ताऊ रामपुरिया मेरे ब्लॉग पर नियमित विजिटर हैं। और इनकी टिप्पणियां सरकाऊ/निपटाऊ नहीं होतीं। सारे देसी हरयाणवी ह्यूमर के पीछे एक सन्जीदा इन्सान नजर आते हैं ये ताऊ। कहते हैं कि अपने पजामे में रहते हैं। पर मुझे लगता है कि न पजामे में, न लठ्ठ में, ये सज्जन दिल और दिमाग में रहते हैं।
अन्ट्शन्टात्मक लेखन में बड़ा दम लगता है ! क्योंकि कापी पेस्ट करने के लिए मैटर नही मिलता !
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हमारे यहाँ एक पान की दूकान पर तख्ती टंगी है, जिसे हम रोज देखते हैं! उस पर लिखा है : कृपया यहाँ ज्ञान ना बांटे, यहाँ सभी ज्ञानी हैं! बस इसे पढ़ कर हमें अपनी औकात याद आ जाती है! और हम अपने पायजामे में ही रहते हैं! एवं किसी को भी हमारा अमूल्य ज्ञान प्रदान नही करते हैं!
कई ब्लॉग्स हैं, जिनपर चिठेरे की पहचान धुन्धली है। ताऊ की पहचान के लिये जो फसाड है एक चिम्पांजी बन्दर का - मैं उससे चाह कर भी ताऊ को आईडेण्टीफाई नहीं कर पाता। अगर मैं उनसे अनुरोध कर पाता तो यही करता कि मित्र, हमारी तरह अपनी खुद की फोटो ठेल दें - भले ही (जैसे हमारी फोटोजीनिक नहीं है) बहुत फिल्मस्टारीय न भी हो तो।
रामपुर के ताऊ इन्दौर में हैं और मैं पांच साल पहले तक इन्दौर में बहुत आता जाता रहा हूं। वहां के इंदौर/लक्ष्मीबाईनगर/मंगलियागांव के रेलवे स्टेशन पर अभी भी एक दो दर्जन लोग मिलने वाले निकल सकते हैं जो मुझसे घरेलू स्तर पर हालचाल पूछने वाले हों। वह नगर मेरे लिये घरेलू है और उस नाते ताऊ भी।
ताऊ के प्रोफाइल में है कि वे भड़ास पर कण्ट्रीब्यूट करते रहे हैं। जब भी मैं वह देखता हूं तो लगता है कि कई कम्यूनिटी ब्लॉग्स जो मैने नहीं देखे/न देखने का नियम सा बना रखा है; वहां ताऊ जैसे प्रिय चरित्र कई होंगे। उन्होने कहीं कहा था कि वे अपने व्यक्तिगत मित्रों के सर्किल में ब्लॉग लिखते रहे हैं। यह व्यापक खुला लेखन तो बाद की चीज है उनके लिये।
खैर, यह खुला लेखन हुआ तो अच्छा हुआ। हमारे जैसों को पता तो चला।
ताऊ से एक और कारण है अपनेपन का। "ताऊलॉजिकल स्टडीज" या "मानसिक हलचल" जैसे भारी भरकम शब्दों के बाट उछालने के बावजूद वे या मैं जो ब्लॉग पर ठेल रहे हैं, वह हिन्दी के परिदृष्य में कोई साहित्यिक हैसियतकी चीज नहीं है। कभी कभी (या अक्सर) लगता है कि हिन्दी के हाई-फाई, बोझिल इस या उस वाद के लेखन के सामने हम लोग कुछ वैसे ही हैं जैसे यामिनी कृष्णमूर्ति के भरतनाट्यम के सामने नाचते कल्लू चमार! हिन्दी के अभिजात्य जगत में हम चमरटोली के बाशिन्दे हैं - पर पूरी ठसक के साथ!
ताऊ जैसे पचीस-पचास लोगों की टोली हो तो ब्लॉगरी मजे में चल सकती है - बिना इस फिक्र के कि ट्यूब खाली हो जायेगी। ताऊ की लाठी और की बोर्ड बहुत है चलाने को यह दुकान!
ईब राम-राम।
अशोक पाण्डेय का कहना था कि उनके ब्राउजर (शायद इण्टरनेट एक्प्लोरर) से देखने में इस ब्लॉग की टिप्पणी की सेटिंग में ऐंचातानापन था। वह खत्म हुआ या नहीं?
पाण्डेय जी, पहले तो जी म्हारी घणी बधाई स्वीकारो ताऊ की तारीफ़ कारन तईं! का कवित्त न पढा जी थमने?
ReplyDelete"हिन्दी के अभिजात्य जगत में हम चमरटोली के बाशिन्दे हैं - पर पूरी ठसक के साथ!"
ReplyDeletebadhaai!!!!
सच है की जब तक ताऊ हैं आपकी ट्यूब खली नहीं रह सकती है !!!!
ReplyDeleteजो भी हों, ताऊजी और आपको सादर नमन! आप दोनों ब्लाग पर ज्ञान गंगा बहाते रहिये, मेरे जैसे अज्ञानी गोता लगाते रहेंगे।
ReplyDeleteताऊ का अपना वर्ग है. उनकी ठेठ लेखनी स्वतः मोहित करती है और उसी के चलते उन्होंने अपना एक बड़ा प्रशंसक समुदाय खड़ा कर लिया है. सो ही तो आपके साथ भी है.
ReplyDeleteहिन्दी के अभिजात्य जगत में हम चमरटोली के बाशिन्दे हैं - पर पूरी ठसक के साथ!
-बस, यही ठसक तो है मुआ जो अपने पास बुलाती है, इसीलिये इस टोली का बाशिन्दा बने रहने में भी मैं आनन्दित हूँ.
ट्यूब की चिन्ता न करें, गीज़र टाईप है-इनलेट आउटलेट दोनों लगे हैं, बस कभी कभी उदासीनता के चलते पानी गरम होने में लगने वाला समय खाली होने का भ्रम पैदा कर सकता है. मगर जैसे ही फिर पानी गरम होकर निकलेगा..स्नान-और पुनः तरोताजा!!
शुभकामनाऐं.
ताऊ जी की अपनी विशिष्ट शैली है और आपका कहना भी सही है कि, बँदर महाशय की तस्वीर लगा रखी है ताऊ जी ने
ReplyDeleteपरँतु उनकी सूझ -बुझ खालिस देसी और सज्जनीय है :)
आप की तरह वे भी हम्बल हैँ !
हमेँ तो "चमरटोली" नहीँ
"चरमटोली" लगती है
जिसमेँ आलोक पुराणिकजी,दिनेश भाई जी, समीरलाल जी, अनूप शुकुलजी, नीरज जी,शिव भाई, डा.अनुराग, कुश जी, बालकीशनजी जैसे अनेकानेकोँ को शामिल किया जा सकता है -
( अन्य नाम छुटने के लिये अग्रिम क्षमा :)
ज्ञान दत्त जी, ताऊ आख़िर ताऊ ही है, ताऊ शब्द ही अपने आप में आदरणीय है | ब्लॉग जगत में ही उनसे परिचय हुआ लेकिन उनमे जो अपना-पन लगता है वह सहकर्मियों व आस पास रहने वालों में लोगों में भी नजर नही आता | और उनकी लेखनी | उसका तो जबाब ही नही | नई पोस्ट नही भी आए तो क्या पुरानी पोस्ट ही पढ़ जानी पड़ती है लेकिन ताऊ को पढ़े बिना नही रहा जाता |
ReplyDeleteजो भी हों, ताऊजी और आपको सादर प्रणाम ! आप दोनों ब्लाग पर ज्ञान गंगा बहाते रहिये, हमारे जैसे अज्ञानी गोता लगाते रहेंगे।
देसी हरयाणवी ह्यूमर के पीछे एक सन्जीदा इन्सान
ReplyDeleteबिल्कुल सटीक लिखा आपने। पहचान खुली तो हमें भी बताईयेगा। आखिर, हम पंछी एक डाल के!!
ज्ञानजी, आप अपनी पोस्ट लिखने के चक्कर में ताऊ के बारे में अफ़वाहें तो मती फ़ैलाइये कम से कम। ऐसा करना आपको शोभा नहीं देता जी! ताऊ खुद् कहते हैं कि शरीफ़ों को बिगाड़ना उनका काम है और आप उनके बारे में न जाने कैसी-कैसी बातें लिखते हैं। हम इसका विरोध करते हैं। ताऊ की इमेज के साथ खिलवाड़ बंद किया जाये! आपको उन्होंने चांद पर फ़्री प्लाट दिया और आप पूछते हैं ताऊ कौन है?
ReplyDeleteलो, हम तो आपको ही माने ही बैठे थे ताऊ। आपकी सीरियसता का लेवल देखकर हम तो आपको ही माना करै थे ताऊ। मुझे अब लगता है कि मैथिलीजी ताऊजी के नाम से लिखते हैं, वह भी इतने ही संजीदा व्यक्ति हैं। पंगेबाजजी तो ताऊजी कतई नहीं ना हो सकते, वो खुद ताऊ के ताऊ हैं। ताऊ कौन है, पता लगे, तो हमकू भी बताया जाये।
ReplyDeleteताऊ के प्रशंसकों में हम भी हैं। सच तो यह है कि ताऊ ने ब्लॉगरी को काफी जीवंत बना दिया है। जो हैं, सो हैं। कहीं कोई छद्म नहीं, कोई आडंबर नहीं। जो सोचा, सो कह दिया। दिल और दिमाग में कोई अलगाव नहीं। ज्ञान व अनुभव का अपार भंडार रहते हुए भी, अपने को लंठ व गंवार कहने की विनम्रता। ताऊ का यह चरित्र मेरे लिए आदर्श है। उनसे एक तरह का भावनात्मक लगाव हो गया है। वह अपना फोटो लगाएं या बंदर का, कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन मन में यह रहता है कि कहीं ताऊ दिख गए तो पहचानेंगे कैसे। इसलिए फोटो सार्वजनिक कर देते तो अच्छा ही रहता।
ReplyDelete@ज्ञान दा, हमारे ताऊ को लाठी से दूर करने की कोशिश न करें, इसका हम पुरजोर विरोध करते हैं :) हमारे ताऊ लाठी के साथ ही अच्छे लगते हैं, जहां कहीं गलत देखा एक लाठी जमा दी।
टिप्पणियों को पढने में अब कोई परेशानी नहीं, अब ठीक है।
ईब राम राम। खेत पर चलता हूं। बाकी मित्रों से शाम को मुलाकात होगी।
कौन दावा कर सकता है वह ताऊ को जानता है -मेरेलिए तो वे एक प्यारे से स्फिंक्स हैं बस ! मैं इस मुगालते में आख़िर क्यूं रहूँ की मैं उन्हें जानता हूँ -क्या असीम सत्ता को कोई जान पाया है भला ! तथापि वे हैं ब्लॉग जगत के मेरे पहले दानेदार दोस्त ! कई नादान दोस्तों से लाख गुना बेहतर जो दोस्ती का वादा किए और आगे की चकाचौंध देख मुकर लिए .कई बार सोचता हूँ यह ताऊ आख़िर मेरा दानेदार दुश्मन क्यों नही हुआ .कसम खुदा की इसकी लट्ठ भी सह लेते और उफ तक न करते !
ReplyDeleteताऊ तो ताऊ ही हैं और रहेंगे.. चाहे फोटो लगाये या ना लगाये..
ReplyDeleteवैसे बहुत पहले आपका लिखा कहीं पढ़ा था कि आप मोहल्ला या भड़ास जैसी जगहों पर नहीं जाते हैं और तभी से आपसे एक बात पूछने का मन कर रहा था.. जो आज पूछ ही लेता हूं.. "आपको नहीं लगता कि किसी चीज के प्रति इस तरह से खुद को बांध लेना कूपमंडुकता कि ओर जाना है?" मोहल्ला पर भी आपके चिट्ठे का लिंक यह कह कर दिया हुआ है कि जो यहां नहीं आते आप वहां भी जाईये..
मैं बहुत समय पहले दोनों ब्लौग का मेंबर था आज किसी का भी नहीं हूं.. जब से दोनों कि मेंबरशिप छोड़ी तब से सोच रखा है कि दोनों में से किसी पर कमेंट नहीं करूंगा.. मगर पढ़ूंगा जरूर.. लेकिन कई बार तो किसी लेख ने मजबूर कर दिया कमेंट करने को..
आम लोगों की रुचि का लेखन वास्तव में कठिन कार्य है जिसमें ताउ रामपुरिया जी माहिर हैं।
ReplyDeleteपूरा ब्लॉग जगत ही चमरटोली है. ताऊ उन सबके ताऊ है. बाकि जै रामजी की. :)
ReplyDeleteताऊ को आप जैसे ताऊ लोग भी ताऊ कह रहे हैं ये ही उनकी ताऊगिरी का कमाल है।ब्लागजगत के एक से एक खांटी-खांटी लोग उनको यूंही ताऊ नही कहते। आखिर वे ताऊ है आपके,मेरे,हमारे,हम सबके ताऊ।
ReplyDelete"...हम लोग कुछ वैसे ही हैं जैसे यामिनी कृष्णमूर्ति के भरतनाट्यम के सामने नाचते कल्लू चमार! हिन्दी के अभिजात्य जगत में हम चमरटोली के बाशिन्दे हैं - पर पूरी ठसक के साथ!
ReplyDeleteहे हे हे...
और, इसीलिए, जे के रोलिंग का लिखा करोड़ों बिकता है, जबकि ठेठ साहित्यिक कृतियाँ पाठकों को रोती हैं... :)
ताऊ जी ताऊ जी ही हैं उनका लिखा बहुत पसंद आता है
ReplyDeleteताऊ जी जग प्रिय हैं क्योंकि उन का लिखा सरल और आम इंसान के मन की बात कहती है.
ReplyDeleteसंजीदा होने के साथ साथ उन का हास्य-व्यंग्य भी सब को पसंद आता है.
ताऊ जी जो भी हैं जहाँ से भी हैं ,हमारे प्रिय ताऊ जी हैं.
पांडेजी, अभी तक थारे धोरै ताऊ नै कमेन्ट नी भेज्जी. कोई बात नी. फेर बी ताऊ तो ताऊ हैं. ब्लोगरी में जान फूंक दी है उन्होंने. रोज़ तडके ही उनके पोस्ट का इंतज़ार रहता है. बहुत बड़ा पाठक समुदाय है उनका.
ReplyDeleteब्लॉग जगत की चमरटोली में ताऊ याने कि बुजर्ग मुखिया जी . हा हा हा
ReplyDeleteजब कुछ लोग मुझे भावुक कहकर खारिज करते है तब वो मेरी पीठ थपथपाते है ..कई बार आशीर्वाद भी दे देते है...एक हंसोड़ से दिखने वाले व्यक्तित्व के पीछे कही भावुक ओर दुनिया को नजदीक से देखने वाला एक इंसान है.....जिसके पास एक अच्छा दिल है
ReplyDeleteताऊ को ढूंढ़ कर आपके सामने हाजिर करते हैं ! ताऊ अपनी चम्पाकली को ढूढने चाँद पर गया था ! अभी तक ताऊ लौटे नही है ! और उनका खूंटा भी खाली पडा है ! :)
ReplyDeleteइब रामराम !
ताऊ पर लेख लिख कर आप बाजी मार ले गए और मैं सोचता रह गया सो बधाई स्वीकार करें ! पी सी रामपुरिया का व्यक्तित्व, ब्लाग जगत के थकान एवं उबाऊ भरे रास्ते पर एक बगीचे का शीतल अहसास जैसा है ! यह विद्वान एवं धीर गंभीर व्यक्ति ब्लाग जगत के उन शानदार प्रतिभाओं में से एक है जिसके कारण हिन्दी ब्लाग पढ़ते हुए भी, हमारे चेहरों पर मुस्कान सम्भव हो पाती है ! मैं उनके प्रसंशकों में, अपने आपको अग्रिम पंक्ति में पाता हूँ !
ReplyDeleteऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तित्व को आपने याद किया ...मेरा नमन स्वीकार करें !
सादर !
ताऊ जी हिन्दी चिट्ठाजगत के सबसे अच्छे चिट्ठाकारों में से एक हैं. जब भी टिप्पणी करते हैं, हमेशा विषय के अनुकूल टिप्पणी करते हैं. ढेर सारे विषयों पर ताऊ जी की पकड़ अद्भुत है. किसी भी पोस्ट पर उनकी टिप्पणी पढ़ना बहुत रोचक लगता है.
ReplyDeleteएक ही समय में हम उन्हें हंसोड़ भी समझ सकते हैं और संजीदा इंसान भी. शायद इसलिए क्योंकि एक ताऊ ही हंसोड़ भी हो सकता है और संजीदा भी.
उन्हें जानना किसी भी व्यक्ति के लिए एक व्यक्तिगत उपलब्धि है.
shiv ji se sahmat huun...TAU ji ki tippani hamesha vishay ke anukuul aur bahut had tak lekhak ki maansikta se judaav ke saath ...ki gayi tippani hoti hai...
ReplyDeleteपोस्ट तो आपने लिख दी है.. कही कोई सिरफिरा आकर ये ना कह दे की ताऊ आपके खेमे के हो गये..
ReplyDeleteवैसे ताऊ के तो हम भी बड़े पंखे (फ़ैन) है..
वैसे एक और बात ताऊ के साथ हमने कॉफी भी पी ली है.. आप लोगो से जल्द ही रु ब रु करवाएँगे ताऊ को फिलहाल उनके चाँद से लौटने का इंतेज़ार है
हर आम-औ-खास को खबर की जाती है कि जो भी ताऊ की असल पहचान जानना चाह्ते है,वे १० जन. के बाद कोशिश करें तो पता लगा सकते हैं। तारीख वाला रहस्य भी चाहें तो ताऊ ही बताएँगे।
ReplyDeleteताऊ के तो हम भी फैन हैं...
ReplyDeleteपर एक बात: 'कल्लू चमार', 'चमरटोली के बाशिन्दे'?
बहनजी तक बात पहुच गई तो फिर मत कहियेगा कि हमारे पोस्ट को ग़लत तरीके से लिया गया. हमने तो आगाह करना उचित समझा, आपका ब्लॉग इतना कम भी नहीं पढा जाता :-)
"ताऊ जैसे पचीस-पचास लोगों की टोली हो तो ब्लॉगरी मजे में चल सकती है - बिना इस फिक्र के कि ट्यूब खाली हो जायेगी।"
ReplyDeleteवाह वाह, क्या बात कही है ज्ञान जी.
ताऊ जी जिस फुर्सत से टिप्पणी करते है वह तारीफे काबिल है.
आज तो मेरे आलेख से भी बडी टिप्पणी थी उनकी. पढकर ऐसा थ्रिल आया कि मैं 1950 और 60 में वापस चला गया.
ईश्वर उनको शतायु करें! आपको भी कि आप इस तरह के व्यक्तियों को हाईलाईट करते रहते है.
आपके ही कारण विश्वनाथ जी की शख्सियत के बारे मैं भी पता चला था.
सस्नेह -- शास्त्री
ताऊजी जिंदाबाद...
ReplyDeleteहम भी आज ही अपनी फेवरिट में ताऊजी को शामिल करते हैं। हालांकि उनकी सीट पहले से रिजर्व कर रखी है।
ताऊ की जडें जमीन में और आपका पाण्डित्य आसमान में । फर्श से अर्श तक आप दोनों ही छाये हुए हैं ।
ReplyDeleteछाये रहिएगा । हम सब आपकी छाया में हैं ।
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद ताऊ की तारीफ़ करने के लिये, मै इस ताऊ से तो नही मिला, लेकिन जब मै हरियाणा मै रहता था तो ताऊ लोगो से मेरी खुब बनती थी, मुहं से चाहे कितने भी कडबे हो, लेकिन दिल के सच्चे ओर समय पर साथ देने बाले होते है यह ताऊ.
ReplyDeleteपता नही कभी मिलन भी होता है इस ताऊ से लेकिन दिल मे इच्छा जरुर है इस से मिलने की,
वेसे तो आप सब से मिलने की बहुत इच्छा है.
ग्याण जी आप का धन्यवाद
मैं और क्षेत्रों की तो नहीं कह सकता पर जहां तक ब्लॉगजगत की बात है, जब कभी लट्ठ शब्द कहीं दिखता है तो पहले ताउ याद आता है......किसी निर्जीव चीज से किसी व्यक्ति का इतना स्थायी मेल कि दोनों शब्द एक दूसरे के पर्यायवाची लगने लगें, बहुत कम ही देखने में आता है।
ReplyDeleteमुझे तो ताऊ की यह आत्मस्वीकृति बेहद पसंद आती है कि कृपया यहाँ ज्ञान ना बांटे , यहाँ सभी ज्ञानी हैं ! बस इसे पढ़ कर हमें अपनी औकात याद आ जाती है!
ReplyDeleteतीन दिन से कंप्यूटर और ईंटरनेट से दूर रहा।
ReplyDeleteचेन्नै ग्या था।
आज वापस आया हूँ।
ताउजी के बारे पढ़कर बहुत अच्छा लग रहा है।
१० जनवरी का इंतज़ार करेंगे।
हम भी बहुत उत्सुक हैं उनका असली चेहरा देखने के लिए।
हमारी शक्ल से तो अवश्य अच्छी होगी!
शुभकामनाएं
" very serious issue, ki tau ji hain kaun..... discovery channel mey report likha daitey hain shayad koe clu mil jaye..."
ReplyDeleteregards
Bahut sahi kaha aapne.Ham to aap dono ke hi prashanshak hain.
ReplyDeleteश्री मान पान्डेय जी, मै आपके ब्लोग बहुत पुराना पाठक हू । इतना पुराना कि तब मुझे पता भी नही था कि ब्लोग ओर टिप्पणी किसे कहते है । ताउ के बारे मे सभी कुछ जानकर के भी हिन्दी जगत और जानने को उत्सुक है । मुझे उनके ब्लोग पर सबसे ज्यादा एक लाइन पसंद आयी "पान कि दुकान की तख्ती " जो कि उनके प्रोफ़ाइल मे है । एक रहस्य कि बात है कि ताउ हमारे गावं के है क्यों कि हमारा गांव बहुत बडा है ।
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