रोज संदेश भेजता है वह मेरा अनजान मित्र। (एक ही नहीं अनेक मित्र हैं।) बैंक ऑफ अफ्रीका मेरे पास धन भेजने को आतुर है। मैं हूं, कि अपरिग्रह के सिद्धान्त से बंधा, वह संदेश पट्ट से डिलीट कर देता हूं।
यह मित्र रूप बदलता है - कभी ग्रीस या पुर्तगाल का धनी और ऐसे रोग से ग्रस्त मरीज है जो जल्दी जाने वाला है - ऊपर। और जाने से पहले सौगात मुझे दे जाना चाहता है जिससे मैं परोपकार के कार्य सरलता से कर सकूं।
अर्थात वे तो स्वर्ग पायें, हम भी परोपकार का पुण्य ले कर उनके पास जा सकें। धन्य हैं यह सरल और दानवीर कर्ण के आधुनिक रूप!
बैंक ऑफ अफ्रीका, बुर्कीना फासो (अपर वोल्टा) में कितना धन है इस तरह फंसाने को!
और हम नराधम हैं कि ऐसे संदेश से वैसे डरते हैं, जैसे कोबरा-करैत-वाइपर के दर्शन कर लिये हों।
यह पढ़िये; इस विषय पर कुछ मिलता जुलता कहते हैं श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ भी - मैने विचार किया। पर्सनल ई-मेल/चैट या फोन की बातचीत का नेट पर सार्वजनिक किया जाना ठीक नहीं है; भले ही वह निरीह सी बात हो। आप सामुहिक रूप से जो व्यवहार करते हैं, वह लिखा या चर्चा किया जा सकता है। यह आत्मानुशासन ई-मेल द्वारा (तकनीकी कारणों से ब्लॉग पर सीधे टिप्पणी न कर पाने के एवज में) पोस्ट पर भेजी टिप्पणी पर लागू नहीं होता; बशर्ते यह स्पष्ट हो कि वह टिप्पणी प्रकाशनार्थ है। मुझे नहीं लगता कि मैने इस आत्मानुशासन का विखण्डन किया है। पर भविष्य में यह दृढ़ता से लागू होगा; यह मैं कह सकता हूं। ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति/रूपान्तरण तो है ही; वह अनुशासन पर्व (संदर्भ - महाभारत का खण्ड) भी है!
यदा कदा कुछ मज़ेदार ई-मेल भी आते हैं।
कुछ महीने पहले, मेरे पास कोई Jim Zimmerman नाम के भले आदमी से एक प्यारा सा ई मेल प्राप्त हुआ। उसका दावा था कि वह वर्ष में एक लाख डॉलर कमाता था और वह भी घर बैठे बैठे।
इतने नि:स्वार्थ और उदार दिल वाले इनसान हैं कि उनसे यह पैसा अकेले में भोगने में मन नहीं लगता था। हजारों मील दूर से, मुझे चुनकर केवल 0.00 डॉलर की पूँजी लगाकर 29,524 डॉलर कमाने की विधि बताना चाहते थे।
इस ऑफर ने मेरे दिल को छू लिया।
अपने व्यवसाय सम्बन्धी रहस्यों को मेरे कानों में फ़ुसफ़ुसाना चाहते थे। अवश्य पूर्व जन्म में मेरे अच्छे कर्मों का फ़ल है यह और मैं इस जन्म में यह रहस्य जानने के लिए योग्य बन गया हूँ।
लेकिन, यह तो कलियुग है। संदेह करना स्वाभाविक है। क्या कोई हमें यह बता सकता है कि इन देशों में आज के प्रचलित अर्थशास्त्रीय नियमों के अनुसार, यह संभव है?
यदि यह संभव है, तो मुझे मानना पड़ेगा कि आज का सबसे बड़ा महामूर्ख तो मैं ही हूँ, जिसने अमरीका में ऐसे अवसरों से अनभिज्ञ रहकर उनका लाभ नहीं उठाया।
बीते वर्षों को जाने दीजिए। चलिए, कम से कम अभी हम सब, इंजिनियरी, ब्लॉगरी वगैरह छोड़कर इस अनोखे अवसर का लाभ उठाते हैं।
जब संसार में इतने सारे 29,524 डॉलर के चेक हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं तो देर किस बात की?
यद्यपि, 29,524 डॉलर कुछ ज्यादा नहीं है, मेरे पास कई सारे 0.00 डॉलर के चेक पढ़े हैं पूँजी लगाने के लिए जिससे 29,524 डॉलर से कई गुना ज्यादा प्राप्ति हो सकती है।
--- गोपालकृष्ण विश्वनाथ।
व्यक्तिगत ई-मेल की गोपनीयता -
नारायण .....नारायण, अपने ज्ञानचक्षु खोल रे ज्ञानदत्त !
ReplyDeleteचंचला लक्ष्मी का ऊल्लू सीधे तेरी मुँडेरी पर तो बैठने से रहा...
इस कलियुग में तो लक्ष्मी इंटरनेट पर आरूढ़ (सवार) होकर ही तो आयेगी !
सो, वह रूप बदल कर किसी भी टाम एंड जैरी के मेल में प्रविष्ट हो तुम्हें पुकार रही है,
और तू उसे दुत्कार कर यहाँ वाहवाही लूट लूट प्रसन्न हो रहा है,
धुत्त..रे, बुरबक !
आप का टिप्पणी बक्सा फिर बदल गया। वैसे ऐसे मेल हमारे पास बहुत आए हैं। पर भेजने वाले का नाम गूगल सर्च में डाल कर देख लेने से उस के चरित्र का बखान भी तुरंत मिल जाता है।
ReplyDeleteअच्छा रहा..सभी भोगी हैं...
ReplyDeleteकहीं हम भी केन्द्र में नजर आये..खैर, अच्छा लगा..यही तो सब चाहते हैं..आप भी!!
आपके ये अनजान मित्र हमारे ऊपर भी ऐसी मेहरबानी की इच्छा जताते रहते हैं. सीधे स्पैम केटेगरी में पहुँचने के बावजूद ऐसे संदेश कुछ तो समय खोटा करते ही हैं. बढ़िया लिखा है, विश्वनाथ जी ने भी.
ReplyDeleteपर्सनल ई मेल, चेट वगैरह के सम्बन्ध में आपकी विचार से पूर्ण सहमती है.
आपको पुराने कमेन्ट बॉक्स पर लौटना पड़ा. ऐसा क्यों है कि कुछ ब्लॉग्स पर यह दुरुस्त दिखता है और कुछ पर नहीं? एक बार तो हम आपको ऑपेरा से कमेन्ट दे पाए थे पर अन्य अवसरों पर फायरफॉक्स ही कमेन्ट देने के लिए चाहिए होता है. अधिकांश अन्य ब्लॉग्स पर इस बक्से में कोई परेशानी नहीं हो रही है.
कुछ दिन पहले एक आटो किया हमारे घर के लोगों ने। आटो आधे रास्ते खराब हो गया। आटो वाले को कुछ पैसे दिये जाने पर उसने यह कहकर मना कर- मैं हराम की कमाई नहीं खाता। फ़िर जबरियन ही सही कुछ पैसे दिये गये।लेकिन ये प्यार के पैसे कोई मन से दे रहा तो कोई कैसे मना करेगा। लेकिन सब जानते हैं कि ये आपके रहे बचे पैसे हथियाने की कोशिश है।
ReplyDeleteब्लागिंग सिर्फ़ अभिव्यक्ति का एक माध्यम है।आप कैसे इसे प्रयोग करते हैं यह आपके अपने व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। व्यक्तिगत मेल/चैट/वार्तालाप सार्वजनिक नहीं किये जाने चाहिये ये तो आप जस की तस की बात कर रहे हैं। लेकिन अगर आपसे किसी की बात हुयी है और आप उसे आत्मसात करके फ़िर किसी रूप में लिख रहे हैं तो उसकी गोपनीयता का क्या होगा? क्या बातचीत जिससे हुयी उसको अंदाजा नहीं लगेगा कि इसमें उसकी बातचीत का भी अंश है। उसको अपने अनुभवों से अलग कैसे करेंगे। जैसे कि समीरलालजी यहां कयास लगा रहे हैं कि यह बात उनसे भी संबंधित है। यह बड़ा जटिल मामला है ज्ञानजी। सबके पीछे बात यही है कि आपके किसी भी काम के पीछे की भावना क्या है और जिस रूप में आपने किया या आपसे हुआ उसका असर क्या पड़ा।
ऐसे दरियादिलों से तो बस दूर ही रहना है -ये मेरे कई मित्रों का ईमेल तक कब्जिया चुके हैं और उन बिचारों के नाम पर आपात संदेश देकर कई भोले भालों से कुछ नगद नारायण भी झटक चुके हैं .मुझे तो इनसे बहुत डर लगता है .पता चला ज्ञान जी की कोई पोस्ट देखने को आतुर अल्लसुबह अलसाई आंखों से नेट खोला और अपना ही ईमेल पता हैक हुआ देख रही सही आंखों की नीद भी काफूर ....
ReplyDeleteकोई मेरे इस आशंका का निवारण करे कि इनके द्बारा मेरी ईमेल हैक कर लेने पर मेरे ब्लाग और फॉरम तो यतीम नहीं हो जायेंगे ?मैं तो इसी चिंता में दिन ब दिन घुलता जा रहा हूँ .और आप तथा आदरणीय विश्वनाथ जी इसे परिहास में ले रहे हैं .आप ठिठोली कर सकते है क्योंकि आप दोनों मित्रों का वेब तकनीकी ज्ञान हम निरीहों की तुलना में काफी अच्छा है -हम तो ठहरे निरे टेक बुध्धू ,कब नाईजीरिया भाई लोग चढ़ बैठे इस आशंका से ही दिल धड़क धड़क उठता है . अब लगता है इन्हे रोज दीप धूप नैवेद्य और अगरबती दिखानी होगी .
आपके जीमेल की तस्वीर देखी। एक बार हिन्दी वाला अन्तरापृष्ठ अपना के देखे। इसे लागू करने के लिए सेटिंग्स - भाषा में जाना होगा।
ReplyDeleteपंडित जी मेरे याहू और जी मेल में रोज ऐसे मेल आते है जो मुझे करोड़पति बनाने की सूचना देते है कि फलाना अफ्रीका के ब्राजील के बेंक में आपकी इतनी राशिः जमा है और आप मिस्टर अलफांसो से संपर्क करे. और १२०० पाउंड जमा कर अपनी राशिः का भुगतान प्राप्त कर ले . पर दिक्कत उन्हें यह हो जाती है कि मै ब्राजीली पुर्तगाली भाषा जानता हूँ और अपने ब्राजीली पुर्तगाली मित्रो से इनकी जानकरी ले लेता हूँ .ये साले सब चिट लर है . एक बार गुस्से में मैंने इन्हे खूब सबक सिखाया उल्टे उन्हें मेल कर दिया कि हमारे देश में मेरे खाते में १० लाख पाउंड जमा कराओ और एक साल बाद ५० लाख पाउंड इंडिया आकर ले लो तो तब से पंडित जी पहले से मेल कम आने लगे है . ऐसे मेलो पर ध्यान नही देना चाहिए ये समय ख़राब करते है .
ReplyDeleteमेरे पड़ोसी के पास न्यूजीलैंड से संदेश आया कि लाटरी निकल गयी है, पचास डालर भिजवाये जायें, रकम भिजवाने के लिए। मैंने समझाया कि बेवकूफी है, कोई लाटरी वाटरी नहीं है। आप भूल जाओइस मेल को।उनको लगा कि मैं उनकी लाटरी से जल रहा हूं। भिजवा दिये, चार साल से इंतजार में हैं। रुपये का लालच आदमी को अंधा बना देता है। भारतवर्ष में बेवकूफों की संख्या इतनी ज्यादा है कि अफ्रीका, अमेरिका और न्यूजीलैंड वाले विकट हसरतों के साथ निहारते हैं। ये सब आश्वस्त है कि नाम से भले ज्ञानी हों, पर अंदर से खालिस इंडियन होंगे। हाय रे, आपने उनका दिल तोड़ दिया।
ReplyDeleteहम तो समझ रहे थे अफ्रिका वाले हमी पर धन बरसा रहे है :)
ReplyDeleteऔर आप पर तो फुरसतीया टिप्पणी भी खुब जोर से बरसी है, वरना वे जितना लम्बा लिखते है टिप्पणी उतनी ही छोटी होती है. बस "सही है" मार्का :)
ज्ञानजी,
ReplyDeleteव्यक्तिगत ई मेल के विषय में आपकी नीति सही है।
लेकिन, कभी कभी, चुन चुनकर, विशेष परिस्थितियों में, मैं व्यक्तिगत ई मेल को अपने उत्तर / टिप्पणी के साथ सार्वजनिक मंचों पर प्रस्तुत किया हूँ, सब की सूचना/भलाई के लिए। जिसने ई मेल भेजा है, उसका नाम हम मिटाकर, उसके बदले ***** लगा देते हैं और कभी कभी, जब मामला संवेदनशील होता है तो मंच पर प्रस्तुत करने से पहले उससे पूछ भी लेते हैं।
एक उदाहरण देता हूँ। कई साल पहले एक युवक ने मुझे खुदखुशी करने की अपनी असफ़ल प्रयास के बारे में लिखा था और कारण और परिणाम के बारे में भी बताया था। उत्तर में मैं ने बहुत लंबी चिट्टी लिखी थी उस समय और उसका नाम न लेकर, उसे, उत्तर सहित, एक सार्वजनिक चर्चा समूह पर पेश किया था। बहुत दिनों तक यह एक "Hot Thread" बना रहा। और लोगों के उत्तर/ टिप्पणियों का संकलन करके उस युवक को भी भेजा था। आज वह युवक एक कामयाब, शादि शुदा व्यक्ति है।
पहले हमारे पास अफ्रीकी देशों से बहुत चिट्ठी आती थी. बाद में उनलोगों ने चिट्ठी भेजना बंद कर दिया. कारण शायद यह होगा कि मैंने अफ्रीकी देशों से आने वाली चिट्ठियों को कभी भी शक की निगाह से नहीं देखा. हाँ, अमेरिका से चिट्ठी मिली होती तो हम उसे साम्राज्यवादी देश से मिली चिट्ठी मानकर उसके ऊपर शक करते. ये अफ्रीका वाले बड़े ईमानदार लोग होते हैं.
ReplyDeleteकुछ चिट्ठियां बड़ी मजेदार होती थीं. एक बार एक चिट्ठी आई कि अशोक मिश्रा नामक व्यक्ति का अफ्रीका में एक्सीडेंट हो गया. बन्दे के पास बहुत पैसा वगैरह था. वही पैसा ये अफ्रीकी मित्र मुझे देना चाहते थे क्योंकि मैं मिश्रा हूँ. मुझे लगा कितने कम मिश्रा हैं इस दुनिया में कि कोई अफ्रीका में कार एक्सीडेंट में शहीद होता है और ये समाजसेवी किसी और मिश्रा को भारत में उसका पैसा देना चाहते हैं. पढ़कर मन भर आया था. ये सोचकर कि दुनिया में अभी भी भले लोग हैं.
ऐसे ही एक अफ्रीका वाले की चिट्ठी पढ़कर मेरे एक मित्र संजीत चौधरी ने उनके द्बारा सुझाए गए सारे काम कर डाले. दिल्ली में रहता था. पैसा जैसे ही उसके बैंक अकाऊंट में ट्रान्सफर होने वाला था, सी बी आई वालों ने पकड़ लिया. मजे की बात ये कि उस बेचारे को एक दिन बाद दुबई जाना था, नौकरी ज्वाईन करने के लिए. इधर वो बेचारा सी बी आई के कार्यालय में फंसा बैठा था कि उधर दुबई से फ़ोन आ गया. और बड़ी आफत आ गई. सी बी आई वालों को लगा कि बन्दे के तार दुबई से भी जुड़े हैं. बड़ी छीछालेदर हुई बेचारे की. पिछले साल की घटना है. कलकत्ते आया था तो बता रहा था.
सर अच्छा किया जो आपने कमेंट का बक्सा बदल दिया..
ReplyDeleteपिछले ना जाने कितने ही पोस्ट पर मन मसोस कर रह गये थे.. हाथ में ख्जली होने लगी थी.. आपको कमेंट जो नहीं कर पा रहे थे..
वैसे हम भी हैं इस कतार में..
अभी कुछ दिन पहले की बात है.. एक चेन्नई के टी.सी.एस. में काम करने वाले एक व्यक्ति को लगभग 18 लाख का चूना लगा दिया लगा दिया गया था.. बाद में पुलिस ने प्लान बना कर उस बुल्गारीयन को झांसा दिया की कुछ और पैसा उसे मिलेगा और इस तरह चेन्नई बुलाया गया.. फिर चेन्नई एयरपोर्ट पर ही उसे धर दबोचा..
पुरा वाकया चेन्नई के आई.टी.सेक्टर में बहुता छाया हुआ था..
ऐसे ऑफर तो पिछले ५-७ साल से आ रहे हैं... मुझे लगता था की मैं ही इतना खुशकिस्मत हूँ :-)
ReplyDeleteसच कह रहे हैं भईया ...आज कल ऐसे खुदाई मदद गारों की लाइन लगी पड़ी है,रोज़ की कोई ५-७ मेल आ ही जाती हैं...मेरा एक मातहत जो लाख समझाने के बावजूद इनके चक्कर में आकर चालीस हजार रुपये डुबो चुका है...दुनिया में कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता ये बात कब हमारी समझ में आएगी?
ReplyDeleteनीरज
जरा इस इ मेल को कास कर बंद कीजेयेगा ..कई वायरस भी कभी कभार आ जाते है...
ReplyDeleteकमेंट बॉक्स बदले जाने से मुझे भी खुशी है। जब से आपने इससे पहले वाला कमेंट बॉक्स लगाया था, आपका ब्लॉग मेरे मोबाइल पर नहीं खुलता था।
ReplyDeleteमुझे अब समझ मे आया अफ़्रीका गरीब क्यो हो गया, वह सारा धन तो हम पर लुटा रहे हे, कम से कम २०, ३० बार तो मुझे ही दान दे चुके हे( मेने लेने से मना कर दिया )बचो इन लोगो से ओर जब भी ऎसी मेल आये, उसे खोलॊ मत, ओर उस दिन अपनी टेम्परेरी फ़ाईल जरुर मिटा दे, पता नही केसे केसे कारतुस साथ मे भेज देते हे, जो आप के कम्पुटर की गोपनिये सुचनाये ओर पास वर्ड चोरी कर लेता हे, मेरे साथ हो चुका हे, लेकिन हमारे बेंक बालो ने मुझे बचा लिया.ओर कभी भी कम्पुटर पर पास बर्ड सेव ना करे,
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