|| MERI MAANSIK HALCHAL ||
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Saturday, December 6, 2008
कौन रहा ओरीजिनल ठेलक?
कल लिखने का मसाला नहीं है। क्या ठेलें गुरू? पर ये ठेलना क्या है। कुच्छो लिखो। कुछ लगा दो। एक ठो मोबाइल की या क्लिपार्ट की फोटो। वो भी न हो तो कुछ माइक्रो-मिनी-नैनो।
सन्तई ठेलो। आदर्श ठेलो। तुष्टीकरण ठेलो। हिन्दू आतंकवाद पे रुदन करो। पल्टी मारो तो गरियाओ इस्लाम की बर्बरता को। साम्यवाद-समाजवाद-बजारवाद-हेनवाद-तेनवाद। बस लिख दो।
कल चिठ्ठाचर्चा कौन कर रहा है जी? फुरसतिया लौटे कि नाहीं पहाड़ से? शिवकुमार मिसिर से हीहीही कर लो फोन पर। अपनी अण्टशण्टात्मक पोस्ट की बात कर लो। क्या पता एक आध लिंक दे ही दे छोटा भाई हमारी पोस्ट का। मसिजीवी कर रहे हों चिठ्ठा-चर्चा तो अपनी पोस्ट तो उभरती ही नहीं जी। पर भैया पोस्ट क मसलवइ न होये त कौन लिंक-हाइपर लिंक? कौन सुकुल और कौन मसिजीवी?
लोग गज भर लिख लेते हैं। यहां ३०० शब्द लिखने में फेंचकुर (मुंह में झाग) निकल रहा है। भरतललवा भी कोई चपन्त चलउआ नहीं बता रहा है नया ताजा। कित्ता जबरी लिखें। कट पेस्ट कर लिया तो चल पायेगा? देखें ताऊ की पोस्ट से ही कुछ उड़ा लिया जाये! विश्वनाथ जी भी कृपा कम कर रहे हैं आजकल। कौन से उदार टिप्पणी करने वाले पर लिख दिया जाये?
भैया ग्लैमराइजेशन का जमाना है। देखो तो वो दरजा चार पास आतंकवादी भी टापमटाप ग्लैमर युक्त हो गया है। फरीदकोट से फ्लोरिडा तक चर्चा है। अब न तो उसे फांसी हो सकती है न एनकाउण्टर। एक आध प्लेन हाइजैक कर लिया अलकायदियों ने, तो बाइज्जत बरी भी होना तय है। इस समय मीडिया की चर्चा के सारे लिंक-हाइपर लिंक का केन्द्र वही है। ब्लॉगजगत में भी कैसे वैसा ग्लेमर पाया जाये? पर इस ग्लैमराइजेशन के बारे में लिखने का सारा सिंगल टेण्डर आलोक पुराणिक के नाम डिसाइड हो गया है। उस पर लिख कर किसी व्यंगकार की रोजी-रोटी पर नजर गड़ाना हम जैसे सिद्धान्तवादी को शोभा थोड़े ही देगा?
चलो ठेलाई की लेंथ की पोस्ट तो बन गयी। अब पत्नी जी से परमीशन मांगे कि पोस्ट कर दें या अपनी मानसिक विपन्नता का प्रदर्शन न करते हुये कल का दिन खाली जाने दें? (वैसे भी दफ्तर में बहुत बिजी रहते हैं। उसी के नाम पर एक दिन की छुट्टी जायज बन जाती है ब्लॉगिंग से!) कल सनीचर की सुबह यह पोस्ट दिख जाये तो मानियेगा कि पत्नीजी से परमीशन मिल गयी अण्टशण्ट ठेलने की।
पर ओरीजिनल क्वेश्चन तो रह ही गया। कौन है इस चिरकुट ब्लॉग जगत का ओरीजिनल ठेलक? सेंस तो बहुत लिखते हैं; पर कौन था ओरीजिनल नॉनसेंसक?
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अगर सारा ब्लॉग जगत ही चिरकुट है तो ओरिजिनल ठेलक, नॉनसेंसक तो आप ही ठहरेंगे. वैसे यह मैं नहीं कह रहा, आपकी पोस्ट पढ़ते रहने वाला मेरा एक दोस्त कह रहा है. मैं आपके लिए ऐसे शब्द... ? गर जरूरी हो तो भी नहीं.
ReplyDeleteसाम्यवाद-समाजवाद-बजारवाद-हेनवाद
ReplyDeleteएक वाद छूट गया - ठेलमठेलवाद!
बहुत विचारा..मगर आपके अलावा कोई नाम उभरता ही नहीं.
ReplyDeleteशायद मेरी सोच जंग खा गई है. कुछ प्रबंध करता हूँ.
आज हमारी तो डर के मारे बोलती बंद है ! सारा दिन लट्ठ के साथ रहना है आज तो ! सो आपकी बात का जवाब तो फ़िर कभी देंगे ! वैसे हमको कैसे आईडिया मिलता है ये आप हमारी आज की पोस्ट से समझ जायेंगे ! हम दिन में १२ बजे से टिपणी देना शुरू करते हैं जो आज सुबह ६ बजे से शुरू हुए हैं ! क्या पता , आज दिन में छुट मिले की नही मिले ! :)
ReplyDeleteआपई आप है महाराज...
ReplyDeleteजे भी खूब ठेली है आपने
ठेलत ठेलत जग मुआ, ठलुआ भया न कोय।
ढाई आखर ब्लाग का, पढ़े सो ठलुआ होय।
पोस्ट ठेलन पर विषद लेखन। अजित जी ने दोहा कवित्त जोडकर पोस्ट को और रोचक बना दिया।
ReplyDeleteवैसे समीरजी अपनी टिप्पणी में लिखते हैं कि शायद मेरी सोच को जंग खा गई है.....यानि कि भारी हो गई है।
नहीं समझे :)
अरे भई, जब लोहे पर जंग लगता है तो ऑक्सीकरण के कारण लोहे का वजन बढ जाता है, यानि समीरजी की जंग लगी सोच अब भारी हो गई है :):)
अलकायदियों ...is a cute name :)
ReplyDeletelet's send them to Alaknanda ..
&
अजित भाई का कवित्त तो ज़बरदस्त है ठेलई मौज मेँ करो तब,
ठलई..सुस्ती मेँ करो तब
और ठेलुआ सरकसी अँदाज़ मेँ होत है
जो मन में आए वह लिखे वही ओरिजनल ठेलक। जो चिंता करे ओरिजनल की वह ठेलने से चूके।
ReplyDeleteआज तो बहुत अच्छा ठेल दिया है आपने |
ReplyDeleteठेल ठेल के का भया ?????
ReplyDeleteजो अब भी ठेलत जाय ???
जब भी पुरा मौका पाये???
आपन ठेलत पोस्ट पढाये?
आप तो ब्लाग मठाधीश हैं , जो ब्लाग का ढाई आखर जाने वही होगा ठेलुवा अजीतभाई की सार्थक टिप्पणी..
ReplyDeleteBREAKING NEWS
ReplyDeleteमुंबई के आतंकी दर्ज़ा चार पास थे..
इलाहाबाद के रेलवेकर्मी ने किया खुलासा
अमेरिका से आयी टीम इलाहाबाद के लिये रवाना..
अभी और भी है.. जाइयेगा नहीं, हम आते हैं...
एक लम्बे से ब्रेक के बाद !
ठंडीऽऽ.. हाँ हाँ ठंडीऽऽ...
महाराज, पायं लागी.....
ReplyDeletesir, good writing. sir aapne meri post me mera kafi utsah badhaya. asha hai aap margdarshsn dete rahenge. aapke mail ka wait hai. mera mail hai prabhatgopal@gmail.com
ReplyDeleteअरे सर जी आप ख़ामाख़्वाह परेशान हो रहे है.. 300 शब्द लिखने वालो से, अजी ये भी तो देखिए की वो साप्ताह में एक बार लिखते है.. और आप तो दैनिक ठेलक है.. आप भी साप्ताह में एक बार लिखेंगे तो 300 क्या 3000 शब्दो में लिख पाएँगे..
ReplyDeleteपरंतु प्रश्न ये है की क्या आप रोज़ एक पोस्ट ठेलने का मोह त्याग पाएँगे???
आईला आपकी अगली पोस्ट का मैटर मिल गया..
आप ठेलक-शिरोमणी हो जी. प्रणाम.
ReplyDeleteअरे पांडे जी, ये क्या ठेलम ठेल लगा राखी है? अब हमारी तो समझ में ये ठेलम ठेलम आती नहीं. जवाब क्या दें?
ReplyDeleteयक्ष प्रश्न है सर जी !
ReplyDeleteजो मन आये सो ठेलिये।
ReplyDeleteबड़े बड़े रचनाकारों ने जब अपनी समझ से लिखा है, उसे ठेला हुआ ही माना है। वो तो कालजयी और मालजयी तो बाद में हो लिया है। दुनिया विराट है, रेलवे की दुनिया भी विराट है। रेल की दुनिया के पुराने संस्मरण सुनाईये। जमाये रहिये।
हमारे दिमाग मे तो चारा (भुसा) भरा पडा है, कुछ भी ओर ठेल नही सकते, अगई ठेलम ठेल मे हिस्सा जरुर लेगे , अब हम ताऊ धोरे चले....
ReplyDeleteराम राम जी की
पर ओरीजिनल क्वेश्चन तो रह ही गया। कौन है इस चिरकुट ब्लॉग जगत का ओरीजिनल ठेलक? सेंस तो बहुत लिखते हैं; पर कौन था ओरीजिनल नॉनसेंसक?
ReplyDelete" hmm bdaa hi ahm prshn dhail diya akhir mey aapne bhi, ab answer mil jaye to kuch khen..."
regards
मुझे तो लगता है की आप नाहक सबके मजे ले रहे हैं ! आपकी ठेलन शक्ती कहाँ खत्म होने वाली है ? अभी तो आप शुरू ही हुए हैं ! मेरे हिसाब से आपका ९० % खजाना तो सुरक्षित है अमेरिका के तेल भंडारों की तरह ! वैसे ओरिजिनल ठेलक तो आप ही हो ! हम तो अभी आप से ठेलन वाद सीख ही रहे हैं ! आपकी छत्र छाया रही तो आपके कई ओरिजिनल शिष्य खडे हो जायेंगे इस विधा में ! बस आप तो निस्पृह ठेलते चलिए ! बाकी हम सब सीख जायेंगे !
ReplyDeleteलगता है कि फ्रेड फ्लिंटस्टोन से आपको कुछ खासा लगाव है। मेरे भी पसंदीदा कार्टूनों में से एक, लेकिन मुझे सबसे अधिक बार्नी रब्बल पसंद है इस सीरीज़ में!! :)
ReplyDeleteऔर रही ठेलने की बात तो आपको का कमी है ठेलने की?? आलू-टमाटर हो चुका है, अब बैंगन, घीया, तोरी और टिन्डे को भी आज़माईये, लाभकारी सब्ज़ियाँ हैं जिनसे सेहत भी ठीक रहती है और पेट को भी सर्दी-ज़ुकाम नहीं होता। ;) हाँ यह है कि लोग-बाग़ पुनः टेन्शनिया जाएँगे कि लो अब ज्ञान जी ने घीया तोरी टिंडे को भी नहीं बक्शा और उन पर भी चालू हो गए हैं!! :D
और यदि यह भी नहीं करना तो फिर आराम कीजिए, अब रोज़ के रोज़ ठेलना कौनो आवश्यक नहीं है, कभी छुट्टी भी लीजिए, आराम कीजिए!! :)
भई, मिसिर हो या मिस्री, ठेलो फुरसत से। कोई दण्ड-बैठ्क थोडे ही पेलना है, ठेले को ही तो ठेलना है - जोर लगा के ...हैशा..
ReplyDelete@ अमित>...लेकिन मुझे सबसे अधिक बार्नी रब्बल पसंद है इस सीरीज़ में!!
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बिल्कुल, बार्नी बहुत शरीफ इंसान है और कई मायनों में फ्लिंस्टोन से ज्यादा बुद्धिमान भी।
:) fursat mein likhi post hai, lekin mazedaar and stimulant
ReplyDeleteहे, ठेलक परम्परा के आदि पुरुष, 'आरिजनल' भी आपकी 'कापी' होगा ।
ReplyDeleteआप ही हैं । आपके सिवाय और कोई नहीं ।
bahut khuub! daavedari mein bahut se naam dekhey they---tay hone dijeeye ki kaun banega--ओरीजिनल ठेलक/ओरीजिनल नॉनसेंसक] -khud hi khabar ho jayeegei!
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पर ओरीजिनल क्वेश्चन तो रह ही गया। कौन है इस चिरकुट ब्लॉग जगत का ओरीजिनल ठेलक?
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वोट फ़ोर ज्ञानदत्त पाण्डे!
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विश्वनाथ जी भी कृपा कम कर रहे हैं
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क्षमाप्रार्थी हूँ।
आजकल व्यावसायिक उलझनों से जूझ रहा हूँ।
यह outsourcing का व्यवसाय जिसे पिछले पाँच साल से चला रहा हूँ, उसकी आजकी हालत के बारे में आप सुन चुके होंगे।
मेरे लिए समस्या गंभीर बन गई है और मेरा भविष्य अनिश्चित है।
नये प्रोजेक्ट मिल नहीं रहे हैं। सब bidding के बाद अटक जाते हैं।
अमरीका में प्रोजेक्टों का श्रीगनेश होने के लिए जो पूँजी की आवश्यकता है वह बैंको के पास अटक गए हैं और किसी को पता नहीं स्थिति कब सुधरेगी।
पुराने और पूरे हुए प्रोजेक्टों का payment भी मिलना बाकी है और पता नहीं payment होगा भी या नहीं !
यहाँ वहाँ समाधान ढूँढने में लगा हूँ।
Canada और Australia से कुछ आशाएं हैं पर Rates (USA की तुलना में) बहुत कम हैं।
यदा कदा मन हलका करने के लिए ब्लॉग जगत में झाँकता हूँ पर आजकल टिप्पणी करने का मन नहीं करता।
आशा है कि जल्द ही समस्या का हल मिल जाएगा और फ़िर एक बार सक्रिय हो जाऊँगा।!
यदि कोई हल नहीं मिला तो फ़िर मेरी सभी समस्याएं गायब हो जाएंगी।
रिटायर होकर सुबह से शाम तक टिप्प्णी ठेलने में लग जाउँगा।
इन्तजार कीजिए।
शुभकामनाएं
आदरणीय पंडितजी,
ReplyDeleteहा हा बड़ा आनंद आया आपकी ठेलम-ठेल में.
ओरीजनल ठेलक और नौन्सेंसक.
बात गहरी लिखी है सरजी.
प्रणाम.
''वो दरजा चार पास आतंकवादी भी टापमटाप ग्लैमर युक्त हो गया है। फरीदकोट से फ्लोरिडा तक चर्चा है। अब न तो उसे फांसी हो सकती है न एनकाउण्टर। एक आध प्लेन हाइजैक कर लिया अलकायदियों ने, तो बाइज्जत बरी भी होना तय है।''
ReplyDeleteआप भी हद करते हैं..उसका कोई मानवाधिकार है कि नहीं..हम तो कहेंगे कि आप भी अभी से ही उस मासूम को कानूनी मदद उपलब्ध कराने का प्रयास शुरू कर दें :)
बड़े अदब के साथ कह रहा हूं कि आपकी मानसिक हलचल ने आपको सबसे बड़ा ठेलुआ बना दिया है। आप निर्विवाद और निर्विरोध सबसे बड़े ठेलक हैं। बस ठेलते रहिए और ठेलने के लिए प्रेरित करते रहिए।
ReplyDeleteअरे वोटिंग काहे नाहीं करवा लेते हो आप. !!
ReplyDeleteमेरा पहिला वोट आपकी मिसिज को जाता है, जो नाहीं होतीं तो आप ठेल नाहीं पाते. :D
कुछ दिनों पहले ये पढ़ा था कहीं:
ReplyDeleteMr. A: आज कुछ दिमाग नहीं चल रहा, कुछ लिख नहीं पा रहा !
Mr. B: इस बारे में तुम्हे अपने ब्लॉग पर लिखना चाहिए !
ठेलक होना जरूरी है, अपने को तो आजकल उसके लिए भी टाइम नहीं. ओरिजनल तो बाद में आएगा.
वैसे आपकी ओरिजिनालिटी कमाल की है... जोनाथन लिविंग्स्टन बकरी नहीं भूलती !
ठेलने के अलावा खींचने की भी कला बहुत महत्वपूर्ण है ... अपनी ठेलिए ... औरों की खीचिये.. फिर देखिये कैसा मज़ा आता है... खाली ठेलने से नाम ही होता है... पर खींचना भी आ जाए तो "बद नाम" हो जाते हैं ...
ReplyDeleteठेल ठेल ठेल
तोड़ के नकेल
चाहे हो जाए जेल
इतना कि सब जाएं झेल
और समझ जाएं
आपको झेलना
बिलकुल नहीं है खेल