मेरी पत्नी जी की पोस्ट पर देर से आई दो टिप्पणियां विचार करने को बाध्य करती हैं। सम्भव है कि बहुत से लोग उस पोस्ट पर अब न जायें, इस लिये इस पोस्ट को लिखने की जरूरत पड़ी।
पत्नी को पीटना, या शराब पी कर पीटना (जिसमें बहाना रहता है कि आदमी अपने होश हवास में न था) बहुत चल रहा है भारतीय समाज में। इसके खिलाफ बहुत कुछ होता भी नहीं। पर न होने का अर्थ इसे सामान्य या सहज व्यवहार मान लिया जाये?
मैं उस पोस्ट पर ज्ञान जी की टिप्पणी और उस पर विश्वनाथ जी का प्रत्युत्तर आपके सामने रखता हूं। आप ही निर्णय करें:
ज्ञान जी की टिप्पणी | जी. विश्वनाथ जी की प्रतिटिप्पणी |
आप लोग कितनी सहजता से किसी मृत व्यक्ति के लिए 'कमीना' शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं। | वह केवल इसलिए के इससे भी ज्यादा शक्तिशाली या भावुक शब्द हम लोग इस सार्वजनिक मंच पर प्रयोग नहीं करना चाहते। |
क्या इस शब्द का इस्तेमाल करने वाले यह मानते हैं कि पत्नी की अंधाधुंध पिटाई करने वाला कमीना है, फिर चाहे वह शराबी हो या ना हो। | जो अपनी पत्नी को पीटता है वह हमारी नज़रों में कमीना ही रहेगा। |
या फिर बताईयेगा कि क्या दुनिया में कोई ऐसा पति है जिसने अपनी पत्नी पर हाथ ना उठाया हो? | पूरी इमानदारी से कह सकता हूँ कि ३३ साल में कई बार पत्नी से झडप हुई है पर एक बार भी मैंने उसपर हाथ नहीं उठाया। एक बूँद शराब भी नहीं पी। मेरे जैसे हजारों मर्द होंगे। यकीन मानिए पत्नी को न पीटना कोई मुश्किल या असंभव काम नहीं है! |
मैं तो आपकी सहजता पर हैरान हूँ! | हम भी आपके विचारों से हैरान हैं! |
विश्वनाथजी जैसे बहुत से लोग होंगे. मैं भी हूँ.
ReplyDeleteपत्नी तो क्या, अपने बच्चे पर हाथ नहीं उठाया है. न ही हमने आज तक शराब, बीयर या ऐसा ही कोई पेय पिया है. जो मर्दानगी दिखाने के लिए पत्नी पर हाथ उठाता है उसे क्या कहना चाहिए? या फिर कमीना क्यों नहीं कहना चाहिए?
ओह, अंतर्जाल वास्तव में विशाल है। किसी ऐसे व्यक्ति से मुलाकात हुई जो यह मानता है कि पति बिना पीटे पति नहीं कहलाया जा सकता। आज तक मैंने ऐसे विचार केवल अखबारों और कहानियों में पढ़े थे। पर फिर मैं मैं हूँ। हाँ बचपन में अपने छोटे भाई बहनों को बहुत पीटा है और उसका मुझे बहुत दुःख है।
ReplyDeleteआश्चर्यम् कि इस प्रकार की टिप्पणी को आप इतनी तवज्जो दे रहे हैं।
अगर देर से आई इस टीप्पणी का उल्लेख ना करते तब हम इसे देख नहीँ पाते और वँचित रह जाते -
ReplyDeleteविश्वनाथ जी की गँभीर बातोँ से भी और ..
दूसरीवाली बात से भी ...
पत्नि को या पति को ..
(एक दूसरे को मारने पिटने का ) अधिकार, कदापि , किसी ने नहीँ दिया ..
ये अमानुषिक कृत्य है
- लावण्या
इस प्रकार की टिप्पणी को आप इतनी तवज्जो दे रहे हैं।
ReplyDelete~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
( For this , I'd add ,
कारण शायद क्षोभ मिश्रित रोष भी हो - लेकिन टीप्पणी छोडकर जानेवाले इन्सान की शायद यही इच्छा थी - कि वे कुछ ऐसी ही हलचल पैदा करेँ
- लावण्या
पांडे जी, क्या टिप्पणी करें? इधर तो बे पत्नी ही हैं.
ReplyDeleteसच मानिये हमारी श्रीमति जी जब कभी कभार लाङ मैं आती है तो हमारा घुटना या मुंह सूजा हुआ होता है....उस पर से ये कि जान बूझकर थोङे न दी है
ReplyDelete"पत्नी पर हाथ उठाना " को अगर शब्दश ना लिया जाए तो सिम्बोलिक रूप मे इसका अर्थ केवल और केवल अपनी पत्नी पर अपना स्वामित्व / पर्भुत्व स्थापित करना हैं और आज भी शायद ही कोई ऐसा पति हो जो ये ना करता हो । अपनी पत्नी को अपने आधीन रख कर उस से कुछ भी करवाना बिना उसकी इच्छा के ""पत्नी पर हाथ उठाना " के समान ही हैं । पति और पत्नी के बीच मे अगर पत्नी ही हमेशा चुप हर कर हर बात मान ले और पति ये कहे की हमने कोई दबाव नहीं डाला तो ये भी एक भ्रम हैं क्युकी पत्नी को पति को सर्वस्व मानने की शिक्षा बचपण से दी जाती हैं । पति हैं तो तुम्हारा जीवन जीवन हैं , पति हैं तो तुम श्रृगार करो , पति हैं तो तुम सुरक्षित हो , पति हैं तो तुम समाज मे सम्मानित हो ये सब पति को एक ऐसे पेडस्टल पर खड़ा कर देते हैं जहाँ पर अगर वो हाथ उठाता भी हैं तो वो उसके "अधिकार " मे शामिल समझा जाता हैं और बहुत सी स्त्रियाँ ख़ुद भी इसे "असीम अधिकार और प्यार मानती" हैं ।
ReplyDeleteलेकिन ये हमारे संस्कारो का कड़वा सच हैं की आज भी पति का पत्नी पर हाथ उठाना एक "व्यक्तिगत प्रश्न " के दायरे मे आता हैं । इसको यहाँ देने के लिये थैंक्स और रीता जी को निरंतर पढ़ती हूँ , उनसे निवेदन हैं की अपना ख़ुद का ब्लॉग बनाए । इस लिये नहीं की वो अपने पति के साथ लिख कर खुश नहीं हैं बल्कि इस लिये की समाज को जरुरत हैं की महिला आगे आकर जगह जगह सामाजिक बुराईयों पर लिखे
एक पर्सनल नोट ज्ञानदत जी मानसिक हलचल के लिये
एक बार ज्ञान { जिनकी टिपण्णी आप दे रहे हैं } ने नारी ब्लोग्पर भी टिपण्णी की थी और मुझे आप का धोका हुआ था और इसी वजह से मेने आप के ब्लॉग पर आ कर कहा था की " नारी ब्लॉग पर टिपण्णी करने के लिये थैंक्स " , फिर ये भ्रान्ति दूर हुई जब ज्ञान का ब्लॉग बना पर आप से क्षमा मांगना रह गया था अपने confusion के लिये
सो आज मौका हैं ।
पूरी इमानदारी से कह सकता हूँ कि ३5 साल में एक आध बार पत्नी से झडप हुई होगी पर कभी हाथ ऊठाने का तो ख्याल ही नही आया ! किसी भी तरह के नशे से दूर रहा हूं ! मुझे नही याद आता कि मैने एक बार छोड कर जीवन मे किसी पर हाथ ऊठाया हो !
ReplyDeleteमैं एक बार सब्जी खरीद रहा था और उस सब्जी बेचने वाली महिला का पति , शराब पीकर आया और उसे गालिया देते हुये मारने लगा ! पता नही क्या हुआ कि मैने उसे पीटना शुरु कर दिया जैसे मेरे उपर कोई भूत प्रेत चढ गया हो ! वो सब्जी वाली महिला बोली - बाबूजी क्यो अपने हाथ खराब करते हो ? हम लोगो के नसीब मे तो यही लिखा है !
और यकीन किजिये मैं उस घटना को याद करके आज भी दुखित हो जाता हू !
मैं यह तो नही कह सकता कि ऐसा नही होता होगा ! पर मुझे कभी ऐसा लगा ही नही कि ऐसा काम करना चाहिये और ना मेरे घर परिवाअर मे ऐसा होते कभी देखा !!
रामराम !
वैसे पत्नी से पिटने पर भी यदि ज्ञानीजनों के विचार प्राप्त हों तो ठीक रहे.
ReplyDeleteबड़ी सार्थक चर्चा बन पड़ी. हमें भी ज्ञान जी के बारे में धोका हुआ है.अबसे ज्ञानदत्त ही कहना होगा. एक पोस्ट हमने आपको समर्पित किया था.
ReplyDeleteए बड़ा कन्फ्यूजन हो रिया है भाई ! मैं तो ज्ञानदत्त जी को ही ज्ञान जी कहता हूँ और आगे भी कहता ही रहूँगा -ए इम्पोस्टर कौन घुस आया है भाई ? वे नराधम और नपुंसक हैं जो पत्नी पर हाथ उठाते हैं !
ReplyDeletebahut sahi kaha aaplogo ne...main sab ki baat se sat pratisht sehmat hun.....
ReplyDeletejo ye kaam karte hain unke liye mishra jee ne jo kaha hai wo bilkul sahi hai....
भाई यहां सभी साधू है, मै झुट केसे बोल सकता हुं,भाई मेने वो सब किया जो आप सब ने नही किया, लेकिन मेरे घर की तरफ़ किसी की आंख उठने की हिम्मत नही हुयी आज तक ,हम भुखे रहे, दुखी रहे, या सुखी इस घर की कोई बात मेरी चारदिवारी से बाहर नही गई....
ReplyDeleteओर मै कमीने को कमीना ही कहुगां चाहे वो मरा हुआ ही क्योना हो...एक शेतान मरने के बाद क्या पबित्र हो जाता है ???
बहुत सुंदर लगा आप सब की बाते जान कर.
धन्यवाद
पत्नी ही क्यों लोग भाई, बहन, माता, पिता और बच्चों और अध्यापकों पर भी हाथ उठाते दिखाई देते हैं। लेकिन मैं यह समझता हूँ कि यह हमारे सामंती अधिकारवादी संस्कारों की अभिव्यक्ति है। मेरे बचपन में मैं ने यह बहुत देखा है और खुद भी भाई बहनों पर खूब हाथ उठाया है। पर वह संस्कार मुझे विरासत में मिला था। धीरे धीरे शिक्षा और समझ तथा जनतांत्रिक व्यवहार को अपनाने ने इस आदत से पीछा छूटा। मुझे पता है एक बार आदत का शिकार हो कर अपनी पत्नी पर हाथ उठा बैठा था पर वह बीच में ही रुक गया। पत्नी बोली रुकने से क्या? हाथ का उठना ही काफी है। इसी एक वाक्य ने मेरी आदत को सदा के लिए समाप्त कर दिया। मुझे पता नहीं कि मैं ने कभी सपने में भी बच्चों पर हाथ उठाया हो। हम चाहें तो परिवार में जनतंत्र को अपना कर इन आदतों से पीछा छुड़ा सकते हैं।
ReplyDeleteपत्नी पर क्या किसी पर भी हाथ उठाना बहुत सहज व्यवहार नहीं है। नशा पत्ती करके अगर बंदा होश ही खो देता है, तो अपनी मां को क्यों नहीं पीटता। नशा करके भी आदमी उतना ही होश खोता है, जितना होश खोना वह अफोर्ड़ कर सकता है।
ReplyDeleteक्या कमेन्ट करें? विश्वनाथ जी ने सबकुछ कह दिया है.
ReplyDeleteपूरी इमानदारी से कह सकता हूँ कि 5 साल में कई-कई बार पत्नी से झडप हुई है पर एक बार भी मैंने उसपर हाथ नहीं उठाया। एक बूँद शराब भी नहीं पी। मेरे जैसे हजारों मर्द होंगे। आश्चर्य ऐसे व्यक्ति !!! जो यह मानता है कि पति बिना पीटे पति नहीं कहलाया जा सकता।
ReplyDelete@ ALOK PURANIK ji!!
ReplyDelete"नशा पत्ती करके अगर बंदा होश ही खो देता है, तो अपनी मां को क्यों नहीं पीटता।"
main to aksar apne vidyalyi gaon me yah dekhta hun ki bachhe apne ma aur baap ko maarte hain , aur to aur mahilaayen bhi apni sas aur sasur ko!!!
@ gyan ji!!
ReplyDeleteaapse jalan ho rahi hai!!!
ki विश्वनाथ जी jaise tippanikaar aapko milte hain!!!!
न पी हो ऐसा नहीं मगर पी कर भी कभी ऐसा सपना भी नहीं आया.
ReplyDeleteसंस्कार और माहौल वाली बात है. समाज को सुधरने में अभी समय लगेगा. परिवर्तन आ रहा है मगर मंद गति से.
ReplyDeleteहमारी श्रीमती जी ने तो जैव्लिन थ्रो और शॉट पुट की अच्छी खिलाड़िन रह चुकी हैं सो हम तो सारे झगड़े टंटे शांति से सुलझाने में ही परम श्रद्धा रखते हैं. :-)
पूरी चर्चा में यह आम सहमति दिख रही है कि पत्नी पर हाथ उठाना घोर दुष्कृत्य और अधमता का कार्य है। इससे तो केवल सहमत ही हुआ जा सकता है।
ReplyDeleteइस ब्लॉग पर पिछले दिनों ‘खरी-खरी’ जी के बाद अब ये ‘(अ)ज्ञान’ जी ने कुछ बेतुकी बात छेड़ दी है। इसे एब्नॉर्मल बेसुरा राग मान कर उपेक्षित ही किया जाना चाहिए।
वैसे इस चर्चा में रचना जी ने पति-पत्नी सम्बन्धों का जो चित्रांकन किया है, उससे यही लगता है कि इन्होंने अपने आस-पास आपसी प्रेमभाव, समदृष्टि व सुख-सन्तोष से रहने वाले वैवाहिक जोड़ों को कम ही देखा है, या शायद कहीं देखा ही नही है। ...इनके वर्णन जैसे अधम उदाहरण जरूर होते होंगे, लेकिन सर्वत्र ऐसी ही दुर्दशा है ऐसा देखने वाली दृष्टि ठीक नहीं लगती। इस दुनिया में अच्छे और बुरे दोनो प्रकार के स्त्री और पुरुष मिल जाएंगे। यह ब्लॉग जगत भी एक सैम्पल हो सकता है।
‘व्यक्तिगत प्रश्न का दायरा’ जरूर सोचने पर मजबूर करता है। लेकिन इसकी वजह यह है कि इन प्रश्नों को यदि समाज के स्वयंभू ठेकेदारों के हाथ में दे दिया जाय तो स्थिति और भयावह हो जाएगी। अवान्छित हस्तक्षेप होने का खतरा बढ़ जाएगा। ‘परिवार’ नामक संस्था की गरिमा और संप्रभुता को तोड़ने वाली शक्तियाँ प्रभावी होकर इस अमूल्य निधि को समाप्त कर देंगी। निरन्तर अराजक होते समाज में अभी परिवार को अक्षुण्ण बनाये रखने का प्रयास हो तो बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।
आपकी इस पोस्ट ने तो हमें चकनाचूर (shatter) ही कर दिया.
ReplyDeleteहमें भी विश्वनाथ जी से पूर्ण सहमति है और इन दूसरे ज्ञान (या उसका पूर्ण अभाव) के विचारों से से हैरान हैं!
यह मनुष्य का सहज स्वभाव रहा है कि जब स्थितियाँ विपरीत होतीं हैं तो उसे क्रोध आता है, और उसे बल प्रयोग का विचार आता ही है . उस स्थिति में यदि बल प्रयोग करना सुरक्षित है तो वह करता ही है . अब यह अलग बात है कि यह सुरक्षा की भावना अलग अलग व्यक्तियों में अलग अलग होती है . उदाहरण के लिए देखा जाए तो गरीब लोग ही पत्नी पर हाथ उठाते ज्यादा देखे जाते हैं . मेरे विचार से ऐसा इसलिए कि उनको अपने घर की इज़्ज़त उछलने का डर अपेक्षाकृत कम रहता है . पत्नी को पीटने की बात बाहर लोग जानेंगे भी तो क्या हुआ . बहुत ज्यादा बदनामी होने वाली नहीं है .
ReplyDeleteयह लगभग ऐसा ही है कि सडक पर होने वाले झगडों में जो पक्ष अपेक्षाकृत संख्याबल में कम होता है वह बात को रफा दफा करने की कोशिश में रहता है और बहुमत वाले लोग झगडा करने पर उतारू होते हैं . अब अगर अल्पमत वालों का एक और दल वहाँ पहुँच जाता है तो स्थितियाँ बदले देर नहीं लगती . यह मेरा अभी एक हफ्ते पहले का ही अनुभव है .
अगर किसी को लगता है कि सिर्फ पति ही हाथ उठाता है तो ऐसा नहीं है कुछ मामलों में पत्नी भी हाथ उठाती देखीं जातीं हैं . उसकी चर्चा क्यों नहीं . क्या इसलिए कि वे मामले बेचारे अल्पमत में हैं ? :)
सिदार्थ शंकर त्रिपाठी जी जो मैने कहा हैं वही आप को आज एक और ब्लॉग पर भी मिल जाएगा पढ़ लीजिएगा । आप श्याद ये भूल जाते हैं की बात और डिस्कशन "नोर्मल" चीजों पर नहीं होता हैं । यहाँ बात एक अपवाद से आए कमेन्ट पर हो रही थी और आप ने उसको मेरे ऊपर एक पर्सनल लांछन की तरह दिया हैं की मैने क्या देखा हैं और क्या नहीं देखा हैं । अब आप मे और इस पोस्ट को जिस टिपण्णी की वजह से शुरू किया गया उसमे क्या फरक हैं आप ख़ुद बताये । पति पत्नी का कर्तव्य ही साथ रहना होता हैं इस मे क्या सही और ग़लत होगा और इस पर क्या डिस्कशन करना होगा । आप अपने ब्लॉग के अलावा शास्त्री जी के ब्लॉग पर भी यही बाते मेरे बारे मे लिखते रहे हैं । और अगर आप को जवाब दिया गया हैं तो आप उसको कुतर्क कहते । बजाये ये देखने के रचना को नीचा कैसे दिखाया जाए अगर सार्थक बहस करे की समाज मे परिवारों ग़लत क्या क्या हो रहा हैं तो हो सकता हैं हम एक ईमानदार समाज की व्यवस्था मे कुछ कर सके
ReplyDeleteनारी पर लांछन लगाया ? जबाब को कुतर्क कहा ?
ReplyDeleteनीचा दिखाया ?
शिव शिव शिव . अब तो ईमानदार समाज की व्यवस्था में कुछ न किया जा सकेगा . अफसोस :)
पता नहीं, पत्नी को कौन पीटता है? मेरे आस-पास ज़्यादातर वैसे ही लोग हैं, जो पत्नी की पिटाई से बचने का रास्ता ढूंढ़ते हैं। (just kidding)
ReplyDeleteरीता भाभीजी के इशारे पर आ०ज्ञानदत्तजी नें तो अदालत ही लगा दी है।जो आरहा है सफाई दे रहा है कि भईया मैने पिये बगैर पिये कभी मारना तो दूर हाथ तक नहीं उठाया।रचनाजी कह रही हैंकि हाथ उठाना भी मारनें के बराबर है अब यह कोई कैसे समझाए कि भाइ हाथ अपनें आप को चपतियानें के लिए कभी कभी उठाना पड़्ता है।इसके बिना स्टैटिक एनर्जी काऍनेटिक में कन्वर्ट नहीं होती।अपनीं सफायी में इतना ही कहना है कि ८१में विवाह हुआ९९में विधुर तो ज्यादा समय मनुहार में निकल गया,मारनें पीटनें का समय ही न मिला।वैसे अब कहीं मिल जाए तो जल्दी पल्ला झाड़्नें के लिए एक थप्पड़ जरूर लगाँऊ।
ReplyDeleteलेकिन मार पीट होती है यह एक सच्चाई हैकतिपय कारण विवेकसिंहजी नें इंगित किये है,और भी सामजिक,आर्थिक और पारिवारिक कारणों के चलते भी ऎसे कृत्य होते हैं।किन्तु रचना जी का निम्न कथन चर्चा को एक नए आयाम की तरफ ले जारहा है,जिसके लिए ज्ञानदत्तजी को एक नई सीरीज चलानीं पड़ सकती है।
@ “पति और पत्नी के बीच मे अगर पत्नी ही हमेशा चुप हर कर हर बात मान ले और पति ये कहे की हमने कोई दबाव नहीं डाला तो ये भी एक भ्रम हैं क्युकी पत्नी को पति को सर्वस्व मानने की शिक्षा बचपण से दी जाती हैं । पति हैं तो तुम्हारा जीवन जीवन हैं , पति हैं तो तुम श्रृगार करो , पति हैं तो तुम सुरक्षित हो , पति हैं तो तुम समाज मे सम्मानित हो ये सब पति को एक ऐसे पेडस्टल पर खड़ा कर देते हैं जहाँ पर अगर वो हाथ उठाता भी हैं तो वो उसके "अधिकार " मे शामिल समझा जाता हैं और बहुत सी स्त्रियाँ ख़ुद भी इसे "असीम अधिकार और प्यार मानती" हैं ।” कूछ प्रश्न रचनाजी सेः-
प्रायःमाँ बेटी को ये शिक्षाएँ देती हैं---
१-पति को सर्वस्व मानों--नहीं मोहल्ले वालों को सर्वस्व मानों?
२-पति तो तुम्हारा जीवन है--पति को यमराज समझो-यार को जीवनधार समझो?
३-पति है तो श्रृंगार करो- नहीं दोस्तों के लिए श्रृंगार करो?
४-पति है तो तुम सुरक्षित हो-नहीं पति चूहा है,दमदार यार बनाओ?
५-पति है तो तुम समाज में सम्मानित हो-नहीं पति रखना तो स्वयं में असम्मान है,सम्मान तो क०के मैनेजिंग ड़ाइरेक्टर,इमीजिएट बास,शहर के ड़ी०एम०,आई०जी,०ड़ी०आई०जी० से व्यवहार रखनें से बढ़्ता है?
रचनाजी,नहीं अभी कोई प्रतिक्रिया मत कीजिए।थोड़ा ठहर कर सोंचिए कि आप का अस्तित्त्व सिर्फ आप के लिए ही नहीं है।आप एक माँ हैं यह ध्यान में रखते हुए सोंचिए और सिर्फ अभी का नहीं आगे १०-१५ साल आगे की सोंचिए जब आप की बेटी विवाह योग्य हो तब की सोंचिए कि आप उसे क्या शिक्षा देंगी? यदि आप के पुत्री नहीं है तो भी यह ध्यान रखनें कि जरूरत है कि पुत्र की सास आपके बेटे के वैवाहिक जीवन को नष्ट कर सकती है।मैं दुर्भाग्य से ऎसे उच्च पदस्थ और शिक्षित २-३ परिवारों को जानता हूँ और गलती से मध्यस्थ की भूमिका निभा चुका हूँ जहाँ लड़्की की माँ के व्यवहार और दामाद के घर अनावश्यक दखलंदाजी के चलते बसे बसाये घर बिखर गये।मैं जानता हूँ कि हमारे समाज में नारी की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।उसके लिए शिक्षा के साथ-साथ अच्छे संस्कार,वातावरण धैर्य और शोहबत चाहिये।आज परिस्थितियाँ पहिले की तुलना में काफी अनुकूल हैं फिर भी अभी बहुत समय चाहिये।उक्त प्रकार की टिप्पड़ियाँ कसैलापन बढ़ाती हैं और बायस्ड़ करती हैं।
“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चिटकाय।टूटे से फिर न जुड़े,जुड़े गाँठ पड़ि जाय।”दाम्पत्य जीवन का मूलमंत्र है एडजॅस्टमेन्ट।मित्र और पति पत्नी को उसके गुण दोषों के साथ सम्पूर्ण्ता से ही स्वीकार किया जाता है/किया जान चाहिये।रचनाजी कुछ अनर्गल कह गया होऊँ तो क्षमा कीजिएगा और क्रोध तो जरा भी नहीं,क्योंकी मैं सरस्वती का उपासक हूँ काली मुझे जरा भी नहीं सुहाती।
( ज्ञानदत्त भाई टिप्पड़ी तो लेख बन गयी।सम्पादन करनें से लेकर न छापनें तक का निर्णय लेनें के लिए आप पूर्णतया स्वतंत्र हैं,बिना हिचक-सुमंत मिश्र)
घर में अपनी मां को और मोहल्ले में कई 'काकियों-भाभियों' को पिटते देखा और हर बार बुरा लगा । इसके बावजूद, अपनों से छोटों पर हाथ उठाया, कई बार ।
ReplyDeleteवैवाहिक जीवन को 37 वर्ष पूरे हो रहे हैं किन्तु पत्नी पर एक बार भी हाथ उठाने का विचार भी नहीं आया ।
'नारी' को समान दर्जा दिए जाने का हामी हूं और अपने व्यवहार में इस धारणा पर अधिकाधिक अमल करने का प्रयास भी करता हूं किन्तु पत्नी के प्रति 'स्वामी भाव' अथवा 'अधिकार भाव' अभी ज्ञी जकडे हुए हैं जिन्हें भूलने की कोशिश (या कहिए कि स्वांग) करता रहता हूं ।
पत्नी को ही क्या, किसी को भी पीटना ग़लत है. कोई किसी कारण से भी यह करे, ग़लत है. पत्नी के विषय में तो यह भी कहना चाहूँगा कि जो पति के व्यक्तित्व को पूर्णता प्रदान करे उस पर हाथ उठाना, यह तो एक छमा न किया जाने वाला अपराध है.
ReplyDeleteएक दूसरा पक्ष भी है. कल सुबह पार्क में एक सज्जन मिले, जिनके बारे में बताया गया कि उनकी पत्नी उन्हें बुरी तरह पीटती हैं. मजे कि बात यह है कि किसी को भी उनसे कोई सहानुभूति नहीं थी.
वैसे तो विष्णु वैरागी जी , दिनेश जी ने अपने कमेन्ट मेरी बात का अनुमोदन कर ही दिया हैं पर सुमन मिश्र जी शायद पढ़ा नहीं हैं .
ReplyDeleteऔर उनका ये कहना की पति को सर्वस्व मानों--नहीं मोहल्ले वालों को सर्वस्व मानों?
और पति तो तुम्हारा जीवन है--पति को यमराज समझो-यार को जीवनधार समझो?
अपने आप मे उनकी मानसिकता को दर्शाता हैं जहाँ अगर स्त्री का पति नहीं हैं तो वो चरित्र हीन हो गयी . जिसकी आखे इसके आगे ना देख पाये उसको कुछ कहना अपना समय नष्ट करना होता हैं .
पति है तो श्रृंगार करो- का सीधा अर्थ हैं हमारे समाज मे विधवा की स्थिति पर आप की नज़र मे शायद स्त्री की साथकता तभी तक हैं जब वो आप के नाम का सिंदूर मांग मे भारती हैं .
आप के कमेन्ट मै सोचने लायक कुछ है ही नहीं एक आम प्रचलित धारणा हैं हमारे समाज की सो प्रतिक्रया ना यहाँ दूंगी और ना प्रतिक्रया स्वरुप अपनी बेटी या बहु को दूंगी .
वैसे एक बात जरुर हैं "ये लड़के की मां और लड़की की मां कह कर आप दो महिलाओं को बड़ी आसानी से एक दूसरे के विरुद्ध कर देते हैं और कभी भी ससुर या पिता का क्या रोल होता हैं अपने बच्चो की जिंदगी बनाने या सवारने मै इस पर बात नहीं करते . ? कभी सोच कर देखे ऐसा तो नहीं हैं की जितने परिवारों मै आप मध्यस्थ की भूमिका निभा चुके हैं उन्ही मे आप की गलत राय की वजह से परिवार टूटे हो
किसी चीज़ को तभी ठीक किया जा सकता हैं जब हम ये माने की हाँ वो सच मे हैं .
ये लड़के की मां , ये लड़की मां , ये पत्नी का स्थान , ये बहु का फ़र्ज़ , ये सास की जगह .ये सोच तो सदियों से जकडे हैं परिवारों को
ज्ञानदत्त जी,
ReplyDeleteआपको इस नाम से संबोधित करना ठीक होगा। आज से "ज्ञान" आप नहीं, कोई और है जिसके उत्तर की प्रतीक्षा बड़ी व्याकुलता से कर रहा था। अब तक "ज्ञान" से कोई प्रति-टिप्पणी नहीं मिली है। सोचा था वे स्पष्टीकरण करते हुए कुछ कहेंगे।
इस सम्मान के लिए धन्यवाद. सोचा नहीं था के मेरी टिप्पणी को आप इतना महत्व देंगे और अगली पोस्ट का विषय भी बना देंगे! और साथ साथ मेरी तसवीर भी फ़िर एक बार छाप देंगे। सोच रहा हूँ स्टूडियो जाकर एक अच्छी तसवीर खिंचवा लूँ। शायद भविष्य में काम आ जाए।
पोस्ट और टिप्पणीयाँ पढ़कर सन्तुष्ट हुआ। इतने सारे लोग मुझसे सहमत हैं।
तो मैंने कुछ गलत नहीं कहा।
गर्व के साथ अपनी पत्नि को बुलाकर आपका ब्लॉग दिखा दिया और कहा :
"देखो मेरी तसवीर छपी है"
पत्नि ने उत्तर दिया : "किस खुशी में? आज कौनसा नया तीर मार लिया तुमने?"
मेरी पत्नि ब्लॉग पढ़ती नहीं है और उसे अब तक समझ में नहीं आई है कि मैं इस पर इतना समय क्यों बिताता हूँ।
मैंने कहा : "३३ साल में तुम पर कभी हाथ नहीं उठाया, इस खुशी में।" और सन्दर्भ समझाया उसे।
मायूस कर देने वाला उसका उत्तर : "लो, तो इसमें कौनसी बड़ी बात है? अपने कड़वे शब्दों से, या कभी कभी मुँह फ़िराकर तुम्हारी चुप्पी साधना क्या कम हिंसातम्क है?
आपको पढ़कर अच्छा लगा!
ReplyDeleteवाह ! सुंदर सार्थक चर्चा.......मगर हम तो दाहिनी तरफ़ ज्यादा हैं...किसी की पत्नी या स्त्री होने के कारण नही,मनुष्यता के नाते इस कर्म की घोर निंदा करते हैं. apne se shareerik roop se asmarth par prahaar poorntah kayarta hai,purusharth nahi..
ReplyDeleteYH LEKH KISI KANE VYKTI KA LIKH LAGTA HAI JISNE AADHA DEKHA HAI YA NARI KO FREE ME DAYA BAT KAR VAH VAH LUTNA CHAHATA HAI .KYA NARI AADMI PAR ATYACHAR NAHI KARTI .AADMI KA DIKHAI DETA HAI JISKE BARE ME CHILATE HO MAGAR JO GHAR KE ANDER BHAWANAO KA AATYACHAR HOTA HAI USKE BARE ME KYO NAHI BILTE .MAR KA GHAV BHAR JATA HAI BOLI KA GHAV NAHI BHARTA. YA AAP LOG NARI KO KAMJOR RUP ME DEKHTO HO AAP BRABAR RUP ME AAYEGI TO PRTI DIVANDI HOGI OOR USKE LIYE YUD HOGA JO JISME TAKT HAI VAH JIT KE LIYA LGAYE GA IS ME ATYACHAR KI BAT HI .KUCHHPANE KE LIYE CUCHH TO KHONA PDEGA .AAGE BADTE BALTKAR ME AAP AADMI KO DOSI BAT KAR VAH VAH LOOTNE CHAOGE JO GALAT HOGA.NARI MARNA ACHHA NAHI TO NARI KA BHAVNATAMK ATYACHAR BHI ACHHA NAHI HAI.NARI BARABARI KARNE JA RAHI HAI YH LADAI ADHIK HOGI . PDE LIKHE JYADA HOGE.KYO JRA SOCHO .NARI KA VOT NA LO.
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