वर्षा का मौसम आ गया। उमस और पसीने से त्वचा में इन्फ्लेमेशन (inflammation - सूजन, प्रदाह) होने लगा है। मेरी हाथ में घड़ी बांधने की जगह पर तेज ललाई, खुजली और सूजन हो गयी। घड़ी उतार कर मैने जेब में रख ली। दफ्तर के कमरे में समय देखने के लिये दीवाल घड़ी है। पर कोई कागज पर हस्ताक्षर करने हों तो नीचे दिनांक ड़ालने के लिये हाथ घड़ी पर नजर जाती है।
मैने विकल्प के रूप में देखा तो पाया कि मोबाइल फोन सदैव जेब में रहता है। वह जितने समय साथ रहता है; वह अब रिस्टवाच के साथ रखने से ज्यादा ही है। समय और दिनांक वह उतनी सरलता से बताता है, जितनी सरलता से हाथ घड़ी। तब हम रिस्टवाच का अतिरिक्त १०० ग्राम वजन ले कर क्यों चलते हैं?
मैने घड़ी लगाना छोड़ दिया। ऐसा किये एक सप्ताह होने को आया। काम चल ही जा रहा है। आदत बदल रही है।
जाने कितनी रिडण्डेण्ट चीजों का हम संग्रह करते हैं। कभी सोचते नहीं कि उनके बिना भी काम मजे में चल सकता है।
कह नहीं सकता कि यह फ्र्यूगॉलिटी (मितव्ययता) की सोच है या मात्र खुराफात! देखता हूं बिना हाथघड़ी के सतत चलता है काम या फिर कुछ दिनों का फैड है!
पर नये समय में हाथघड़ी क्या वास्तव में चाहिये? दस साल बाद टाइटन/सोनाटा घड़ियों का भविष्य है? आपके पास किसी हाथघड़ी की कम्पनी के शेयर हैं क्या? कैसा रहेगा उनका भाव?
एक एलर्जी:
मुझे विचित्र एलर्जी है। रतलाम में लाल रंग की छोटी चींटी अगर काट लेती थी और ध्यान न रहे तो लगभग दस मिनट में मेरी श्वसन नली चोक होने लगती थी। पहली बार जब मुझे आपातस्थिति में अस्पताल ले जाया गया तो मैं बमुश्किल सांस ले पा रहा था और डाक्टर साहब को समझ नहीं आ रहा था कि क्या है? इशारे से मैने कागज कलम मांगा और लिखा - ant bite. तब तुरन्त इलाज हुआ। उसके बाद तो मैं रेलवे सर्किल में इस एलर्जी के लिये जाना जाने लगा। यह एलर्जी कभी काली चींटी या अन्य कीड़े के काटने पर नहीं हुई। लाल चींटी गुसैल और कटखनी भी ज्यादा थी। मुझे बच कर रहना होता था। घर में फ्रिज में उसका एण्टीडोट इन्जेक्शन भी रखा गया था - आपात दशा में प्रयोग के लिये। पर जब भी वह काटती, मैं बिना समय बर्बाद किये अस्पताल ही चला जाता था।
अब न रतलामी चीटियां हैं, न वह एलर्जी। पर बारिश में इस तरह त्वचा का इन्फ्लेमेशन तो हो ही जाता है। लगता है कि कपड़े सूती पहने जायें और शरीर पर कसे न हों।
मेरे साथ भी घड़ी के साथ समस्या है | बचपन से ही मुझे कोई असेसरीज रास नहीं आयी | पहले कक्षा ४-६ में डिजिटल वॉच (२5 -३० रुपये वाली) पहनने की कोशिश की लेकिन बैठते ही उसे उतारकर रख देने की आदत के कारण २-३ घडियां खो दी | फिर बड़े होने पर १-२ मंहगी घडियां भी ऐसे ही खोयी | इसके बाद शौक शौक में १-२ अंगूठी भी पहनी, लेकिन वो भी इसी तरह वीरगति को प्राप्त हुयी |
ReplyDeleteएक बार माताजी ने कहा की कुछ लड़के गले में जंजीर पहनते हैं, तुम्हे चाहिए क्या | मैंने तुंरत मना कर दिया क्योंकि उसका भी वोही हश्र होना था | अब तो अंगूठी, जंजीर, घड़ी पहनने के नाम से ही झुरझुरी आती है |
इसके अलावा अपने कालेज में और भी आदते थी जैसे कहीं भी बैठते ही जेब से चाबियों का गुच्छा और अपना वालेट निकालकर रख देना और फ़िर उसे खोजते फिरना | कुछ दिन चाबी को गले में बाँधा भी, लेकिन अच्छे दोस्त चाबी और वालेट मिलने पर रख लेते थे और थोड़ा परेशान करने के बाद वापिस कर देते |
आजकल वालेट वाली आदत थोड़ी सुधार ली है क्योंकि उसके छत्तीस काम की चीजें होती हैं, जिनके बिना बड़ी दिक्कत हो जायेगी | लेकिन चाबी और सेलफोन वाली आदत अभी भी जारी है, लेकिन उसमे सुधार हो रहा है |
रही घड़ी की बात तो घड़ी अब केवल दौड़ते समय ही पहनी जाती है | अब घड़ी की और जरूरत भी नहीं होती है, क्लासेज ख़त्म हो गयी हैं, दिन भर कम्प्युटर के सामने समय पता चलता रहता है और बाकी समय में सेलफोन से काम चल जाता है |
घड़ी बांधनी हमने सन १९९२ में छोड़ दिया। कभी इस कारण नहीं देर हुयी कि समय पता नहीं चला।
ReplyDeleteलाल चीटियां काम से जुड़ी हैं। रेलवे वालों का सिग्नल लाल देखते ही हाल खराब होता है न!
फ़ायरफ़ाक्स अभी उतारा ही नहीं।
उल्टा शुरु होते हैं. मैं उन चुनिंदा लोगों मे से हूँ जो फायर फॉक्स तक अब तक पहुँच बनाने में नाकाम रहे हैं. वजह, बस कभी जरुरत ही नहीं महसूस हुई..जो चाहा वो IE ने दिया. शायद फायर फॉक्स ज्यादा देता हो मगर मैं तो इससे ज्यादा अब तक जरुरत ही नहीं महसूस कर पाया..इस मामले में पुरातनवादी हूँ और अभी तक विस्टा पर शिफ्ट नहीं हुआ हूँ जबकि क्लाईन्टस को सलाह देता हूँ.
ReplyDeleteएलर्जी- भाई साहब, एक बार कम्पलीट मेडिकल चेक अप कराने में बुराई नहीं है. जब भारत में था तो हर साल पूरा पैकेज लिया करता था अपोलो का// चिन्ता निश्चिनतता में बदल जाती थी. अगर अफोर्ड कर सकें तो जरुर कराना चाहिये.
आदत: बदलने में समय नहीं लगता. जब घड़ी मोबाईल में है तो क्यूं पहनना,,मात्र एक शो और दिखावा. एक जरुरत-एक वस्तु.. यह सिद्धांत अहम है.
लेपटॉप, हेन्डहेल्ड और आई पॉड एक साथ- ड्जन्ट मेक सेंस टू मी. शायद किसी को मल्टी टास्किंग शो में मदद करता हो.
मैं तो खैर पुरातनवादी हूँ. आप जो चाहें सो करें. हा हा!!!
पिछले साल जिन कंपनी के शेयरों ने सबसे ज्यादा मुनाफा दिया उनमे से Titan भी एक था... इस बार भी इसका recomandation है. घड़ी का बाजार आने वाले समय में बढ़ जाएगा. घडिया महंगी होंगी, लोग एक के बजे दो, तीन रखा करेंगे... क्या आपके जानने वालो में अभी किसी के पास एक से ज्यादा कलाई घड़ी नही है? पता कीजिये... अमेरिका में लोग कितनी घड़ी रखते हैं?
ReplyDeleteAllergies are a medical headache for the Doctors & pain for the patient !
ReplyDeleteI've heard of kids & adults who have allergy of Peanuts & they choke & die to death even if peanut oil or anything with Peanut is near them -
So best bet is to watch out & take extreme precaution --
Re: Wrist watches, LOL
I wear them occassionally to match my sarees or an outfit but never put TIME in it !! & I'm ashamed to say, excep for a Digital watch, I was many times wrong in saying what TIME it was !! Until recently -
Time -- has no meaning for me -- I'm glad that I'm alive in this TIME Line !!
Rgds,
Lavanya
फायर फॉक्स का नया वर्जन, अपने पूर्व संस्करण की तुलना में कम क्रेश हो रहा है. ऑपेरा का नया वर्जन भी बढ़िया लगा.
ReplyDeleteये पहली बार सुना कि चींटी का डंक इतना कष्टदायी भी हो सकता है. वैसे हमारे यहाँ केवल काली वाली हैं. वो भी कम नहीं अगर कभी लाल-पीली हो जायें तो. छेड़ने से बचते हैं.
रिस्ट वाच तो मोबाईल आने के साथ ही छूट गयी थी लेकिन जब सिग्नल उड़ जाते थे तो टाइम भी गायब हो जाता था.
जिस दिन पहली बार मोबाइल हाथ में आया, दूसरे दिन से घड़ी छूट गई। वैसे भी किसी अलंकार हम कभी नहीं भाए। सगाई की अंगूठी भी सप्ताह भर में ब्रेक हो गई थी, दुबारा बनाई नहीं। हाँ एक स्नेही ने अपनी रुद्राक्ष माला मेरे गले में डाल दी थी, उसे जरूर हम से स्नेह हो गया है।
ReplyDeleteएलर्जी से बच कर रहिएगा यह चींटी से नहीं, उस पदार्थ से है जो वह आप के शरीर में छोड़ती है, वह कहीं और से भी आएगा तो भी आप को तंग करेगा।
क्रेश दिन में दो बार हो रहा है। जल्दी ठीक होने की उम्मीद है।
घड़ी तो मैने उसी दिन आलमारी में रख दी जिस दिन पहला मोबाइल फोन हाथ लगा था। ससुराल से मिली थी इसलिए सम्भालकर रखा है, नहीं तो कबका डिस्पोज़ ऑफ़ कर चुका होता। इसे पसीने और धूल इत्यादि की गन्दगी से दुर्गंध के कारण अक्सर धुलना पड़ता था जो मुझे कम पसंद था।
ReplyDeleteवैसे ये फ़ायर फ़ॉक्स क्या चीज़ है? कुछ हमारे काम का हो तो बताने का कष्ट करें, वर्ना यही बता दें कि किसी काम का नहीं है।
ReplyDeleteमोबाईल के बाद घड़ी लगभग छूट ही गई , कभी कभार बेचारी को याद कर लगा लेती हूँ ,जहाँ तक एलरजी का सवाल है -बारिश में मैंभी बहुत डरती जरूरी नहीं कि घड़ी ही हो ......
ReplyDeleteआप अपना उपचार तो करें ही साथ ही पानी में फिटकरी डाल कर स्नान करें ..........
घड़ियांअब टाइम के लिए नहीं, स्टाइल स्टेटेमेंट के लिए पहनी जाती हैं। कल टाइटन ने घड़ी लांच की है एक लाख दस हजार रुपये की। सिटीजन की रेंज 18000 रुपये से शुरु होती है, झक्कास बिक रही है। घड़ी अब दूसरों को दिखाने के लिए पहनी जाती है। आप की घड़ी देखकर लगता है कि शादी की मिली घड़ीअभी तक यूज कर रहे हैं।
ReplyDeleteटाइटन के भविष्य का यह हाल है कि पब्लिक के पास भौत पैसा है, सो वह टाइटन की ज्वैलरी खरीदने में जुट गयी हैं। टाइटन की घड़ियों की सेल की ग्रोथ रेट बीस परसेंट से ज्यादा नहीं है, ज्वैलरी की ग्रोथ रेट सत्तावन परसेंट है जी। भारत वर्ष कितना गरीब है यह टाइटन ज्वैलरी की सेल के आंकड़े बताते हैं।
बहुत जल्दी टाईटन बासमती आने वाला है।
अब घड़ी समय देखने के लिए न हो कर एक गहने जैसी हो गई है. समय देखने के अनेक साधन उपलब्ध है. दिन भर कंप्युटर के आगे बैठना होता है, वहाँ समय दिखता ही है, बाकि समय के लिए जेब में मोबाइल भी है ही. तो एक साल से घड़ी पहनना छोड़ रखा है. कौन बोझ लिये घूमे. :)
ReplyDeleteहाथ घड़ी की आदत बरकरार रहेगी बस घड़ी के मोडल बदलते रहेगे ,मुझे याद है एक सज्जन एक बार मुझे गाँधी स्टाइल की घड़ी गिफ्ट कर गए थे ..घड़ी मोबाइल ,पेन रुमाल ,पर्स इनकी आदत छूटना मुश्किल है ..आपने भी allergy की वजह से छोडा है ,वैसे संभावित होता है की आप कुछ allergy के संभावित शिकार है ...ऐसे लोगो को atopic कहा जाता है ,धूल, चाइनीज फ़ूड ,फिश ,चीज़ ,peanuts ओर पक्षियों के पंख से भी बचकर रहे ओर अपने बस एक ट्यूब flutibact रखे ,कभी घड़ी पहनने का मूड हो तो अपना पट्टा change करा ले ,कई लोगो को nickile से allergy होती है ...ओर साथ में घड़ी के बेस पर कुछ micropore tape चिपका दे ....cottan की पहने ,अपने घर के पर्दों में धूल न जमने दे ,ओर अपने ऑफिस के ऐ.सी की नियमित सफाई करवाते रहे ...एक बात ओर ऐसी allergy अनुवांशिक भी हो सकती है आपसे अगली पीड़ी में .......क्या घर में किसी को साँस की कोई बीमारी है ?या कोई ऐसा व्यक्ति जिसको बार बार जुकाम हो जाता हो या कई बार छींके मरता हो ?मौसम के बदलने से सबसे ज्यादा असर पड़ता हो ?
ReplyDeleteइश्वर की कृपा से firefox -३ अभी तक तो धाँसू कम कर रहा है.....आगे देखिये ....
एक वक़्त था जब हमे हाथ घड़ियो को शौक था.. बहुत सी घड़िया आज भी सेफ की शोभा बढ़ा रही है.. अब जब से मोबाइल आया है.. बस वही लिए घूमते है..
ReplyDeleteबचपन में जब नयी साईकल आती तो टायरों में हवा निकल जाती थी हांलाकि दो तीन दिन बाद ठीक हो जाता था। फारफॉक्स के साथ भी कुछ ऐसा ही हो या फिर विंडोज़ में क्रैश किया हो, मैं तो लिनेक्स पर फायरफॉक्स-३ प्रयोग कर रहा हूं एक बार भी नहीं क्रैश किया।
ReplyDeleteमैं पिछले 5-6 सालों से घड़ी नहीं पहन रहा हूं.. पापाजी ने ना जाने कितनी बार घड़ी उपहार में दी मगर मैं 3-4 महीने बाद उसे वापस घर पर रख आता था.. बस एक्जामिनेसन हॉल में ही उसकी जरूरत परती थी क्योंकि वहां मोबाईल नहीं ले जा सकते थे..
ReplyDeleteमैं अभी भी इंटरनेट एक्सप्लोरर पर ही निर्भर हूं.. क्योंकि कुछ ऐसे एप्लीकेशन पर काम करता हूं जो नये वाले फ़ायरफाक्स पर भी नहीं दौड़ता(RUN) है..
लगता हैं इस मामले में मैं अल्पसंख्यकों में से हूँ।
ReplyDeleteमैं तो अपनी घड़ी के बिना कभी रहता ही नहीं। केवल नहाते समय और सोते समय इसे कलाई से उतारता हूँ। और कभी कभी तो, इसे पहनकर ही सोता हूँ । पत्नि याद दिलाती है कभी, उसे उतारने के लिए।
आलोकजी कहते हैं
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"घड़ी अब दूसरों को दिखाने के लिए पहनी जाती है"
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आजकल कुछ लोग महँगे मोबाइल फ़ोन भी दिखाने के लिए खरीदते हैं
उनका सही और पूर्ण रूप से प्रयोग करते ही नहीं।
वैसे मेरी घड़ी एक साधारण घड़ी है।
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संजयजी कहते हैं:
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"एक साल से घड़ी पहनना छोड़ रखा है. कौन बोझ लिये घूमे. :)
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बोझ? कैसा बोझ? कौनसा बोझ? मेरे लिए कभी बोझ नहीं बना।
जिस सहूलियत से कलाए पर पहन सकते हैं, क्या मोबाईल फ़ोन को रख सकते हैं? हम मर्दों के पास कम से कम जेबें होती हैं। महिलाओं को फ़ोन को अपने हाथों/हथिलियों में रखकर घूमती हुई देखा हूँ। कैसे झेल लेती हैं यह असुविधा!
मैं उन लोगों में से हूँ जो दिन में कुछ समय के लिए मोबाइल फ़ोन से दूर रहता हूँ। मन की शांति के लिए। अवाँछित फ़ोन कॉल से परेशान हो जाता हूँ। मैं अपनी घड़ी से कभी परेशान नहीं हुआ। मेरी वफ़ादार घड़ी चुपचाप अपना काम और ड्यूटी करती जाती है चाहे मैं उसकी तरफ़ ध्यान दूँ या नहीं। कभी नहीं कहती मुझसे "मुझे चार्ज करो" . बस साल में एक बार बैट्टरी बदलना पढ़ता है। मेरे सोच में या काम में कभी दखल नहीं देती। कहाँ मिलेंगे ऐसा मोबाइल फ़ोन? फ़ोन को "स्विच ऑफ़" करने से समय भी "स्विच ऑफ़" हो जाता है।
जब समय देखना चाहता हूँ तो कलाई की तर्फ़ केवल एक झाँकी काफ़ी है। मोबाईल फ़ोन तो मेरे बेल्ट से बँधा हुआ एक "पौच" में रखा हुआ है और उस "पौच" को खोलकर, यंत्र को बाहर निकालने में जो समय और परिश्रम की आवश्यकता है, वह मुझे स्वीकार नहीं। और समय नोट करने के बाद फ़ोन को वापस "पौच" में रखने का काम, सो अलग!
घड़ी को एकदम ढीला पहनता हूँ। दो या तीन "लिन्क" अधिक जोड़ने से, कलाई में त्वचा को राह्त मिलती है। इतना ढीला पहनता हूँ कि जब हाथ ऊपर उठाता हूँ तो घड़ी नीचे की तरफ़ सरकती है। इससे घड़ी की एक ही जगह पर बँधे रहने से, जो त्वचा पर असर पढ़ता है उससे आप बच सकेंगे।
न भई न। आप मोबाइल फ़ोन प्रेमियों को यह यंत्र मुबारक हो।
मैं अपनी वफ़ादार घड़ी को कभी नहीं त्यागूँगा।
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फ़यर फ़ॉक्स की अभी जरूरत नहीं पढ़ी। आगे सोचूँगा इसके बारे में।
जैसे समीर लाल जी ने कहा, हमारे लिए भी, IE काफ़ी है। उसकी भी पूरी क्षमता का अभी लाभ उठाया ही नहीं।
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अपने को भाग्यशाली मानता हूँ!
ईश्वर की असीम कृपा से, मुझे अब तक, इतने सालों में किसी चीज़ की "अलर्जी" नहीं हुई है। बस कुछ लोगों को मुझसे "अलर्जी" हो सकती है!
उनसे दूर रहने की कोशिश करता हूँ।
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आप किसी होम्योपैथ से नही मिले क्या? वे चाहे तो आपको चन्द दवाओ के प्रयोग से सदा के लिये राहत दे देंगे। हो सकता है इस एलर्जी के बारे मे सुनते ही वे ऐसी दवा चुन ले जो आपके शेष मर्जो को भी ठीक कर दे। हमारे यहाँ जंगलो मे चीटीयो के इस बुरे गुण के उपयोग से कई प्रकार के रोगो की पहचान की जाती है। एक विशेष प्रकार की चीटी होती है जिसके बारे मे कहा जाता है कि वह मधुमेह के रोगियो को नही काटती।
ReplyDeleteघडी को घडी-घडी देखने के दिन अब लद रहे है ये मै भी मानता हूँ।
बहुत बढ़िया पोस्ट । हमने भी कभी घडी नहीं बांधी। जब जब बांधी तब तब छींके आने लगती और सर्दी हो जाती थी।
ReplyDeleteये हकीकत है.....
भले ही घडी का बाजार बढ रहा हो, पर अपुन ने तो मोबाइल हाथ में आने के बाद उसे बांधना ही छोड दिया है। मुझे भी पसीने की वजह से बहुत दिक्कत होती थी।
ReplyDeleteघड़ी तो हम जब घर से बाहर जाते है तो पहन ही लेते है। पर हाँ पिक्चर हॉल वगैरा मे समय देखने के लिए अब मोबाइल का ही प्रयोग करते है।
ReplyDeletefirefox तो बहुत बढ़िया चल रहा है बिना क्रैश किए हुए। और अब तो हम जो कुछ ब्लॉग पहले पढ़ नही पाते थे उन्हें भी आराम से पढ़ ले रहे है।
एक बात और आजकल मोबाइल के इस्तेमाल के लिए भी बहुत सारी हिदायेतें दी जा रही है।
ReplyDeleteममताजी ने कहा:
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एक बात और आजकल मोबाइल के इस्तेमाल के लिए भी बहुत सारी हिदायेतें दी जा रही है।
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बिल्कुल सही!
यह बात मेरे मन में भी आयी थी लेकिन कहना भूल गया।
आज तक घड़ी पहनने में कहीं भी कोई पाबन्दी नहीं रही।
और भी विचार आते हैं मेरे मन में।
मोबईल फ़ोन बारिश में भीगने से खराब हो जता है।
धड़ी को पानी के नीचे ले जाने से भी कुछ नही होता।
मोबाईल चोरी होने का डर रहता है। खो जाता है। इधर उधर छोड़ दिया जाता है। घड़ी कलाई पर सुरक्षित रहती है।
मेरे पास "dual time" वाली घड़ी भी है जिसके सहारे दो अलग जगहों में समय का पता चलता है और दिमागी कसरत करना नहीं पढ़ता।
घड़ी अभूषण बन सकती है। मोबाईल कभी नहीं।
घड़ी कभी outdated नहीं बनती। उसका उपयोग सालों तक कर सकते हैं। घड़ी अमानत बन सकती है। कुछ घड़ियाँ antique बनने योग्य हैं। आजका मोबाईल अगले वर्ष सिर्फ़ junk कहलाएगा।
हम तो पुरानी घड़ियाँ (जो "स्प्रिंग" पर चलती थी) अपने तकिये के नीचे रखते थे और मुझे वह मधुर "टिक टिक" आवाज़ की याद सताती है।
घड़ी से दिल का एक अटूट रिश्ता जोडा जा सकता है। मोबाईल से नहीं।
और आखिर में, केवल १५० रुपये में एक अच्छी घड़ी खरीदी जा सकती है। कहाँ मिलेगा इस दाम में मोबाईल?
विश्वनाथजी की तरह मैं भी घड़ी नहीं छोड़ता था पर पिछले एक सालों से छोड़ दिया हूँ... पुरानी घड़ी घर गया तो नाई को पसंद आ गई... और तब से नई घड़ी लेने की सोच रहा हूँ... घड़ी का बजट बढाता जा रहा हूँ.... देखिये कब तक ले पाता हूँ. आख़िर स्टाइल का मामला है... अभी तो फिलहाल मोबाईल से ही काम चल रहा है.
ReplyDeleteभैय्या
ReplyDeleteघड़ी घड़ी नहीं है हम मर्दों का गहना है...अब चूडियाँ तो पहन नहीं सकते इसलिए घड़ी से काम चलाते हैं...इतने वर्षों में कितना कुछ बदल गया लेकिन हाथ घड़ी का बाल भी बांका नहीं हुआ अभी भी लोग शौक से पहनते हैं और गिफ्ट करते हैं. लाल cheenti से बच के रहना पड़ेगा, अभी तक तो काटी नहीं पर उसका भरोसा भी क्या?
नीरज
ढीले-ढाले सूती कपड़ों से अधिक आरामदेह कुछ भी नहीं हो सकता। सफेद रंग के हों तो और उत्तम।
ReplyDeleteसूचना क्रांति के इस युग में तमाम साइड इफेक्ट के बावजूद साथ में मोबाइल रखना ज्यादा जरूरी हो जाता है। जब साथ में मोबाइल है तो घड़ी की वाकई कोई जरूरत नहीं।
Its true that wathes are no more a necessity.But they serve the ornamental purpose.An immaculately dressed gentleman looks just teriific with a rollex or like wristwatches.
ReplyDeleteRegarding ant allergy ,you should be very cautious Gyan ji-it creates a situation called anaphylaxis, an emergency in medical parlance.
But may be you might have developed some immunity for it with your repeated attacks.
Take care!This comment is reluctantly in English as My firefox is still playing tricks with me.
पिछले साल जिन कंपनी के शेयरों ने सबसे ज्यादा मुनाफा दिया उनमे से Titan भी एक था... इस बार भी इसका recomandation है. घड़ी का बाजार आने वाले समय में बढ़ जाएगा. घडिया महंगी होंगी, लोग एक के बजे दो, तीन रखा करेंगे... क्या आपके जानने वालो में अभी किसी के पास एक से ज्यादा कलाई घड़ी नही है? पता कीजिये... अमेरिका में लोग कितनी घड़ी रखते हैं?
ReplyDeleteउल्टा शुरु होते हैं. मैं उन चुनिंदा लोगों मे से हूँ जो फायर फॉक्स तक अब तक पहुँच बनाने में नाकाम रहे हैं. वजह, बस कभी जरुरत ही नहीं महसूस हुई..जो चाहा वो IE ने दिया. शायद फायर फॉक्स ज्यादा देता हो मगर मैं तो इससे ज्यादा अब तक जरुरत ही नहीं महसूस कर पाया..इस मामले में पुरातनवादी हूँ और अभी तक विस्टा पर शिफ्ट नहीं हुआ हूँ जबकि क्लाईन्टस को सलाह देता हूँ.
ReplyDeleteएलर्जी- भाई साहब, एक बार कम्पलीट मेडिकल चेक अप कराने में बुराई नहीं है. जब भारत में था तो हर साल पूरा पैकेज लिया करता था अपोलो का// चिन्ता निश्चिनतता में बदल जाती थी. अगर अफोर्ड कर सकें तो जरुर कराना चाहिये.
आदत: बदलने में समय नहीं लगता. जब घड़ी मोबाईल में है तो क्यूं पहनना,,मात्र एक शो और दिखावा. एक जरुरत-एक वस्तु.. यह सिद्धांत अहम है.
लेपटॉप, हेन्डहेल्ड और आई पॉड एक साथ- ड्जन्ट मेक सेंस टू मी. शायद किसी को मल्टी टास्किंग शो में मदद करता हो.
मैं तो खैर पुरातनवादी हूँ. आप जो चाहें सो करें. हा हा!!!