मैं टीवी का दर्शक नहीं रहा - कुछ सालों से। मेरे परिवार ने उसका रिमोट मेरे हाथ से छीन लिया और मैने टीवी देखना बन्द कर दिया। बिना रिमोट टीवी क्या देखना? रिमोट की जगह कम्प्यूटर के माउस का धारण कर लिया मैने।टेलीविजन विज्ञापन पर यह पोस्ट मेरे ब्लॉग पर श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ ने बतौर अतिथि पोस्ट लिखी है। वे इतना बढ़िया लिखते और टिपेरते हैं कि मैं उनसे ब्लॉग प्रारम्भ करने का अनुरोध करता हूं। अभी आप अतिथि पोस्ट पढ़ें -
आज नुक्कड़ पर पंकज बेंगानी द्वारा पोस्ट किया गया यह चित्र देखकर मेरे मन में कई विचार आने लगे। आजकल टीवी पर विज्ञापनों से तंग आ गया हूँ और केवल ads के चलते टीवी बहुत कम देखता हूँ। बस कभी कभी, कुछ समय के लिए न्यूज़ चैनल या कुछ खास और चुने हुए सीरियल देखता हूँ और जब विज्ञापन आने लगते हैं तो "ब्रेक" का फ़ायदा उठाता हूँ। झट से पास में रखा हुआ कोई किताब/पत्रिका/अखबार पढ़ने लगता हूँ। इस प्रकार "मल्टी-टास्किंग" करने में सफ़ल हो जाता हूँ। IPL T20 के मैच देखते देखते कई पत्रिकाएं पढ़ डालीं। आजकल ये "ब्रेक्" १० मिनट तक चलते हैं। काफ़ी है मेरे लिए। लगभग दो या तीन पन्ने पढ़ लेता हूँ इस अवधि में! अब साड़ी पर यह "गूगल" का विज्ञापन देखकर मैं चौंक गया। कहाँ तक ले जाएंगे ये लोग इस आइडिया को? क्या विज्ञापन के लिए प्रिन्ट मीडिया, रेडियो, टीवी, अन्तर्जाल, बड़े बड़े पोस्टर, बस और ट्रेन की दीवारें वगैरह काफ़ी नहीं है? अब हमारे कपडों पर भी हमले होने लगे हैं। मेरे लिए दुनिया में सबसे खूबसूरत दृश्य है रंगीन साड़ी पहनी हुई एक सुन्दर भारतीय नारी। अगर साड़ी पर कोई ज़री, या अन्य "डिजाइन" हो, मुझे कोई आपत्ति नहीं। लेकिन उसपर कोई लिखा हुआ सन्देश, या किसी कंपनी का विज्ञापन मैं देखना कतई पसंद नहीं करूँगा। अब आगे चलकर क्या ये लोग सस्ते साड़ियों पर विज्ञापन छापकर उन्हें गरीब औरतों में बाँटेंगे? शायद गरीब नारी को यह मंज़ूर भी होगा। उन्हें क्या मतलब किसी विज्ञापन या कंपनी से। उन्हें बस सस्ते में या नि:शुल्क साड़ियाँ मिल सकती है - यही बहुत अच्छा लगेगा। अगर यह सफ़ल हुआ, तो मर्द भी कहाँ पीछे रहेंगे? अपने छाती और पीठ पर जगह देने के लिए तैयार हो जाएंगे। टी शर्ट सस्ते हो जाएंगे या "फ़्री" हो जाएंगे। बस, पीठ/छाती पर कोई विज्ञापन भर झेलना होगा। जरा सोचिए, लाखों गरीब अगर अपने अपने पीठ दान करने के लिए तैयार हो जाते हैं, तो इन विज्ञापन कंपनियों को कितने लाख वर्ग फ़ुट की एडवर्टिजमेण्ट स्पेस मिल सकता है! सरकार को गरीबी हटाने में सफ़लता भले ही न मिले, कम से कम नंगेपन हटाने में सफ़लता हासिल होगी। अगला कदम होगा, कपडों को छोड़कर, सीधे त्वचा पर हमला करना। अगर औरत, बिन्दी छोड़कर अपने ललाट भी न्योछवर करने के लिए तैयार हो जाती है, तो और भी अवसर मिल जाएंगे इन कंपनियों को। जीवन बीमा निगम (LIC) का "लोगो" वैसे भी बहुत सुन्दर है। औरतों के ललाटों को शोभा दे सकता है और साथ साथ जीवन बीमा का सन्देश देश के कोने कोने में पहुँच सकता है। यदि औरतें गोल बिन्दी के बदले लाल त्रिकोण लगाने के लिए तैयार हो जाती हैं तो परिवार नियोजन का भी प्रचार हो सकता है। जब गरीब खून बेच सकता है, जब अपनी "किड्नी" बेचने कि लिए तैयार हो सकता है तो गरीब नारी बिन्दी त्यागकर अपने ललाट पर किसी कंपनी का "लोगो" गोदवाने (tattoo करने) के लिए भी तैयार हो सकती है। क्या स्थिति यहाँ तक पहुँचेगी? - गोपालकृष्ण विश्वनाथ |
स्थिति यहां तक जरूर पंहुचेगी विश्वनाथ जी, और आगे भी जायेगी! प्रलय में बहुत देर है!
ड्राफ्टब्लॉगर ने ब्लॉगस्पॉट पर कई नई सुविधायें दी हैं। वर्डप्रेस की तरह कमेंट-बॉक्स उनमें से एक है। आप ब्लॉगर इन ड्राफ्ट के ब्लॉग की निम्न पोस्ट पढ़ें -Updates and Bug Fixes for June 26th
यह तो शुरू भी हो चुका है ,गाहे बगाहे ऐसे दृश्य दिखने लगे हैं .विज्ञापन की दुनिया में मनुष्य एक कमोडिटी ही है ...विश्वनाथ जी, आप की हिन्दी इतनी प्रांजल तो है फिर आपको यह हिचक क्यों है कि आप हिन्दी अच्छी नही लिखते ......यह आपकी अतिशय विनम्रता है .आज के आप के अतिथि पोस्ट से ज्ञान और गरिमा का अद्भुत संयोग हो रहा है .यह हिन्दी ब्लॉग जगत के लिए निश्चय ही शुभ फल दायक होगा ,अस्तु ,
ReplyDeleteजो विज्ञापन कंपनियों ने चाहा वही हुआ. एक ऐसा इंसान जो विज्ञापन नही देखता है वह एक बार देखे विज्ञापन के बारे में लिख रहा है. कंपनियों को हमारा आपका अटेन्सन ही चाहिए जो उन्हें मिल गया. बाकि चीजे आपके लिए प्राथमिक और उनके लिए गौण होती हैं. वैसे मुझे अच्छे विचार वाले विज्ञापन देखने में बहुत मजा आता है जिनमे एयरटेल, फेविकोल, वोडाफोन, बच्चो के उपयोग वाले प्रोडक्ट अच्छे लगते हैं
ReplyDeleteजो विज्ञापन कंपनियों ने चाहा वही हुआ. एक ऐसा इंसान जो विज्ञापन नही देखता है वह एक बार देखे विज्ञापन के बारे में लिख रहा है. कंपनियों को हमारा आपका अटेन्सन ही चाहिए जो उन्हें मिल गया. बाकि चीजे आपके लिए प्राथमिक और उनके लिए गौण होती हैं. वैसे मुझे अच्छे विचार वाले विज्ञापन देखने में बहुत मजा आता है जिनमे एयरटेल, फेविकोल, वोडाफोन, बच्चो के उपयोग वाले प्रोडक्ट अच्छे लगते हैं
ReplyDeletehar cheez ka bajarikaran hota ja raha hai
ReplyDeletebhai comananay vale usi cheej ka vighyapan denge jisame unka fayada ho .
ReplyDeleteकमाल है, आप ने यह टिप्पणीखाँचा ब्लागर से प्राप्त कर लिया। बधाई!
ReplyDeleteस्थिति कहाँ तक पहुँचेगी कह नहीं सकते। सारा मामला आवश्यकता के स्थान पर मुनाफे पर आधारित उत्पादन का है। जरुरत की चीजों के स्थान पर गैर जरूरी वस्तुएँ उत्पादित की जा रही है। उन्हें बेचने के लिए उपभोक्ता को लुभाया जा रहा है। जहाँ देश को सार्वजनिक परिवहन विकसित करना था वहाँ उत्पादकों की सरकारों की नीतियों ने सैंकड़ों तरीके के वाहनों की भीड़ लगा दी। यह व्यवस्था पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों को व्यर्थ बरबाद कर रही है, जो आप के प्रलय का बायस बनने वाला है।
जरूरत है आवश्यकता आधारित व्यवस्था बनाने की और यह जनता के राजनैतिक संकल्प के बिना संभव नहीं है।
ईस गूगलदेवी का चित्र पहले भी देख चूका हूं, लेकिन कभी ईस ओर ध्यान नहीं दिया था। अच्छा मुददा उठाया।
ReplyDeleteवाह! ये ब्लॉगर की बहुत ही बढ़िया सुविधा आपने बताई. इस पर तो अलग से पोस्ट लिखी जा सकती थी. बहरहाल शुक्रिया. अभी ही इसे अपने सभी चिट्ठों में डालते हैं. बड़ी लंबी प्रतीक्षा के बाद यह सुविधा मिली है.
ReplyDeleteऔर विश्वनाथ जी जैसा प्रयोग तो मैं भी करता हूं, परंतु हाल ही के कुछ विज्ञापनों में प्रयोग की पराकाष्ठाएं भी नजर आती हैं - अत्यंत कम समय में धारदार ढंग से अपनी बात कहना. और खासकर इधर के विज्ञापनों में हास्य का पुट - क्या कहने. मगर उनकी बारंबारता अवश्य अखरती है.
यह कमेंट बक्सा तो ऑपेरा में काम ही नहीं कर रहा है लिहाजा मजबूरी में इसे फिर से फ़ॉयरफ़ॉ्क्स में खोलकर टिप्पणी कॉपीपेस्ट करनी पड़ रही है.
शरीर भी विज्ञापन के लिए बिकने लगे है, खबर थी की एक महिला पैसे के लिए अपने ललाट पर किसी कम्पनी का लोगो खुदवाने को तैयार हो गई थी.
ReplyDeleteरविजी, ऑपेरा में कोई जबरदस्त बग है, जूमला आधारीत साइटों को इसके माध्यम से अपटेड नहीं किया जा सकता. यानी जहाँ पाठ डालना है वहाँ करसर जाता ही नहीं. टिप्पणी के मामले में वही हुआ होगा.
एक चीज तो है, और इसकी प्रसंसा की जानी चाहिये कि
ReplyDeleteयह लोग बड़े अनोखे आइडिया के साथ रखते हैं, अपनी बात !
प्रतिस्पर्धा में भोंड़ापन का समावेश तो होना ही है !
हम तो इस साड़ी के डिजाइनर को उसकी रचनात्मकता के लिए बधाई देंगे और आपको इस बढ़िया चित्र के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteफ्यूचर को कुछ ज्यादा ही ब्लीक पेंट किया जा रहा है. विज्ञापन वहीं लगाये जाते हैं जहाँ लोगों के ध्यानाकर्षण में सफल हों. दर्शक के मनोविज्ञान का भी ध्यान इन्हें रचते हुए रखना पड़ता है. कौन विज्ञापन किस तरह के भाव देखने वाले के मन में जगायेगा, यही महत्वपूर्ण बात है.
निश्चिंत रहिये, गरीबों की पीठ पर विज्ञापन कभी नहीं आयेंगे. दर्शकों को मूर्ख समझे, बाजार इतना मूर्ख नहीं.
हालत यहाँ तक जरूर पहुंचेंगे, क्योंकि जब इन्सान नीचे गिरता है, तो वह गहराई नहीं देखता है।
ReplyDeleteफेयर एंड लवली ने इस देश की हजारो लड़कियों के सपने गोरे किए है ओर आज तक कर रही है.....एक ओर कम्पनी ने पुरुषों की फेयर एंड लवली निकाली है.....कई लोग कहते है १४ दिन में गोरे नही हुए तो पैसे वापस ....फ्रेंकफिन वालो के मुताबिक आप जिंदगी भर मर्दों के कपड़े पहनो ....tatto लगवायो फ़िर साडी पहनकर एयर होस्टेस बन जायो .....दरअसल विज्ञापन बेचना आपके सपनो का बेचना है एक कला है......बस ये आप की अपनी व्यक्तिगत बुद्धि है की आप इसके कितने झांसे में आते है....ओर फिलहाल पिछले दिनों से आप को नही लगता देश का सबसे तेज कहने वाला चैनल साईं वालो का विज्ञापन कर रहा है ?महज टी आर पी की खातिर.......
ReplyDeleteविश्वनाथ जी का स्वागत है। उनसे रेवा कार के विषय मे विस्तार से जानने की इच्छा है। एक पोस्ट इस पर भी होनी चाहिये।
ReplyDeleteपंकज अवधियाजी,
ReplyDeleteरेवा कार के बारे में विस्तार में मेरा यह ब्लॉग पोस्ट देखिए।
अंग्रेज़ी में लिखी हुई है।
टिप्पणियाँ भी पढिए।
उसमे मैंने और भी जानकारी दी है।
http://tarakash.com/forum/index.php?option=com_content&task=view&id=38&Itemid=39
अब छ महीने हो गये हैं इस कार को चलाते चलाते।
बहुत खुश हूँ इस गाड़ी से
बाजारीकरण और उपभोक्तावाद की संस्कृति में यह तो होना ही है।
ReplyDeleteऔर, स्थिति अब दूर कहां, वह तो आ ही पहुंची है। वस्त्र और शरीर पर विज्ञापन शुरू हो चुका है। क्रिकेट खिलाडियों का उदाहरण लीजिये, उनके कपड़ों पर विज्ञापन की भरमार रहती है। खिलाडि़यों का हौसला आफजाई करनेवाले दर्शक भी अपने शरीर की रंगाई-पोताई कर ही लेते हैं।
वैसे, इससे नंगापन दूर होनेवाला नहीं। नंगे-गरीब को देखता ही कौन है, जो उनकी पीठ पर कोई विज्ञापन जाया करेगा। अभी तो इन विज्ञापनों के लिए उनकी ही डिमांड रहेगी, जो ग्लैमर की दुनिया को ओढ़ते-बिछाते हैं।
विज्ञापन सफल रहा-आपकी नजर को खींचा. यही तो उद्देश्य है एक विज्ञापन का. :)
ReplyDeleteविश्वनाथ जी से अनुरोध है कि जल्द से जल्द अपना ब्लॉग प्रारम्भ करें. उन्हें नियमित रूप से पढने की प्रबल इच्छा है. खुशी की बात है कि हिन्दी ब्लॉग जगत में स्तरीय कंटेंट बढ़ रहा है.
ReplyDeleteये कमेन्ट ऑपेरा से करके देख रहे हैं. सुबह ड्राप डाउन लिस्ट में आई डी के ऑप्शन नहीं दिख रहे थे. अब दिख रहे हैं.
- घोस्ट बस्टर
विज्ञ का आपन
ReplyDeleteहै यह तो
नहीं है समापन
नजर आता है
बहुतेरों को इसमें
अपनापन
अपनापन वहीं है
जहां मिलता है
बेशुमार धन
मन मार के
कहते रहें चाहें
हम नहीं मुरीद
धन के
पर इन्हीं विज्ञ (अपनों)
से रास्ते जुडेंगे धन के
दीप जलेंगे निर्धन के
वे भी घूमेंगे
बन ठन के
चाहे वस्त्र हों
उनमें चित्र हो
नंगेपन के.
कल मैँने भी टिप्पणी दी थी पर ना जाने क्यूँ दीखि नही ..आप लिखते रहीये विश्वनाथ जी
ReplyDeleteबढिया लिख रहे हैँ ..
- लावण्या
कुछ हफ्ते सुप्त रहने के बाद आज जालभ्रामण पर निकला तो आपके चिट्ठे की नई साजसज्जा देख दंग रह गया. बहुत खूब.
ReplyDeleteइसके साथ साथ आप के तकनीकी उडानों के लिये भी मेरा साधुवाद स्वीकार करें!
ज्ञान जी, आपकी पिछली पोस्ट भी अभी अभी पढ़ने का मौका मिला...दोनो पोस्ट पढ़ कर हम तो सोच में पड़ गए हैं कि आने वाले दिनों में विज्ञापन की दुनिया में क्या होगा जहाँ हमारा छोटा बेटा जाने का सपना देख रहा है.
ReplyDeleteपहली नजर में ध्यान ही नहीं गया कि साड़ी पर गूगल लिखा है आप की पोस्ट पढ़नी शुरु की तो फ़िर दोबारा ध्यान दिया तब दिखा, अख्बार के पन्ने जैसे प्रिंट वाली शर्ट्स तो अक्सर देखी है, कंप्युटर साड़ियों के बारे में भी सुना है। बिन्दी गोदवाना क्युं पढ़ेगा, कंपनी के लोगो की प्लास्टिक की बिन्दी लगायगेगीं न ,नारियां पूरी जिन्दगी एक ही कंपनी के साथ क्युं बंध कर रहेगीं जी, अपने क्रिकेटर्स को देखिए, हर साल नयी कंपनी के साथ नया अनुबंध।
ReplyDeleteतब क्या पता मर्द भी बिन्दी लगाने लगें , माथा किराए पर देना किडनी बेचने से अच्छा होगा…।:)
ज्ञान जी नये कमैंट बॉक्स के लिए धन्यवाद, आज पहली बार मुझे आप के ब्लोग पर कमैंट लिखने के लिए नोट पैड पर लिख कॉपी पेस्ट नहीं करना पड़ा, सीधे यहीं पर लिख सकी
ReplyDelete