Friday, June 6, 2008

रेल माल-यातायात का रोचक प्रकार


toy_train_BW चूंकि मैं आजकल रेलवे में माल यातायात का प्रबन्धन देख रहा हूं और नित्यप्रति की ४००-४५० माल गाड़ियों का आदान-प्रदान देखता हूं उत्तर-मध्य रेलवे पर, मैं एक एक ट्रेन का ध्यान नहीं रख सकता कि किस मालगाड़ी में कहां से कहां के लिये क्या जा-आ रहा है। मोटे तौर पर यातायात का स्ट्रीम स्पष्ट होता है। पर कभी कभी कुछ नये प्रकार का यातायात दीखता है जिससे पता चलता है कि लोग किस प्रकार के उद्यम करते हैं। मैं यहां एक उदाहरण दूंगा।

महीना भर पहले ईस्ट कोस्ट रेलवे के मेरे काउण्टर पार्ट का फोन आया कि मैने कण्टेनर में लौह अयस्क लदान कर उनके बन्दरगाह पर भेज दिया है और चूंकि कण्टेनर रेलवे के वैगन नहीं होते, उन्हे लौह अयस्क जैसे पदार्थ को रेलवे के इतर वैगन में लदान पर घोर आपत्ति है। रेलवे की नीति के अनुसार लौह अयस्क जैसा सदा से चल रहा ट्रैफिक रेलवे के अपने वैगनों में जाना चाहिये।

मुझे भी आश्चर्य हुआ - मेरे गांगेय क्षेत्र में कहां से लोहे की खदान आ गयी कि कोई खुराफाती व्यवसायी उसे ला कर कण्टेनरों में लदान करने लगा। तहकीकात करने पर रोचक तत्व पता चला। इस क्षेत्र में लोहे का सरिया या अन्य लोहा काटने-रेतने से जो बुरादा निकलता है, उसे इकठ्ठा किया जाता है, उसे कण्टेनर में लदान कर पूर्वी क्षेत्र के बन्दरगाहों को भेजा जाता है। वहां से यह उन पूर्वी एशियाई देशों को निर्यात होता है जहां लोहे की खदाने नहीं हैं। चूंकि यह बुरादा लगभग पूरी तरह लोहा होता है - काफी दाम मिलते होंगे निर्यात में उसके! मैं कल्पना कर सकता हूं कि छोटे छोटे लड़के या छोटी इकाइयां यह बुरादा इकठ्ठा कर कबाड़ी को देते होंगे, फिर उनसे ले कर कोई बड़ा कबाड़ी एक निर्यात का व्यवसाय करता होगा। कुल मिला कर बड़ा कबाड़ी एक रेक के निर्यत में उतना कमा लेता होगा, जितनी मेरी जिन्दगी भर की पूरी बचत होगी! चूंकि यह लौह अयस्क (आयरन ओर) नहीं, लौह चूर्ण (आयरन डस्ट - एक नये प्रकार का यातायात) था, उसका कण्टेनर में लदान गलत नहीं पाया गया।

पर हाय, हम अफसर क्यों हुये, कबाड़ी क्यों न हुये!

मित्रों हम माल यातायात को और गहराई में प्रोब करें तो बिजनेस के बहुत अनोखे प्रकार-विचार ज्ञात होंगे।

पर इतना कमिटमेण्ट हममें है कहां कि वह सब समझें और फिर नौकरी को लात मार व्यापार में हाथ अजमायें!


22 comments:

  1. अभी अभी शब्दों का सफर पर पंगेबाज को पढ़ कर आ रहा हूँ। धन्धेबाज/कबाड़ी होने के पहले उसे जरुर पढ़ लें।

    ReplyDelete
  2. नौकरीया पर लात मारने के लिए जिगर लोहाबादी होना चाहिए वरना जानते हैं न कि पत्नी सील-बट्टा लेकर जब दौडेगी तो दिन में भी लोहे का बुरादा ही नजर आएगा ... :) :)

    ReplyDelete
  3. पॉलिटिक्‍स की तरह आप जैसे अच्‍छे लोग अब नौकरियां भी छोड़ देंगें तो कैसे च‍लेगा......

    ReplyDelete
  4. सेवा नीवृती के बाद ये सारी साधे पूरी कर लीजियेगा .

    ReplyDelete
  5. बस आईडिया इकट्ठा करते रहिये, नाती पोतों को सुनाने के काम आयेंगे. :)

    हर क्षेत्र के धनात्मक और ऋणात्मक पहलू होते हैं, इसमें भी होंगे. मगर पॉजिटिव थिकिंग में बुराई नहीं-मन को अच्छा लगता है. जी, आप जारी रहिये. हम सुन रहे हैं.

    ReplyDelete
  6. आप ने भी खूब कही ,सर....हम अफसर क्यों हुये..कबाड़ी क्यों ना हुये। वैसे आप की पोस्ट से बहुत नवीन जानकारी प्राप्त हुई कि कुछ लोगों में इतनी ज़्यादा एंटरप्रयोरशिप है ....शायद तभी तो कहते हैं कि ज़रूरत अविष्कार की जननी है!!

    ReplyDelete
  7. भगवान् का लाख लाख शुक्र है कि आप अफसर हुए कबाड़ी नहीं हुए. अगर होते तो इस ब्लॉग पर क्या लिखते? रोचक कयास लगाये जा सकते हैं. चिट्ठाजगत का भीषण नुकसान होता.

    वैसे कहीं कहीं कुछ कबाडी अफसर भी होते ही हैं.

    ReplyDelete
  8. हम सब कबाड़ी ही हैं।
    कुछ रेल का करते है, कुछ खेल का करते हैं। कुछ लोहे का करते हैं, कुछ आटे का करते हैं।
    बड़े बड़े विकट तर्क हैं जी। एक टीवी चैनल के लिए काम कर रहा था तो एक दिन किसी शराब एसोसियेशन का लैटर आया, जिसमें बजट से पहले डिमांड की गयी थी कि पूरी लिक्वर इंडस्ट्री को कृषि का दर्जा दिया जाये। तर्क था कि शराब अंगूर आदि फलों से बनती है। बीयर पर भी यही तर्क लागू किया गया था।
    तर्क विकट था।
    जमाये रहिये।

    ReplyDelete
  9. ज्ञान दादा यह लौह चूर्ण स्पार्क इरोजन/वायर कट जैसी सी एन सी मशीनो से निकलता है,मोटा धंधा है .कुछ पैसे का जुगाड करो,शुरू कर लेते है,इस काम के लिये जगह मैने ढूढ ली है यही रेल लाईन के किनारे रेलवे की बहुत अच्छी जगह है.्कोई किराया भी नही देना :)

    ReplyDelete
  10. आप बिजनेस इत्र की शीशियों का करें या कबाडी का लेकिन प्लीज़ ब्लॉग लिखने के लिए इतना समय जरूर निकाल लीजियेगा जितना इस रेलवे की नौकरी में निकाल लेते हैं :D

    ReplyDelete
  11. ह्म्म ! सोच रहे है हम भी सब काम वाम छोड़ के कबाड़ी बन जाए..

    ReplyDelete
  12. हम तो कहते हैं छोड़िये ये अफसरसाही.. निकल लिजीये एक नये सफर पर.. :)

    ReplyDelete
  13. दूर के ढोल (Always) सुहाने। :)

    ReplyDelete
  14. सब कुछ ठीक है बस आप जिन्हें कबाडी कहते है उन्हें हम व्यापारी कहते है......हमारे एक दोस्त के ससुर चमड़े का व्यापार कर करोड़पति बने हुए है....

    ReplyDelete
  15. "पर इतना कमिटमेण्ट हममें है कहां कि वह सब समझें और फिर नौकरी को लात मार व्यापार में हाथ अजमायें!"
    ये मेरे मन की बात लिख दी आपने.
    रही कबाडी होने की बात तो मैं पंकज अवधिया जी की बात से सहमत हूँ. और एक शेर याद आ रहा है:-
    "हर किसी को मुकम्मल जंहा नहीं मिलता
    कंही जमीं तो कंही आसमां नहीं मिलता"

    ReplyDelete
  16. और हम सोच रहे है कि इस पर हम क्या कहें । :)

    ReplyDelete
  17. मैं भी सोच रहा हूँ आप कबाडी न सही कुछ और ही... लेकिन अफसर कैसे हो गए.. हर जगह बिजनेस का आईडिया निकाल लेते हैं.

    ReplyDelete
  18. Quote:
    मित्रों हम माल यातायात को और गहराई में प्रोब करें तो बिजनेस के बहुत अनोखे प्रकार-विचार ज्ञात होंगे।
    पर इतना कमिटमेण्ट हममें है कहां कि वह सब समझें और फिर नौकरी
    को लात मार व्यापार में हाथ अजमायें!
    Unquote

    मेरे एक मित्र की याद आती है।
    मेरे साथ इंन्जिनीयरिंग की पढ़ाई की थी उसने (१९६७ से लेकर १९७२ तक). मारवाड़ी है, जो चेन्नै में बस गया है।
    ३६ साल बाद उससे हाल ही में मिलने का अवसर मिला।
    बस यही है उसका धन्धा। (export of Iron dust).
    कोई office या staff नहीं है।
    घर बैठे, केवल फोन, फ़ैक्स, इन्टर्नेट की सहायता से अपना business चला रहा है। सब काम sub-contract करके आराम की जिन्दगी जी रहा है!

    एक और मित्र था मेरा. मेरे साथ पढाई की थी. असम PWD में SE था।
    एक दिन अचानक, (उन्हीं की श्ब्दों में) उसे "एक पागल कुत्ते नी काट लिया" और (आपकी शब्दों में) "नौकरी को लात मारकर" मछलियों का एक अनोखा धन्धा आरम्भ किया जो कुछ सालों तक चला।
    नहीं वह मछुआ नहीं बना। असम में, ब्रह्मपुत्र नदी में कुछ गुप्त इलाकों में कुछ अनोखे किस्म की मछलियाँ पायी जाती हैं। उनहें पकड़कर, विदेश के कुछ खास aquariums को निर्यात करने का धन्धा था उसका।
    कुछ खास जनजातियों से सम्पर्क स्थापित करके, उसने यह धन्धा सफ़लता से कुछ साल चलाया।

    मैं स्वयं २६ साल public sector में नौकरी करने के बाद, आज पिछले आठ साल से अपना खुद का एक knowledge process outsourcing business चला रहा हूँ।

    यदि आप सरकारी सेवा और आमदनी से सन्तुष्ट हैं तो कोई बात नहीं. करते रहिए, और अपने इलाके के पाग्ल कुत्तों से दूर रहिए।

    ReplyDelete
  19. आपने बहुत बढ़िया कमाई का जरिया बताया . आप तो रेलवे मे है मॉल बाहर भेजने के लिए बैगन अलाटमेंट के लिए इंडेंट लगाते ही १० मिनिट के अन्दर खाली बैगन अलाट हो जावेगी. फ़िर कोई दिक्कत नही है . धन्यवाद

    ReplyDelete
  20. बढ़िया है। कबाड़ी का धंधा बहुत मेहनत मांगता है। कोई दूसरा धंधा देखिये। फ़िर तीसरा देखिये , फ़िर चौथा और फ़िर......। आखिर में सोचिये यहीं ठीक है यार!

    ReplyDelete
  21. ज्ञान भाई सा'ब्,
    आपने बडा रोचक विवरण दिया है.

    ReplyDelete
  22. Excellent. I am a railway officer too, so I could connect well. - rajesh gupta.

    IRSEE

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय