|| MERI MAANSIK HALCHAL ||
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Saturday, April 12, 2008
एचटीएमएल की रेल-पटरी और नौ-दो-ग्यारह!
आलोक 9-2-11 के पोस्ट के हेडिंग और विषयवस्तु बड़े सिर खुजाऊ होते हैं। और जब तक आप समझ पायें, वे नौ-दो-ग्यारह हो जाते हैं।
पहले वे बोले कि उनके चिठ्ठे का एचटीएमएल अवैध है। फिर वे इतराये कि वे शुद्ध हो गये हैं। पर लोगों की टिप्पणियों का ब्लॉग पर संसर्ग उनके ब्लॉग के गुणसूत्र बिगाड़ देता है। अपने को समझ नहीं आया। अब यह HTML कूट कहां से सवर्ण-विवर्ण होने लगा!
भला हो, हमारे अनुरोध पर उन्होने अपनी उलटबांसी वाली भाषा छोड हमें बताया कि एचटीएमएल कूट भी मानक/अमानक होता है। ठीक वैसे जसे रेल के काम में कुछ मानकीकृत तरीके से है और कुछ धक्केशाही में। एचटीएमएल में भी खासी धक्केशाही है। और यह धक्केशाही संगणक जगत में बहुत है; यह बताने के लिये उन्होने बहुत धैर्य के साथ अपने मानक के खिलाफ माइक्रो नहीं, मैक्सी पोस्ट लिखी।
खैर, आप अपने ब्लॉग की एचटीएमएल शुद्धता जांचें वैलिडेटर साइट से। हमारे ब्लॉग का वैलिडेशन तो फेल हो गया है। कल अगर HTML मानक के अनुसार ही चलने लगा तो हमारा ब्लॉग तो हुआ ठप्प। पर तब तो Y2K जैसा चीत्कार मचे शायद (जो अंतत: निरर्थक साबित हुआ था)!
(आप नीचे के चित्र पर भी क्लिक कर वैलिडेटर साइट पर जा सकते हैं। वहां Address में अपने ब्लॉग का एड्रेस भरें और परिणाम देखें।)
अब हम होते हैं नौ-दो-ग्यारह!
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25 गलतियां करा दी आपने हमारी एक पोस्ट में। क्या मजा मिला? :)
ReplyDelete५५७ गलतियाँ, ये देखने से पहले मैं घर क्यों नहीं चला गया :-)
ReplyDeleteअरे वाह कंप्युटर की नौकरी हम कर रहे हैं और लोगों को एच टी एम् एल आप सिखा रहे हैं. वैसे हमारा ब्लॉग भी इस हिसाब से तो ग़लतियों के रेकार्ड बना रहा है.
ReplyDeleteआप काहे इधर उधर खुद जाते है फ़िर दूसरो भी भेजते है,ये क्या जुगाड लगाया है आपने जो हमारे चिट्ठे को वैली डेट नही कर रहा है ? हम अब ये सोचने पर मजबूर है कि आप हमसे पंगा ले रहे है ? और ये अच्छी बात नही है :)
ReplyDeleteपोस्ट समझ में आयेगी, तब टिप्पणी कर पाऊंगा जी।
ReplyDeleteज्ञान जी। कहाँ फँसा दिया? आप के बताए रास्ते से शुद्धता जँचवाने गए, और लौट कर बुद्धू घर आ गए।
ReplyDeleteहमें तो ये शुद्धता जाँच बिलकुल फर्जी लगी। उसी तरह जैसे पहले हम बोलना सीखे, फिर पढ़ना, फिर लिखना सीखे। तीसरी कक्षा में भर्ती हुए स्कूल में पाँचवीं कक्षा तक स्कूल के मेधावी छात्र माने गए। छठी कक्षा में हिन्दी के गुरूजी ने व्याकरण और उच्चारण का का ज्ञान दिया। तब लगा कि क्या-क्या गलतियाँ करते आए थे। उन नियमों के मुताबिक हिन्दी लिखने का प्रयास करते तो सभी परचे ब्रह्माण्ड (0) दर्शन करवा देते। ये हाल अंग्रेजी का हुआ। बरसों तक हम व्याकरण के मुताबिक अंग्रेजी लिखते रहे। आज तक सफल नहीं हुए। और गति बनी ही नहीं। फिर हम ने व्याकरण छोड़ा अपने मुताबिक लिखने लगे तो अच्छे अच्छे तारीफ कर गए। हाँलाकि वे सभी व्याकरण के नियम नहीं देखते। देखते हैं उन के समझ आया या नहीं और काम का है या नहीं।
कानून के मुताबिक जिन्दगी जीने लगे तो पाजामे में मूतना पड़े। जिन्दगी को जिन्दगी के हिसाब से जियो। रेल को पटरियों पर दौड़ने दो। वे इस्पात की हों या रबर की। हमारा ध्येय चलना है। रुक गए तो गलतियां ठीक करने में ही उमर निकल जायेगी। जिस ने मर्ज दिया वही दवा देगा, जिस ने चोंच दी वही चुग्गा भी देगा। यह आदमी है जिस को चोंच नहीं मिले, मिले हाथ पाँव। उनको लेकर परेशान है। जिस ने शुद्धता जाँच मापक बनाया है, उसे अशुद्ध 'हटमल' को शुद्ध करने का यंत्र बनाने दो फिर इस्तेमाल करेंगे उस को,काहे पचड़े में पड़ो। अपना काम लिखने का है, बस लिखते रहो। आखिर किसी ने 'अक्वा गार्ड' भी तो बनाया है, सब अपने अपने किचन में लगवाए हैं कि नहीं?
एलेक्सा फेलेक्सा के बाद अब ये नया शगूफा. आप कैसे इस चक्कर में फंस गए?
ReplyDeleteवेलिड-अनवेलिड HTML कूट क्या होता है? HTML कुछ tags से बनी होती है. web browsers इन tags को समझते हैं और प्रदर्शित करते हैं. समय के साथ भाषा में नए tags जुड़ते रहे हैं और कुछ पुराने tags बदलते भी रहे हैं. हर नया web browser backward compatible होता है. सो आप निश्चिंत रह सकते हैं की आपके पेजेस आने वाले कई वर्षों (संभवतः सदैव) इसी प्रकार नजर आते रहेंगे. ये ख़ुद इन browsers की भी मजबूरी है वरना कौन ऐसे browser को रखना पसंद करेगा जो पुराने पेजेस को ठीक से न दिखाए?
अगर आप वेलिडेशन में आने वाले error messages को देखें तो पायेंगे कि बहुत मामूली चीजों को error के रूप में दर्शा रहा है. कोई चिंता की बात नहीं है. जी खोल के लिखते रहें.
एक बात और. जिस प्रकार validator software आते हैं उसी प्रकार converter और correcter software भी मुफ्त में उपलब्ध हैं. अगर कभी जरूरत पड़ ही जाए तो आजमा सकते हैं.
दूसरे ये कि ये validation वगैरह उन लोगों की समस्या है जो अपने पेज का पूरा कोड ख़ुद लिखते हैं चाहे टेक्स्ट में या WYSIWYG editor में. ब्लाग्स के लिए तो ये काम गूगल कर रहा है. तो आवश्यकता पड़ने पर वही code में सुधार कर लेगा. आप किसी को हलकान होने की जरूरत नहीं होगी.
ReplyDelete523 Errors
ReplyDeleteकिधर किधर भेज देते हो आप,
हे राखी सावंत इन्हें अपने मे बिज़्ज़ी रखो न, ताकि इधर उधर झांके न ये!!; )
आदरणीय ज्ञान जी
ReplyDeleteएक तरफ तो सुखी जीवन वाली 'ज्ञान बिड़ी' का पैकेट थमाते हो आप दूसरी तरफ हटमल वाले लफड़े । साढ़े छह सौ गलतियों की पुडि़या । जे तो विरोधाभास है । पत्नी कहती है तुम्हारे बाल झड़ रहे हैं । थोड़े दिन में गंजे हो जाओगे । आरोप आप पर आएगा । आए दिन इस तरह सिर खुजाएंगे तो होगा क्या हमारा । आप ही सोचिए ।
कुछ उत्साहवर्धक बात करे। गूगल मे 'ज्ञानदत्त पाण्डेय' खोजने पर 55,500 परिणाम आ रहे है। वही रवि जी का नाम खोजने पर 12,900। संजीत 36,600 पर है। ऐसी उत्साहवर्धक बाते ही नये हिन्दी ब्लागरो को रोक सकती है पलायन से। मेरा नाम अंग्रेजी मे खोजने पर 24,000 परिणाम आते है पर हिन्दी मे खोजने पर 1,53,000 । हिन्दी ब्लागिंग मे वाकई दम है।
ReplyDeleteलो एक भी गलती नही.............. जिन्हें शक हो वे जाकर मेरा ब्लॉग चेक कर लें. :) :) :)
ReplyDeleteदिनेश जी की पोस्ट पढने और टिपण्णी करने के बाद भी हम आपकी पोस्ट पढ़कर ख़ुद को नही रोक पाये और बैरंग ही वापिस आ गए। :)
ReplyDeleteek to pahle hi technically pichde hue they,aapkiis post ko padhkar aor ulajh gaye .....ab jaisa bhi hai likh dalege....mua pc kitni hi galtiya dikhaye.....
ReplyDeleteअरे भई जिसने इतना बड़ा लेख लिखा उसके यहाँ भी कुछ टिप्पणियाँ छोड़ जाते :)
ReplyDeleteऔर हाँ, हटमल शब्द पसन्द आया!
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