गोलू पाण्डेय 1 मेरा
गोलू पाण्डेय जब ऊर्जा से भरा होता था तो अपनी पूंछ पकड़ने के लिये गोल गोल घूमता था। पूंछ तो पकड़ में आती न थी; पर हमारा मनोरंजन बहुत होता था। मुझे लगता है कि बहुत से कुत्ते इस प्रकार चकरघिन्नी खा कर अपनी पूंछ को चेज करते हैं। वे यह नहीं जानते कि जिसे वे चेज करते हैं, वह उन्ही के पास है। या चेज करना छोड़ दें तो वह चीज (पूंछ) उन्ही के पास आ जायेगी।
गोलू पाण्डेय जिंदगी भर चेज ही करता रहा। पूंछ, चिड़िया, बिल्ली, चुहिया और कभी कभी तो मक्खी! वह दौड़ता, सूंघता, चकरघिन्नी खाता, ऊंघता और हल्की आहट पर कान खड़े करने वाला जीव था। कभी कभी (या बहुधा) वह यह अहसास करा देता था कि हम उसे जितना होशियार समझते हैं, उससे ज्यादा मेधासम्पन्न है वह।
गोलू पाण्डेय चेज करते करते अंतत: जिन्दगी को चेज नहीं कर पाया। चेज करने में वस्तुयें उसके हाथ न लगी हों, पर जितनी भी खुशी इकठ्ठी की उसने, वह मुक्त हस्त से हमें देता गया।
और यह लघु कथा पढ़िये:
एक बड़ी बिल्ली ने एक छोटे बिल्ले को अपनी पूंछ को चेज करते देखा। पूछा - "अपनी पूंछ क्यों चेज कर रहे हो?"
छोटे बिल्ले ने जवाब दिया, "मुझे पता चला है कि एक बिल्ली की जिन्दगी में सबसे बढ़िया चीज है प्रसन्नता। और यह प्रसन्नता मेरी पूंछ में है॥ इस लिये मैं पूंछ को चेज कर रहा हूं। जब मैं पूंछ को पकड़ लूंगा, तब प्रसन्नता को पा लूंगा।"
बड़ी बिल्ली ने कहा, "बेटा, मैने भी जीवन की समस्याओं पर विचार किया है। मैने भी जान लिया है कि प्रसन्नता पूंछ में है। पर मैने देखा है कि जब भी मैं इसे चेज करता हूं, यह मुझसे दूर भागती है। और जब मैं अपने काम में लग जाता हूं, तब यह चुपचाप मेरे पीछे चलने लगती है। यह सब जगह मेरे पीछे चलती है!"
(सी एल जेम्स की रचना "ऑन हेप्पीनेस" से)
1. यह लिंक एक दुखद सी मेरे अंग्रेजी ब्लॉग पर लिखी पोस्ट का है।
सत्य वचन महाराज,
ReplyDeleteगोलू पांडेय की आत्मा को शांति मिले।
ऐसी शानदार विभूति अगले जन्म में किसी नेता के यहां पैदा हो और सांसद, विधायक बनकर मौज काटें, ऐसी शुभकामना है।
हैप्पीनेस पूंछ नहीं, एक उम्मीद है या अतीत।
खुशी को देखिये, या तो उम्मीद में होती है, या फिर अतीत की जुगाली में होती है।
वर्तमान तो दुख का होता है। जो लगातार खिंचता चलता जाता है।
सुख की उम्मीद और दुख के वर्तमान में लिथड़े हुओं के लिए सुख आकर चला जाता है, तो पता भी नहीं चलता।
जमाये रहियेजी आस्था चैनल।
सही है। कस्तूरी कुंडल बसै। ऐसे ही पूंछ है। पीछे लगी है दिखती नहीं। दिखती है महसूस नहीं होती।
ReplyDelete"..चेज करने में वस्तुयें उसके हाथ न लगी हों, पर जितनी भी खुशी इकठ्ठी की उसने, वह मुक्त हस्त से हमें देता गया।.." .. बने रहने के लिए गोलू पंडित का ये अंदाज़ गौर करने वाला - अच्छा लगा - सादर - मनीष
ReplyDeleteसच है जिस भी चीज के पीछे भागो, वह नहीं मिलती। उसकी परवाह छोड़ दो, अपने काम में लगे रहो, तो वह चीज भी अपने आप के पीछे आ जाती है।
ReplyDeleteअच्छा जीवन-सार है यह।
नानी की बानी याद आ गई..कभी सुख दुख की बातें सुनकर बस यही कह देतीं - "सब कुछ तेरे अन्दर, जान सके तो जान "
ReplyDeleteलिंक कहां है जी? मैं तो अंग्रेजी पोस्ट का लिंक ही ढूंढता रह गया..
ReplyDeleteवैसे गोलू था बहुत ही प्यारा.. :)
मिल गया जी.. मैं नीचे ढूंढ रहा था मगर वो उपर निकला.. :D
ReplyDeleteगोलू महाराज जहाँ कहीं हो, अपनी पूँछ के साथ मस्त रहे.
ReplyDeletebarso peeche pahuncha diya,aapke golu ne...sach me bahut badi shati hai...
ReplyDeleteबात ही बात मे आपने जीवन दर्शन बता दिया। आभार।
ReplyDeleteगोलू क्या हर कोई चेज करने मे ही लगा है। लघु कथा अच्छी है।
ReplyDeleteभैय्या
ReplyDeleteगोलू ने मुझे हमारे "टैरी" की याद ताज़ा करवा दी. वो दो साल ही जिंदा रहा लेकिन हमारी यादों में आज १७ साल बाद भी जिंदा है. उसकी हरकतें याद आती हैं तो हँसी और रोना दोनों एक साथ आते हैं. मजे की बात कही है आप ने सब कुछ अपने पास होते हुए भी हम जीवन में पता नहीं क्या और पाने को भागते रहते हैं. पूँछ को पकड़ना अपने सपनो के पीछे भागने जैसा है.
नीरज
पंकज अवधिया जी ने मेरी बात पहले ही लिख दी!!
ReplyDeleteज्ञान जी देखा जाए तो हम सभी गोलू पांडे ही हैं जो किसी ना किसी चीज़ को चेज़ कर रहे हैं । दिक्कत ये है कि इस चेजिंग के नतीजे अकसर प्रॉपर नहीं मिलते । गोलू पांडे को हमारी श्रद्धांजली है ।
ReplyDeleteगोलू के लिए हार्दिक संवेदना....
ReplyDeleteमैने देखा है कि जब भी मैं इसे चेज करता हूं, यह मुझसे दूर भागती है। और जब मैं अपने काम में लग जाता हूं, तब यह चुपचाप मेरे पीछे चलने लगती है। यह सब जगह मेरे पीछे चलती है!
ReplyDeleteबहुत कुछ सिखा गई ये लाईनें...
गोलू जी के लिए हमारी भी हार्दिक संवेदना एवं श्रद्धांजलि.
ReplyDeleteज्ञान जी सही शब्द क्या है ?- पामेरियन या पाम्रेनियन ?
ReplyDeleteMy tributes to Golu !
@ श्री अरविन्द मिश्र - सही आपने कहा। शब्द है - पॉमरेनियन। मैने पोस्ट में सही कर दिया है। धन्यवाद।
ReplyDeleteगोलू का नाम लेकर बहुत ऊची बात कह दी आप ने,वेसे हमारे पास भी हेरी नाम का कुत्ता हे, वह भी जब शरारत के मुड मे होता हे तो हब सब के लिये एक अलग सा मनोरंजन होता हे ओर वो भी अपनी पूछं को पकडने की कोशिश करता हे,गोलु के बारे पढ कर दुख हुया
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