कल मेरे एक मित्र और सरकारी सेवा के बैच-मेट मिलने आये। वे सरकारी नौकरी छोड़ चुके हैं। एक कम्पनी के चीफ एग्जीक्यूटिव अफसर हैं। वैसे तो किसी ठीक ठाक होटल में जाते दोपहर के भोजन को। पर बैच-मेट थे, तो मेरे साथ मेरे घर के बने टिफन को शेयर किया। हमने मित्रतापूर्ण बातें बहुत कीं। बहुत अर्से बाद मिल रहे थे।
मैने उनसे पूछा कि बदलते आर्थिक सिनारियो (परिदृष्य) में सबसे कठिन और चुनौतीपूर्ण काम उन्हें क्या लगता है? उत्तर था – अबसे कुछ समय पहले मार्केटिंग और लॉजिस्टिक मैनेजमेण्ट बहुत चैलेंजिंग था। अब अपने प्रॉजेक्ट्स के लिये फिनान्स का अरेंजमेण्ट काफी महत्वपूर्ण हो गया है। अचानक फूल-प्रूफ बिजनेस प्रस्ताव को भी पैसा पहले की तरह मिलना निश्चित नहीं रह गया है।
शायद इस छटंकी पोस्ट का आशय केवल स्टॉक-मार्केट की दशा से संबन्धित लग रहा है। वैसा नहीं है। मैं बात कर रहा हूं एक औद्योगिक और यातायात सम्बन्धी गतिविधि के प्रबन्धन की। उसका मन्दी से सम्बन्ध है। और मन्दी रुदन का विषय नहीं, अवसर का विषय है। |
उनमें और कई अन्य में जो अन्तर मुझे नजर आया; वह यह था कि बदले परिदृष्य को वे रुदन का निमित्त न मान कर नयी चुनौती मान रहे थे। शायद वही सही है। अर्थव्यवस्था के हर रोज के झटकों को चुनौती मान कर चलना और उसमें नये सुअवसर ढूंढ़ना – यही बेहतर सैन्य प्रबन्धन है।
अभी लग रहा है कि बिजनेस करने वाले अपने हाथ जला रहे हैं। यही सामान्य समझ है। पर ये लोग देर सबेर विजयी हो कर निकलेंगे। हम जैसे रुदनवादी रुदन करते समय काट देंगे!
संकट में जीवित रहने और अपना जीवन-स्तर बनाए रखने वाले ही विजेता कहलाएंगे।
ReplyDeleteअभी संकट की शुरुवात है और न्यू प्रोजेक्टस के लिए जल्दी. कुछ दिन बाद वो समय भी आ ही रहा है ताकि डाउन मार्केट में आप अपना गेस्टेशन पिरियड निकाल लें नये व्यापार का.
ReplyDeleteबहुत सारे स्कूल ऑफ थॉटस हैं इस मसले पर. एक जो आपने बताया वो तो प्रोमिनेन्ट है ही..मगर कितना कारगर..क्या पता!! क्या पता की स्थिति में है अभी अर्थ व्यवस्था!!!
संकट-ऊंकट तो सब ठीक है लेकिन आप रुदन काहे करते हैं?
ReplyDeleteकल की ही बात है, शेयर बाजार धडाम से नीचे आ गया, बगल में बैठे साथी A (नाम नहीं लूँगा A..B....C से काम चला रहा हूँ ) अपना सिर धुन रहे थे कि साला - वन थर्ड पे आ गया अपुन तो, वहीं बगल में दूसरे साथी B कह रहे थे - यार अभी ले लेते हैं, इसके बाद मार्केट का और नीचे जाना मुश्किल लग रहा है। तब साथी C ने कहा - आज Black Friday है, Don't be Foolish......Black Monday is possible......so don't buy any stock. लेकिन तभी हमने साथी A के सक्रीन पर देखा, साथी A ने चुपचाप वह शेयर बेच दिये थे - समय था तीन- सवा तीन बजे का....ट्रेडिंग टाईम खत्म होने का समय नजदीक आ रहा था.....कि तभी साथी C ने किसी और बैंक के शेयर खरीद लिये जो कि शेयर न खरीदने के लिये Black day का तर्क दे रहे थे.....मैं वहाँ मुकदर्शक बन कर सब कुछ Observe कर रहा था... तभी क्यूबिकल के दूसरी ओर बैठे साथी D की आवाज सुनाई पडी - ओ शिट् ब्लडी टाईम अप हो गया - अब हम समझ नहीं पा रहे थे कि वह शेयर बेचने जा रहा था कि खरीदने। वैसे शेयर मार्केट की सारी सच्चाई इसी शब्द में छुपी है -...टाईम अप.....किसी शेयर को टाईम पर बेच दिये तो राजा....न बेच सके और कीमत नीचे आ गई तो कंगाल....पर हाँ टाईम फैक्टर बराबर काम कर रहा है। लोगों के बीच शेयर बेचने खरीदने पर यह रूदनावली जारी है पर मुझे ऐसे रूदन से एक प्रकार से तसल्ली ही मिल रही है कि मैं इस लत में नहीं पड सका। मैं ऐसे रूदन को अपने लिये एक प्रकार से प्रेरणा ही मान रहा हूँ जो मुझे जुए जैसी किसी चीज के समकक्ष आने से दूर रख रही है।
ReplyDeleteहर रूदन बेकार नहीं होता।
"अर्थव्यवस्था के हर रोज के झटकों को चुनौती मान कर चलना और उसमें नये सुअवसर ढूंढ़ना – यही बेहतर सैन्य प्रबन्धन है।"
ReplyDeleteसही कहा आपने ! आज के युग में अर्थ प्रबंधन किसी सैन्य प्रबंधन से कम नही है ! आपका इसको सैन्य प्रबंधन का संबोधन देना मुझे बहुत सटीक लगा ! कल जिस तरह की मारकाट अर्थ की दुनिया में मची , उसका प्रबंधन करने में सिपह सालार जुटे हुए हैं ! आ. ज्ञान जी, सैनिको के लिए रुदन का कोई माने नही है ! वो रोना नही जानते ! और इसीलिए मैं आपका ये संबोधन सही मानता हूँ ! आपने मेरे शब्दकोश में एक नई जानकारी जोड़ दी ! जो रोने लग जाए वो कैसा सैनिक ?
अर्थ की दुनिया हो या युद्ध की ! जीवन में एक अनुमान लेकर चलना पङता है ! अगर आपका अनुमान ग़लत बैठ गया तो आप असफल हो जायेंगे और आपका अनुमान सही बैठ गया तो आप सफल हो जायेंगे ! चाहे इसे आप दूरदृष्टि कह ले या भविष्यदृष्टा कह लीजिये ! पता नही क्यो ? मेरे जीवन में यही थ्योरी समग्र रूप से आज तक काम करती आई है ! खैर .... सर जी ये तो चलता ही रहेगा ! फिलहाल तो आपको और भाभीजी को दीपावली की प्रणाम ! और बच्चो को प्यार ! स्नेह बनाए रखियेगा !
भैया हमें तो इस शेयर वेयर के बारे में कुछ अता पता नहीं -इससे कोसो दूर रहता हूँ !
ReplyDeleteबिज़नस करने वाले तो कोई न कोई उपाय निकाल ही लेंगे। वित्त-शित्त सब ठीक है मगर जब कोई सीमित प्राकृतिक संसाधन ठप्प पड़ेगा तब कोई उससे उपजने वाली मंदी को शायद न रोक पाए।
ReplyDeleteपरिद्रश्य कोई भी हो वित्तीय जुगाड़ की जरूरत कव नही रही
ReplyDeleteआपकी किस्मत में नहीं थी, वरना टिप्पणी तो कर दी थी, ...नेट ही चला गया.
ReplyDeleteइस मामले में हम भी अरविन्द जी की ही श्रेणी में हैं. लेकिन दूरी शायद उतनी नहीं, कुछ कोस कम है.
ReplyDeleteहर चुनौती एक सुअवसर भी तो हो सकती है.आभार.
ReplyDeleteकिसी समय 97% आयकर हुआ करता था, तब भी व्यवसायियों ने देश की अर्थव्यवस्था को सम्भाल लिया था, अभी तो हालात उतने बूरे भी नहीं है.
ReplyDeleteसंकट में ही असल काबिलियत की परीक्षा होती है। यूं तो नार्मल टाइम में नार्मल काम हर कोई करके निकल जाता है। सेना में जो लोग किसी युद्ध से नहीं गुजरे होते हैं, उनके पास बताने के लिए कुछ खास नहीं होता। वरना युद्ध में गया खानसामा तक बताता है कि किस तरह से उसने दुश्मन को निपटाया था। मेरे हिसाब से यह वह समय है कि जब कई लोग अपने बेहतर भविष्य की नींव रख रहे हैं, कायदे के शेयरों में निवेश करके।
ReplyDeleteaap ka blog bhoot sunder he.
ReplyDeleteaap kabhi mere blog per bhi aaye or pade.
blog ko sunder banane ke liye kuch tips de.
आपने सही अंकित किया-
ReplyDeleteबदले परिदृष्य को रुदन का निमित्त न मान कर नयी चुनौती मानना सही सोच है।
भाईयो ना हमे जल्दी से अमीर बनाना है ना ही गरीब इस लिये अपून मस्त है, ओर इन शेयर ओर मेयर के झगडो से, बुजुर्गो की नसीयत पर चलते हैं.
ReplyDeleteआपको को स्वपरिवार दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
मंदी के साथ साथ मंदी का जो भय लोगों के मन में घुस गया है वह अधिक डुबा रहा है । शेयर मारंकेट का स्वभाव ही ऊपर नीचे जाना है । बहुत से लोग इसमें भी अवसर खोज लेंगे ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
bhadhiya
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुबकामनाएं
ये तो बिल्कुल सही बात है... पर हर जगह अफरा तफरी का माहौल है.
ReplyDeleteऐसे में चुनौती समझ के काम करने वाला निश्चित ही विजयी होगा. हर समस्या का समाधान मिलता है... बस पैनिक ही सब कुछ बरबाद कर देता है. कल अमेरिकी फ्यूचर मार्केट खुलते ही बंद हो गया... और हमारे एक डायरेक्टर की मेल आई की ऐसे हालात में इसे लोग कहते है 'The Grand Piano has just been pushed out of 12th floor window'.
उसके पहले भारतीय बाजार, जीएम और क्राइसलर..., बोनस वापस लेने की मांग, कंपनी को घाटा इत्यादि
शाम को एक रोयल बैंक ऑफ़ स्कॉट्लैंड (जिसे हाल ही में ब्रिटिश सरकार ने बचाया) में कार्यरत मित्र का फ़ोन आया... हमने देखा की वर्स्ट केस में भी हम कितने काम कर सकते हैं... (वो शायद होस्टल में कंपनी खोलने के जो अरमान थे उसे पूरे होने के लिए ही शायद ये सब हो रहा हो.) ऐसे कई सारे विकल्प मिले... और फैसला हुआ की 'We are in a very interesting industry and there can't be a better time than this to be in this industry' !
मेरी व्यक्तिगत सोच है कि मौजूदा अर्थव्यवस्था के संकट से हम सबसे जल्दी निकलेंगे क्योंकि :
ReplyDelete१. हम भले ही जितना निर्यात का हल्ला कर लें, लेकिन हमारी अर्थव्यवस्था निर्यातोन्मुख नही है।
२. हमारी डोमेस्टिक डिमांड ही हमे सम्भालेगी।
३. कच्चे तेल के दाम, नीचे गिरने से हमारी अर्थव्यवस्था को राहत मिलेगी।
४. शेयर मार्केट, अर्थव्यवस्था को मापने का पैमाना नही है, इसलिए शेयर मार्केट को उसके हाल पर छोड़कर, हमे बाकी चीजों पर ध्यान देना चाहिए।
५. हमारा बैंकिग सिस्टम, पूरी तरह से ’इन्सयूलेटेड’ तो नही है, लेकिन काफी कुछ नियंत्रित है। इसका फायदा हमे मिलेगा।
६. हमे इस संकट को चुनौती मानकर चलना चाहिए, क्योंकि पूरी दुनिया मे इस संकट से उबरने के लिए दो ही देश सक्षम है, चीन और भारत। चीन की अर्थव्यव्स्था निर्यातोन्मुख है, हमारी आयात-निर्यात पर बैलेंसड है।
कुछ आशंकाए भी है:
१. हमारे वित्तीय प्रबंधक(नेता) गलत बयानबाजी ना करें।
२. लोगो मे अविश्वास ना फैले, नही तो पैनिक क्राइसेस आ सकता है।
३. खर्चों मे कटौती के कारण कुछ जॉब कट भी हो सकते है, जिसका कुछ विपरीत प्रभाव भी पड़ेगा।
कुल मिलाकर, भारत के लिए स्थिति उतनी खराब नही दिखती, जितनी दूसरे देशों के लिए।
कभी विस्तार से इस पर अपने ब्लॉग पर लिखेंगे।
हम भी अरविन्द मिश्राजी जैसे हैं। शेयर बाज़ार के बारे
ReplyDeleteमें कुछ नहीं जानते।
हम जैसों के लिए स्थिति चिंताजनक है।
Outsourcing का व्यवसाय में लगा हूँ।
USA की बुरी हालत से हम भी प्रभावित होते हैं।
अगले तीन महीने हमारे लिए critical होंगे।
Somehow swim or sink की स्थिति आ पहुँची है।
कई उपायों के बारे में सोच रहा हूँ।
देखते हैं हमारे भाग्य में क्या लिखा है।
सबको दिवाली के अवसर पर हमारी शुभकामनाएं।
यह सचमुच में विडम्बनापूर्ण आश्चर्य ही है कि जो देश ,खेती-किसानी पर जिन्दा है वहां सेंसेक्स राष्टीय मुद्दा बना हुआ है जिसमें देश की चार प्रतिशत जनता भी शरीक नहीं है ।
ReplyDelete'मन्दी, रुदन का विषय नहीं, अवसर का विषय है' - सुन्दर उक्ति ।
बात इतनी सीधी सम्भवतः है नहीं।पश्चिमी दुनियाँ में पिछले कुछ दिनों से यह कहा जा रहा था कि यह अमेरिका के विरुद्ध आर्थिक युद्ध है। इस्लामिक इनवेस्टमेन्ट फाउण्डेशन जैसी संस्थाओं का विगत २/३ वर्षों में शरिया कानून के आधार पर एक बड़ा अर्थतंत्र बना लेना भी शायद एक कारण हो।लेकिन इधर भारतीय राजनीति में भ्रष्ट नेंताओं के विदेशी बैक खातों को लेकर कोई भी राजनीतिक दल चिल्ल पों नहीं मचा रहा है विशेषकर हमारे साम्यवादी। जबकि ९/११ के बाद में अमेरिका के दबाव और प्रभाव के चलते स्विस बैक एकाउन्ट ३१जुलाई २००८ से अब सीक्रॆट नहीं रहे हैं। पिछले २/३ वर्षॊं से भ्रष्ट प्रतिष्ठों द्वारा यह धन स्विस बैक से निकाला जा रहा था और वाया मारिशस तथा सिंगापुर भारत में प्रवेश पी नोट के माध्यम से पा रहा था जिसके कारण लोगों के पोर्ट फोलियोस् का न केवल पेट फूल गया था वरन सेन्सेक्स भी आप्राकृतिक रुप से २१००० पाइन्ट की सीमा पार करनें लगा था।पी(पार्टिसिपेटरी) नोट के माध्यम से आनें वाले धन के स्रोत के बारे में बताना आवश्यक नहीं होता यदि वह ९० दिनों के अन्दर वापस ले जाया जायॆ। गूगल सर्च में economic war aginst america ड़ालिये फिर ड़्ररिये ड़राइये या मौज लीजिए।
ReplyDeleteसिर्फ आशावाद के भरोसेपर ही कह रहा हूं कि जल्दी ही संकट दूर होगा अन्यथा वित्तीय समझ न के बराबर है। प्रभु जैसे दिन दिखाते हैं वैसे देखते आए हैं अभी तक....
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट
दीपावली मुबारक हो और नया साल मँगलमय हो !
ReplyDeleteपरिवार के सभी को त्योहार पर शुभकामनाएँ ~~~
और माँ लक्ष्मी सब पर कृपा करेँ :)
स स्नेह,
- लावण्या
शेयर के बारे में मेरा ज्ञान भी शून्य के आसपास ही मंडराता है। इसीलिए कभी आजमाने की हिम्मत नहीं पड़ी। :)
ReplyDelete~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
इस पोस्ट एवं उस पर जितेन्द्र भाई की टिप्पणी, मेरे चिंतन के लिए सार्थक ।
ReplyDeleteआभार ।
दीपावली की हार्दिक शुभकामनांयें ।
हमेशा की तरह प्रवाहित व्यंग मजेदार
ReplyDeleteसुखमय अरु समृद्ध हो जीवन स्वर्णिम प्रकाश से भरा रहे
दीपावली का पर्व है पावन अविरल सुख सरिता सदा बहे
दीपावली की अनंत बधाइयां
प्रदीप मानोरिया
बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आया और तारो ताजा हो गया , आप और आपके समस्त पारिवारिक सदस्यों को दीपावली की अनंत शुभकामनाएं !
ReplyDeleteजीतेन्द्र भगत जी की टिप्पणी सार्थक है....बस नीति नियंताओं के नीयत और कार्यों की परीक्षा की घड़ी है.
ReplyDeleteदीप पर्व की शुभकामनाएं !! आप सुख, समृद्धि और उन्नति के सोपान तय करें.
"अर्थव्यवस्था के हर रोज के झटकों को चुनौती मान कर चलना और उसमें नये सुअवसर ढूंढ़ना – यही बेहतर प्रबन्धन है." से सहमत हूँ परन्तु बदलते घटनाक्रमों ने कईओ को रुला दिया है .
ReplyDeleteदीवाली पर्व की हार्दिक शुभकामना .
आपको दीपावली की हार्दिक शुभकमानांयें
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति!!आभार
हमारी दीवाली का तो दीवाला निकल गया, सोचा कि बाजार बहुत गिर गया है मौका अच्छा है चलो घुस लेते हैं । एक अच्छा निवेश किया ९४० के निवेश पर अगले ही दिन २२० का फ़ायदा जो अभी तक कन्सिस्टेंट है । दूसरा निवेश लगभग २९०० का किया जिस पर पहले दिन ९० का फ़ायदा और ताजा स्थिति तक ६०० का घाटा :-(
ReplyDeleteसोच रहे थे कि ३५० बन जाते तो दौडने के लिये GPS वाली घडी ले लेते जो हमारी रफ़्तार/दूरी/हृदयगति और पता नहीं क्या क्या बताती रहती । अभी तो उम्मीद नहीं देख रही है :-( १८ जनवरी (ह्यूस्टन मैराथन) में अभी भी २ महीने से ज्यादा बचा है देखो इलेक्शन के बाद बजार सुधरे तो कुछ उम्मीद है ।
वरना हमने भी "लांग टर्म इन्वेस्टर" का तमगा लगा लिया है और हंसते घूमते हैं कि घाटा तभी है जब कैश करा लो वरना तो कागजी घाटा ही है, आज नहीं तो अगले साल कम्पनी फ़ायदा देगी ही और कोई जल्दी तो है नहीं ।
लेकिन कुछ लोगों का दीवाला निकल गया है विशेषकर जो अपनी नौकरी से सेवामुक्त होने की सोच रहे थे । बजार से गिरने से बहुतों का रिटायरमेंट फ़ंड ३ महीने पहले के मुकाबले १/५ तक रह गया है और वो चाहकर भी रिटायर नहीं हो सकते । कल अपने एडवाईजर से बात हुयी और उन्होने बताया कि उनके पोर्टफ़ोलियो को १ मिलियन का घाटा हुआ है ।
आगे आगे देखिये होता है क्या, बस चुप्पी साधे बैठे हैं ।
हमारी दीवाली का तो दीवाला निकल गया, सोचा कि बाजार बहुत गिर गया है मौका अच्छा है चलो घुस लेते हैं । एक अच्छा निवेश किया ९४० के निवेश पर अगले ही दिन २२० का फ़ायदा जो अभी तक कन्सिस्टेंट है । दूसरा निवेश लगभग २९०० का किया जिस पर पहले दिन ९० का फ़ायदा और ताजा स्थिति तक ६०० का घाटा :-(
ReplyDeleteसोच रहे थे कि ३५० बन जाते तो दौडने के लिये GPS वाली घडी ले लेते जो हमारी रफ़्तार/दूरी/हृदयगति और पता नहीं क्या क्या बताती रहती । अभी तो उम्मीद नहीं देख रही है :-( १८ जनवरी (ह्यूस्टन मैराथन) में अभी भी २ महीने से ज्यादा बचा है देखो इलेक्शन के बाद बजार सुधरे तो कुछ उम्मीद है ।
वरना हमने भी "लांग टर्म इन्वेस्टर" का तमगा लगा लिया है और हंसते घूमते हैं कि घाटा तभी है जब कैश करा लो वरना तो कागजी घाटा ही है, आज नहीं तो अगले साल कम्पनी फ़ायदा देगी ही और कोई जल्दी तो है नहीं ।
लेकिन कुछ लोगों का दीवाला निकल गया है विशेषकर जो अपनी नौकरी से सेवामुक्त होने की सोच रहे थे । बजार से गिरने से बहुतों का रिटायरमेंट फ़ंड ३ महीने पहले के मुकाबले १/५ तक रह गया है और वो चाहकर भी रिटायर नहीं हो सकते । कल अपने एडवाईजर से बात हुयी और उन्होने बताया कि उनके पोर्टफ़ोलियो को १ मिलियन का घाटा हुआ है ।
आगे आगे देखिये होता है क्या, बस चुप्पी साधे बैठे हैं ।
आपको दीपावली की हार्दिक शुभकमानांयें
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति!!आभार
हम भी अरविन्द मिश्राजी जैसे हैं। शेयर बाज़ार के बारे
ReplyDeleteमें कुछ नहीं जानते।
हम जैसों के लिए स्थिति चिंताजनक है।
Outsourcing का व्यवसाय में लगा हूँ।
USA की बुरी हालत से हम भी प्रभावित होते हैं।
अगले तीन महीने हमारे लिए critical होंगे।
Somehow swim or sink की स्थिति आ पहुँची है।
कई उपायों के बारे में सोच रहा हूँ।
देखते हैं हमारे भाग्य में क्या लिखा है।
सबको दिवाली के अवसर पर हमारी शुभकामनाएं।
ये तो बिल्कुल सही बात है... पर हर जगह अफरा तफरी का माहौल है.
ReplyDeleteऐसे में चुनौती समझ के काम करने वाला निश्चित ही विजयी होगा. हर समस्या का समाधान मिलता है... बस पैनिक ही सब कुछ बरबाद कर देता है. कल अमेरिकी फ्यूचर मार्केट खुलते ही बंद हो गया... और हमारे एक डायरेक्टर की मेल आई की ऐसे हालात में इसे लोग कहते है 'The Grand Piano has just been pushed out of 12th floor window'.
उसके पहले भारतीय बाजार, जीएम और क्राइसलर..., बोनस वापस लेने की मांग, कंपनी को घाटा इत्यादि
शाम को एक रोयल बैंक ऑफ़ स्कॉट्लैंड (जिसे हाल ही में ब्रिटिश सरकार ने बचाया) में कार्यरत मित्र का फ़ोन आया... हमने देखा की वर्स्ट केस में भी हम कितने काम कर सकते हैं... (वो शायद होस्टल में कंपनी खोलने के जो अरमान थे उसे पूरे होने के लिए ही शायद ये सब हो रहा हो.) ऐसे कई सारे विकल्प मिले... और फैसला हुआ की 'We are in a very interesting industry and there can't be a better time than this to be in this industry' !
मेरी व्यक्तिगत सोच है कि मौजूदा अर्थव्यवस्था के संकट से हम सबसे जल्दी निकलेंगे क्योंकि :
ReplyDelete१. हम भले ही जितना निर्यात का हल्ला कर लें, लेकिन हमारी अर्थव्यवस्था निर्यातोन्मुख नही है।
२. हमारी डोमेस्टिक डिमांड ही हमे सम्भालेगी।
३. कच्चे तेल के दाम, नीचे गिरने से हमारी अर्थव्यवस्था को राहत मिलेगी।
४. शेयर मार्केट, अर्थव्यवस्था को मापने का पैमाना नही है, इसलिए शेयर मार्केट को उसके हाल पर छोड़कर, हमे बाकी चीजों पर ध्यान देना चाहिए।
५. हमारा बैंकिग सिस्टम, पूरी तरह से ’इन्सयूलेटेड’ तो नही है, लेकिन काफी कुछ नियंत्रित है। इसका फायदा हमे मिलेगा।
६. हमे इस संकट को चुनौती मानकर चलना चाहिए, क्योंकि पूरी दुनिया मे इस संकट से उबरने के लिए दो ही देश सक्षम है, चीन और भारत। चीन की अर्थव्यव्स्था निर्यातोन्मुख है, हमारी आयात-निर्यात पर बैलेंसड है।
कुछ आशंकाए भी है:
१. हमारे वित्तीय प्रबंधक(नेता) गलत बयानबाजी ना करें।
२. लोगो मे अविश्वास ना फैले, नही तो पैनिक क्राइसेस आ सकता है।
३. खर्चों मे कटौती के कारण कुछ जॉब कट भी हो सकते है, जिसका कुछ विपरीत प्रभाव भी पड़ेगा।
कुल मिलाकर, भारत के लिए स्थिति उतनी खराब नही दिखती, जितनी दूसरे देशों के लिए।
कभी विस्तार से इस पर अपने ब्लॉग पर लिखेंगे।
संकट में ही असल काबिलियत की परीक्षा होती है। यूं तो नार्मल टाइम में नार्मल काम हर कोई करके निकल जाता है। सेना में जो लोग किसी युद्ध से नहीं गुजरे होते हैं, उनके पास बताने के लिए कुछ खास नहीं होता। वरना युद्ध में गया खानसामा तक बताता है कि किस तरह से उसने दुश्मन को निपटाया था। मेरे हिसाब से यह वह समय है कि जब कई लोग अपने बेहतर भविष्य की नींव रख रहे हैं, कायदे के शेयरों में निवेश करके।
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