|| MERI MAANSIK HALCHAL ||
|| मेरी (ज्ञानदत्त पाण्डेय की) मानसिक हलचल ||
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|| मेरे होने का दस्तावेजी प्रमाण बन रहा है यह ब्लॉग ||
Wednesday, October 1, 2008
टाटा नैनो, बाय-बाय!
नैनो परियोजना बंगाल से जा रही है। मशीनरी बाहर भेजी जा रही है। चुनाव का समय आसन्न है। साम्यवादी शासन मुक्त हुआ। अब जनता में सर्वहारा समर्थक छवि लाई जा सकती है।
ब्लॉगजगत में भी अब मुक्त भाव से उद्योगपतियों की निंदा वाली पोस्टें आ सकती हैं।
टाटा नैनो, बाय-बाय!
यह नैनो (गुजराती में नानो – छोटा या माइक्रो) पोस्ट लिख तो दी पर अभियक्ति का जो तरीका बना हुआ है, उसमें यह छोटी पड़ रही है। अब मुझे अहसास हो रहा है कि जैसे मुझे माइक्रो पोस्ट नहीं पूरी पड़ रही, फुरसतिया सुकुल को छोटी पोस्ट लिखना क्यों नहीं रुचता होगा। हर एक को अपनी ब्लॉग रुचि के हिसाब से पोस्ट साइज ईजाद करना पड़ता है। जब हम की-बोर्ड के समक्ष बैठते हैं तो पोस्ट की परिकल्पना बड़ी नेब्युलस (nebulous – धुंधली) होती है। वह की-बोर्ड पर आकार ग्रहण करती है। पर सम्प्रेषण की लम्बाई की एक सोच मन में होती है। उसको अचीव किये बिना नौ-दो-इग्यारह होने का मन नहीं करता।
पता नहीं साहित्य लेखक भी इसी प्रकार से लिखते हैं अथवा उनके मन में लेखन की डीटेल्स बहुत स्पष्ट होती हैं। ब्लॉग पर तो अपनी विषयवस्तु प्री-प्लॉण्ड पा लेना कठिन लगता रहा है; लेकिन ब्लॉगिंग में अपने साइज की पोस्ट पा लेना भी एक सुकूनोत्पादक बात है! नहीं?
लगता है पोस्ट की लम्बाई पर्याप्त हो गई है – अब पब्लिश की जा सकती है!
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नैनो के बहाने बात बड़ी कर गये आप. वैसे व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि अपनी बात कहने के लिए जितने बड़े मे खुद की बात खुद को स्पष्ट हो जाये, बस उतना ही लिखना पर्याप्त है. किन्तु जिस तरह बातचीत में वैसे ही लेखन में, कोई दो शब्दों में अपनी बात समझा जाता है तो कोई १०० में भी नहीं कह पाता और इस हिसाब से लेखक के लेखन का एक लगभग स्टैन्डर्ड साईज सा बन जाता है. मात्र मेरी सोच है.
ReplyDeleteवैसे अखबार क्या पढते हैं किस भाषा में पढते हैं...जैसा स्पष्टीकरण न भी देते तो चलायमान था.....अब दे दिया तो दौडायमान हो गया.....न देते तो ठीकायमान होता :)
ReplyDeleteकिसी भी आलेख का रूप, आकार उस की विषयवस्तु (कंटेंट) तय करती है। इस लिए माइक्रो और मिनि के विचार से मुक्त हों और सहज हो कर लिखें।
ReplyDeleteमन चंचल है इसी लिए मानसिक हलचल है। जो भी आए विचार लिखते रहिये वही आप की विशेषता है। विचारों को नदी की तरह अबाध बहने दीजिए। वे किसे जिलाते हैं? किसे बहाते हैं? इस चिन्ता से मानसिक हलचल बाधित होगी।
नैनो पोस्ट सफल रही है , साम्यवादियों की उलझन मिटाने में ! आप लिख रहे हैं अभिव्यक्ति का जो तरीका है उसमे यह नैनो
ReplyDeleteपोस्ट छोटी पड़ रही है ! आपकी बात से सहमत नही हूँ ! बल्कि यह कहूंगा की माइक्रो/नैनो में अपनी पुरी बात कहने में आपने
महारत हासिल कर रखी है ! ज़रा हमारे सर पर भी हाथ रख दीजिये !
सही कहें तो आपकी माइक्रो पोस्ट हमें भी नहीं जमेगी क्योंकि मानसिक खुराक की एक तयशुदा डोज लेने की आदत पड़ गयी है. इससे कम में मजा नहीं आएगा.
ReplyDeleteनैनो का बंगाल से निकलना दुखद है. मुझे उस सभी से (खास तौर पर मजदूर वर्ग से) सहानुभूति है जिनके रोजगार के अवसर इस अवसरवादी राजनीति की भेंट चढ़ गए.
नानो पोस्ट = नावक के तीर!
ReplyDeleteपेट्रोल के दाम बढ़ रहे है तो कार तो नानी होनी चाहिए थी - क्या होगा सर्वहारा का? बाबा नागार्जुन के शब्दों में:
इसी पेट के अन्दर समा जाय सर्वहारा - हरी ॐ तत्सत!
नानो पोस्ट = नावक के तीर!
ReplyDeleteपोस्ट का साइज नैनो हो या भूतपूर्व अदनान सामी वाला, कोई फर्क नहीं पड़ता जी। बात होनी चाहिए। सो आप पर बोरा भर के हैं। जमाये रहिये। अब तो बिजनेस भास्कर भी आ लिया है। हिंदी में बहुत आर्थिक अखबार हो गये हैं। बस दुआ यह की जानी चाहिए कि ये सब चल जायें। हिंदी में आर्थिक अखबार आते हैं, पर चल नहीं पाते। देखिये अब क्या होता है।
ReplyDeleteज़मीन तो सारी भूमी सुधार के नाम पर बांट दी,अब उद्योग लगने नही हैं,बेरोज़गारी भी रोज़ बढ रही है।इसलिये बंगाल मे उद्योग लगना ज़रुरी है,ये मैं नही कह रहा हूं,प्रकाश करात ने रायपुर में कहा था। अब टाटा बंगाल को टाटा कर रह है,कहां से लाओगे रोज़गार। आपने सटीक लिखा है अब निंदा पुराण शुरु हो जयेगा।
ReplyDeleteनैनो वाली बात सही लिखी.
ReplyDeleteआप नैनो या माइक्रो लिखे आप अपनी बात कह जाते है ।
ReplyDeleteनैनो के बहाने बात बड़ी कर गये आप. वैसे व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि अपनी बात कहने के लिए जितने बड़े मे खुद की बात खुद को स्पष्ट हो जाये, बस उतना ही लिखना पर्याप्त है. किन्तु जिस तरह बातचीत में वैसे ही लेखन में, कोई दो शब्दों में अपनी बात समझा जाता है तो कोई १०० में भी नहीं कह पाता और इस हिसाब से लेखक के लेखन का एक लगभग स्टैन्डर्ड साईज सा बन जाता है. मात्र मेरी सोच है.
agree ।
ओर अब हमारी ममता सोनिया से मिलने आयी है ......नैनो के लिए नानी (छोटी) पोस्ट
ReplyDeleteआपकी माइक्रो पोस्ट से भी हम समझ गए जो आप कहना चाहते हैं....इसका मतलब छोटा हमेशा खोटा नहीं होता!
ReplyDeleteपोस्ट की लम्बाई पर ज्यादा ध्यान देंगे, तो परेशान हो जाएंगे। मेरी समझ से जो लिखना है, लिखते रहें, लम्बाई चौडाई पर ध्यान मत दें। जिसे पढना होगा, वह पढेगा ही और कमेंट भी करेगा।
ReplyDeleteसंक्षिप्तता वक्तृता की आत्मा है -यह किस प्रुमुख अंगरेजी के जुमले का अनुवाद है -मेरा माईक्रो जवाब !
ReplyDeleteसभी की बात यही कह रही है
ReplyDeleteआपसे सहमति की :)
- लावण्या
bye-bye hee hotee rahegee ? ya kabhee kisi ke haath bhee lagegee ?
ReplyDeleteआकार से बेहतर पोस्ट की खुराक लगी वैसे यदि खुराक बढ़िया है तो आकार कोई मायने नहीं रखता। ये मेरी सोच है।
ReplyDeleteयह माइक्रो पोस्ट है बड़ा मजेदार आइटम...। आइडिया आते ही मिनट भर में पोस्ट तैयार। आज मैने भी आजमाया है।
ReplyDeleteवैसे पोस्ट की लम्बाई कम ही ठीक है जितने से जरूरी बातें कवर हो जाएं। अनावश्यक विस्तार से आकर्षण चला जाता है। बिलकुल स्कर्ट की तरह ठीक-ठीक लम्बाई ही रखनी चाहिए।
माइक्रो और मैक्रो का गठबंधन है यह पोस्ट। गठबंधन स्थायी नहीं हो रहा आजकल। सो एक पर आइये। अखबार पाने के लिये आवाज उठाना पड़ेगी। जैसे आज समीरलालजी ने उठाई -हम जाग गये हैं कहकर!
ReplyDeleteभाई ज्ञान दत्त जी,
ReplyDeleteअपने यंहा तो पहले ही कहा गया
" देखन में छोटे लगे, घाव करत गंभीर."
फिर आपकी नानो पोस्ट भी तो समझने वालों के लिए बहुत कुछ कह जाती है.
keep it up
चन्द्र मोहन गुप्त
मुझे याद आ रहा है, कोई सवा साल पहले (जब मैं ने ब्लाग लिखना शुरु किया ही था, उन्हीं दिनों) आपने ब्लागियों को कुछ नेक सलाहें दी थीं उनमें से एक थी कि पोस्ट का आकार 250 शब्दों से अधिक का न हो तो उसकी पठनीयता और पाठक संख्या बड जाती है ।
ReplyDeleteअपने विस्तारित लेखन से मैं खुद परेशान हूं । 'एक पंक्ति' ने मुझे दुलराते हुए कहा था - 'आपकी पोस्ट में कण्टेण्ट तो होता है लेकिन बडी पोस्ट प्राय: ही अनदेखी रह जाती है ।'
आज फिर पोस्ट की 'साइज' पर बात चली है । मुझे यह देख कर अच्छा लग रहा है कि मुझ जैसे अदनान सामियों का हौसला बढाया जा रहा है ।
सही बात तो यही है कि पोस्ट न तो अनावश्यक छोटी हो और न ही अनावश्यक बडी । जहां बात पूरी हो जाए वहीं लग जाए पूर्ण विराम ।
सिर्फ सोचने की बात है कि जिन प्रदेशों ने रतन टाटा को नैनो का प्लांट लगाने के लिये अपने यहाँ बुलाने के लिये बाँहें फैलाई हैं, वहाँ के किसानों की आत्महत्यायों की खबरें कितनी हैं और नैनो को ठुकराने वाले पश्चिम बंगाल के किसानों की कितनी।
ReplyDeleteहंसु या ना हंसू, मे तो वापिस जाने लगा था . सोचा पुरानी पोस्ट पर पहुच गया हु , लेकिन धयान से देखने पर पता चला की यह तो माइक्रो पोस्ट हे
ReplyDeleteध्द( यह धन्यवाद माइक्रो मे लिखा हे)
लाज़बाब पाण्डेय जी नानो नहीं बहुत मोटा ( गुजराती में) आपकी पोस्ट
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी पधारे