैं उसके बाहर जरुर यह लौकी,टमाटर आदि के रस वाला ठेला खड़ा होता है।
पैसे ब्रांडिंग में हैं, बनाने में नहीं।
ReplyDeleteउस सब्जी वाली से लौकी जूस बनवाइये।
उस पर स्लिम्रा या स्लिक्रा के ब्रांड की चिप्पी चिपकवाईये।
साथ में करीना कपूर का फोटू, ये जूस पीते हुए।
और बेचने की सही जगह होगी, इलाहाबाद युनिवर्सिटी के बाहर या किसी गर्ल्स कालेज के बाहर या इलाहाबाद की किसी पौश कालोनी में।
यह बिजनेस का माइक्रोसाफ्ट माडल है।
ज्ञान जी मुंबई में अपन जहां रहते हैं उसके बगल में पेप्सी ग्राउंड है जिसका पेप्सी से कोई लेना देना नहीं है । सबेरे सबेरे लोग सैर करने निकलते हैं । चार बजे से धूप निकलने के बहुत बाद तक । यहां एक महिला मेज़ पर कुछ बर्तन लेकर बैठती है । पूछा तो पता चला कि लौकी का रस, टमाटर और चुकंदर का रस । भांति भांति के रस हैं । बंधे हुए ग्राहक । घंटा डेढ़ घंटा दुकान चलती है । सामान फटाफट खत्म और फिर चले जाओ घर । देखा इलाहाबाद में आपने सोचा मुंबई में साकार हो गया ।
ReplyDeletegyan jee
ReplyDeletejo bhi berojgar ho mere pass bhej do bahut kam hai