ओह, आपको यह भय होता है? ब्लॉगिंग में मुझे होता है। अभी मुझे नौकरी लगभग सात साल से अधिक करनी है। और कई क्षेत्र ऐसे हैं जिनपर मैं कलम नहीं चला सकता। जो क्षेत्र बचता है, उसमें सतत स्तर का लिखा जा सकता है कि लोग पढ़ें?
मुझे शंका होने लगी है। मैं श्री पंकज अवधिया या श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ से ब्लॉग इनपुट चाहता हूं, उसके पीछे यह भय काफी हद तक काम करता है। ऐसा नहीं कि वे जो भेजते हैं, उसे मैं पकापकाया मान कर सिर्फ परोस भर देता हूं। उनकी पोस्ट में वैल्यू एडीशन का प्रयास करता हूं - और शायद यह इन सज्जनों को ठीक न लगता हो। पर उन्होनें (शायद सज्जनतावश) अपनी अप्रियता दर्शाई नहीं है। लिहाजा गेस्ट पोस्ट का वह मॉडल चल रहा है।
मैं चुका नहीं हूं, पर चुक जाने की आशंका से ग्रस्त अवश्य रहता हूं।
एक बार मन हुआ था कि यह खोमचा (मानसिक हलचल) बन्द कर शिव वाले ब्लॉग पर ही नियमित लिखने लग जाऊं। पर उस ब्लॉग को शिव कुमार मिश्र ने बड़ी मेहनत से एक चरित्र प्रदान किया है। उसमें अब पोस्ट लिखते भी संकोच होता है। मै यह जान चुका हूं कि शिव के स्तर का सटायर नहीं लिख सकता। लिहाजा वहां जोड़ीदारी करने में एक प्रकार का इनफीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स होता है। (मुझे मालुम है यह लिखना शिव को असहज कर रहा होगा! पर जो है, सो है!)
अभी तो अधिकतर लोगों ने लिखना शुरू किया है। लिहाजा यह (चुक जाने का) भय अभी तो लोगों को नहीं आया होगा। पुराने लिक्खाड़ इस भय के बारे में बता सकते हैं।
वैसे यदि आप लिखते-पढ़ते-सोचते रहें; और पाठक पर्याप्त सिंफनी (symphony - सुर) मिलाते रहें तो यह भय बहुत सीमा तक निर्मूल होता है। पर आप कह नहीं सकते कि कब कहां क्या गड़बड़ हो जायेगा; और आपका लेखन मूक हो जायेगा।
मैं अगर २५ साल का जवान होता तो यह न सोचता। उस समय शादी न हुई होती तो और अच्छा - रोमांस पर ठेलता। पर अब तो यदा-कदा लगता है कि कहीं हलचल की बैण्डविड्थ संकरी तो नहीं होती जा रही है। कभी लगता है कि स्टेल (stale - बासी) विषयों पर ठेलना नियति बन गयी है।
अन्य भयों की तरह, मैं जानता हूं, कि यह भय भी जड़ें नहीं रखता। पर हाइड्रा की तरह यह बिना मूल के कभी कभी बढ़ने लगता है। यहां लिखने का ध्येय वैरियेण्ट विषय पर पोस्ट ठेलना नहीं - केवल आपसे यह जानना है कि यह भय कितना व्यापक है!
भाई साहब,
ReplyDeleteआप नाहक चिँतित हो रहे हैँ ..
आपके दिलमेँ जो भी आये लिखिये..
" undoubtedly "...i can say, स्तरीय ही रहेगा.
- लावण्या
.
ReplyDeleteगुरुवर, मैं अकिंचन ऎसे मुद्दे पर कुछ कहने
सुनने की हैसियत बना पाया हूँ, या नहीं ?
कह नहीं सकता, पर इतना अवश्य कह सकता हूँ
कि आपसे किसी ऎसे ही पोस्ट की अपेक्षा इधर कुछ दिनों से करने लगा था ।
कारण ? आप का निरंतर लिखते ही जाना...मेरी दृष्टि में उचित नहीं जान पड़ता था ।
जीवन की जिस एकरसता में रस घोलने की चाह में, आप ब्लागर तक पहुँचते हैं,
एक सोशल नेटवर्किंग भी होती है । आपको अच्छा तो लगता है, किंतु इतना अच्छा भी न लगे
कि आप एक दूसरी दौड़ में शामिल हो जायें, और कुछेक अंतराल के पश्चात हाँफते हुये इस तरह की पोस्ट लिखें ।
लगे रहिये.. जमाये रहिये सरीखे टिप्पणी आप को नित्य ब्लागर पर खींच कर ले जाते हैं,
किंतु यह फ़िकरा उस समूह ने आरंभ किया था जब हिंदी को इंटरनेट पर स्थापित करने की एक मुहिम चल रही थी ।
मैं नहीं समझता कि सक्रियता या धाक एक अच्छे लेखन के लिये अनिवार्य तत्व है ।
गूगल द्वारा फंडित साइटों के मालिक या हिंदी के बाज़ार को सुदृढ़ बनाने की गरज़ से लगे हुये गूगल के वेतनभोगी
यदि ऎसा कर रहें हों तो यह ज़ायज़ है, किंतु एक एमेच्यौर ( Amateur )ब्लागर यह क्यों करे ?
आप बीच बीच में विश्राम करते रहें, और लेखन भी जारी रखें, किंतु अपने को चुका हुआ महसूस न करें ।
आपकी मानसिक उर्वरा का मैं या लावण्या जी ही नहीं कायल हैं, दूसरे लोग भी होंगे,
और इससे लाभान्वित होते रहने का स्वार्थ भला कौन छोड़ना चाहेगा ?
सादर सुप्रभात !
मुझे तो यह केतु का प्रभाव दिखता है जो नाहक भय पैदा करता है अच्छे भले चलते आदमी में. मैं तो यह सोच भी नहीं सकता कि आप कभी विषय प्राप्ति में चुक जायेंगे. जिस दिन नहीं मिलेगा उस दिन भी चुक जाने पर बेहतरीन ठेल लेंगे. जारी रहिये.
ReplyDeleteभाईसाहब आप और शिवजी दोनों मेरे प्रिय लेखकों में से है... जैसे मानो, जोशी और परसाई. अतः मन से इन भावों को दूर कीजिये और हरी झंडी संभाले विचारों की गाड़ी को फुल स्पीड भगाते रहिये.
ReplyDeleteआपको अगर सच्ची में डर लग रहा है तो फ़ौरन गाना गाने का अभ्यास कर लीजिये। जैसे ही डर लगे फ़ौरन गाना गाने लगिये- डर लगे तो गाना गा।
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ReplyDeleteमन में बहुत कुछ चलता है।
मन है तो मैं हूं| मेरे होने का दस्तावेजी प्रमाण बन रहा है यह ब्लॉग
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आपके ही लिखे हुए वाक्यों की ओर ध्यान दीजिए।
मन अपार है। मन में अभी और बहुत कुछ चलना बाकी है और आजीवन चलता रहेगा।
आपके मन के साथ यदि हमारा मन भी है तो हम हैं।
मेरे भी होने का दस्तावेजी प्रमाण बन रही है आपके और औरों के ब्लॉग पर मेरी टिप्पणियाँ।
सरकारी सेवा तो केवल साठ साल तक की जा सकती है।
ब्लॉग के लिए आयु की सीमा नहीं होती और आदमी का मन भी कोई सीमा स्वीकार नहीं करेगा।
हम हैं न आपके साथ? काहे को डरते हैं?
लगे रहिए।।
आपमें विषयासक्ति न होने से ही ऐसे आलतू फालतू सात्विक भय सता रहे हैं .वही २५ साल वाली विषयासक्ति ही ऐसे अवसादों का रामवाण है .जीवन से मोह्बद्धता रिक्त हुयी तो ऐसी ही निरासक्ति और उदासीनता का भाव उपजता है .ऐसा कीजिये कि कभी कभार मुम्बईया फिल्में देख लिया करें .
ReplyDeleteकब से नही देखी कोई हिन्दी फिलम ?
वाह, अच्छी टिप्पणियां आ रही हैं। कुछ कह रहे हैं - लगे रहो मुन्नाभाई। ड़ा. अमर ब्रेक लगाने को कह रहे हैं। और ये सतत मौज लेवक फुरसतिया सुकुल कहते हैं गाना गा! अरविन्द मिश्र जी बम्बैया फिल्म देखने को कह रहे हैं!
ReplyDeleteमैं अपने को मण्टो की "टोबा तेगसिंग" के पागल की भूमिका में पाता हूं - मैं न! मैं हिन्दुस्तान में रहूंगा, न पाकिस्तान में। मैं तो इसी पेड़ पर रहूंगा!
व्यंगकार का भय दूसरा है जी
ReplyDeleteरोज पांच विषय कालर पक़डकर बुलाते हैं, मैं एक या दो पर ही लिख पाता हूं. हाय मर जाऊंगा इतने सारे विषयों को छोडकर यह विषय़वासना डराती है।
मस्ती लीजिये लाइफ में क्या डरना।
रिटायर होकर फुल टाइम ब्लागर बन जाइये। विषय बहुत हैं, बस विषय़वासना प्रगाढ़ होनी चाहिए।
आईसा है अगर २ साल का बच्चा बोले "मम्मी सू-सू करनी है" मम्मी चड्डी नीचे कर दे और वो सू-सू कर ले .. सीन क्यूट लगता है!
ReplyDelete२० बरस का जवान बोले "मम्मी सू-सू करने जाऊं?" तो वो मां को भी लप्पडझंग्गू लगता है. मां डांट के बोलती है "ऐसे पूछ कर मुझे क्यूं मेरी सहेलियों के सामने एंबेरेस कर रहा है, जा ना, अब मैं साथ चलूंगी क्या तेरे!" डरने सहमने की एक उमर होती है और आप उसे बहुत पहले क्रास कर चुके, वो भी बिना डरे!
वैसे आप को रह रह के ब्लागिंग पे फ़िलासाफ़ियाने का सनकभेरू क्यूं सवार हो जाता है?.. "मैं चुक जाने की आशंका से ग्रसित रहता हूं" "भयभीत हूं" अगर मैं (मजे लेने के लिये ही सही) कहूं आप बहुत पहले से चुक चुके थे.. फ़िर भी हम पढते रहे हैं और टिपियाते रहे हैं! क्या अब लिखना बंद कर दोगे बताओ? :)
नहीं कल सुबह फ़िर उठके पाखाना जाने से पहले एक और पोस्ट ठेल दोगे - मेरे इस स्टेटमेंट पे ही सही फ़िलासफ़ियाने, ठेल दोगे! प्रेशर बन रहा होगा उसे रोक कर ठेलोगे, दो चित्र साथ लगाओगे.
सर जी ये ब्लागिंग का प्रेशर उस प्रेशर से अधिक भारी होता है.. आपको डर है की जिस प्रकार आप रोज सुबह धूम-धडाम खुल्ले में प्रेशर रिलीज कर रहे हैं और उसका मजा ले रहे हैं लोग इस बेशर्मी पे क्या सोचते होंगे? - हम आपकी राहत देख के खुश हैं. आपके लेख हिंदी ब्लाग जगत को सोन खाद की तरह ऊर्वरता प्रदान कर रहे हैं - अब खुश? तो ये टिप्पणैश्य डरने की एक्टिंग बंद! ;)
यही ब्लागिंग का दर्शन है
ज्ञान जी, आप भी कभी नाहक सोचने लगते हैं। आप के उम्र के बयान से लगता है आप की और मेरी उम्र समान ही है। लेकिन मेरा दृष्टिकोण भिन्न है। प्रेम और रोमांस की उम्र तो यही है। जब यौन आकांक्षाएँ तृप्ति की और होती हैं। तब केवल साहचर्य से उत्पन्न प्रेम ही तो रह जाता है। उस में कितना रोमांस भरा है। जरा उसे अनुभव कर देखिए और रीता भाभी को भी कराइए।
ReplyDeleteअभी तो आप को बहुत लिखना है। मैं तो सोचता हूँ कि मेरे पास और कोई काम और दायित्व न हों तो इतना लिखूं, इतना लिखूँ कि मेरे पास जो कुछ है उस सब को उड़ेलता रहूँ तो शायद यह जीवन भी कम पड़ जाए। आप संकोचों को त्याग कर लिखें और प्रेम करें, रोमांस भी।
I almost wrote a comment but didn't post it. I will post my comment when I can judge it better.
ReplyDeleteTo give a hint, its Wednesday and my running (11 kms) and beer drinking day, :-)
aap aisa kahenge panditjee to humare jaise naye nawadiye kaise tik payenge
ReplyDeleteआप तो लिखते रहियेजी,यह डर वर का चक्कर छोड दीजिये.जो लिखेंगे, जब जब लिखेंगे,सिर आंखों पर.
ReplyDeleteआप जब इतना अच्छा लिखते हैं तो ये विचार क्यूं। महाराज लिखते रहिए। विषय वस्तू छूटने का डर तो मुझे भी सताता रहता है। कई बार लिखते लिखते भी विचार डोलते रहते हैं लगता है कि यार इस पर भी लिखना है। अगर हम लिखते ही रहें तो आप जैसी हस्तियों को पढ़ कैसे पाएंगे। महाराज चालू रहिए....।
ReplyDeleteमहाराज लिखते रहिए, इसमें सोचने की कोई बात ही नहीं है। विषयवस्तु छूटजाने का डर तो डर भी है। जो कि हमें भी सताता है वरना ब्लॉगिंग में और डर काहे बात का। कभी-कभी तो ये लगता है कि भई इसपे लिखूं या उसपे लिखूं, पोस्ट करते करते भी दो-दो मन में चलते रहते हैं। तो महाराज आप को पढ़ने के लिए ही तो यहां का हम रुख करते हैं...। लिखते रहें महाराज।
ReplyDeleteक्या भइया आप तो मेरी चिंताएँ चुरा रहें है.
ReplyDeleteअब जबकि बहुत से लोगों को आपकी पोस्ट का इंतजार रहता है, आप इस ढंग की बातें कर रहे हैं.
और फ़िर अगर लिखना ही है तो शिव के ब्लॉग पर क्यों मेरे ब्लॉग पर लिखिए. मैं और मेरा ब्लाग दोनों तरस रहें है.
"म्हारो ब्लाग तो खुलो पड्यो है कब आओगा?"
ज्यादा नहीं तो महीने में ३-४ पोस्ट ही सही.
ReplyDeleteहम क्या कहें ! हम तो यहाँ सीखने की इच्छा लिए आते हैं. और आज तक ये नहीं लगा की आप कुछ अप्रासंगिक लिख दें... कभी-कभी लगता है की दिन में २-३ पोस्ट होते तो अच्छा होता. आप नाहक ही सोच में पड़ गए...
ReplyDeleteऔर सुझाव तो मस्त आए ही हैं... सुकुल जी की गाना गाने वाली बात अच्छी लगी !
और रोमांस पर लिखने के लिए क्या उम्र जरूरी है?... मेरा अभी भी २५ होना तो बाकी है पर थोड़ा मुश्किल ही लगता है :(
बीच रास्ते में गाड़ी खराब होने पर उसका बोनट खोल कर भिन्न भिन्न आयाम से अपने मोबाइल के कैमेरा से फोटो खींचकर पोस्ट लिखने वाले ब्लॉगर की ब्लॉग पर ऐसा लेख??
ReplyDeleteविषय न मिला तो विषय न मिलने पर भी आप छत्तिसो लेख लिख सकते है.. घबराईए मत बस पोस्ट पेलते जाइए..
वैसे इस लेख पर जो टिप्पणिया आई है उनमे पढ़कर लगता है हिन्दी ब्लॉग जगत का भविष्य सुनहरा है.. एक से बढ़कर एक विचार आ रहे है..
आप भी किधर परेशान हो लिये, मैने तो अभी आपको पढना शुरू किया है :।
ReplyDeleteवैसे जब तक दिमाग सक्रिय रहेगा, विचार भी सक्रिय रहेंगे, और विषय भी मिलता रहेगा.. क्योंकि हमारा दिमाग कभी खाली हो नही सकता, और जिस दिन खाली खाली सा लगेगा उस दिन खालीपन ही एक विषय बन जाता है। तो लिखने के लिये हर गली मे सैकडो विषय हाथ फैलाये बुला रहे हैं, आप थक जायेंगे कि क्या क्या लिखूँ किससे पीछा छूडाऊँ।
ye bhay to sabko sataata hai..aur is sey upji pareshaani aaj parmod ji ki post per bhi padhney milii..( ho sakta hai mai galat bhi huun)apney likhey se bhi ek samay ..upraamta honey lagti hai...vaisey beech beech me zara ruk jaya jaaye to shayad..nayi taazgi.......:)
ReplyDeleteaapka blog hamarey liye class room jaisa hai...shuru se hi baat ko kaisey kahaa jaaye...ye seekhtey aa rahey hain yahan par..
ReplyDeleteआपको चिंता करने की जरूरत नहीं है। कारण संसार में विषयों की भरमार है। बस आप खोजने निकलो, एक खोजो हजार मिलेंगे।
ReplyDeleteBloggers ka darna to katai bhi uchit nahi, or fir kis se ?
ReplyDeleteभैया, वैसे भी दो-तीन महिना हो गया है आपकी किसी पोस्ट पर कमेन्ट किए. इसलिए हम कमेन्ट कर देते हैं.
ReplyDeleteइतना स्तरीय और सीरियस लिखते-लिखते ऐसी परेशानी आएगी ही. जीवन में इम्परफेक्ट रहने का भले ही कम, लेकिन महत्व तो है.
परेशानी यह नहीं है कि क्या लिखेंगे? परेशानी इस बात की है कि लगातार इतना सीरियस लिख सकेंगे या नहीं? पोस्ट कहीं बड़ी न हो जाए. पढने वाले के अपने जीवन में पोस्ट का महत्व है या नहीं? पोस्ट को ब्लॉग पोस्ट की तरह देखने में कोई दिक्कत तो नहीं रहेगी आदि आदि....
अब आप ख़ुद ही सोचिये. सभी अगर दो आँखें बारह हाथ और दो बीघा ज़मीन देखने लगें (जैसा कि नब्बे प्रतिशत ब्लॉगर के प्रोफाइल में लिखा है) तो फिर बड़े मियां छोटे मियां और दूल्हे राजा कौन देखेगा? जहाँ तक हमारे ज्वाईंट ब्लॉग पर लिखने की बात है तो उसमें क्या है? जब भी इच्छा करे और समय मिले, आप लिखिए.
सर जी, कुछ ऐसा सोचिये की अभी तो मैं जवान हूं और ठेल दिजिये रोमांस पर भी 50-100 पोस्ट.. अजी फिर भी सभी वाह-वाह करके ही लौटेंगे.. जब आप ऐसा कहेंगे तो हम बच्चे तो बस भाग ही खड़े होंगे.. :)
ReplyDeleteक्या सचमुच में ये चिन्ता सताई कि मैं चुक जाऊंगा या सिर्फ़ लोगों से रिअश्योरेंस लेने का तरीका था? आप तो कुछ नहीं में से भी कुछ न कुछ बना लेते है तो विषय चुकने का सवाल ही कहां। हां एक बात
ReplyDelete"मैं अगर २५ साल का जवान होता तो यह न सोचता। उस समय शादी न हुई होती तो और अच्छा - रोमांस पर ठेलता।"
रोमांस का शादी या उम्र से कोई संबध है? यहां तो कोई ऐसा नहीं सोचता ।
आज तक मुझे यह डर नही हुआ.... बचपन से लिखता हू पहले डायरी में और अब इन्टरनेट दिअरी में.... ऐसा है यह सोच कर लिखना छोड़ दीजिये की आप हमारे लिए लिख रहे हैं.... कुछ ऐसा लिखिए जो अपिरिचित को भी अच्छा लगे.... आपको ना जानने वाले को भी.... यह डर जाता रहेगा
ReplyDeleteकिससे भयभीत है सर जी ???हमे तो सिर्फ़ यही लगता है कही किसी रोज ब्लोगिंग से ही विमुख न हो जाये.......हैंग ओवर .भी तो आना है जैसे ऑरकुट से आया ......
ReplyDeleteपंडित जी
ReplyDeleteसादर सलाम वालेकुम भरी जय राम जी की
"मैं अगर २५ साल का जवान होता तो यह न सोचता। उस समय शादी न हुई होती तो और अच्छा - रोमांस पर ठेलता।" इस बात ने हलचल पैदा करदी है. वरना कई बैल सींग कटवा के बछडों में शामिल होते हम आपने देखे हैं . रहा विषयों के चुक जाने का मुद्दा तो गुरुदेव "हरी अनंत हरी कथा अनंता" की तर्ज़ पर जारी रहे लेखन
कौन सा हम विजुअलिटी के दौर के लिए लिख रहें हैं हम तो अंतरजाल पे भाषा की समृद्धि के लिए प्रतिबद्ध हैं,
माफ़ करना छोटे मुंह बड़ी बात हो गयी गुरूजी नसीहत मेरे किसी ब्लॉग पे चस्पा कर दीजिए
सादर
भवदीय
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
भय तो आप भीत में लिख गए - वैसे ऐसा होने की संभावना नगण्य है - लेकिन पोस्ट है १००% मानसिक हलचल - हो सकता है इसके बाद आप एक भांति भांति के भय पर ही लिख दें - [ :-)] - सादर - मनीष
ReplyDeleteहे मानव, जब जब तुम चुक जाने को सोचो, तब तब तुम चूक जाना, ईसी में तुम्हारा और ब्लागजगत का कल्याण है....तथास्तु।
ReplyDelete:)
अइयो! तुम्म ब्लॉग लिखने के पहले सोचता भी क्या जी ;)
ReplyDeleteसोचता तो फिर लिखता कैसे जी।
ह्म्म्म, चुक जाने वाले मे से आप तो लगे नही इतने दिन में।
हां यह आपका इंट्रोवर्ट नेचर जरुर आपको चुक जाने की आशंका से ग्रसित रखता होगा। कोई वान्दा नई, चलने दो, आशंका और लेखन दोनो को साथ चलने दो यह आशंका ही लेखन के लिए कई टॉपिक देती रहेगी।
बकिया रही रोमांस वाली बात तौ उ पे हम अब का कहें ;)
यह मन का वो हल है
ReplyDeleteजो देता सदा ही फल है।
कल की क्यों करते हो चिंता
वर्तमान का हर पल जीवंत है।।
शुभ वर्तमान।
वास्तव में आपका डर चुक जाने का नहीं है। यह डर है लोगों की जो अपेक्षा बन गई है आपसे उसपर निरंतर खरे उतरते रहने का। बाकी सब ठीक है… आप लिखिये जी, कोई भी, जिस स्तर तक पहुंच चुका है, उससे ऊपर न भी उठे तो कम से कम से कम उससे नीचे नहीं गिरेगा।
ReplyDeleteशुभम।
ज्ञानदत्त जी, डरे मत,हां जो भी लिखना हे डर डर के लिखे, लेकिन लिखे जरुर,:) धन्यवाद आप की डरी हुई पोस्ट का
ReplyDeleteअपने आसपास हमें लिखने को काफी कुछ उपलब्ध रहता है । आप नौकरी में हैं और जाहिर है कि आपको अपने आसपास लिखने का प्रचुर मसाला नजर आता होगा । लेकिन नौकरी तो वाकई में नौकरी ही होती है - कोड आफ कण्डक्ट का हण्टर लिए हुए । लेकिन उसके अलावा आपके आसपास जो है वह तो नैकरी वाले आसपास के मुकाबले हिमालय से भी ज्यादा है । आप तो हिन्दी ब्लाग जगत के शालिग्राम हैं । भयभीत होने का अधिकर और सुविधा तो आप कब से खो चुके हैं । अब तो आप ब्लागिंग का मदरसा हैं । हलचल की हकीकत में कल्पना का तडका कैसे लगाया जाता है, इस नुस्खे का कापी राइट तो आपके पास है । सो, भयभीत होने की बात कह कर आपके पढने वालों को भयभीत मत कीजिए ।
ReplyDeletePandey Ji,
ReplyDeleteYou don't have to fear anything.
BTW - Some Sanskrit resources (including dictionaries) are here:
http://sanskritvoice.com/resources/
Good luck!
ज्ञानजी, आप सही में मानसिक हलचल पैदा काम करते हैं ...हम तो आपको ज्ञान का पुंज मानते हैं और उम्मीद रखते हैं कि छोटी छोटी चिंगारियाँ पोस्ट के रूप में यहाँ डालते रहेगे.
ReplyDeleteआपका यह कहना सही है की सरकारी नौकरी में रहते हुए कई विषयों पर कलम नहीं चला सकते...कोई बात नहीं ,उन विषयों को रिटायरमेंट के बाद के लिए रहने दीजिये!कई बार ऐसा महसूस जरूर होता है की कोई विषय नहीं सूझ रहा लेकिन अगले दिन कुछ न कुछ समझ आ ही जाता है!आप चिंता न करिए और बस लिखते रहिये!
ReplyDeleteआदरणीय आपने 'स्टेल (stale - बासी)' विषयों पर कोई भी पोस्ट नहीं ठेला है, मैं आपको नियमित रूप से फीडबर्नर के द्वारा पढता हूं और मुझे आश्चर्य होता है कि आप प्रतिदिन नयी हलचल कैसे पैदा कर लेते हैं, स्थान व परिस्थितियां कैसी भी हो ।
ReplyDeleteअनवरत बहती रहे यह गंगा ...........
पोस्ट तो चुटकी बजाकर पढ़ ली। लेकिन टिप्पणियां पढ़ते-पढ़ते सांस फूल गई। वाकई ज्ञान जी, आप धन्य हैं। गाड़ी चला चुके हैं, अब कितना भी ब्रेक लगाएंगे, रुकेगी नहीं। इसलिए बस अपनी अंत:प्रेरणा को मत रोकिए। बहने दीजिए।
ReplyDelete