अल्लापुर मुहल्ले में मेरी रिश्ते की बहन रहती हैं। पन्द्रह वर्ष पहले उन्होने वहां मकान बनवाया था। काफी समय तक उनके यहां घर बनने का कामकाज चलता रहा था। हम लोग उस समय रतलाम में रहते थे और यदाकदा इलाहाबाद आते थे। मैं इलाहाबाद आने पर अपनी इन अल्लापुर वाली दीदी से मिलने जाया करती थी। मुझे याद है कि उस समय जीजाजी ने एक बार कहा था - “बेबी, यह जिन्दगी नर्क हो गई है। दिन में आराम करना चाहो तो ये मजदूर खिर्र-खिर्र करते रहते हैं और रात में ये “मारवाड़ी” का बच्चा तूफान खड़ा किये रहता है।
यह इस सप्ताह का रीता पाण्डेय का लेखन है। अपने परिवेश में एक दृढ़ इच्छाशक्ति वाली महिला की कहानी है यह। |
वह ड्राइवर एक दिन किसी सरकारी काम से बाहर गया था। गाड़ी छोड कर उसे वापस लौटना था। वापसी में वह एक जीप में सवार हो गया। जीप में कुछ बदमाश भी बैठे थे, जिनका पीछा पुलीस कर रही थी। पुलीस ने जीप को घेर कर सभी को मार गिराया। इस “मारवाड़ी” के पहचान पत्र के आधार पर हुई पहचान से उसके सरकारी विभाग ने आपत्ति दर्ज की तो उसकी औरत को कुछ मुआवजा दिया गया। शायद उसका कोई रिश्तेदार था नहीं, सो कोई मदद को भी नहीं आया। पर सरकारी विभाग में इस महिला को चपरासी की नौकरी मिल गई। विभाग के लोगों ने सहारा दिया। ड्राइवर के फण्ड के पैसे का सही उपयोग कर उस महिला ने ठीक से मकान बनवाया।
अब मैं इलाहाबाद में रहती हूं, और जब भी अल्लापुर जाती हूं तो दीदी के मकान की बगल में सुरुचिपूर्ण तरीके से बना इस महिला का मकान दिखता है। उसके तीनों बच्चे बड़े हो गये हैं। चूंकि पैसा अब एक शराबी के हाथ नहीं, एक कुशल गृहणी के हाथ आता है, तो उसके घर पर लक्ष्मी और सरस्वती की कृपा साथ-साथ नजर आती है।
बहुत पहले जीजा जी ठहाका लगा कर बोले थे – “वह साला मर कर परिवार का भला कर गया”। दीदी इस पर बहुत झल्लाई थीं, कि “क्या कुछ का कुछ बोल देते हैं आप”। लेकिन सच्चाई भी यही है, इसे स्वीकार करते हुये दीदी ने बताया कि “उस महिला के बच्चे बहुत अच्छे हैं और पढ़ने में काफी मेहनत करते हैं। वे अपनी पढ़ाई का खर्च भी पार्टटाइम बिजली का काम कर निकाल लेते हैं। अनपढ़ महिला उनके मां और बाप का फर्ज अकेले बखूबी निभा रही है”।
इस समय उस दिवंगत “मारवाड़ी” का बड़ा बेटा बैंक में नौकरी कर रहा है। बेटी एम.ए. कर चुकी है और छोटा बेटा एम.बी.ए. की पढ़ाई कर रहा है। हालांकि इस जिन्दगी की जद्दोजहद ने उस महिला को शारीरिक रूप से कमजोर और बीमार कर दिया है; पर उसकी दृढ़ इच्छा-शक्ति ने परिवार की गाड़ी को वहां तक तो पंहुचा ही दिया है जहां से उसके बच्चे आगे का सफर आसानी से तय कर सकते हैं।
(कहानी सच्ची है, पहचान बदल दी गई है।)
चूंकि पैसा अब एक शराबी के हाथ नहीं, एक कुशल गृहणी के हाथ आता है, तो उसके घर पर लक्ष्मी और सरस्वती की कृपा साथ-साथ नजर आती है।
ReplyDelete-सच है एक कुशल हाथ स्थितियां बदल देते हैं.
आभार इस संस्मरण को पेश करने का.
नारी का ऎसा समर्पण एवं कर्तव्यबोध भारतीय संस्कृति परंपरा में ही संभव है।दुखद कहानी का सुखद प्रारम्भ।
ReplyDeleteआदरणीय रीता जी की पोस्टें मुझे अक्सर लाजवाब करती हैं इस पोस्ट ने भी लाजवाब किया है ! नो कमेंट्स !
ReplyDeleteजो लोग जीवन की कठिनाइयों से सबक लेते हैं, बेहतर भविष्य उनका इंतजार कर रहा होता है। भाभी जी का लेखन अक्सर प्रेरणादायक होता है, उनका आभार।
ReplyDeleteईश्वर इस तरह बाप छीनकर किसी का भला न करे .
ReplyDeleteड्राइवर सिर्फ अपने लिए जीता था। पत्नी बच्चों के लिए जी और उस ने परिवार का सृजन ही नहीं किया विकास भी किया। इस तरह की कहानी हर शहर में अब देखी जा सकती है।
ReplyDeleteअच्छा रहा साला मर गया परिवार तो सुधर गया . कष्ट भरा बचपन हमेशा तरक्की की तरफ उडान भरता है .
ReplyDelete"वह साला मर कर परिवार का भला कर गया”
ReplyDeleteलेकिन सच्चाई यही है!!! दृढ़ इच्छा-शक्ति ने परिवार की गाड़ी को वहां तक पंहुचा दिया है जहां से बच्चे आगे का सफर आसानी से तय कर सकते हैं।
आपके लेखन में कलात्मकता है, जिस प्रकार कलात्मकता का प्रदर्शन किया है तारीफ योग्य है। हो सकता है कि कोई मर कर बहुत भला कर जाये किन्तु परिवार में आये शुन्य को कोई नही भर सकता, यादों की छाप कोई कोई नही मिटा सकता है।
ReplyDeleteशराब उसकी सबसे बड़ी बुराई रही होगी। और भी बुराइयां रहीं होंगी। लेकिन कुछ अच्छाइयां भी रहीं होंगी उसमें। उसके मरने के बाद उसकी पत्नी ने घर बना लिया यह काबिलेतारीफ़ बात है। लेकिन यह मरकर भला करने वाली सहज-स्वत:स्फ़ूर्त समझ बहुत क्रूर है। खतरनाक है।
ReplyDeleteचूंकि पैसा अब एक शराबी के हाथ नहीं, एक कुशल गृहणी के हाथ आता है, तो उसके घर पर लक्ष्मी और सरस्वती की कृपा साथ-साथ नजर आती है।
ReplyDeleteशायद जीवित रहते हुये भी सहचरी की इस प्रबन्धन क्षमता का लाभ लिया जाये तो रिजल्ट और भी बढिया रहेंगे !
आपको इस लेख के लिये बहुत धन्यवाद !
राम राम !
जब भला होने का समय आता है तब ही भला होता है, भले ही वह किसी के मरने से हो।
ReplyDelete"जब नीके दिन आइहैं बनत न लगिहैं देर"
पिता के होने और ना होने में कितना अंतर आ गया. आभार.
ReplyDeleteकाश इस देवी की दृढ़ इच्छा शक्ति उस शराबी का शराब छुड़ाने में कामयाब हो पायी होती...।
ReplyDeleteखैर ईश्वर की व्यवस्था के आगे हम सभी नतमस्तक हैं। शायद उसके हाथ में यही समाधान रहा हो। इनके परिश्रम, धैर्य और सही सोच की क्रेडिट इन्हे अवश्य दी जानी चाहिए।
आपके लेखन में कलात्मकता है, जिस प्रकार कलात्मकता का प्रदर्शन किया है तारीफ योग्य है।
ReplyDeleteकहानी-सच्ची कहानी , अच्छी लगी . धन्यवाद .
ReplyDeleteमैं भी ऐसा ही एक परिवार को जानता हूँ।
ReplyDeleteपियक्कड़ पति के मरने के बाद परिवार का भाग्य खुल गया था।
लेकिन ऐसी कहानियाँ केवल मर्द के मरने के स्न्दर्भ में सुनते हैं।
जब पत्नि की असामयिक मृत्यु होती है, तो परिवार का कभी कल्याण हुआ है?
कभी कभी सोचने लगता हूँ कि हम मर्द इतने कमीने क्यों होते है?
अपनी हिम्मत और आत्मविश्वास के बल पर अपना और अपने परिवार को संबल देने वाली इस महिला कि जितनी तारीफ़ कि जाए कम है.
ReplyDeleteपर उसकी दृढ़ इच्छा-शक्ति ने परिवार की गाड़ी को वहां तक तो पंहुचा ही दिया है जहां से उसके बच्चे आगे का सफर आसानी से तय कर सकते हैं।
ReplyDelete"दृढ़ इच्छा-शक्ति और हिम्मत से अकेले हालत का सामना करके जो मुकाम इन महिला ने हासिल किया है , वो कबीले तारीफ और सम्मानजनक है "
regards
सच्चे किस्से काफी कुछ सीखा जाते है.
ReplyDeleteसृजन और विनाश आदमी के ही हाथों में है. बस नेतृत्व कौन करता है, इस पर निर्भर है.
प्रेरणादायक पोस्ट्।
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरणा दायक किस्सा है ..
ReplyDeleteचूंकि पैसा अब एक शराबी के हाथ नहीं, एक कुशल गृहणी के हाथ आता है, तो उसके घर पर लक्ष्मी और सरस्वती की कृपा साथ-साथ नजर आती है।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने....... और सही ही है,ऐसे लोगों के होने से न होना बेहतर है.
सुंदर प्रेरणादायक पोस्ट के लिए आभार.
भगवान करे, हर शऱाबी के घऱ के इसी तरह से भला हो। जैसे उनके दिन बहुरे, वईसे ही सबके बहुरें। जय हो।
ReplyDeleteलोग कहते हैं कि भगवान जो कुछ करता है, अच्छा ही करता है। इस नजरिये से भी देखें, तो यह अच्छा ही हुआ।
ReplyDeleteमार्मिक संस्मरण, प्रस्तुति के लिए शुक्रिया।
sau baaton ki ek baat.. is baar bhi comment karne me G.Vishnath ji ka hi comment sab par bhari par raha hai.. vaise bhi unakaa prashn jayaj hai..
ReplyDeleteवह साला मर कर परिवार का भला कर गया”
ReplyDeleteपर आम तौर पर ऐसे कमीने भी इतनी जल्दी नही मरते .....औरत दुःख में एक दूसरा रूप धारण कर लेती है....
मुझे तो लगता है हम सभी का इस तरह के किसी न किसी परिवार से जरूर साबका पडा है....भले ही कारण शराब के बजाय कोई दूसरा ही क्यों न हो। प्रेरक पोस्ट।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट.
ReplyDeleteसमाज में ऐसे चरित्र भी मिलते हैं. मैं स्वयं परिचित हूं ऐसी एक (पूर्व में) अत्यन्त अल्पशिक्षित महिला से जिन्होंने पति के निकम्मेपन और शराबखो़री से आज़िज आकर घर से बाहर कदम रखा, पहले अपने दम पर स्कूल की शिक्षा पूरी की, फ़िर स्नातक की, कड़ी मेहनत करते हुए चारों बच्चों को काबिल बनाया, अपना स्वयं का मकान खड़ा किया. समाज में प्रतिष्ठा हासिल की.
बच्चे बेहद संस्कारवान और सभ्य हैं. पिता की जरा भी छाया नजर नहीं आती.
लेकिन सबसे बड़ी बात ये कि इतने संघर्षमय जीवन के बावजूद इनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान ही दिखी. पतिदेव जीवित हैं, पर अब तो कुछ करने के काबिल ही नहीं रहे.
भविष्य के गर्भ में क्या छुपा है , किसी को पता नही होता.
ReplyDeleteघटनाएं होने के बाद..........
परिणाम आने के बाद............
शब्द देने वाले अपनी -अपनी समझ से शब्द देते हैं ........
जैसे हम टिप्पणियां करते हैं मन में छुपे इस अहसास के साथ कि ऐसे विचार , ऐसे भावः अपन के मन में क्यों न आए.
चन्द्र मोहन गुप्त
नारी सयानी हो तो नरक को स्वर्ग बना देती है, ओर मुर्ख हो तो स्वर्ग को भी नरक बना देती है... आप ने बहुत सुंदर बात कही, हम ने भी ऎसी बाते अपने आसपास देखी है.
ReplyDeleteधन्यवाद
नहीं, शराबी ड्रायवर ने मर कर भला नहीं किया । नौकरी तो वह भी कर रहा था और बाद में उसकी पत्नी ने भी नौकरी ही की । वास्तविकता तो वह है जो आपने कही - पैसा अब किसी शराबी के हाथ में नहीं आ रहा था ।
ReplyDeleteअपने बीमा व्यवसाय के कारण मुझे घर-घर घूमना पडता है । अपवादों को छोड दें तो मेरा अनुभूत दावा है कि 'पुरुष कमाना जानता है, खर्च करना नहीं और घर चलाना तो बिलकुल ही नहीं जानता ।' यह तो 'स्त्री' का बडप्पन है जो पुरुष का अहम् बना हुआ है और तुष्ट भी होता रहता है । निश्चय ही यही कारण है कि हमारे शास्त्रों, पुराणों ने मुक्त कण्ठ 'स्त्री गुणगान' किया । यह कृपा नहीं, स्त्री का सहज स्वाभाविक अधिकार है ।
सुन्दर पोस्ट के लिए साधुवाद और अभिनन्दन ।
डाक्टर अनुराग जी से वाकिफ रखते हुये,ऐसे कमीने मरते भी तो नहीं जल्दी...
ReplyDeleteबेहद रोचक शैली
आप लोग कितनी सहजता से किसी मृत व्यक्ति के लिए 'कमीना' शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं।
ReplyDeleteक्या इस शब्द का इस्तेमाल करने वाले यह मानते हैं कि पत्नी की अंधाधुंध पिटाई करने वाला कमीना है, फिर चाहे वह शराबी हो या ना हो।
दुनिया के किसी भी हिस्से में, क्या किसी भी कथित कमीने पति द्वारा पिटाई की पृष्ठ्भूमि को (आपमें से)कोई एक व्यक्ति भी जानता है?
या फिर बताईयेगा कि क्या दुनिया में कोई ऐसा पति है जिसने अपनी पत्नी पर हाथ ना उठाया हो? किसी ने कम, तो किसी ने ज़्यादा, यह काम तो किया ही होगा।
मैं तो आपकी सहजता पर हैरान हूँ!
काश ये प्रबंधन और इच्छा शक्ति उसको शराबी से इंसान बनाने में लगाई होती! खैर जो हुआ प्रभु इच्छा!!
ReplyDelete"ज्ञान" जी ( मानसिक हलचल वाला नहीं, यह कोई और होगा)
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आपके विचार
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हमारी प्रतिक्रिया
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आप लोग कितनी सहजता से किसी मृत व्यक्ति के लिए 'कमीना' शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं।
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वह केवल इसलिए के इससे भी ज्यादा शक्तिशाली या भावुक शब्द हम लोग इस सार्वजनिक मंच पर प्रयोग नहीं करना चाहते।
व्यक्ति मृत है तो क्या हुआ?
हिटलर, रावण, कंस जैसे लोग अब नहीं रहे।
क्या हम उनका गुण गान में लग जाएं?
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क्या इस शब्द का इस्तेमाल करने वाले यह मानते हैं कि पत्नी की अंधाधुंध पिटाई करने वाला कमीना है, फिर चाहे वह शराबी हो या ना हो।
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जो अपनी पत्नि को पीटता है वह हमारी नज़रों में कमीना ही रहेगा।
शराब यदि पीता है तो उसे क्या पीटने का लाइसेन्स मिलता है?
शराब पीने के बाद यदि वह अपने आप पर काबू नहीं रख सकता तो उसे शराब छोड़ना चाहिए।
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या फिर बताईयेगा कि क्या दुनिया में कोई ऐसा पति है जिसने अपनी पत्नी पर हाथ ना उठाया हो?
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पूरी इमानदारी से कह सकता हूँ कि ३३ साल में कई बार पत्नि से झडप हुई है पर एक पार भी मैंने उसपर हाथ नहीं उठाया। एक बूँद शराब भी नहीं पी। मेरे जैसे हजारों मर्द होंगे। यकीन मानिए पत्नि को न पीटना कोई मुश्किल या असंभव काम नहीं है!
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मैं तो आपकी सहजता पर हैरान हूँ!
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हम भी आपके विचारों से हैरान हैं
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यह एक दृढ़ इच्छाशक्ति वाली कर्मठ महिला की कहानी है जिसे पति की म्रत्यु के बाद आर्थिक सुरक्षा मिल गयी.
ReplyDeleteहमारे समाज में ऐसे और भी बहुत से उदाहरण मिल जायेंगे. टिप्पणिकार की यह टिप्पणि - 'या फिर बताईयेगा कि क्या दुनिया में कोई ऐसा पति है जिसने अपनी पत्नी पर हाथ ना उठाया हो? किसी ने कम, तो किसी ने ज़्यादा, यह काम तो किया ही होगा।' सरासर ग़लत है .आश्चर्य होता है कि शिक्षित सभ्य समाज ऐसा सोच भी कैसे सकता है.पुरुष को गाली देना भी उचित नहीं. ऐसे पुरुष भी मिल जायेंगे जिन्होंने माता और पिता दोनों का ही कर्तव्य निभाया है.
हे भगवान ये मै क्या पढ रहाः हू..........
ReplyDeleteये ज्ञान जी पूछ रहे है क्या दुनिया में कोई ऐसा पति है जिसने अपनी पत्नी पर हाथ ना उठाया हो? किसी ने कम, तो किसी ने ज़्यादा, यह काम तो किया ही होगा। मतलब पत्नी कोई बधुआ पशु है जिसके गले मे रस्सा डाल कर आपके हाथ मे थमा दिया गया है ? आप जैसे पढे लिखे भद्र पुरुष से यह उम्मीद ना थी आप कहा से आ गये इस समाज मे जंगल मे वापस लौट जाईये श्रीमान
कृपया ध्यान दे ये ज्ञान जी मानसिक हलचल वाले ज्ञान जी नही है . वो तो खुद हमारी तरह पत्नी से डरते है .और सारा जीवन इसी विचार मे कट रहा हैकि किसी दिन हम भी हिम्मत करके उन्हे जोर से जवाब दे पाये :)
"ज्ञान" जी (मानसिक हलचल वाले नहीं), ढुँढने पर एक-दो नही, कई पति मिलेंगे, जिसने अपनी पत्नी पर आजीवन हाथ ना उठाया होगा| नारी और बच्चो पर हाथ उठाना तो कोई पत्थर दिल ही कर सकता है।
ReplyDeleteआप तो पिटाई की बात पर आश्चर्य कर रहें हैं. दरअसल शराबी के लिए तो सारी वर्जनाएं ही टूट जाती हैं. शरीर के घाव तो भर जाते हैं लेकिन शराब पीकर कही गई बातों के घाव जिंदगीभर पीछा नहीं छोड़ते.
ReplyDeleteबुराईयाँ कोई भी हो अच्छी नही होती और न संस्कृति और संस्कार के अनुकूल हीं , अच्छी रचना , आपका आभार !
ReplyDeleteरीता जी, सचमुच आपके लेखन में कलात्मकता है, पोस्ट तारीफ योग्य है।
ReplyDeleteऔरत पर हाँथ उठाना मानसिक दिवालियेपन का द्योतक है , बहुत अच्छा लिखा है आपने !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लेख! और बहुत ही बढ़िया टिप्पणियाँ !प्रत्येक टिप्पणीकर्ता अपनी मानसिकता दर्शा गया है। यह एक बढ़िया मनोवैज्ञानिक टेस्ट माना जा सकता है। सब आकर अपनी मानसिकता दर्ज करा गए। काश कुछ ऐसा ही टेस्ट विवाह पूर्व लिया जा सकता और वोट देने से पहले नेता का लिया जा सकता !
ReplyDeleteघुघूती बासूती
जो अपने परिवार की जिम्मेदारियां उठाने की बजाय शराब के नशे में डूबना ज़्यादा पसंद करता है भले ही उसके लिए उसकी जेब में गुंजाइश हो या नहीं, वो अगर स्त्री पर हाथ उठा देता है तो हैरानी क्या है? आखिर अंतरात्मा तो उसकी पहले ही मर चुकी
ReplyDeleteचूंकि पैसा अब एक शराबी के हाथ नहीं, एक कुशल गृहणी के हाथ आता है, तो उसके घर पर लक्ष्मी और सरस्वती की कृपा साथ-साथ नजर आती है।
ReplyDeleteबिल्कुल सही!
काश इस देवी की दृढ़ इच्छा शक्ति उस शराबी का शराब छुड़ाने में कामयाब हो पायी होती...।
ReplyDeleteखैर ईश्वर की व्यवस्था के आगे हम सभी नतमस्तक हैं। शायद उसके हाथ में यही समाधान रहा हो। इनके परिश्रम, धैर्य और सही सोच की क्रेडिट इन्हे अवश्य दी जानी चाहिए।
चूंकि पैसा अब एक शराबी के हाथ नहीं, एक कुशल गृहणी के हाथ आता है, तो उसके घर पर लक्ष्मी और सरस्वती की कृपा साथ-साथ नजर आती है।
ReplyDeleteशायद जीवित रहते हुये भी सहचरी की इस प्रबन्धन क्षमता का लाभ लिया जाये तो रिजल्ट और भी बढिया रहेंगे !
आपको इस लेख के लिये बहुत धन्यवाद !
राम राम !
जो लोग जीवन की कठिनाइयों से सबक लेते हैं, बेहतर भविष्य उनका इंतजार कर रहा होता है। भाभी जी का लेखन अक्सर प्रेरणादायक होता है, उनका आभार।
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