Thursday, July 24, 2008

ब्लॉगिंग की पिरिक (Pyrrhic) सफलता


Pyrrhus
एपायरस के पिरस - विकीपेडिया में

संसद में सरकार की जीत को कई लोगों ने पिरिक जीत बताया है। अर्थात सरकार जीती तो है, पर हारी बराबर!

मानसिक कण्डीशनिंग यह हो गयी है कि सब कुछ ब्लॉगिंग से जोड़ कर देखने लगा हूं। और यह शब्द सुन/पढ़ कर कपाट फटाक से खुलते हैं:

मेरा ब्लॉगिंग का सेंस ऑफ अचीवमेण्ट पिरिक है।

पिरस (Pyrrhus) एपायरस का सेनाप्रमुख था। रोम का ताकतवर प्रतिद्वन्दी! वह रोमन सेना के खिलाफ जीता और एक से अधिक बार जीता। पर शायद इतिहास लिखना रोमनों के हाथ में रहा हो। उन्होंने अपने विरोधी पिरस की जीत को पिरिक (अर्थात बहुत मंहगी और अंतत आत्म-विनाशक - costly to the point of negating or outweighing expected benefits) जीत बताया। इतिहास में यह लिखा है कि पिरस ने एक जीत के बाद स्वयम कहा था – “एक और ऐसी जीत, और हम मानों हार गये!पिरिक जीत

मैं इतिहास का छात्र नहीं रहा हूं, पर पिरस के विषय में बहुत जानने की इच्छा है। एपायरस ग्रीस और अल्बानिया के बीच का इलाका है। और पिरस जी ३१८-२७२ बी.सी. के व्यक्ति हैं। पर लगता है एपायरस और पिरस समय-काल में बहुत व्यापक हैं। और हम सब लोगों में जो पिरस है, वह एक जुझारू इन्सान तो है, पर येन केन प्रकरेण सफलता के लिये लगातार घिसे जा रहा है।

मिड-लाइफ विश्लेषण में जो चीज बड़ी ठोस तरीके से उभर कर सामने आती है – वह है कि हमारी उपलब्धियां बहुत हद तक पिरिक हैं! ब्लॉगिंग में पिछले डेढ़ साल से जो रामधुन बजा रहे हैं; वह तो और भी पिरिक लगती है। एक भी विपरीत टिप्पणी आ जाये तो यह अहसास बहुत जोर से उभरता है! मॉडरेशन ऑन कर अपना इलाका सीक्योर करने का इन्तजाम करते हैं। पर उससे भला कुछ सीक्योर होता है?! अपने को शरीफत्व की प्रतिमूर्ति साबित करते हुये भी कबीराना अन्दाज में ठोक कर कुछ कह गुजरना – यह तो हो ही नहीं पाया।

आपकी ब्लॉगिंग सफलता रीयल है या पिरिक?!

मैं तो लिखते हुये पिरस को नहीं भूल पा रहा हूं!

29 comments:

  1. यूँ तो जीवन के हर क्षेत्र में पूर्ण इमानदारी के साथ देखने पर हम पिरिकिया ही जा रहे हैं. जहाँ हैं वो क्यूँ हैं, क्या डिजर्व करते हैं, क्या पाते हैं, क्या सोचते हैं...भयंकर पिरिकन का शिकार हो गया हूँ आपको पढ़कर.

    अब कोई डॉक्टर ही पिरियासिस की दवा बताये तो बाहर निकलें.

    उसी में हम भी पिरस को नहीं भूल पा रहे हैं मानो वो ही पिरियासिस के वायरस हों.

    ReplyDelete
  2. pyrrhic नहीं है. कम से कम वह बातें जो हमें अन्दर तक बैचैन किए रहती हैं, उन्हें शेयर करने का प्लेटफोर्म मिल जाता है. कुंठा अन्दर दबी नहीं रह पाती. परजेटिव है, इस अर्थ में सफल है. अपने मन की उमस निकली जा सकती है, जिससे हमारा दिमाग ठंडा रहेगा. आजीविका के और भी बहुत साधन हैं, थोड़ा सा समय और श्रम देकर मन की शान्ति हासिल कर ली तो क्या इसे पेरीक कहेंगे?

    ReplyDelete
  3. आपकी ब्लॉगिंग सफलता रीयल है या पिरिक?!

    यह न तो पिरिक ना रीयल -यह आभासी है -आभासी दुनिया का भरम है -मानें तो यह जगत ही मिथ्याभास् है .
    आपने मेरे अल्प शब्द ज्ञान में प्रसंग और सन्दर्भ सहित जो बढोत्तरी की है उसके लिए आभार !

    ReplyDelete
  4. जो मिल जाता है वह पिरिक ही लगता है। जो नहीं मिलता लगता है वह मिले तब कुछ मजा आये। :)

    ReplyDelete
  5. श्री अरविंद मिश्रा जी की टिप्‍पणी को अक्षरश: मेरी भी टिप्‍पणी मानी जावे ।

    ReplyDelete
  6. यह पिरिक जीत भारतीय जनता की नहीं। अमरीका की जीत है, शेयर बाजार की जीत है। जनता को तो अभी पता ही नहीं कि उस के साथ क्या हुआ है? वह तो निस्पृह भाव से जीत की मिठाइयाँ खा रही है। तेल के दामों ने सभी के दाम बढ़ा दिए हैं, इंसान को छोड़ कर। अब आगे क्या होने वाला है उस का मानचित्र दो चार दिनों में ही नजर आने लगेगा।

    ReplyDelete
  7. गुरुदेव, हम यह उम्मीद क्यों करें कि हमें कुछ भी आसानी से मिल जाएगा। गीता के इस देश में हमें तो यह सिखाया गया है कि कुछ मिलने की आस में बैठकर समय खराब ही न करो। बस अपना काम करते जाओ। जो मिलना है वह मिल ही जाएगा।
    यूरोपवासियों ने आदमी को ‘निवेश’ और ‘प्राप्ति’ (investment & returns) के गणित में उलझना सिखा दिया। हमारा गणितज्ञ तो सुपर-डुपर कम्प्यूटर लेकर ऊपर बैठा हुआ है। उसके हिसाब में कोई गड़बड़ नहीं होने वाली। फिर सफलता के मायने भी तो अलग-अलग हैं…।

    ReplyDelete
  8. चलिए न्यूक्लियर डील पर लिखते लिखते थक चुके ब्लॉगरो को आपने नया विषय तो दिया.. अगली 8-10 पोस्ट्स पिरिक पर ही होगी

    वैसे मेरे लिए तो बस मेरे शब्द ज्ञान में एक नया शब्द मिल गया है..

    ReplyDelete
  9. जमाये रहिये।
    राग दरबारी के छोटे पहलवान की स्टाइल में कहें तो वो जीत गये हैं, अब पिरिक कहिये, नोटिक कहिये। कहे जाइये, पर सुन कौन रहा है। टाइम कम है, काम बहुत ज्यादा है। सो जीतने वाले कैलेंडर घड़ी लेकर तरह तरह के काम में जुट गये हैं, बाकी लोग घंटा लिये बैठे रहें। क्या फर्क पड़ता है।

    ReplyDelete
  10. ज्ञानवर्धक लेखों से आपने अपना नाम सार्थक कर दिया - आगे भी आते रहना पड़ेगा.

    ReplyDelete
  11. अगर सरकार हारती तो ज्यादा नुकसान था या जीतने पर हुआ? मैं तो इसी दृष्टी से देखता हूँ.

    ReplyDelete
  12. भईया हम अपनी ब्लॉग्गिंग को पिरिक नहीं कहेंगे...अगर ब्लॉग्गिंग नहीं करते तो बहुत से ऐसे मित्रों से कभी मिलना नहीं होता जिनसे जीवन इतना आनंद कारी हो गया है....बहुत से लोग जो उम्र में छोटे या बड़े हैं बिना व्यक्तिगत मुलाकात के अपने लगने लगे हैं...ये एक उपलब्धि है...ऐसी जीत है जिसमें हार की कोई सम्भावना नहीं है....
    नीरज

    ReplyDelete
  13. आपकी मानसिक हलचल हमें बहुत मानसिक हलचलाने (हल चलाने) को प्रेरित करती है. विकी से लेकर डिक्शनरी तक सब पढ़ डाले. बहुत ज्ञानवर्धन हुआ. पिरिक विक्टरी माने ऐसी सफलता जिसके लिए बहुत भारी मूल्य चुकाना पड़े. इस हद तक कि जीतने वाला जीत कर भी हारा हुआ लगे. वर्तमान संसदीय नौटंकी के सन्दर्भ में बात करें तो हारी हुई पार्टियाँ इसे पिरिक विक्टरी कहकर खम्भा नोचकर आत्मतुष्ट हो सकती हैं, लेकिन तटस्थ विश्लेषकों का क्या दृष्टिकोण बनता है?

    इकोनोमिक टाइम्स के शीर्षक से सहमती नहीं है. इसे पिरिक विक्टरी क्यों कहा जाए? सरकार ने क्या खोया? वैसे देखा जाए तो अब इस सरकार के पास खोने के लिए बचा भी क्या है? चार वर्षों के घनघोर कुशासन और जानलेवा मंहगाई को झेलने वाले बेसब्री से अगले चुनाव के इन्तजार में हैं.

    वैसे पिरिक विक्टरी एक phrase के तौर पर प्रयोग होता है. माने पिरिक केवल विक्टरी के साथ ही एडजेक्तिव के बतौर लिखा जाता है. अन्य संज्ञाओं के साथ इसके इस्तेमाल में संदेह है. ब्लॉगिंग के सन्दर्भ में तो ये है कि सबके अपने अपने मापदंड हैं, लिखने के लिए अलग अलग प्रेरणा हैं. कोई अपने लिखे पर इतना इतरा सकता है कि पाठकों की परवाह ही नहीं, तो कोई बेमतलब की टिप्पणियों की संख्या पर क्षाती फुला सकता है.

    आपने इस मुद्दे को उठाया, इसका अर्थ है कि आप अभी भी अपनी ब्लॉगरीय उपलब्धियों से पूर्ण संतुष्ट नहीं हैं. आपके पाठकों के लिए तो ये बहुत अच्छी बात है. आगे और भी बेहतर मिलने की आशा करते हैं. वैसे आपको मिलने वाली सार्थक टिप्पणियों से ही अंदाजा हो जाना चाहिए कि किसी भी अन्य की तुलना में आप पहले ही बहुत आगे हैं.

    ReplyDelete
  14. Sir, aapke gyaan ko main naman karta hun.. har baar kuchh naya padhne ko mil hi jaata hai jise search karun aur jyada gyan badhaaun..
    Apaka likhana pyrrhus ho ya na ho, lekin likhte rahiye.. ye hamare liye nitant aavashyak hai..

    ReplyDelete
  15. ओह गुरुदेव ....इन दिनों आप अजीत भाई से कम्पीट कर रहे है ,फर्क बस इतना है की आप हमारा अंग्रेजी ज्ञान बढ़ा रहे है ,ghoost जी का भी शुक्रिया ,उन्होंने सही सही अर्थ बात दिया डिक्शनरी देखकर....
    पर आपको ब्लोगिंग की चिंता क्यों ?ab inconvient ओर नीरज जी ने कहा ना की मानसिक शान्ति ओर स्नेह से बड़ा पुरूस्कार क्या है ?बाकि सब तो मिथ्या है ......लिखते रहिये आपको पढने की आदत हो गयी है

    ReplyDelete
  16. इस आभासी दुनियां में भी पिरिकत्व का एहसास अकसर बुलंद रहता है चाहे कोई कितना ही इस बात का विरोध करे। एक टिप्पणी भी विरोध में गई तो आप सीधे लुढ़क जाते हैं। अजी एहसास कभी पिरिक होने का होता है कभी स्पार्टकस होने का मगर अंतत: असफलता अपने ही पल्ले पड़ती है।

    ReplyDelete
  17. मेरा अनुभव तो पिरिक^पिरिक (पिरिक घात पिरिक) है !

    ReplyDelete
  18. Pyrrrhic?
    मैं समझा नहीं।
    जी हाँ, pyrrhic का मतलब जानता हूँ लेकिन सन्दर्भ समझ में नहीं आया।

    नीरज गोस्वामीजी से शत प्रतिशत सहमत हूँ।

    ब्लॉगिन्ग एक कला के साथ भावनाओं की अभिव्यक्ति का एक साधन भी है। इसमें प्रतिस्पर्धा कहाँ ? किसी की जीत या हार नहीं होती।
    pyrrhic विशेषण इससे मैं नहीं जोड़ूँगा।

    मैं ब्लॉगिन्ग बहुत कम करता हूँ पर औरों के ब्लॉग पढने में और कभी कभी टिप्पणी करने में काफ़ी समय बिताता हूँ। मेरे लिए यह अपना जी बहलाने का साधन है जो बिना पैसे खर्च किए मन को शान्ति प्रदान करता है, ज्ञान बढाता है, नेटवर्किन्ग हो जाता है, और अच्छा टाईम पास हो जाता है।

    औरों से ज्यादा hits या टिप्पणियाँ हासिल करना या ब्लॉगिन्ग से धन कमाने के बारे में कभी सोचा भी नहीं। अधिक धन अगर कमाने की आवशकता हुई तो मैं ब्लॉग्गिन्ग के माध्यम से बिल्कुल नहीं करूँगा। और तरीके हैं मेरे लिए जिससे ब्लॉगिन्ग से ज्यादा कमा सकता हूँ और वह भी कम समय और मेहनत लगाकर।

    जहाँ तक सरकार की जीत की बात चलती है, यह pyrrhic कैसे हुई?
    क्या खोया सरकार ने? उल्टा साम्यवादों का पिंड छूटा। करार में अब कोई अडचन नहीं है। अमर सिंह जैसा उपयोगी मित्र मिला जो अगले चुनाव में अवश्य काम आएंगे (चाहे इसके लिए भारी कीमत चुकानी पढ़े) और अब सरकार को अगली चुनाव तक कोई खतरा नहीं। मनमोहन सिंहजी ने इतिहास के पन्नों पर अपना नाम भी अंकित कर लिया। सोनियाजी के shadow के बाहर आकर अपना चेहरा दिखाने में भी सफ़ल हुए।

    इतना अवश्य कहूँगा कि यह सब तमाशा अनावश्यक था। करार की बात BJP के जमाने में पहले पहल हुई थी। मैं नही समझता कि BJP दिल से इस करार का विरोध करता है। उन्हें बस credit से वंचित रहना पसन्द नहीं था। यदि मनमोहन सिंह्जी, आडवाणीजी के साथ बहस करते तो इन साम्यवादों को अपनी औकात पर ला सकते थे।

    न बाबा न।
    Pyrrhic यहाँ उपयुक्त शब्द मुझे नहीं लगता।
    ज्ञानजी, यह मेरा पहला negative comment है। बुरा मत मानियेगा।

    ReplyDelete
  19. ब्लॉग्गिंग में भी विफलता सफलता होने लगे तो... ब्लॉग्गिंग का फायदा ही क्या?

    ReplyDelete
  20. ज्ञानजी, मानना पड़ेगा कि आपकी मानसिक हलचल इस ब्लॉग़जगत की धारा में भी हलचल पैदा कर देता है और बहुत कुछ नया सोचने को बाध्य कर देता है...

    ReplyDelete
  21. पिरस, पिरिक, पीर, पीड़ा – यह तो सचमुच अजीत जी का मामला बन रहा है। कहीं इनमें भी नातेदारी तो नहीं?

    ReplyDelete
  22. jo cheez hame kasht deti hai usse ham sabse pahle mukti pate hain. lekin blogging ham lagaatar kiye ja rahe hain iska matlab to ye hua ki ye hame aanad de rahi hai. fir ise pyrrhic success kyo mana jaye real kyo nahi?

    ReplyDelete
  23. "हमारी उपलब्धियां बहुत हद तक पिरिक हैं! ब्लॉगिंग में पिछले डेढ़ साल से जो रामधुन बजा रहे हैं; वह तो और भी पिरिक लगती है। "
    introspection karna achchi aadat hai

    ReplyDelete
  24. पिरियासिस की दवा है, तो !
    क्या यहीं बता देना समीचीन होगा ?

    ReplyDelete
  25. Pyrrich - A Victory that also was obtained after paying a heavy price in other forms.
    The Bhartiya example of this in a battle field in my opinion is the Classic example of ASHOK -
    The heavy & senseless loss of Kalinga Sena was enough to change the heart & mind of ASHOK & bring about a mellower & gentler King ,
    transformed into a Benevolent & kind Monarch.
    Such a transformation into a higher SELF is what is desired as per the Indian Value System of Soul transformation & merit Punya.
    As I'm away from my PC , this comment is in English.
    Regards,
    _ Lavanya

    ReplyDelete
  26. Pyrrich - A Victory that also was obtained after paying a heavy price in other forms.
    The Bhartiya example of this in a battle field in my opinion is the Classic example of ASHOK -
    The heavy & senseless loss of Kalinga Sena was enough to change the heart & mind of ASHOK & bring about a mellower & gentler King ,
    transformed into a Benevolent & kind Monarch.
    Such a transformation into a higher SELF is what is desired as per the Indian Value System of Soul transformation & merit Punya.
    As I'm away from my PC , this comment is in English.
    Regards,
    _ Lavanya

    ReplyDelete
  27. ज्ञानजी, मानना पड़ेगा कि आपकी मानसिक हलचल इस ब्लॉग़जगत की धारा में भी हलचल पैदा कर देता है और बहुत कुछ नया सोचने को बाध्य कर देता है...

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय