|| MERI MAANSIK HALCHAL ||
|| मेरी (ज्ञानदत्त पाण्डेय की) मानसिक हलचल ||
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|| मेरे होने का दस्तावेजी प्रमाण बन रहा है यह ब्लॉग ||
Friday, July 11, 2008
अस्वस्थता
फोटो पुरानी है। दशा वर्तमान है। दशा आराम मांगती है ब्लॉगरी से। दफ्तर का काम तो पीछा छोड़ने से रहा। वहां गले में पट्टा बांध कर बैठते हैं। लोगों को बताना पड़ता है क्या बीमारी है और कबसे है। क्या व्यायाम करते हैं, आदि, आदि। लोग च्च-च्च करते हैं पर फिर काम की बात पर लौट आते हैं। जान छोड़ते नहीं।
खांसी बन्द हो, सर्वाइकल खिंचाव मिटे तो लिखने और टिप्पणी आदि करने का रुटीन बनाया जाये। अभी तो आराम का मन करता है - जो बहुत बदा नहीं है। ट्रेनों का अबाध आवागमन धकियाता है। चैन नहीं लेने देता। पग पग पर निर्णय मांगता है। लिहाजा ब्लॉगिंग का टाइम कट। बाकी, रेल का काम तो चलाना ही होगा! राशन-पानी उसी से मिलता है।
वैसे दशा ऐसी खराब नहीं कि सहानुभूति की टिप्पणियों की जरूरत पड़े। लोग चुपचाप सटक लेते हैं। हम कम से कम अपनी कार्टूनीय फोटो दिखा कर सटक रहे हैं!
और ब्लॉगिंग का क्या, जब लगा कि कुछ ठेला जा सकता है, लौट लेंगे।
अच्छा जी, नमस्ते!
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रेल चलाते रहें और आराम करें, ब्लागिंग को हम जिलाए रखेंगे। फ़ोटो मस्त खींचा है। कैसे खिंचवा लिया।
ReplyDeleteच्च,च्च,च्च कर रहे हैं। लेकिन काम की बात छोड़ दी। ठीक हो जाइये तब करते हैं। :)
ReplyDeleteआप आराम करें ....जल्दी लौटे हमें आपका बेसब्री से इंतज़ार रहेगा .....
ReplyDeleteअगर ट्रेन को ट्रेड (हमारे यहाँ स्टॉक एक्सचेन्ज पर ट्रेड आर्डर ट्रेन से भी ज्यादा स्पीड से आते हैं) से बदल दिया जाये और आपका चेहरा मेरे चेहरे से, तो यह मेरी पोस्ट कहलाई आज की और आप चोरी के आरोप में कॉपी राईट के केस में दिनेश भाई से सलाह लेते हुए नजर आयेंगे. :)
ReplyDeleteहर्जाना बतौर बीमारी मे भी कमेन्ट कर आईये हमारी पोस्ट पर..जैसे हमने किया है...वरना कोर्ट में भी क्रेन पर लटक कर आना पडेगा ट्रेक्शन करवाते हुए.....फिर न कहियेगा कि बताया नहीं!! शुभकामनाऐं..शीघ्र स्वस्थय हों..बाकि सब मजाक..
मैं टिप्पणी बन्द मोड में रखना चाहता था। लगता है खुला रह गया। अब बन्द करता हूं। अन्यथा दिन में मॉडरेशन करने के चक्कर में ब्लॉगिंग और कम्प्यूटर से चिपकान चलता ही रहेगा!
ReplyDeleteतरुण जी की टिप्पणी, ई-मेल से -
ReplyDeleteहमने बड़ी मेहनत करके टिप्पणी टाईप करी फिर पता चला, लेने वाले ने ताला लगा के रखा है, इसलिये मेल से भेज रहे हैं, वैसे भी हम कभी कभी ही टिपियाते हैं -
हम च्च-च्च नही कहेंगे बल्कि कहेंगे, वाह जनाब क्या हौसला है. वैसे ये सिर को संभालने वाला ऊपर कैमरे से बाँध के रखा है क्या या पंखे से।
इस फ्रेम में आपको कब तक रहना पड़ेगा....दुआ करते हैं आप जल्दी ही स्वस्थ हों...
ReplyDeleteभाई ज्ञानदत्त जी,
ReplyDeleteलोग तो दूसरों का मजाक बनाते है जिन्दगी में हसनें के लिए, पर आपने स्वयं को ही पात्र बनाया , ऐसा साहस तो बिरले ही कर सकते है.
आज की नौकरी आदमी को क्या- क्या बीमारियाँ दे रही हैं, उसे की कड़ी में आपका यह व्यंग एक अच्छा उदहारण है.
विशेष रूप से मैं हम सभी ब्लॉगर को ठेले वाला साबित करने के लिए प्रयुक्त निम्न पंक्तियाँ
"और ब्लॉगिंग का क्या, जब लगा कि कुछ ठेला जा सकता है, लौट लेंगे।"
दिल को छू गई. मैं भी टिप्पणी का ठेला लगा कर आ ही गया. टिप्पणी ग्रहण कर प्रकाशित करें.
चन्द्र मोहन गुप्त
अरे! जे का! कब, कैसे।
ReplyDeleteच्च च तो नई करूंगा बस आप स्वस्थ और अच्छे भले रहें यही कामना करूंगा।
हम आप के जल्दी स्वस्थ होने की कामना करते हैं ,वैसे कब से है ये बिमारी, क्या व्यायाम करते हैं , खाने में कोई परहेज, आदि आदि…।बाकी बाते बाद में पूछते हैं …।:)
ReplyDeleteऐसा लग रहा है मानो किसी बड़ी सिद्धि के लिए कोई योगी/साधक कठिन साधना में लगा है .
ReplyDeleteहम बीमारी नहीं देखते . नहीं तो सहानुभूति प्रकट करने को 'मोड' में आना पड़ेगा . आपको तो प्रेरक-उत्प्रेरक के रूप में देखना ही भाता है . जल्दी हटाइए इस छींकेनुमा गलपट्टी को .
होमिओपैथी में जाएँ, आप पूर्णतयः स्वस्थ हो जायेंगे ! यह असाध्य ( एलोपैथी के हिसाब से ) कष्ट मैंने २४ साल पहले सहा था,
ReplyDeleteबड़ी बुरी बीमारी है मेरी माँ को भी है.पर यह बीमारी तो बुरे पोस्चर का नतीजा होती है आपको कैसे लगी ?
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