शिवकुमार मिश्र ने ग्रेटर फूल्स थियरी की बात की। मुझे इसके बारे में मालुम नहीं था। लिहाजा, एक फूल की तरह, अपनी अज्ञानता बिन छिपाये, शिव से ही पूछा लिया।
ग्रेटर फूल थियरी, माने अपने से बेहतर मूर्ख जो आपके संदिग्ध निवेश को खरीद लेगा, के मिलने पर विश्वास होना।
मेरी समझ में अगर एक मूर्ख है जो अपने से ग्रेटर मूर्ख को अपना संदिग्ध निवेश बेच देता है, तो फिर बेचने पर अपना मूर्खत्व समेट अपने घर कैसे जा सकता है? जबकि वह परिभाषानुसार मूर्ख है। वह तो फिर निवेश करेगा ही!
एक मूर्ख अपना मूर्खत्व कब भूल कर निर्वाण पा सकता है?
एक मूर्ख और उसके पैसे में तलाक तय है। और यह देर नहीं, सबेर ही होना है!
खैर; हमें जी.एफ.टी. की याद तब आनी चाहिये जब स्टॉक मार्केट उछाल पर हो।
शायद GFT Theory का फंडा ही यही है कि जब मार्केट उछाल पर हो,तो उसकी याद कभी नहीं आती, ठीक उस भगवान की तरह जिसे सुख के समय कम याद किया जाता है....और जब दुख आता तो हम उसे बार-बार याद करते हैं ।
ReplyDeleteहाय रे GFT :)
नहीं ज्ञान जी ,भारतीय वांग्मय साक्षी हैं लाक्स्मी की कृपा उल्लुओं पर ही होती है !
ReplyDeleteoney makes the whole world go around ..
ReplyDelete@ अरविन्द जी...
ReplyDeleteलक्ष्मी की कृपा उल्लू पर कभी नहीं रही. वे तो उल्लू के ऊपर बैठ जाती हैं. कृपा तो तब हो अगर उल्लू के आस-पास बैठें.
वाकई, लाख टके की बात है, लक्ष्मी उल्लुओं पर बैठती है आस पास नहीं। लेकिन श्रमोत्पन्ना कहीं नहीं जाती।
ReplyDeleteसामयिक लघु पोस्ट।
ReplyDeleteकल ही rediff.com पर किसी पाठक की टिप्पणी पढ़ी थी।
अंग्रेज़ी में लिखी हुई टिप्पणी का अनुवाद पेश है।
एक चतुर आदमी ने गाँव जाकर लोगों से कहा कि वह बन्दर खरीदना चाहता है और हर बन्दर के लिए १० रुपये देने के लिए तैयार है।
उस गाँव में कई सारे बन्दर थे और गाँववालों ने कुछ ही दिनों में कई बन्दरों को पकड़्कर १० - १० रुपये में इस चतुर आदमी के हाथ बेच दिए।
जब बन्दर की सप्प्लाइ कम होने लगी, तो चतुर आदमी ने घोषणा की कि आज से हर बन्दर के लिए २० रुपये देने के लिए तैयार हूँ।
लोगों ने अधिक मेहनत करके, यहाँ-वहाँ ढूँढ-ढूँढकर बचे हुए बन्दर भी पकड़कर २० रुपये में बेच दिए। कुछ ही दिनों में उस इलाके में एक भी बन्दर नहीं बचा।
तब उस आदमी अचानक हर बन्दर का पचास रुपये कीमत लगाकर कुछ दिनों के लिए गाँव से बाहर चला गया और इस धन्धे को अपने एक सहायक को सुपुर्द कर दिया।
सहायक ने अपने मालिक की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर गाँव वालों से कहा कि क्यों न आप लोग हमारे पास के बन्दरों को ३५ रुपये में खरीदकर, उस अमीर आदमी को उसके लौटने पर ५० रुपये में बेचें?
गाँव वाले धड़ाधड ३५ रुपये में बन्दर खरीदने लगे और उस अमीर की वापसी का इन्तज़ार में बैठे थे।
वह अमीर आदमी ने फ़िर कभी उस गाँव में कदम नहीं रखा।
गाँव फ़िर बन्दरों से भर गया।
यह है आज की स्टॉक मार्केट की स्थिति।
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इस विषय में मेरा ज्ञान और अनुभव शून्य के बराबर है लेकिन मुझे लगता है की बात कुछ कुछ समझ में आने लगी है।
सोचता हूँ की यदि बन्दर के स्थान पर "गाय" होती तो स्थिति भिन्न होती।
गाय से दूध मिलता है, बन्दर किस काम का?
सोच समझकर अपनी पूँजी लगानी चाहिए।
आदरणीय विश्वनाथ जी से सहमत हूं।मुझे भी इस विषय की बारीकियां पता नही मगर इतना जानता हूं कि सांड ,नही गाय दूध देती है।सांड को कितना भी खिलाओ-पिलाओ वो दुध नही देगा,लात ही मारेगा।
ReplyDeleteमेरा ज्ञान शून्य है इस मामले में सो मैं इंवेस्ट भी नहीं करता हूं.. हां इस पोस्ट और इस पर आये कमेंट्स से बहुत कुछ सीखने को मिला..
ReplyDeleteलेकिन जब जरूरत से ज्यादा लोग बेवकूफ़ाना हरकत करके पूरी अर्थव्यवस्था का बंटाढार कर दें तो कैपिटलिस्टिक देश में सरकारें सबसे बडी बेवकूफ़ बनकर अन्त में बेल-आऊट पैकेज के जरिये अर्थव्यवस्था को बचाने का प्रयास करती हैं ।
ReplyDeleteअमेरिका के शेयर बाजार में लांग टर्म (>२ साल) इंवेस्ट करने का सुनहरा मौका है । पार्टनरशिप करेंगे :-)
खैर; हमें जी.एफ.टी. की याद तब आनी चाहिये जब स्टॉक मार्केट उछाल पर हो।
ReplyDeleteआपने स्वयं ही बेहतर जवाब दिया है ! लेकिन ये उछाल पर जब होता है तब शेयर मार्केट के चैम्पियन उस समय आदरणीय G Vishwanath जी का फार्मूला अपना लेते हैं ! मान लीजिये सेंसेक्स २१००० था, वो लेवल उछाल का था ! वहाँ बन्दर बेच देने चाहिए थे ! पर २१ हजार के बाद चैम्पियनों ने बहुत जल्दी ३५ हजार तक पहुंचाने का लालीपॉप थमा दिया ! तो यहाँ उछाल का फ़िर से इंतजार करो ! तेजी में ये उछाल के टार्गेट बढ़ते ही जाते हैं ! कभी किसी इन्वेस्टर को मैंने यहाँ से निकलते नही देखा ! और स्पेक्युलेटर की तो आप जाने ही दीजिये ! आप मेरी बात को अन्यथा नही ले मैं हर्षद मेहता के समय से इस दुनिया का साक्षी हूँ ! बहुत थोड़े से लोग हैं कमाने वाले , ज्यादातर को मैंने तो डूबते ही देखा है !
इतना सबकुछ जानने-समझने के बाद भी लोग जुए के इस आधुनिक संस्करण के चपेट में आने से नहीं बच पाते।
ReplyDeleteशेयर खरीदने और जुआ खेलने में फर्क जब मिट जाता है, बंटाधार होता है.
ReplyDeleteपढ़ रहा हूँ. सीख रहा हूँ.
ReplyDeleteसत्य वचन !
ReplyDeleteदेख रहै है इस दुनिया की नयी रीत..... सुना तो था मेहनत से कमाया धन ही फ़लता है.... लेकिन यहां मेहनत का धन भी गवां रहै है ज्यादा के लालच मै....हमे तो G Vishwanath जी की कहानी एक दम सही लगी.
ReplyDeleteधन्यवाद
जुआ और निवेश में फर्क होता है। जो नहीं करते हैं, मरते हैं। रहा सवाल बेवकूफों का तो इस देश में बहुत आसानी से बहुत इफरात में मिलते हैं। एक से एक वैराइटी के। इस देश में चोर कंपनियों का भविष्य उज्जवल है। पर जितनी मेहनत से चोरी होती है, उतनी मेहनत से ईमान का काम भी हो सकता है। यह बात समझाना जरुरी है।
ReplyDeleteजानकारी न होने से में कई शेअर धारक फंस जाते है . सांप और नेवले की कहावत को सच कर रहा है. मेहनत से की गई कमाई को लालच में फसकर शेअर में नही लगना चाहिए . वार्निंग जोखिम बाबत लिखी रहती है पर पढ़े लिखे भी मेहनत की कमाई को लालच में फंसकर डूबा रहे है . कियो को हार्ट अटेक आना शुरू हो गए है . मेरे पड़ोसी आज ही अस्पातल में दाखिल हो गए है . धन्यवाद्.
ReplyDeleteG Vishwanath ने अपनी टिप्पणी में बंदरों की कहानी से शेयर बाजार को क्या खूब समझाया है। मजा आ गया।
ReplyDeleteवैसे जब तक बंदर जीवित हैं, मूर्ख बनाने वाले आते रहेंगे और लोग मूर्ख बनते रहेंगे...
आपकी पोस्ट ने कहावत याद दिला दी - जब तक एक मूर्ख जिन्दा है, बुध्दिमान भूखों नहीं मरेगा ।
ReplyDeleteआपने सही समझाया. आप Nick Leeson and bearings bank fall, LCTM, Worldcom Fall, Lehman Failure इत्यादि के बारे में पढ़ें बड़ी रोचक लगेगी. मार्केट में अगर हमेशा जो बेचने वाले और खरीदने वाले ना हों तो चलेगा ही नहीं !
ReplyDeleteहर समय पर अगर कोई बेचता है तो कोई खरीदार होना आवश्यक है. कुछ किताबें तो बड़ी रोचक हैं इस अजीबो गरीब वित्तीय दुनिया की: e.g.
- When Genius Failed
- fooled by Randomness
- Barbarians at the gate
- The Rouge Trader
- Liar's Poker
etc