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Monday, July 7, 2008
होमवर्क की आउटसोर्सिंग!
बच्चों का होमवर्क मम्मियां करती हैं - प्राइमरी कक्षाओं तक। पर यह तो गजब है - आस्ट्रेलिया के कम्प्यूटर साइंस के विद्यार्थी अपना होमवर्क भारत के प्रोग्रामर्स को आउटसोर्स कर दे रहे हैं! और १०० आस्ट्रेलियायी डालर्स में उनका काम पक्का कर उन्हे मिल जा रहा है। बाकायदा रेण्ट-अ-कोडर पर निविदा निकलती है। कोडर अपनी बोली भरते हैं और भारतीय अपनी बोली कम होने के आधार पर बाजी मारते हैं।
भैया हमारे जैसे "जीरो बटा सन्नाटा" कितने समय में प्रोग्रामिंग सीख कर यह निविदा भरने लायक बन सकते हैं? अपने बच्चे का होमवर्क तो करा/कराया नहीं कभी, इन आस्ट्रेलियायी विश्वविद्यालय जाने वाले बच्चों का भला करने लायक बन जायें!
यह खबर पीटीआई की है - मेलबर्न/सिडनी से। पर जब मैने नेट पर सर्च किया तो पाया कि अमेरिका में यह पवित्र कार्य दो साल पहले भी हो रहा था!
अब कौन तेज है - अमरीकन, आस्ट्रेलियायी या भारतीय!
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जी हां ये होमवर्क कई सालो से चल रहा है और चलता रहेगा, क्योंकि अभी तक ईसका कोई दूसरा सस्ता विकल्प नहीं मिल पाया है, ईस तरीके से विदेशी मुद्रा तो मिलती ही है, हमारे प्रोग्रामर्स को भी फ्रीलांसिग करियर मिल रहा है।
ReplyDeleteजी, यह कार्य यहाँ भी पिछले दो सालों से सफलतापूर्वक चल रहा है. हम लोग जयपुर से मोड्यूल चला रहे हैं. अच्छा काम है मगर आप तब जिक्र कर रहे हैं, जब सेचुरेशन के कारण रेट टूट रहे हैं अब. २ साल पहले से आधे रेट हो गये हैं अब. नये लोगों के एन्टर करने लायक बाजार नहीं रहा.
ReplyDeleteअच्छा आलेख.
ज्ञानजी,
ReplyDeleteजब वयस्क लाभ उठा सकते हैं तो बच्चे क्यों दूर रहेंगे?
outsourcing पिछले कई वर्षों से चल रहा है।
मेरे खयाल से मेडिकल ट्रान्स्क्रिप्शन की सफ़लता से प्रेरित, होकर अन्य कई क्षेत्रों में भी यह होने लगा है। आज स्थिति यहाँ तक पहुँची है कि किसी भी क्षेत्र में, जिसमें उपज bits and bytes में परिवर्तित हो सकता है, और अन्तर्जाल के माध्यम से भेजा जा सकता है , उसमें outsourcing सफ़ल हो सकता है।
मैं स्वयं इस phenomenon का लाभ उठा रहा हूँ और मेरी कमाई इसी धन्धे से हो रही है।
अमरीकी architects/engineers/contractors के लिए तकनीकी drawings बनाता हूँ।
अमरीका में जिस काम के लिए १०० डोलर खर्च होता है वह ५० डोल्लर में किसी भारतीय ईन्जिनियर से करवाते हैं। वही काम के लिए भारत में भरतीय ग्राहकों से केवल पच्चीस डोलर मिलता है। इसे कहते हैं असली और निश्चित win - win स्थिति।
१९९८-२००० में यह cost ratio 6:1 से लेकर 7:1 के बराबर था। आजकल डोलर की मूल्य में गिरावट और भारत मे वेतन की वृद्धि और स्पर्धा के कारण, यह ratio 3:1 से लेकर 4:1 बन गया है। मुझे नहीं लगता की यह धन्धा हमेशा के लिए चलेगा। भविष्य में outsourcing का काम केवल गुणवत्ता पर टिका रहेगा, दाम पर नहीं।
इस विषय पर यदि अधिक जानने किइ इच्छा हो तो मेरा पिछले साल लिखा हुआ चिट्ठा यहाँ पढिए।
http://tarakash.com/forum/index.php?option=com_content&task=view&id=26&Itemid=39
रेट कम हो रहे है या कहे पहले से कम ही है। भारतीयो का शोषण ज्यादा है। हाल ही मे अमेरिका की एक सलाहकार कम्पनी ने आफर दिया था कि वे एक घंटे तक जैट्रोफा के नकारात्मक पहलुओ पर प्रश्न पूछेंगे फिर 200 डालर देंगे। फिर 400 मे तैयार हो गये। अब एक घंटे मे तो बहुत कुछ पूछा जा सकता है। मैने 15 मिनट के एक स्लाट की बात की उसी दर पर। पहले आनाकानी करते रहे फिर तैयार हो गये। भारी बारगेनिग है। आप अगर दक्ष विषय विशेषज्ञ है तो रास्ते खुले है पर किसी से पैसे निकलवाना हमेशा टेढी खीर रही है मेरे लिये।
ReplyDeleteनिसंदेह भारतीय ,ज्ञान जी !
ReplyDeleteकिसी से पैसे निकलवाना सभी के लिए टेड़ी खीर होती है। लेकिन कुछ लोग इस काम में दक्षता प्राप्त कर लेते हैं। वे ही सब से बड़े विक्रेता होते हैं। हाँ आज काम की उतनी कीमत नहीं जितनी इस विक्रय दक्षता की है। आप बहुत से काम कर सकते हैं लेकिन विक्रय दक्षता के अभाव में सब कुछ बेकार है। कभी आप ने अपना कोई काम किया तो पहले एक विक्रय दक्ष को तलाश कर के रखना पड़ेगा। मैं अपने लिए एक की तलाश में हूँ, अभी तक नहीं मिला है। इस की आउट सोर्सिंग भी खूब होती है।
ReplyDeleteबढि़यॉं है
ReplyDeleteसुविधा लेने में दुविधा क्यो ?
सही कहा गया है बच्चे अपने माँ बाप से चार हाथ आगे होते हैं।
ReplyDeleteचीनी हजबैंड सस्ते और बढ़िया पड़ते हैं।
ReplyDeleteहजबैंडो की आऊटसोर्सिंग चीन की तरफ जाने वाली है महाराज।
बहुत जल्दी यह सीन होने वाला है कि बंदा यहां बैठकर अमेरिका का होमवर्क कर रहा है। और उसकी जगह चीनी हजबैंड ने ले ली ही। जमाये रहिये।
स्मार्ट बेबी हैं, और फिर पूत के पांव पालने में ही तो दिखते हैं।
ReplyDeleteज्ञान जी,
ReplyDeleteआस्ट्रेलिया और अमरीका वालों को हिन्दी ब्लॉग लेखन का चस्का लगवा देते हैं, फ़िर हम सब लोग मिल कर पुरस्कार बाँटेंगे | पहले जानबूझ अमरीका वालों को दे देंगे और सब अपने ब्लॉग पर उनकी तारीफ़ लिखेंगे | उसके बाद धंधा चालू करेंगे कि अपना हिन्दी ब्लॉग आउटसोर्स करो और पुरस्कार जीतने की गारंटी भी | कहिये, बात चलाई जाए आस पड़ोस में :-)
बदले ज़माने की बयार है सर जी....
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ReplyDeleteपंकज अवधिया Pankaj Oudhia said...
रेट कम हो रहे है या कहे पहले से कम ही है। भारतीयो का शोषण ज्यादा है।
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पंकज जी,
शोषण कैसे?
अपनी मर्जी से ही काम करते हैं। इसमे जबर्दस्ती हो ही नहीं सकती।
अगर रेट कम लगता है तो हमें काम स्वीकार करने से इनकार करने का पूरा अधिकार है।
उलटा, मैं ने अमरीकी ग्राहकों को कह्ते सुना है कि भारत के कुछ लोभी लोग अमरीकी वालों के शोषण कर रहे हैं ज्यादा माँगकर।
शोषण तब होता है जब ड्राइवर, बावर्ची, आया, नौकरानी, नर्स वगैर्ह दुबई या साउदी अरेबिया जाते हैं और उन लोगों की पासपोर्ट जब्त करके, उनसे कम वेतन पर काम लिया जाता है।
भारत-अमरीका का यह औटसोर्सिन्ग व्यवसाय, भिन्न है।
मुझे खुशी हुई यह सुनकर की आपको अपना माँगा हुआ पैसा मिल गया।
सही राशी उनके cost और हमारे cost के बराबर बीच में हो तो दोनों को लाभ होता है। यह एक डबलरोटी का slice है जिसपर दोनों तरफ़ मक्खन लगा हुआ है। हम एक तरफ़ को चाटेंगे, और वे दूसरी तरफ़।
आपकी शोषण वाली बात मेरी समझ में नहीं आई।
शुभकामनाएं
मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि आउटसोर्सिंग व्यवसाय बहुत अच्छा है - दोनों के लिये। आउटसोर्सक और काम करने वाला दोनो खुश रहते हैं।
ReplyDeleteयहां बात मैं "होमवर्क" के आउटसोर्सिंग की कर रहा हूं - जो मेरे विचार में अनैतिक है!
हमारे यहाँ बच्चों का गृहकार्य माँ-बाप को निपटाते हुए देखा है, यह भी अनैतिक ही है. कॉलेजों के कई विद्यार्थी भी व्यवसायिक दक्ष लोगो से काम करवाते है, यह भी अनैतिक ही है. इसी तरह नई तकनिक के चलते दूर बैठे लोग अपना कार्य किसी और करवा रहे है, सरासर गलत है.
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ReplyDeleteयहां बात मैं "होमवर्क" के आउटसोर्सिंग की कर रहा हूं - जो मेरे विचार में अनैतिक है!
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एकदम सही।
किसी के विचार में भी यह होमवर्क का आउटसोर्सिग अनैतिक होनी चाहिए। लेकिन जब तक अनैतितका से किसी को लाब होता है, यह चलता रहेगा। इसे रोकना भी आसान नहीं।
इस सन्दर्भ में एक पुराना न्यूज़ आइटम भी याद आ रहा है।
इंग्लेंड में old age homes महँगे हो गये हैं।
भारत में ऐसे कुछ खास old age homes के बारे में सोचा जा रहा था जहाँ यूरोप के वृद्ध नागरिकों को भेज सकेंगे।
यानी वृद्धों का देखबाल का भी आउटसोर्सिंग!
क्या यह अनैतिक होगा?
सोचने वाली बात है।
अजी यह शुभ कार्य हमारे यहां से ही गया हे, बच्चे बेठे ऊघ रहे हे, पास बेठी मां एक चाटां बच्चे को मारा ओर पुछती हे ऎसे ही करना हे ना ओर खुद ही लिखती जा रही हे,कभी कभी पुछती हे ठीक हे ना बच्चा सोया सोया ही हिल रहा हे या सिर हिला रहा हे पता नही, लेकिन ममी जी झट पट सारा होम्वर्क कर करके बच्चे को शावाशी देती हे,देखो लक्की ने अपना सारा काम निपटा लिया, लेकिन रजल्ट आने पर उस गरीब की पिटाई,अरे ... यह सब आंखो देखा हाल लिखा हे.. अब बताये हम दुनिया मे सब से आगे हे या नही
ReplyDeletehomework outsource karna to galat hi hai...isse nuksan student ka hi hai.
ReplyDeleteनहीं जी
ReplyDeleteकिसी का भला करना
जिससे खुद को भी हो लाभ
अनैतिक नहीं
नैतिक ही है
नंबर वन.
तो मुख्य बहस नैतिकता पर टिक गयी है. छोटे बच्चों को जिस तरह ढेर सारे होमवर्क से लाद दिया जाता है वही कहाँ तक ठीक है? मम्मियों द्वारा बच्चों का होमवर्क करने के पीछे शायद अपना समय बचाने की नीति रहती होगी. वैसे हमारे यहाँ abhee तक esi परम्परा नहीं padee है. बिटिया जी ख़ुद ही पूरा होमवर्क kartee हैं, लेकिन पूरे समय nigraanee karnee पड़ती है वरना मन bhatakne में देर नहीं lagtee. abhee UKG में हैं. (why does this google transliteration go off so often?)
ReplyDeleteभारतीयों के सस्ते होने की गूँज कहाँ नहीं है ?
ReplyDeleteआउ्टसोर्सिंग तो ग़नीमत है, जी !
पता नहीं, सुश्री बहन मायावती जी पी०एम०टी० या बोर्ड परीक्षाओं में चल रहे आउटसोर्सिंग से क्यों हलाकान है ?
किसी से पैसे निकलवाना हमेशा टेढी खीर रही है
ReplyDeleteThat is very true
&
कमाल है -
ऐसी परीक्षा का क्या उपयोग ?
और
विधार्थी की दक्षता का सही मुल्याँकन कैसे हुआ ?
- लावण्या
आउटसोर्सिंग तो कई क्षेत्रों में हो रही है... होमवर्क से लेकर कापियां जांचने तक. आपने अगर 'वर्ल्ड इस फ्लैट' पुस्तक न पढ़ी हो तो बताइए... इसकी सॉफ्ट कॉपी भी मेरे पास है. वैसे इस पुस्तक की आलोचना करने वाले बड़े अर्थसास्त्री भी हैं... पर कुछ भी हो यह पुस्तक आउटसोर्सिंग पर एक रोचक पुस्तक तो है ही.
ReplyDeleteथर्ड वे पर एक पेपर भेजा था मैंने, आशा है आप को मिल गया होगा.
अजी यह शुभ कार्य हमारे यहां से ही गया हे, बच्चे बेठे ऊघ रहे हे, पास बेठी मां एक चाटां बच्चे को मारा ओर पुछती हे ऎसे ही करना हे ना ओर खुद ही लिखती जा रही हे,कभी कभी पुछती हे ठीक हे ना बच्चा सोया सोया ही हिल रहा हे या सिर हिला रहा हे पता नही, लेकिन ममी जी झट पट सारा होम्वर्क कर करके बच्चे को शावाशी देती हे,देखो लक्की ने अपना सारा काम निपटा लिया, लेकिन रजल्ट आने पर उस गरीब की पिटाई,अरे ... यह सब आंखो देखा हाल लिखा हे.. अब बताये हम दुनिया मे सब से आगे हे या नही
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ReplyDeleteपंकज अवधिया Pankaj Oudhia said...
रेट कम हो रहे है या कहे पहले से कम ही है। भारतीयो का शोषण ज्यादा है।
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पंकज जी,
शोषण कैसे?
अपनी मर्जी से ही काम करते हैं। इसमे जबर्दस्ती हो ही नहीं सकती।
अगर रेट कम लगता है तो हमें काम स्वीकार करने से इनकार करने का पूरा अधिकार है।
उलटा, मैं ने अमरीकी ग्राहकों को कह्ते सुना है कि भारत के कुछ लोभी लोग अमरीकी वालों के शोषण कर रहे हैं ज्यादा माँगकर।
शोषण तब होता है जब ड्राइवर, बावर्ची, आया, नौकरानी, नर्स वगैर्ह दुबई या साउदी अरेबिया जाते हैं और उन लोगों की पासपोर्ट जब्त करके, उनसे कम वेतन पर काम लिया जाता है।
भारत-अमरीका का यह औटसोर्सिन्ग व्यवसाय, भिन्न है।
मुझे खुशी हुई यह सुनकर की आपको अपना माँगा हुआ पैसा मिल गया।
सही राशी उनके cost और हमारे cost के बराबर बीच में हो तो दोनों को लाभ होता है। यह एक डबलरोटी का slice है जिसपर दोनों तरफ़ मक्खन लगा हुआ है। हम एक तरफ़ को चाटेंगे, और वे दूसरी तरफ़।
आपकी शोषण वाली बात मेरी समझ में नहीं आई।
शुभकामनाएं
ज्ञान जी,
ReplyDeleteआस्ट्रेलिया और अमरीका वालों को हिन्दी ब्लॉग लेखन का चस्का लगवा देते हैं, फ़िर हम सब लोग मिल कर पुरस्कार बाँटेंगे | पहले जानबूझ अमरीका वालों को दे देंगे और सब अपने ब्लॉग पर उनकी तारीफ़ लिखेंगे | उसके बाद धंधा चालू करेंगे कि अपना हिन्दी ब्लॉग आउटसोर्स करो और पुरस्कार जीतने की गारंटी भी | कहिये, बात चलाई जाए आस पड़ोस में :-)
किसी से पैसे निकलवाना सभी के लिए टेड़ी खीर होती है। लेकिन कुछ लोग इस काम में दक्षता प्राप्त कर लेते हैं। वे ही सब से बड़े विक्रेता होते हैं। हाँ आज काम की उतनी कीमत नहीं जितनी इस विक्रय दक्षता की है। आप बहुत से काम कर सकते हैं लेकिन विक्रय दक्षता के अभाव में सब कुछ बेकार है। कभी आप ने अपना कोई काम किया तो पहले एक विक्रय दक्ष को तलाश कर के रखना पड़ेगा। मैं अपने लिए एक की तलाश में हूँ, अभी तक नहीं मिला है। इस की आउट सोर्सिंग भी खूब होती है।
ReplyDeleteज्ञानजी,
ReplyDeleteजब वयस्क लाभ उठा सकते हैं तो बच्चे क्यों दूर रहेंगे?
outsourcing पिछले कई वर्षों से चल रहा है।
मेरे खयाल से मेडिकल ट्रान्स्क्रिप्शन की सफ़लता से प्रेरित, होकर अन्य कई क्षेत्रों में भी यह होने लगा है। आज स्थिति यहाँ तक पहुँची है कि किसी भी क्षेत्र में, जिसमें उपज bits and bytes में परिवर्तित हो सकता है, और अन्तर्जाल के माध्यम से भेजा जा सकता है , उसमें outsourcing सफ़ल हो सकता है।
मैं स्वयं इस phenomenon का लाभ उठा रहा हूँ और मेरी कमाई इसी धन्धे से हो रही है।
अमरीकी architects/engineers/contractors के लिए तकनीकी drawings बनाता हूँ।
अमरीका में जिस काम के लिए १०० डोलर खर्च होता है वह ५० डोल्लर में किसी भारतीय ईन्जिनियर से करवाते हैं। वही काम के लिए भारत में भरतीय ग्राहकों से केवल पच्चीस डोलर मिलता है। इसे कहते हैं असली और निश्चित win - win स्थिति।
१९९८-२००० में यह cost ratio 6:1 से लेकर 7:1 के बराबर था। आजकल डोलर की मूल्य में गिरावट और भारत मे वेतन की वृद्धि और स्पर्धा के कारण, यह ratio 3:1 से लेकर 4:1 बन गया है। मुझे नहीं लगता की यह धन्धा हमेशा के लिए चलेगा। भविष्य में outsourcing का काम केवल गुणवत्ता पर टिका रहेगा, दाम पर नहीं।
इस विषय पर यदि अधिक जानने किइ इच्छा हो तो मेरा पिछले साल लिखा हुआ चिट्ठा यहाँ पढिए।
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