Sunday, June 1, 2008

टिप्पणियों में क्या नहीं जमता मुझे


Comments टिप्पणियां किसे प्रिय नहीं हैं? पर कुछ टिप्पणियां नहीं जमतीं। जैसे -

  1. अपने आप को घणा बुद्धिमान और पोस्ट लिखने वाले को चुगद समझने वाली टिप्पणी। आप असहमति व्यक्त कर सकते हैं। कई मामलों में होनी भी चाहिये। पर दूसरे को मूर्ख समझना या उसकी खिल्ली उड़ाना और अपने को महापण्डित लगाना आपको ट्रैफिक नहीं दिलाता। कुछ सीमा तक तो मैं स्वयम यह अपने साथ देख चुका हूं।
  2. पूरी टिप्पणी बोल्ड या इटैलिक्स में कर ध्यान खींचने का यत्न।
  3. टिप्पणी में अनावश्यक आत्मविषयक लिन्क देना। लोग अपने तीन-चार असम्पृक्त ब्लॉगों के लिंक ठेल देते हैं!
  4. पूरी टिप्पणी में तुकबन्दी। तुक बिठाने के चक्कर में विचार बंध जाते हैं और बहुधा अप्रिय/हास्यास्पद हो जाते हैं।
  5. हर जगह घिसी घिसाई टिप्पणी या टिप्पण्यांश। "सत्यवचन महराज" या "जमाये रहो जी"। आलोक पुराणिक के साथ चल जाता है जब वे इस अस्त्र का प्रयोग भूले-भटके करते हैं। जब ज्यादा करें तो टोकना पड़ता है!
  6. यदा कदा केवल जरा सी/एक शब्द वाली टिप्पणी चल जाती है - जैसे ":-)" या "रोचक" । पर यह ज्यादा चलाने की कोशिश।
  7. यह कहना कि वाइरस मुझे टिप्पणी करने से रोक रहा है। बेहतर है कि सफाई न दें या बेहतर वाइरस मैनेजमेण्ट करें।
  8. ब्लण्डर तब होता है जब यह साफ लगे कि टिप्पणी बिना पोस्ट पढ़े दी गयी है! पोस्ट समझने में गलती होना अलग बात है।
  9. ढेरों स्माइली ठेलती टिप्पणियां। यानी कण्टेण्ट कम स्माइली ज्यादा।

बस, ज्यादा लिखूंगा तो लोग कहेंगे कि फुरसतिया से टक्कर लेने का यत्न कर रहा हूं।

मैं यह स्पष्ट कर दूं कि किसी से द्वेष वश नहीं लिख रहा हूं। यह मेरे ब्लॉग पर आयी टिप्पणियों की प्रतिक्रिया स्वरूप भी नहीं है। यह सामान्यत: ब्लॉगों पर टिप्पणियों में देखा, सो लिखा है। प्वाइण्ट नम्बर १ की गलती मैं स्वयम कर चुका हूं यदा कदा!
टिप्पणियों का मुख्य ध्येय अन्य लोगों को अपने ब्लॉग पर आकर्षित करना होता है। उक्त बिन्दु शायद उल्टा काम करते हैं। Striaght Face

मस्ट-रीड रिकमण्डेशन - एक टीचर की डायरी। इसमें कुछ भी अगड़म-बगड़म नहीं है।

24 comments:

  1. कोई टिप्पणी नहीं .......ज्ञान जी !

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  2. आप कितने अच्छे हैं. बता देते हैं कि क्या पसंद है, क्या नहीं. साधुवाद.

    मित्रों, जो इस तरह की टिप्पणियां करना चाहते हैं लगातार, वो मायूस न हों.वो हमारे यहाँ सादर आमंत्रित हैं. :)

    वहाँ असंसदिय भाषा छोड़ सब कुछ इत्मिनान से छोड़कर जायें.

    ज्ञानजी का आभार, मार्केटिंग का मौका दिया. ऐसे ही लगे रहिये. हा हा!

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  3. आपको चाहे पसन्द हो या न हो, पाठक अपनी मर्जी का मालिक होता है। जो मन में आयेगा टिपियायेगा। आप क्या कल्लेंगे सिवाय माडरेट करके अप्रूव करने के! वैसे सब तरह की टिप्पणियों के बारे में उदाहरण देकर समझाना चाहिये। जैसे कि .... टाइप!

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  4. बहुत अच्छे विचार.
    मैं सहमत हूँ.
    पर यदा कदा इनमे से शायद कई भूल कर बैठता हूँ.
    लेकिन आपने चेता दिया है.
    धन्यवाद.

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  5. टिप्पणीकारों के लिए आदर्श आचारसंहिता? मुश्किल है.
    नंबर एक वाली गलती तो हमसे होती रहती है. ख़ुद भी ब्लॉग लिखने वालों को तो इससे बचना ही चाहिए. :-) वायरस टिप्पणी से रोके, ये कुछ समझ में नहीं आया.

    लगता है कि इस पोस्ट पर ढेर सारी रोचक टिप्पणियां आने वाली हैं. लौट कर आते हैं पढने.

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  6. yes, i agree when a comment is to the point and says the person's thoughts in a precise manner then the Blog -Writer , does feel , inspired & happy.

    Otherwise, one should refrain from commenting in a haphazard fashion --

    I'm away from my PC - hence this comment is in Eng.
    Will come back to read more, later ...till then,
    Regards,
    L

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  7. :0 :) :) :) :) :)
    जित्ती पसंद हो उत्ती रखे :)

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  8. बहुत अच्छे विचार.
    मैं सहमत हूँ.
    पर यदा कदा इनमे से शायद कई भूल कर बैठता हूँ.
    लेकिन आपने चेता दिया है.
    धन्यवाद.



    हा हा हा... तो यह था, टिप्पणियों के साथ मेरा नया प्रयोग !
    पोस्ट पर ढेरों उपलब्ध टिप्पणियों से कापी पेस्ट करके काम
    चलाओ । यह आपकी टेंशन है, गुरुवर !


    नंगे को अपना अंडरवियर मैला होने की चिन्ता ही नहीं , ही ही ही !

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  9. मैं भी एक सप्ताह से यही सोच रहा था कि क्या टिप्पणी करना आवश्यक है। यही कारण है कि इन दिनों जितने चिट्ठे पढ़े उन में से चौथाई पर भी टिप्पणी नहीं की।
    कभी टिप्पणी आवश्यक होते हुए भी नहीं कर पाते शब्द पुष्टिकरण के कारण।
    चलताऊ टिप्पणी से सिर्फ इतना महसूस होता है कि आलेख टिप्पणीकर्ता ने देख लिया है।
    वस्तुतः टिप्पणी का महत्व तभी है जब कि वह आप के आलेख की विषयवस्तु से अन्तर्क्रिया करती हो।

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  10. दादा भाई
    आपकी पोस्ट जताती है कि ब्लॉगिंग के मैच में एक अम्पायर भी है जो आपके किये पर नज़र रखे है.बेहतर होता आप अपनी पोस्ट के अंत में ये मशवरा भी दे डालते कि कृपया इस पोस्ट पर टिप्पणी न करें ; मनन करें ; आचरण करें.
    प्रणाम

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  11. भई हम तो जब आपकी ज्ञान बिड़ी पीकर मस्‍त हो जाते हैं तो अपनी मस्‍ती में टिपिया देते हैं । क्रोनिक मजाकिया हैं । क्‍या करें ।
    मानकर चलते हैं कि हमारी चुहल आपको गुदगुदाएगी ही । 'परसान'नहीं करेगी ।
    बाकी तो पहलवान बब्‍बा की जै ।
    :D

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  12. सत्य वचन महाराज।
    टिप्पणी सच्ची में ऐसी होनी चाहिए कि लगे पढ़कर की गयी है। वरना ना की जाये, तो बेहतर। समीरलालजी की पास एक आदमी फोटू कापी यंत्र है, उसमें से वे अपनी पचास फोटूकापियां निकालते हैं और इक्यावन समीरलालजी जुट जाते हैं सारे ब्लाग पढ़कर टिप्पणियां करने में।
    समीरजी अगली बार इंडिया आयें और तो उनका
    अपहरण करके उस मशीन का जुगाड़मेंट किया जाये, तब बंदा टिप्पणी कुशल हो सकता है। अपना हाल तो यह है कि दो चार टिप्पणियों के बाद हांफने लगता हूं।

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  13. सत्य वचन... :)


    मुझे तो एक नम्बर वाली बात जमी. टिप्पनीकार को कम से कम इस बात का तो ध्यान रखना ही चाहिए. बाकि करने के लिए की गई टिप्पणी झूठी मुस्कान की तरह पकड़ में आ ही जाती है.

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  14. लगता है लिखते वक़्त नरम पड़ गये है.....वैसे कई बातें आपने छोड़ दी है.......ब्लोग्गेर्स ख़ुद समझ लेंगे....

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  15. राम-राम!
    मन्ने तो लागे है कि जे सब म्हारे लिए ही लिक्खो गयो है।

    अक्सर हल्के-फुल्के मूड में टिपियाने के चक्कर में शायद मुझसे यह गलतियां हो ही जाती होंगी।
    मुआफी!
    अब कोशिश की जाएगी अपने को सुधारने की

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  16. सतही टिप्पणियाँ मुझे भी परेशान करती है। पर टिप्पणी कैसी भी हो हौसला भी बढाती है। आपकी पोस्ट मे इतनी विविधता होती है कि सभी बातो पर टिप्पणी नही कर पाते है। मसलन, कुछ दिनो पहले आपने लिखा था कि हिन्दी प्रभाग मे आपको आमंत्रित किया गया है। मैने पढा पर बधाई देने से चूक गया।

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  17. उत्साहवर्धन के लिए टिप्पणियाँ जरूरी हैं, लेकिन उनका कुछ मतलब भी होना चाहिए।

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  18. टिप्पणियों पर आपकी इस टिप्पणी पर
    टिप्पणी करना भी मुनासिब न हो शायद,
    यही सोचकर कहता हूँ ....नो कमेंट्स !
    ==================================
    बहरहाल एक नये विषय पर
    विमर्श का मौका मिला.
    धन्यवाद.

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  19. आपके मस्ट रीड रिकमेंडेशन से
    आलोक जी की
    एक जानदार पोस्ट
    पढ़ने का अवसर मिला.
    शुक्रिया !

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  20. सत्यं ब्रुयात् प्रियम् ब्रुयान्नब्रुयात् सत्यमप्रियम् |
    प्रियम् च नानॄतम् ब्रुयादेष: धर्म: सनातन: ||

    इतना सत्य की आगे से टिपण्णी करने में ही डर लगे :-) वैसे कई बातें कहना आप भूल गए... कई बार अपनी presence दिखाने के लिए भी तो टिपण्णी करनी पड़ जाती है... और कई बार टिपण्णी न करो तो कुछ मित्र लोगो की शिकायत भी आ जाती है की मेरी पोस्ट ही नहीं पढ़ते हो.

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  21. जब से आलोक ने बताया कि समीरलालजी के पास टिप्पणी जुगाडु समीरलाल उत्पन्नू यंत्र है तब से अपहरण फिल्म दोहरा कर देख आऐ, न जाने कब समीर लौटें और हम उन्हें घोटें :)

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  22. बड़े भाई जी , असहमति रखता हूँ आपसे इस मुद्दे पर .अगर पोस्ट लिखने वाला अपने आप को घणा बुद्धिमान और और पढ़ने वाले को चुगद समझने की भूल करे तब टिप्पणी कैसी हो ? आप यकीं करें अधिकांश पोस्ट किसी सामाजिक मुद्दे पर लठ गाड़ता दिखता है . "सत्यवचन !" " रोचक " अति सुंदर आलेख " जैसा कमेंट पढे जाने के बाद नही लिखा जाता बिना पढे ही लिखा जाता है , उत्साहवर्धन के लिए सर्वमान्य कमेंट्स है ये .इस टाइप के कमेंट्स अपने ब्लॉग पर आने का आमंत्रण और अपनी उपस्थिति का अहसास भर कराता है .
    और ये जरूरी नही की हर टिप्पणीकर्ता किसी को अपने ब्लॉग पर बुलाने के लिए टिप्पणी करता हो . कईयों के ब्लॉग पर ६ महीना पुराना पोस्ट होता है तो किसी का ब्लॉग भी नही होता .
    कमेंट्स आने दीजिये सत्यवचन ! रोचक ! अति सुंदर ! जमाये रहो ! लगे रहो ! को रोकिये . अभी बढ़िया फैशन चलन मे है अपने कमेंट्स को दूसरे के ब्लॉग पर न देकर अपने ब्लॉग पर पोस्ट करो .इस प्रकिया मे तो आग ही आग दिखता है .

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  23. फ़िल्मी सितारों और अच्छे और सफ़्ल चिट्टाकरों में फ़र्क क्या है?
    सितारे जब industry में प्रवेश करते हैं, तब मीडिया वालों का हमेंशा इन्तज़ार रहता है. Star बनने के बाद वही मीडिया वालों के खिलाफ़ शिकायत करते हैं और अपना privacy चाहते हैं।

    यही हाल है कुछ चिट्टाकारों का।
    शुरू में टिप्पणियों का इन्तज़ार रहता है।
    कोई भी टिप्पणी चलेगी।
    कम से कम इस विशाल cyber space में किसी का ध्यान आकर्षित कर सका!
    सफ़ल चिट्टाकार बनने का बाद यह लोग क्यों "choosy" बन जातें है?
    मैं सोचता हूँ, आने दो टिप्पणियों को!
    कोई प्रतिबन्ध नहीं होनी चाहिए।
    blog एक public platform है।
    जो बेतुकी टिप्पणी करते हैं, वे "hecklers" के समान होते हैं।
    अच्छे भाषणकारों को "hecklers" का डर नहीं रह्ता
    अच्छे चिट्टाकारों को भी इन जैसे टिप्पणीकारों के साथ जीना होगा।
    बस ignore कीजिए इन लोगों को।
    कब तक चिल्लाते रहेंगे?
    अपने आप बन्द करेंगे।
    एक उदाहरण :
    अंग्रेज़ी में एक चिट्टे पर एक पाठक नें कुछ बेहूदा लिख दिया।
    चिट्टाकार ने उत्तर में लिखा:
    "You have exercised your freedom to comment. I now exercise my freedom to not comment on your "comment" and also ignore it. Please continue comments like these and allow me the pleasure to continue ignoring them"

    Problem Solved.

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  24. "टिप्पणियों का मुख्य ध्येय अन्य लोगों को अपने ब्लॉग पर आकर्षित करना होता है।"

    इस कथन से पूर्णतया असहमत हूं...

    यह एक ध्‍येय हो सकता है, कुछ लोगों का हो सकता है, लेकिन इसे जनरलाइज नहीं किया जा सकता।


    सालों बाद इस पोस्‍ट पर टिप्‍पणी करने लौटा हूं तो गिरिजेशजी के ब्‍लॉग पर उपस्थित लिंक के जरिए।

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आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय