Friday, December 12, 2008

शिखर का एकान्त


मैं अकेले कमरे में बैठा हूं। इण्टरकॉम पर बीच बीच में ट्रेन कण्ट्रोलर खबर देता है कि गाड़ियां ठीक नहीं चल रहीं। कोहरे का असर है। एक ट्रेन दुर्घटना अभी ताजा ताजा निपटी है। स्टाफ परिचालन की उत्कृष्टता से सुरक्षा की तरफ स्विंग कर गया है। छाछ को भी फूंक कर पीने जैसा कुछ करने लगा है।

तब एक एक कर डिवीजन के अधिकारी गण अपना मन्तव्य फोन पर बताते हैं। मैं जानता हूं कि फोन पर बता कर वे राहत सा महसूस करते होंगे। “हमने बक (जिम्मेदारी) आगे पास ऑन कर दिया (we have passed the buck ahead)”| मैं भी सोचता हूं कि इस बक को आगे ठेला जाये। पर आगे ठेलने का बहुत स्पेस नहीं है। फिर भी मैं महाप्रबन्धक महोदय को एक सरकाऊ फोन करता हूं। जिनके पास यह सुविधा नहीं होती होगी, वे अन्तत हनुमान चालिसा पढ़ कर हनुमान जी पर बक ठेलते होंगे।

mountain शिखर का एकांत कितना किलर होता है जी! मैं प्रधानमंत्री जी की हालत की सोचता हूं। प्रजातंत्र में हर आदमी उनपर बक ठेलने में स्वतंत्र है। कितना एकाकी महसूस करते होंगे सरदार जी। बहुत से प्रबन्धक बहुत सी मीटिंग इसलिये करते हैं कि वे इस एकाकी भाव से भय खाते हैं। यह एकाकी भाव मानव की शारीरिक-मानसिक खिन्नता और विपन्नता का समग्र है। 
बैटर हॉफ की त्वरित टिप्पणी - पोस्ट लिखने के लिये ठीक है। पर ज्यादा मुंह बना कर न बैठो। ज्यादा सिपैथी बटोरना कोई अच्छी बात नहीं!

यह ब्लॉगिंग भी उस एकाकी भाव को खत्म करने का एक जरीया है। मुझे मालुम है आपकी अपनी समस्यायें होंगी। आपके अपने एकाकी भाव होंगे। आपमें से कुछ अपने आइसोलेशन को अभिव्यक्त करेंगे टिप्पणियों में। कुछ शायद बता पायें कि मैं यह एकाकी भाव कैसे दूर कर सकता हूं। कुछ यह भी कह सकते हैं कि “यह भी कोई पोस्ट हुई? फ्रॉड मानसिक हलचल का एक और नमूना हुआ यह”!

पर मित्रवर, चाहे आप कितने भी छोटे या बड़े शिखर पर हों, चाहे आप केवल पत्नी और एक छोटे बच्चे के दायित्व के शिखर पर हो, आप यदाकदा इस एकाकी भाव को महसूस करते होंगे। मैं तो आज वही कर रहा हूं।

(नोट यह पोस्ट कल लिखी गयी थी।)   

पिछली पोस्ट पर कुछ पाठकों ने भर्तृहरि के नीति, शॄंगार और वैराज्ञ शतक की उपलब्धता के बारे में जिज्ञासा व्यक्त की है। सुमन्त मिश्र कात्यायन जी ने बताया है कि यह चौखम्बा प्रकाशन, वाराणसी ने पब्लिश किये हैं और सरलता से उपलब्ध हैं।

36 comments:

  1. पासिंग ऑन द बक तो बस राहत ही देता है, जिम्मेदारी से मुक्त नहीं करता और यह एकाकीपन, यह पार्ट ऑफ लाइफ है-हर किसी के साथ.

    चिट्ठाकारी ही क्या, फिल्म देखना, गाने सुनना, टहलना, मित्रों से बात करना-ये सब एक ही केटेगरी की चीजें हैं कम से कम इस एकाकीपन से कुछ समय के लिए निजात पाने को.

    मुझे ऐसे वक्त कुछ भी न करना और आकाश को निहारना पसंद है शायद किसी को तेज धुन के गीत राहत देते हों.

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  2. समस्या कोई भी हो यदि उसका कारण या रूट काँज ढ़ूढ़ लिया जाए तो एकाकीपन का निदान हो सकता है।भीड़ में,परिवार के साथ,समारोह में या कार्यालय आदि में भी अनायास यह स्थायी भाव कुण्डली मार कर मस्तिषक में बैठ जाता है।तंत्र की भाषा में इसे उच्चाटन,योग की भाषा में उन्मनी अवस्था कहते हैं।मनोचिकित्सक ड़िप्रेशन कहते हैं,शरीर विज्ञानी कहते हैं कि स्त्रियों के पीरियड्स और अवस्था प्राप्त होनें पर मीनोपाज की तरह पुरूषों में भी प्रतिमाह और ५०वर्ष की अवस्था के बाद हारमोनल चेन्जेस होते हैं और पुरूषों मे अवसाद के रूप में प्रमुखतया प्रकट होते हैं।ज्योतिषीय आधार पर कहें तो जब पूर्णिमा या अमावस्या हो और लग्न या लग्नेश मंगल से युत या दृष्ट हो और उसके ऊपर से गोचर का चन्द्रमा गुजर रहा हो तो स्त्रियों को पीरियड़्स और पुरूषों को अवसाद या मन का उन्मन होना देखा जाता है।समुचित श्रम,मदद,योग्यता या कर्म करनें के बाद भी अपेक्षित यश या प्रतिकार न मिलनें पर भी एकाकीपन और तदजन्य अवसाद अनायास प्रकट हो पड़्ता है।

    किन्तु बन्धुवर आपका प्रश्न विभ्रम उपस्थित कर रहा है।एकाकीपन(seclusion)और अलग,विलग या प्रथक(Isolation) में तो आप को अन्तर करना ही पड़ेगा।फिर बाक्स में आपकी अर्धांगिनी द्वारा दी गई स्टेटुरी वार्निंग भी कुछ संकेत कर रही है।एकाकीपन के कतिपय कारण ऊपर दिये जा चुके हैं।Isolation का कारण अधिकांशतःडिपार्टमेन्ट्ल पालिटिक्स होती है।वर्तमान युग धर्म शठे शाठ्यं समाचरेत का है किन्तु मेरी दॄष्टि मे उपेक्षा से अच्छा उपचार नहीं।

    ज्येष्ठ आषाढ या मई जून में जब अग्नि पर अग्नि या गर्मी पर गर्मी का चिति चयन होता है तो अग्नि पिघलकर जलधाराओं में प्रवाहित होनें लगती है। उसी भांति एकाकी भाव का सबसे उत्तम इलाज है कार्य से अवकाश ले प्रकृति के साथ एकान्तवास करना।जिस प्रकार सफल यात्रा वह मानीं जाती है जिसमें शीघ्र ही घर की याद आनें लगे वैसे ही एकान्तवास की सफलता इसी में है कि २-४ दिनों में ही एकान्तिन होनें से मन ऊब जाए और आप पुनः मोर्चे पर ड़्ट जाएं।

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  3. निस्‍सन्‍देह,सबके अपने-अपने शिखर होते हैं । हर कोई शिखर पर होना चाहता है । किन्‍तु शिखर पर प्रत्‍येक को एकान्‍त ण्झेलना पडता है । और हां, शिखर पर आक्‍सीजन भी कम होती जाती है ।
    पोस्‍ट लिखी आपने है किन्‍तु हममें से प्रत्‍येक ही इसमे कहीं न कहीं है ।

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  4. एकाकीपन - अपने पेशे की भाषा में कहें तो - बग नहीं है, फ़ीचर है।

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  5. Be Busy ,Be Easy बोले तो
    व्यस्त रहो, मस्त रहो।

    लेकिन आपकी यह समस्या तो कल की थी। आज तो आपने यह पाठकों पर ठेल दिया।

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  6. जितना शिखर पर चढ़ते जायेंगे एकाकीपन उतना ही बढ़ता जायेगा.. यह मैंने अपने पापाजी के अनुभव से लिख रहा हूं.. जहां वो पोस्टेड रहते थे वहां मम्मी बेचारी परेशान हो जाती थी, क्योंकि उनके स्तर का कोई अधिकारी वहां होता नहीं था और छोटे अधिकारियों कि पत्नियां घर पर आने में या उन्हें बुलाने में संकोच करती थी..

    खैर अगर अपनी बात करूं तो, कहने को चार मित्र साथ हैं, मगर एकाकीपन में कोई कमी नहीं है.. :)

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  7. सुना है किसी अमरीकी राष्ट्रपति ने अपने मेज पर निशान लगा दिया था :
    "The buck stops here"

    सार्वजनिक क्षेत्र में हमने २६ साल काम किये।
    buck passing से हम भलि - भाँति परिचित है।
    सफ़ल अधिकारी को यह जानना जरूरी है कि कब buck passing करना चाहिए और कब नहीं करना चाहिए।
    ग़लती करने पर boss साहब से डाँट पढ़ सकती है

    "Don't pass the buck. When will you learn to take decisions and responsibility?"

    या

    "You have over-reached yourself. Know the limits of your abilities and powers. Why didn't you refer the matter to me?"

    जब से self -employed हुआ हूँ, buck passing की कला भूल गया हूँ।
    कार्यालय में सभी bucks मेरे पास अटक जाते हैं।
    और अकेलेपेन की तो हम जैसों की आदत पढ़ गई है।
    हर self-employed व्यक्ति अपने अपने शिखर पर बैठे होते हैं चाहे शिखर की ऊँचाई कितनी भी कम क्यों न हो।

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  8. हरी भरी फूलोँ से मुस्कुराती घाटीयोँ मेँ एकाँत के पलोँ का आनँद लेने को क्या कहेँगेँ ?:)
    "भोग रहा मन कुछ क्षण मधुरम्`..
    भई कोयलिया मन की बँदी,
    तन के निर्बल पिँजरे मेँ,
    सुख के दुख के पँख लगाये,
    कोई कोयल गाये रे "
    ( मेरी कविता सुनवाने का मन किया :)
    - लावण्या

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  9. शिखर के एकांत (के एकाकीपन) में मुझे एकांत का शिखर छू लेने की चाहत होती है -कोई शोरशराबा नहीं ,सानिध्य नहीं बस ख़ुद को शिद्दत के साथ महसूसना -सामाधिस्थ हो जाना !

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  10. शुरु से self -employed रहे इसलिये बक ठेलने की गुन्जाईस ही नही थी !बल्कि लोग हम पर ठेलते रहे तो उम्र के इस पडाव तक आते आते हम भी घिस घिसा कर महादेव हो गये !

    कई बा्र पत्नि पर बक ठेलने की कोशिश होती है किन्हि विषम परिस्थितियों मे ! अब मजेदार बात ये है कि उस समय तो वो कुछ नही कहती ! पर बाद मे एक की चार हम पर ठेलती है !:)

    बहुत ही सुन्दर बात अन्त मे आपने एकान्त के बारे मे कही है, ये शायद हमारी निजता है ! एकान्त मनुष्य के सर्वोत्तम क्षण हैं ! मुझे तो कम से कम ऐसा ही महसूस होता है ! जब कभी ये एकान्त के पल उपलब्ध हुये , यकीन मानिये जीवन मे उससे सुन्दर कुछ नही था !

    राम राम !

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  11. शिखर का एकांत एक ऐसी खामोशी, एक अकेलेपन का अंतहीन दायरा , क्षितिज के पार तक का सूनापन .....शायद..."

    regards

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  12. सरगर्भीत चर्चा छेड़ने के लिए आप का अभिवादन. शिखर पर रहें या रसातल में, स्थितियाँ संभवतः समान ही रहेंगी. आभार.

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  13. मुझे लगता है, जब आप शिखर पर होते हैं, आपमें एक नन्हा सा देवव्रत भिष्म पैदा होता है.

    जो एकांकिपन से घबराते है, शिखर पर बैठने से बचते है. वहाँ जिम्मेदारी होती है.

    अच्छी मानसिक हलचल रही.

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  14. शायद इसी बात के डर से अटल बिहारी ने लिखा था
    ऊंचे पहाडों पर पेड़ नही उगते
    पौधे नही उगते
    न घास ही जमती है
    जमती है तो सिर्फ़ बर्फ
    जो कफ़न की तरह सफ़ेद और मौत की तरह ठंडी होती है.

    चलिए सच में अब सिम्पैथी बटोरना छोडिये शिखर पर सिर्फ़ अकेलापन ही नही होता जगह भी कम होती है ठेल दिए जायेंगे तो फ़िर सीधे नीचे .
    इसलिए हाथ पैर जमा के बैठिये

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  15. आइने के सौ टुकड़े करके हमने देखे हैं
    एक में भी तनहा थे सौ में भी अकेले हैं

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  16. हम्म, बक पास करने की अपनी आदत नहीं रही। पिछली नौकरी में बॉस के इतना तकनीकी व्यक्ति न होने के कारण बक पास करना संभव न था, टीम लीडर होने के कारण बाकी लोग मेरे पर सरका देते!! :( मौजूदा नौकरी में बॉस थोड़ा तकनीकी व्यक्ति है इसलिए कभी-कभार बक पास करने का मजा ले लेते हैं!! ;) :D

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  17. जिनके पास यह सुविधा नहीं होती होगी, वे अन्तत हनुमान चालिसा पढ़ कर हनुमान जी पर बक ठेलते होंगे।
    सही कह रहे हैं....हमारे ऊपर भी सिर्फ़ एम्.डी हैं जिनके पास हजारों समस्याएं हैं मैं कभी अपनी समस्या उन्हें बता कर उसमें और इजाफा नहीं करता इसीलिए वो मुझसे बहुत प्रसन्न रहते हैं...लेकिन मेरे मातहत अपनी परेशानियाँ मुझ पे डाल प्रसन्न हो जाते हैं...मुझे तो हनुमान चालीसा भी नहीं आता बतईये क्या करूँ?बक कहाँ ठेलूं? इसिलिये अपनी भड़ास अपनी ग़ज़लों में निकाल प्रसन्न हो लेता हूँ...
    नीरज

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  18. in dinon buri sohbat mein hoon
    in dinon khud ke sath bas khud hoon
    alok puranik

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  19. सर जी.. आप भी सुबुक सुबुकवादी लेखन की तरफ अग्रसर हो रहे है... कही 'भीगी पलके' ब्लॉग शुरू करने का मान तो नही बना लिया.. खैर आप जो भी लिखे.. हम तो पढ़ते रहेंगे..

    आपका
    चण्ट चिठेरा

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  20. एकाकीपन की उदासीनता हर किसी के जीवन मैं किसी न किसी पल जरूर आती है चाहे वह शिखर पर हो या निम्न स्तर पर . बस जरूरत है इस एकाकीपन की उदासीनता को रचनात्मक अथवा अव्लोक्नात्मक गतिविधियों मैं परिवर्तित करने की . और यह कला सभी के पास होती है कोई इसका किस प्रकार से उपयोग करता है यह तो उसी पर निर्भर करता है . कभी कभी यह एकाकीपन जीवन की आपा धापी से मन को सकूं और राहत भी देते हैं
    सरगर्भीत चर्चा के लिए धन्यवाद .

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  21. मुझे तो शिखर और एकाकी होना पर्याय लगते हैं। बिना एकाकी हुए तो शिखर होना संभव ही नहीं है।

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  22. न जी न. देखा न कि गृहमंत्री ने बक पास किए बिना ही इस्तीफा दे दिया. बहुत से लोग शिखर पर सिर्फ़ सफलता का यशलाभ लेने के लिए भी बैठे हैं! और फ़िर साथ के लिए सारा मंत्रिमंडल (अक्सर ही ज़रूरत से कहीं बड़ा) तो है ही

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  23. भाभी जी की बात पर गौर फरमाये !

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  24. हमारे यहाँ बक लौट के आ जाता है ! कुल मिला के तीन लोगों के बीच झूलता है. हम जिन्हें भेजते हैं उनके ऊपर कोई नहीं वो बस रिपोर्ट लेके सीइओ के पास ही जाते हैं. और हम दो (अगल बगल ही बैठते हैं) के नीचे कोई नहीं... ऐसे में जिम्मेदारी बढ़ जाती है पर मुझे लगता है की हाइरेकी कम होनी चाहिए !

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  25. शायद शिखर पर एकांत ही एकांत होता होगा . तभी अटल जी ने लिखा है उसका भावर्थ हे ईश्वर मुझे इतनी उचाई न देना अपनों से न मिल सकू ऐसी रुखाई ना देना

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  26. शिखर पर बैठ कर एकान्त का मिलना एक लम्बे अनुभव के बाद ही होता है। नीचे से उस शिखर तक की चढ़ाई में जो अनुभव की पोटली हमारे साथ होती है, वही हमारे आन्तरिक सम्वाद और परिचर्चा की साथी और पाथेय होती है।

    व्यक्तित्व के भी कई आयाम होते हैं। एक में आप शिखर पर हों तो दूसरे में मध्यम या नौसिखिए भी हो सकते हैं। नहीं हैं तो कोई नया काम सीखना शुरू कर सकते हैं। बस एकान्त उसी में समाप्त हो जाएगा।

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  27. क्या बात है बडी भीड हो रही है :)

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  28. शिखर पर या घाटी में सब जगह एक ही बात लागू होती है। जावेद अख्तर ने खूब लिखा था एक गीत में

    देखिए तो लगता है
    जिन्दगी की राहों में
    एक भीड़ चलती है
    सोचिए तो लगता है
    भीड़ में है सब तन्हा

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  29. शिखर पर तभी तो हम नही जाना चाहते, बस जहां है वही खुश है,ओर ना ही *मै* को अपने मन मै घर करने दिया, जो मिला उसी को मान समान दिया, सलाम किया.
    धन्यवाद

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  30. शिखर के एकांत से इतने व्यथित न हो, अभी तो शिखर के बाद के एकांत को भी आना है जी।

    शिखर भले ही एकांत दिखे पर वहाँ से नीचे देखने पर सारे अपने-पराये दिख जाते है, एकदम साफ-साफ।


    शिखर के एकांत के सुख को भोगे। इतनी सरलता से जो आप न पहुँचे है यहाँ तक।

    शिखर के एकांत मे वही ज्ञान बने रहे ताकि प्रथम सोपान मे खडे नये कर्मचारी मे शिखर तक पहुँचने का जज्बा पैदा हो। वही जज्बा जो कभी आपके मन मे जागा था।


    शिखर के एकांत मे आप अपने से मिले। जिससे अक्सर दूर हटने की जद्दोजहद अब तक करते रहे। स्व से साक्षात्कार का स्वर्णिम अवसर है यह सर जी।

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  31. "It's lonely there."
    किसने कहा था ठीक से याद नहीं। शायद मर्लिन ने।

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  32. बहुत ही सारगर्भित चर्चा रही. और साथ में एक परिवार की तरह से निम्न लोगों ने आपके द्वारा उठाये गए सवाल का जबाब भी अपने अनुभवों के आधार पे देने की कोशिश की है. मुझे भी काफी सुखद अनुभव हुआ इन तमाम लोगों के विचारों को पढ़ के. मैं निम्न विचारों को उल्लेखित करना चाहूँगा जिन्होंने मुझे प्रभावित किया है.

    साथ ही, आपको भी नमन इस विचार को सबके सामने रखने के लिए. आज जब आप लोगों को टिप्पडी करते देखते होंगे, तो जाहिर है, अकेला नहीं महसूस करेंगे. बहुत से लोग शायद आज आपकी बात समझ न पायें, पर बहुत ही ज्ञानवर्धक चर्चा है ये. जारी रखें.


    @उड़न तश्तरी - और यह एकाकीपन, यह पार्ट ऑफ लाइफ है-हर किसी के साथ.

    @सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’ - उसी भांति एकाकी भाव का सबसे उत्तम इलाज है कार्य से अवकाश ले प्रकृति के साथ एकान्तवास करना।

    @अनूप शुक्ल - Be Busy ,Be Easy बोले तो व्यस्त रहो, मस्त रहो।

    @ताऊ रामपुरिया - एकांत मनुष्य के सर्वोत्तम क्षण हैं ! मुझे तो कम से कम ऐसा ही महसूस होता है ! जब कभी ये एकान्त के पल उपलब्ध हुये , यकीन मानिये जीवन मे उससे सुन्दर कुछ नही था !

    @दीपक कुमार भानरे - एकाकीपन की उदासीनता हर किसी के जीवन मैं किसी न किसी पल जरूर आती है चाहे वह शिखर पर हो या निम्न स्तर पर . बस जरूरत है इस एकाकीपन की उदासीनता को रचनात्मक अथवा अव्लोक्नात्मक गतिविधियों मैं परिवर्तित करने की .

    @सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी - शिखर पर बैठ कर एकान्त का मिलना एक लम्बे अनुभव के बाद ही होता है। नीचे से उस शिखर तक की चढ़ाई में जो अनुभव की पोटली हमारे साथ होती है, वही हमारे आन्तरिक सम्वाद और परिचर्चा की साथी और पाथेय होती है।

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  33. एकाकी भाव, मानव की शारीरिक-मानसिक खिन्नता और विपन्नता का समग्र है।

    बिल्कुल ठीक लिखा है आपने

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  34. एकाकी भाव, मानव की शारीरिक-मानसिक खिन्नता और विपन्नता का समग्र है।

    बिल्कुल ठीक लिखा है आपने

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  35. बहुत ही सारगर्भित चर्चा रही. और साथ में एक परिवार की तरह से निम्न लोगों ने आपके द्वारा उठाये गए सवाल का जबाब भी अपने अनुभवों के आधार पे देने की कोशिश की है. मुझे भी काफी सुखद अनुभव हुआ इन तमाम लोगों के विचारों को पढ़ के. मैं निम्न विचारों को उल्लेखित करना चाहूँगा जिन्होंने मुझे प्रभावित किया है.

    साथ ही, आपको भी नमन इस विचार को सबके सामने रखने के लिए. आज जब आप लोगों को टिप्पडी करते देखते होंगे, तो जाहिर है, अकेला नहीं महसूस करेंगे. बहुत से लोग शायद आज आपकी बात समझ न पायें, पर बहुत ही ज्ञानवर्धक चर्चा है ये. जारी रखें.


    @उड़न तश्तरी - और यह एकाकीपन, यह पार्ट ऑफ लाइफ है-हर किसी के साथ.

    @सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’ - उसी भांति एकाकी भाव का सबसे उत्तम इलाज है कार्य से अवकाश ले प्रकृति के साथ एकान्तवास करना।

    @अनूप शुक्ल - Be Busy ,Be Easy बोले तो व्यस्त रहो, मस्त रहो।

    @ताऊ रामपुरिया - एकांत मनुष्य के सर्वोत्तम क्षण हैं ! मुझे तो कम से कम ऐसा ही महसूस होता है ! जब कभी ये एकान्त के पल उपलब्ध हुये , यकीन मानिये जीवन मे उससे सुन्दर कुछ नही था !

    @दीपक कुमार भानरे - एकाकीपन की उदासीनता हर किसी के जीवन मैं किसी न किसी पल जरूर आती है चाहे वह शिखर पर हो या निम्न स्तर पर . बस जरूरत है इस एकाकीपन की उदासीनता को रचनात्मक अथवा अव्लोक्नात्मक गतिविधियों मैं परिवर्तित करने की .

    @सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी - शिखर पर बैठ कर एकान्त का मिलना एक लम्बे अनुभव के बाद ही होता है। नीचे से उस शिखर तक की चढ़ाई में जो अनुभव की पोटली हमारे साथ होती है, वही हमारे आन्तरिक सम्वाद और परिचर्चा की साथी और पाथेय होती है।

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय