कुछ दिनों पहले मैने गंगाजी में बढ़े पानी और शाम की आरती का वर्णन किया था। अब उससे कहीं ज्यादा पानी आ गया है। आरती करने वालों को बहुत कम स्थान - वह भी ढ़लान पर मिल रहा था। तब भी लोग थे और पूरी श्रद्धा से थे। ये चित्र देखें मेरे घर के पास गंगा जी के। बढ़ी जल राशि की पिछली पोस्ट से तुलना करें।
गंगाजी की बढ़ी जल राशि अच्छी लगती है। यद्यपि बाढ़ जैसी कोई दशा नहीं है। पर स्थान ऐसा है कि आधा घण्टा वहां चुपचाप निहारते व्यतीत किया जा सकता है।
जय गंगे मैया!
देवि सुरसरि भगवति गंगे, त्रिभुवन तारिणि तरल तरंगे। शंकरमौलिविहारिणि विमले, मम मतिरास्तां तव पद कमले॥ |
गंगा जी के चित्र। गंगा यहां घुमाव लेती हैं संगम की ओर मुड़ने को। |
एक विक्षिप्त:
कल सवेरे के काम के सबसे सघन समय में मेरा वाहन खराब हो गया। यातायात चौराहे पर मुझे जबरन चहलकदमी करनी पड़ी। पहले इस तरह फंसने पर मन में क्रोध आया। उस दौरान एक विक्षिप्त सामने आ कर पांच रुपये मांगने लगा। मैने उसे झिड़क दिया। पर वह आसपास घूम कर दो बार और सामने आया - हर बार पांच रुपये मांगता था और हर बार ऐसा लगता था जैसे मुझे नया आदमी समझ रहा है।
मैला, कुचैला आदमी। नंगे पैर, पर हाथ में चप्पल उठाये। हमेशा बुदबुदाता हुआ। क्रोध शांत होने पर मैने उसके बारे में सोचा। लगा कि पांच रुपये दे देने चाहिये थें। पर वह जा चुका था।
आपने भी देखा होगा उसे या उस जैसे को।
भगवान की सृष्टि में उस विक्षिप्त का भी रोल है। उसका भी अंश है। उसका भी अतीत रहा होगा। क्या है भविष्य?
उसकी जगह अपने को रखने की सोचता हूं तो कसमसा उठता हूं।
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ReplyDeleteगंगा तव दर्शनात मुक्तिः -आपने आज अल्लसुबह गंगा दर्शन कराकर अतिरिक्त पुण्य अर्जित कर लिया है .
ReplyDeleteविक्षिप्त से मुलाक़ात पर आपके प्रतिक्रया सहज ही थी मगर कुछ दे देते तो आपको इसका मलाल न रहता .
बहरहाल एक पुण्य ने इसे निष्प्रभावी कर दिया है .
गंगा जी के बढ़े हुए रूप के दर्शन आप ने कराए। चाहे गंगा का यह रूप हो, अथवा क्षीण रूप, या चौराहे पर मिला वह विक्षिप्त भिखारी या कार्यालय पहुँचने की शीघ्रता से उत्तेजित मन लिए चौराहे पर चहल कदमी करते आप। सभी उसी के रूप हैं। यह रूप हर क्षण बदलता है। इसी से समय़ की सृष्टि होती है। अनेक रूप हैं उस के, लेकिन कोई भी स्थाई नहीं, स्थिर नहीं। स्थिर है तो उस की मात्रा, उस का भार, वह सदैव अपरिवर्तित है, अविनाशी है। वह एक है, उस के सिवा कुछ नहीं। वही सकल पदार्थ है। बस हम महसूस करें।
ReplyDeleteभगवान के यहां हर तरह के आइटम हैं!
ReplyDeleteउसकी जगह अपने को रखने की सोचता हूं ... प्रणाम देवी गंगा को एवं आपको ।
ReplyDeleteइलाहाबाद में विक्षिप्त बड़े आत्मविश्वासी लगते हैं।
ReplyDeleteस्टैन्डर्ड भी ऊँचा लगता है।
यहाँ बेंगळूरु में एक रुपये से संतुष्ट हो जाते हैं।
केवल एक बार माँगते हैं।
कुछ नहीं देने पर चले जाते हैं, तंग नहीं करते।
वो जमाना भी क्या जमाना था!
याद है उन दिनों भिखारियों का विलाप ?
"बाबूजी एक पैसा दे दो?"
कहाँ एक पैसा और कहाँ पाँच रुपये!
इतना तनाव लेना सेहत के लिए ठीक नहीं.. आप या हम जो हैं वो भी शायद किसी के लिए वैसी ही सजा की स्थिति होगी जैसी कि उस विक्षिप्त की आपके लिए...सब अपनी अपनी भोग रहे हैं. जो मिला है उसे जमाये रहें.
ReplyDeleteगंगाजी के दर्शन कराने के लिए शुक्रिया। विक्षिप्त कथा के बारे में अरविंद जी की सोच का समर्थन करता हूं.
ReplyDeleteजय गंगा मैया।
ReplyDeleteघर तो सुरक्षित है ना।
ये कार कौन सी है, इंडिका टाइप लग रही है। कैसी चलती है। क्या परफारमेंस है, सो एक अलग पोस्ट में बताइये।
विक्षिप्त दो तरह के होते हैं,एक तो ओरिजनल दूसरे स्पांसर्ड टाइप।
ओरिजनल वाले तो वाकई दया के करुणा के हकदार हैं। दिल्ली में हर चौराहे पर स्पांसर्ड और ट्रेन्ड विक्षिप्त मिलते है इन्हे देखकर गुस्सा आता है। पर आप वाला विक्षिप्त तो लगता है कि ओरिजनल था, दे देने चाहिए थे पांच रुपये। सृष्टि बनाने वाले ने सिर्फ ब्लागर ही थोड़े ही बनाये हैं, कुछ विक्षिप्त भी बनाये हैं। फोटू जमाये रहिये।
गंगाजी के दर्शन करा दिए अपने ... और ठीक कहा अपने ऐसे ना जाने कितने विक्षिप्त मिल जाते है.. रस्तो में.. गंगा जी की बात तो हर कोई लिखता है.. इनकी कहानी मगर गुम हो जाती है
ReplyDeleteऐसी घटनाएं हो तो मैं बहुत दिनो तक दिमाग से निकाल नहीं पाता.
ReplyDeleteहम पूरे जहान की चिंता भी नहीं कर सकते शायद इसीलिए इश्वर का जन्म हुआ होगा.
गंगा जी चित्र बेहद बढ़िया लगे, नए एंगल ढूंढे हैं आपने
ReplyDeleteक्या पता वो बाद मे आपको भी चाय के लिये आमंत्रित करता , शायद इसीलिये दो चाय के हिसाब से पांच रुपये मांग रहा हो :)
ReplyDeleteदिल्ली के विक्षिप्त तो और भी चतुर चालाक है...200 रुपए देकर जो उल्लू बने आज तक नही भूले....
ReplyDeleteजैगंगा मैया ,हर जगह हर तरह के लोग ....
ReplyDeleteतीन दिन पहले मै किस किताब वाले के यहाँ रुका ही था ओर गाड़ी के शीशे चढा रहा था की एक शराबी जोर जोर से शीशे पीट ने लगा ओर कहने लगा की 'ऐ गाड़ी वाले इस दुनिया में कोई किसी की सुनता नही है......फ़िर जोर जोर से गाली देना लगा ...डर के ओर किसी अप्रिय घटना के कारण मै नीचे नही उतरा ..ओर गाड़ी आगे बढ़ा दी .....लेकिन सोच में पड़ गया ..सडको पर चलना कितना असुरक्षित है......एक आदमी आपको किस तरह से मुसीबत में डाल सकता है......
ReplyDeleteगंगा जी के दर्शन के लिये शुक्रिया......
Ganaga ji ke darshan karane ke liye Dhanyawaad..... Mai bhi May mien Sangam par pahli baar gaya tha... aur kewato aur Panda ji ne Aisa Loota ki woh SANGAM Yatra Jeevan Bhar Yaad Rahegi :-)
ReplyDeleteNew Post - Happy Birthday Katrina : You are so Beautiful :-)
जय गंगे !
ReplyDeleteऐसे विक्षिप्त वाली घटना मेरे साथ भी एक-दो बार हो चुकी है... बिना बहाना करे मांगने वालो को देने से अब नहीं सोचता. हाँ जब एक आदमी अंग्रेजी बोल कर बहाना बना कर पैसे माँग रहा था, उसे नहीं दिए तो बुरा लगा था लेकिन एक सप्ताह बाद ही वो फिर मिल गया तो ग्लानी चली गई.
गँगा मैया का जल यहाँ कैसा रहता है ? प्रदूषित है या स्वच्छ है ?
ReplyDeleteबहोत अच्छी लगीँ फोटो -पानी भी सुफेदी लिये दीख रहा है -
और विक्षप्त हर बडे शहरोँ मेँ दीख जाते हैँ -- दया के पात्र है !
देवि सुरसरि भगवति गंगे,त्रिभुवन तारिणि तरल तरंगे।
ReplyDeleteशंकरमौलिविहारिणि विमले,मम मतिरास्तां तव पद कमले ॥
गंगाजी के दर्शन कराने के लिए शुक्रिया.
ganga ki tasweeren bahut achchi lagi....teen maheene pahle ek meeting mein alaahabaad jane ka mauka aaya tha magar jana na ho saka...agli baar aakar sangam dekhne ki badi ichcha hai..
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट लगी, भगवान की इस सष्टि में वही एक विक्षिप्त नही है हम सभी न सभी एक विक्षिप्त है। उसका तो विक्षिप्तपन दिख रहा है और जो दिखता है उसका दुख दूर होता है किन्तु हम सब इस समाज के सबसे बड़े विक्षिप्त है जो अपनी विक्षिप्तता छिपाये फिरते है। आज के परिवेश में हमें लगता है कि हम सम्पन्न है तो यह हमारी भूल है एक रिक्सा वाला 150 रोज कमा कर चैन की नींद सोता है किन्तु क्या 1500 रोज कमा कर भी यह सुख पा पाते है ?
ReplyDeleteयह "उसकी' स्थिति में अपने आप को रखकर सोचने वाली हालत अक्सर मेरे साथ हो जाती है कई-कई मौकों पर और तब, तब मन बड़ा ही विचलित हो उठता है।
ReplyDeleteहम ऐसे ही सामने वाले की स्थिति में अपने को रखकर सोचते हैं तभी हमें हालात का सही ज्ञान हो पाता है।
पर यह भी ख्याल आता है कि क्या ऐसे कुछ रुपए देने से ही हल निकल आएगा………यहां पर आकर दिमाग का डिब्बा गोल होने लगता है।