ब्लॉगिंग की सामाजिक ताकत का पूरे ब्लॉस्ट पर अन्दाज मुझे शनिवार को हुआ। और क्या गज़ब का अन्दाज था!
शनिवार की पोस्ट में मैने श्री जी विश्वनाथ, जे पी नगर, बेंगळूरु को धन्यवादात्मक फुटनोट लिखा था - उनकी टिप्पणियों से प्रभावित हो कर। उसमें यह लिखा था कि जब वे ४ साल इन्जीनियरिन्ग पढ़ चुके होंगे तब मैं बिट्स पिलानी में दाखिल हुआ था।
और तब उस पोस्ट पर टिप्पणी से ज्ञात हुआ कि श्री विश्वनाथ भी बिट्स पिलानी के प्रॉडक्ट हैं। एक साल बिट्स कैम्पस में हम लोगों ने साथ-साथ गुजारे होंगे। उस समय ३६ वर्ष पहले एक ही स्थान पर रहने वाले अनजान दो विद्यार्थी; हिन्दी ब्लॉगिंग से जुड़ कर अब अचानक एक दूसरे से ई-मेल, मोबाइल नम्बर, बातचीत और एसएमएस एक्स्चेंज करने लगे - केवल उक्त पोस्ट छपने के ८-१० घण्टे के अन्दर!
क्या जबरदस्त केमिस्ट्री है ब्लॉगिंग की! एक उत्तर भारतीय जीव दूसरे मुम्बई में जन्मे केरलाइट-तमिलियन व्यक्ति (मूलस्थान केरल का पालक्काड जिला) से मिलता है। दोनों के बीच एक शिक्षण संस्थान का सेतु निकलता है। साथ में होती है दक्षिण भारतीय सज्जन की हिन्दी प्रयोग करने की प्रचण्ड इच्छा शक्ति! फिल्में भी क्या स्टोरी बनायेंगी ऐसी!
शनिवार की शाम तक मैं श्री विश्वनाथ के चित्र और एक छोटी अतिथि पोस्ट हासिल कर चुका था। आप जरा उनकी हिन्दी में प्रेषित यह पोस्ट देखें -
समाज सेवा आज मैंने अचानक, बिना सोचे समझे, एक ऐसा काम किया जो चाहे बहुत ही छोटा काम हो, लेकिन किसी अनजान व्यक्ति के लिए अवश्य उपयोगी साबित हुआ होगा। उस व्यक्ति को इसके बारे में पता भी नहीं होगा। मैंने ऐसा क्या किया? बताता हूँ। मेरी दस साल की आदत के अनुसार मैं आज भी सुबह सुबह टहलने चला था। वापस लौटते समय, अचानक मेरा दांया पाँव गली में पड़ी एक तेज धार वाले पुराने स्क्रू (screw) पर पड़ते पड़ते बच गया। स्क्रू लगभग १ इन्च लम्बा हुआ होगा और उसपर काफ़ी जंग लग चुकी थी। उसकी नोंक उपर की तरफ़ थी। ऐन वक्त पर मैं पैर हटाने में सफ़ल हुआ और गिरते गिरते बच गया। फ़िर आगे निकल गया कुछ दूर तक। थोड़ी दूर जाने के बाद खयाल आया और अपने आप से पूछने लगा "यह मैंने क्या किया? अपने आप को तो बचा लिया। कोई स्कूटर या कार का टायर यदि उस स्क्रू पर चले तो पंक्चर निश्चित है। क्या मेरा कर्तव्य नहीं कि उस स्क्रू को उठाकर किसी कूड़े के डिब्बे में डाल दूँ?" मुड़कर उस स्क्रू को ढूँढने निकला। कुछ समय लगा उसे ढूँढ निकालने में। मेरे पास मेरा मक़सद समझाने का समय नहीं था और न ही इच्छा। समाज सेवा आसान नहीं है। क्या विचार है, आपका? - गोपालकृष्ण विश्वनाथ |
मित्रों अठ्ठावन वर्ष की उम्र में श्री विश्वनाथ अपनी हिन्दी परिमर्जित करने और उसे अपनी अंग्रेजी के बराबर लाने का जज्बा रखते हैं। मैं देख रहा हूं कि अनेक लोग मिल रहे हैं जो सीखने और नया करने में उम्र का कोई बैरियर स्वीकार करने वाले नहीं हैं - और इसे सिद्ध भी कर दे रहे हैं। यह अहसास मुझे अत्यन्त प्रसन्नमन कर रहा है।
श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ ने कई ब्लॉगों पर बड़े दत्त-चित्त हो कर टिप्पणियां की हैं। जो टिप्पणियों की गुणवत्ता परखते हैं, वे उन्हे पूरी इज्जत देंगे। अपना अनुभव और हिन्दी के प्रति लगन से वे बहुत दमदार टिप्पणियां प्रस्तुत करते हैं। अगर वे मोटीवेट हो सके तो हिन्दी ब्लॉग जगत के बहुत महत्वपूर्ण अहिन्दी-भाषी सितारे साबित होंगे।
श्री विश्वनाथ की मेरी पोस्टों पर कुछ टिप्पणियां आप यहां, यहां, यहां और यहां देख सकते हैं। मेरी पर्यावरण दिवस वाली पोस्ट पर उन्होंने अपनी टिप्पणी में पर्यवरण ठीक रखने के बारे में यह लिखा है कि वे बिजली पर चलने वाली कार (रेवा) का प्रयोग करते हैं। जिससे प्रदूषण न हो। वे और उनकी पत्नी के लिये यह कार मुफीद है। चित्र में यह हैं श्री विश्वनाथ अपनी रेवा कार के साथ।
श्री जी विश्वनाथ की अन्तर्क्रिया करने की क्षमता गजब की है। मैं उन की टिप्पणियाँ आप की पोस्ट पर पढ़ता रहा हूँ, खास तौर पर टिप्पणी की पंसद नापंसदगी वाली पोस्ट पर उन की टिप्पणी में बात मेरी थी, और मैं ने उसे सहेज लिया था।
ReplyDeleteउन की इस पोस्ट पर भी एक जबर्दस्त गुण को प्रदर्शित किया है, उन्होंने।
कोई चालीस बरस पहले मैं और पिताजी सड़क पर साथ साथ चल रहे थे। मुझे ठोकर लगी एक पत्थर की और मैं गिरते गिरते बचा। संभल कर थोड़ा ही आगे बढ़ा था कि मुझे सजा मिली अपने किए की एक झन्नाटेदार थप्पड़ के रूप में। साथ में सजा का स्पष्टिकरण भी कि 'जिस पत्थर से मुझे मात्र ठोकर लगी वह दूसरे को घायल भी कर सकता है, उसे सड़क से हटाया क्यों नहीं गया। मैं उसी समय वापस मुड़ा और पत्थर हटा कर किनारे कर के लौटा। अब तो यह न छूटने वाली आदत बन गई है।
आप को बधाई कि आप जी विश्वनाथ को ले आए हिन्दी चिट्ठाकारी में, उन का स्वागत है। उन का पृथक हिन्दी चिट्ठा बने यही तमन्ना है।
ऐसे ही समर्पित प्रतिभाओं के संस्पर्श से हिन्दी विविधतापूर्ण और स्तरीय बनेगी .एक ही संस्थान के दो विद्वानों का यह नाटकीय मिलन हिन्दी ब्लागजगत में नयी संभावनाओं का उदघोष करता है .
ReplyDeleteस्वागतम !
विश्वनाथजी की टिप्पणियां पढ़ते रहे और प्रभावित होते रहे। आज उनका परिचय भी पढ़ा ,अच्छा लगा। अब उनको ब्लागिंग में आने से कोई रोकने वाला है नहीं। ब्लागिंग की यह सामाजिक ताकत है कि तमाम दोस्त मिले दुबारा। रवि रतलामीजी की भांजी की शादी में भी ब्लागिंग का योगदान रहा। विस्तार से पढिये- ब्लागिंग में भी रिश्ते बन जाते हैं।
ReplyDeleteसही है । ब्लॉगिंग से हमें एक पुराना मित्र मिला था आनंद । हम दोनों करीब दस बारह साल पहले जबलपुर इप्टा में सक्रिय थे । आनंद का चिटठा तो आपने पढ़ा ही होगा ।
ReplyDeleteइस तरह का मिलन हमेशा सुखदायी अनुभव रहता है।
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरणास्पद रही यह पोस्ट.. कम से कम मेरे लिए तो है इतना कह सकता हू
ReplyDeleteबनाये रहियेजी.
ReplyDeleteरेवा कार कित्ते की है, कितने की मिलेगी. कहां मिलेगी। जरा बताया जाये।
विश्वनाथ को शुभकामनाएं, ब्लागरों के कुसंग में पड़ रहे हैं। अब ना चैन पड़ेगा, कंप्यूटर के आंखे दो चार किये बगैर।
भगवान उन्हे हिंदी ब्लागरों को झेलने के शक्ति दे।
अरे ये तो अपने विश्वनाथजी है. हमे क्या पता था आपके मित्र निकलेंगे. आप इनका ब्लॉग nukkad.info पर भी पढ़ सकते है.
ReplyDeleteखुशी हो रही है. कहाँ से कहाँ तार जूड़ते है. :)
बहुत अच्छी लगी ये पोस्ट। और विश्वनाथ जी के बारे मे जान कर खुशी हुई और उनकी लिखी पोस्ट सभी के लिए प्रेरणा दायक होगी।
ReplyDeleteसबसे पहले आप का शुक्रिया जो आपने एक शानदार शख्सियत से हमे मिलवाया ,उन्हें पढ़कर सकूं मिला ..अलोक जी ने जो बात कही उसको सोच रहा हूँ...विश्वनाथ जी बिगड़ गए तो इल्जाम आप के सर जायेगा....
ReplyDeleteश्री विश्वनाथ Nukkad.info के नियमित साथी हैं. आप उनका ब्लॉग यहाँ पढ सकते हैं. वे हिन्दी और अंग्रेजी दोनों मे लिखते हैं.
ReplyDeleteउनके विचार यहाँ भी हैं.
विश्वनाथजी बहुत ही शांत और सौम्य व्यक्तित्व हैं. गैर हिन्दी भाषी होते हुए भी उनका हिन्दी प्रेम देखते ही बनता है.
मेरा सौभाग्य है कि उनका मुझसे बडा आत्मीय रिश्ता है.
विश्वनाथ जी को मैं बहुत पहले से कई चिट्ठों पर टिपियाते देखा है.. इधर कुछ दिनों से गायब से थे.. बहुत दिनों बाद उनका कमेंट आपके चिट्ठे पर देखा तो अच्छा लगा था.. क्योंकि इनके कमेंट मैं किसी पोस्ट कि तरह पढता हूं.. इन्हें जानना अच्छा लगा..
ReplyDeleteits really a gr8 thing... when i was doing chat on yahoo tat time i was thinking world is so big to identify a single user. but after reading this blog... "oh my god" world is really so small to find out each other blogs are doing a gr8 job keeps it up ;)
ReplyDeleteकमाल की चीज़ है ये ब्लोग्गिंग, मैं कल ही कहने वाला था की विश्वनाथजी से कुछ लिखवाइये... और आज मिल ही गई जानकारी अब जरा इस बिजली वाली कार के बारे में भी जानकारी लाइये कहीं से.
ReplyDeleteगजब का व्यक्तित्व है इनका। चेहरे से तेज झलकता है। धन्यवाद इस परिचय के लिये।
ReplyDeleteक्या बात है जी....हिंदी ब्लॉगिंग इतनी लोकप्रिय हो चली है कि अहिंदी भाषी लेखक भी यहां आने को उत्सुक हैं.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा विश्वनाथजी के बारे मे जानकर....और उनकी कार भी. जरा रेवा के फीचर्स और कीमत के बारे में भी कुछ लिखिए...
ज्ञानदत्तजी,
ReplyDeleteअरे! यह आपने क्या किया!!!
आपका पोस्ट देखकर मैं देंग रह गया।
आपसे केवल इतनी उम्मीद थी कि मेरे अथिति पोस्ट को अपने ब्लोग पर स्थान देकर एक अज्ञात, असफ़ल हिन्दी ब्लोग्गर को प्रोत्साहित करेंगे और कुछ टिप्पणियाँ भी हाथ आएंगी। यह विनती भी मैंने नम्रता और हिचक के साथ की थी। सफ़ल चिट्टाकारों के क्लब में घुसपैठ करने की मुझमें अभी हिम्मत नही है।
हिन्दी से अपार प्रेम होते हुए भी अच्छी और उच्चस्तरीय हिन्दी लिखने में मुझे कुछ साल और लगेंगे। मेहनत भी बहुत बाकी है।
ब्लोगजगत के बड़े हस्तियों द्वारा इस स्वागत के लिए मैं हमेशा आभारी रहूँगा।
अपने अलग ब्लोग के लिए अभी समय नहीं आया। फ़िलहाल nukkad.info पर मुझे एक मंच मिला है और फ़ुरसतानुसार इस मंच पर हिन्दी और अंग्रेज़ी में पोस्ट करता हूँ और कुछ समय तक इसी मंच पर लगा रहना चाहता हूँ। हाँ, यदि अन्य चिट्टाकार भी ज्ञानदत्तजी जैसे उदार दिल बनकर कभी कभी हमें अपने ब्लोग पर जगह देने के लिए तैयार हैं तो मैं एकाद पोस्ट वहाँ भी भेजने के लिए तैयार हूँ।
नियमित रूप से ब्लॉग्गिंग करना मेरे लिए इस समय संभव नहीं है।
दफ़्तर में काम और पारिवरिक जिम्मेदारियाँ मुझे रोकेंगे।
वैसी भी कभी कभी पत्नि से झड़प हो जाती है जब कभी कभी रात को देर तक कम्प्यूटर पर लगा रहता हूँ। उनका एक कठिन सवाल का अब तक कोई उत्तर नहीं दे सका और वह है "इस ब्लॉग-वॉग के चक्कर में कितने रुपये कमाये हो अब तक? घर का इतना सारा काम अभी अधूरा पड़ा है। कब निपटाएंगे उसको?"
अभी रेटायरमेंट के लिए कुछ साल बाकी हैं। आगे चलकर अवश्य इसे full time occupation बनाने की योजना है।
तब तक, एक regular टिप्पणीकार बनना मुझे स्वाकार है।
अजीब बात है।
मेरे अब तक छपे ब्लॉग पर किसीनी ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
लेकिन मेरी केवल एक या दो टिप्पइयों ने इतने लोगों का ध्यान आकर्षित किया है कि मुझे आश्चर्य हो रहा है।
अब सोच रहा हूँ कि चिट्टाकारी छोड़कर full time टिप्पणीकार क्यों न बन जाऊँ! इसमें कई लाभ हैं!
१)विषय चुनने में कोई कठिनाइ नहीं हैं । विषय तो पहले से ही तय है।
२)कोई committment नहीं है। यदि टिप्पाणी नहीं भी करते तो किसी को पर्वाह नहीं। यदि समय न हो, तो रहने दो।
३)सोच विचार करने के लिए या तैयारी या शोध करने की आवश्यकता नहीं।
४)टिप्पणी लिखने में उतना समय नहीं लगता जितना चिट्टे लिखने में
५)टिप्पणी लिखने से आप एक या दो नहीं बल्कि कई चिट्टाकारों से सम्पर्क बढ़ा सकते हैं।
६) आजकल टिप्पणीकारों का चिट्टाजगत में अधिक demand है। चिट्टाकार तो बहुत मिल जाएंगे। कहाँ है टिप्पणीकार? यह "सत्यवचन महाराज", "सही कहा आपने", "जमाये रहिए" "रोचक", "बधाई हो", "साधुवाद" जैसे cliched टिप्पणइयों को मै केवल "attendance markers" समझता हूँ। ऐसी टिप्पणियों से टिप्पणीकार अपने जान पहचान के चिट्टाकारों को notice देना चाहते हैं कि "हाँ भाइ, मैंने आपका ब्लॉग पढ़ा, अब तुम भी मेरे ब्लोग को पढ़ना! इस स्थिति में यदि कोई अपने चिट्टे को किसी पर थोंपे बिना किसी और के ब्लॉग पर रचनात्मक टिप्पणी करता है, तो उसका शायद ज्यादा स्वागत होगा।
अब ज्ञानदत्तजी ने आप सब लोगों से मेरा परिचय करा दिया है। अब एक एक करके, आप सब लोगों के चिट्टों पर बारी बारी से, समयानुसार, फ़ुरसतानुसार टिप्पणी करने का इरादा पक्का हो गया है।
दिनेशराय द्विवेदीजी, अरविन्द मिश्राजी, डॉक्टर अनुराग आर्याजी, "PD" जी, ममताजी,पंकज अवधिया,
इस हृदयस्पर्शी स्वागत के लिए धन्यवाद।
आशा है कि आपकी आशाओं की पूर्ति कर पाऊँगा।
आलोक पुराणिकजी, अभिषेक ओझाजी, भुवनेश शर्माजी,
रेवा कार के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए नुक्कड़ पर मेरा यह ब्लॉग पोस्ट देखिए और टिप्पणिइयाँ भी पढ़िए
http://tarakash.com/forum/index.php?option=com_myblog&show=My-fascination-for-the-REVA-battery-operated-car.html&Itemid=72
अगर ब्लॉग पढ़ने के लिए समय नहीं है तो संक्षिप्त मे:
Price: 3.49 lakhs on the road in Bangalore
( अवश्य overpriced कह सकते हैं। लेकिन कटौती की कोई गुंजाईश नहीं। विदेश में जोरों से बिक रही है। यहाँ अपने देश में शायद ही कोई इसे खरीदने की सोच रहा है। सात साल में केवल १००० गाड़ियाँ बिक चुकी है बेंगलूरु मे। गाड़ी यहीं बेंगळूरु में बनती है)
Carrying capacity: Two adults in the front seat, two children in the rear seats
Maximum speed : 80 Km/hour. (60 तक आजमाके देखा हूँ। आगे हिम्मत नहीं हुई)
Range: 80 Km on a full charge
Time for charging: 8 hours for a full charge but only two hours for initial range of 40 km
Energy consumption for full charge: 9 units (costing Rs 40 in Bangalore)
Charging Plug point required: 2 kilowatts, 15 amp
Running cost : Rs 0.50 per km compared to Rs 5 and above for other cars
Maintenance: Nil (except battery charging as required and watering the battery every three weeks. For my needs I charge the battery twice a week)
Body: ABS plastic, dent proof, scratch proof, avialable in thousands of colours but fast moving colours are red, blue, grey, white, black and yellow.
Driving comfort: A child can drive this with one hand, one leg and only one eye. No clutch, no gears. No noise, no oil, no grease, no vibration, no exhaust.
Length (bumper to bumper 8'-8", width 4')
पूरी जानकारी मेरे अनुभवों के बारे में जानने के लिए मेरा ब्लॉग पोस्ट पढ़िए
Remarks: Suitable as a second car for the family, for intra city commuting only.
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पंकज, संजय और अंकित
आप लोगों से तो पुरानी जान पहचान है।
नुक्कड़ पर मिलते रहेंगे।
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अनूप शुक्लाजी,
आप के बारे में पहले भी सुन चुका हूँ। खुशी बेंगाणी की मज़ेदार podcast interview अब भी याद है। रवि रतलामीजी की भांजी की शादी के बारे में आपका रोचक लेख मुस्कुराते-मुस्कुराते पढ़ता गया और पता भी नहीं चला कब लेख खत्म हुआ। भविष्य में कभी आपको मेरी शादी का किस्सा सुनाऊँगा। १९७३ में यह शादी के जाल में मुझे मेरी माँ और मेरे मामाजी की लड़की ने मिलकर कुछ छल कपट से, एक ज्योतिषी के बहकावे में आकर फ़ँसाया था और यह शादी का निश्चय भी (मानो, या न मानो) एक बन्दर ने किया था। हाँ आपने ठीक सुना, बन्दर (monkey). यदि आप सब इस बात को मेरी पत्नि से छुपाकर रखने का वादा करते हैं और सचमुच जानने की रुचि रखते हैं तो सुनाऊँगा कभी।
लगता है कि अब इस हिन्दी ब्लॉग जगत में आकर सचमुच फ़ंस जाऊँगा।
आलोकजी ने कामना की हैं कि भगवान मुझे हिंदी ब्लागरों को झेलने के शक्ति दे। आलोक जी, सच बात तो यह हैं अंग्रेज़ी जितना हिन्दी का ज्ञान न होता हुए भी, मैं हिन्दी के चिट्टे ज्यादा पसन्द करने लगा हूँ। USA, UK, Australia में मेरे कई मित्र हैं जिनसे मेरी सालों से पत्र व्यवहार चलता आया है और समय समय पर उनको लिखकर भारत के बारे में जानकारी देते आया हूँ लेकिन उन लोगों से "identify" नहीं कर पाता।
काश हिन्दी में मैं उतनी आसानी से लिख सकता जितनी आसानी से अंग्रेज़ी में लिख सकता हूँ। चालीस साल से हिन्दी का प्रयोग कभी नहीं किया, लिखते समय। अब इस साल शुरू की है और समय और अभ्यास की आवश्यकता है। तब तक आप लोगों को मुझे और हिन्दी में मेरी वर्तनी और व्याकरण सम्बन्धी त्रुटियों को झेलना होगा।
मिलते रहेंगे।
एक बार फ़िर से आप सब लोगों को, और विशेषकर ज्ञानदत्तजी को मेरा हार्दिक धन्यवाद।
गोपालकृष्ण विश्वनाथ
जे पी नगर, बेंगळूरु
सर, आप हमेशा आमंत्रित हैं मेरे चिट्ठे पर.. आप बस ये बताईये कि आप कब मेरे चिट्ठे पर अपना लेख लिखना चाहते हैं.. आप कुछ भी लेख लिख सकते हैं मेरे चिट्ठे के लिये.. अगर आप कभी मेरे चिट्ठे पर आये होंगे तो आपने पाया होगा कि मैं किसी विषय से बंधा हुआ नहीं हूं.. :)
ReplyDeleteआपके इंतजार में..
वाह जी, क्या तार जुड़े हैं. बस ऐसे ही मेल मुलाकात होती रहे और हिन्दी चिट्ठाकारी की सार्थकता बढ़ती रहे. निश्चय ही हिन्दी में टंकित हर शब्द हिन्दी को अंतर्जाल पर विस्तार देता है एवं सुदृण बनाता है. आपका योगदान और अधिक सराहनीय हो जाता है कि मूलतः गैर हिन्दी भाषी होते हुए भी इस महायज्ञ में आप अपना भरसक योगदान कर रहे हैं. यह बहुत प्रसंशनीय है एवं आप साधुवाद के अधिकारी हैं. मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं.
ReplyDeleteआपका स्वागत है एवं आपसे नियमित लेखन की आशा है.
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आप की यहाँ प्रस्तुत प्रतिटिप्पणी भी रोचक है. बस मात्र कुछ हिस्सों जैसे attendance markers से सहमत होने के लिए असमंजस में हूँ. मुझे लगता है कि न सिर्फ पुराने साथी बल्कि हर नये आने वाले ब्लॉगर को प्रोत्साहन की जरुरत है. प्रोत्साहन के आभाव में बहुतेरे ब्लॉग बंद होते देखे हैं इतने कम समय में. ऐसे वक्त में प्रोत्साहन का एक शब्द भी, फिर चाहे वो "सत्यवचन महाराज", "सही कहा आपने", "जमाये रहिए" "रोचक", "बधाई हो", "साधुवाद" ही हो, प्राणवायु का कार्य करते हैं.
निश्चित ही रचनात्मक टिप्पणी का हमेशा स्वागत है और वह भी अति महत्वपूर्ण हैं किन्तु किसी भी आधार पर मैं “attendance markers” जिन्हें मैं प्राणवायु कह रहा हूँ, की महत्ता को कम नहीं करती.
यह ठीक वैसे ही है जैसे घर में हम छोटे बच्चों से लेकर बड़ो तक को ’आह’, ’वाह’ और ’शाबाश’ कहते रहते हैं प्रोत्साहनवश या यह बताने के लिए हम तुम्हें नोटिस कर रहे हैं. घर पर कभी कभी अपनी प्रतिक्रिया हम बच्चों को विस्तार से भी बताते हैं मगर जयादातर तो ’शाबाश’, ’keep it up” आदि से काम चल जाता है. दोनों ही महत्वपूर्ण हैं. किसी को भी कमतर नहीं आंका जा सकता.
उपरोक्त तथ्य मात्र मेरी सोच हैं. विचार आया तो सोचा आप से भी साझा कर लें. आशा है आप इसे अन्यथा न लेंगे.
अनेकों शुभकामनाऐं.
उडन तश्तरीजी,
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
बस इसी तरह जब कभी मैं कुछ ऐसा लिख देता हूँ जिससे आप सहमत नहीं हैं या जो आपको अच्छा नहीं लगे, तो तुरन्त टोक दीजिए।
मैं बुरा कभी नहीं मानता और हर आलोचना से प्रेरित होता हूँ और अपने आप को अलग ढंग से सोचने का प्रयत्न करता हूँ।
आप ने भी सही कहा। शुरू शुरू में ये standard टिप्पणियों भी नवागन्तुकों को प्रोत्साहित कर सकती हैं। लेकिन आगे चलकर, अनुभवी चिट्टाकार को टिप्पणीकारों से अधिक अपेक्षा रखना स्वाभाविक है।
"PD" जी,
ज्ञानदत्तजी सी आपका और अन्य मित्रों का ब्लोग site का पता मालूम करके अवश्य पधारूंगा। बस कुछ समय दीजिए। आज तो मेरा सारा दिन इस ब्लॉग पर ही बीत गया। अब अवकाश चाहता हूँ मेरे अन्य जिम्मेदारियों को पूरी करने। अवश्य लौटूंगा और नियमित रूप से आप सब लोगों से समय बिताऊँगा।
फ़िर मिलेंगे।
विश्वनाथ
ज्ञान जी आज कल कुछ व्यक्तिगत कारणों से मै आप के ब्लोग पर या किसी भी ब्लोग पर नियमित रूप से टिप्पणी नही कर पा रही, लेकिन पढ़ती जरूर हूँ। जी विश्वनाथ जी की पोस्ट पढ़ कर खुद को रोक नहीं पायी। दो तीन कारण थे।
ReplyDelete1।) इसके पहले वाली पोस्ट में आप ने फ़ुटनोट के रूप में जब इनके बारे में लिखा तो जिज्ञासा और आश्चर्य दोनों थे क्युं कि मैं अभी मई के महीने में इसी जे पी नगर, बेंगलौर में चार दिन रह कर आई हूँ तो उस पते का नाम पढ़ते ही जिज्ञासा जागी।
2) आप की कहानी के साथ खुद को आइडेंटिफ़ाइ कर पाए याद है हम भी अपनी एक सहेली को ढ़ूंढ़ रहे है कॉलेज के जमाने की
3) ज्यादातर हम टिप्पणी करने के बाद वापस जा कर नही देखते, शुरु में वापस जाते थे देखने कि कोई जवाब है क्या, कोई जवाब नही होता था तो हमने एक तरफ़ा कम्युनिकेशन से समझौता कर लिया था। आज विश्वनाथ जी की टिप्पणियां कैसी थी आप की पहली पोस्टस पर ये देखने के लिए आप के दिय लिक पर वापस गये तो देखा कि उन्होनें हमारी टिप्पंणी का जवाब लिखा है, मन मयुर नाच उठा।
वैसे ज्ञान जी आप को बताना चाह्ती हूँ कि आप के ब्लोग पर टिप्पणी देना मेरे लिए काफ़ी टेड़ी खीर है। हिन्दी ठीक से लिखी ही नहीं जाती। मुझे नोट पेड पर लिख कॉपी पेस्ट करना पड़ता है
विश्वनाथ जी
ब्लोग जगत में आप का स्वागत है , आप के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा। मेरे ब्लोग पर लिखने के लिए भी मेरा निमंत्रण स्वीकार करें। आप की पोस्ट मेरे ब्लोग पर आना मेरे लिए फ़क्र की बात होगी। रेवा के बारे में मैने सुना हुआ है, आज आप से विस्तृत जानकारी भी पा ली। सोच रही हूँ , बम्बई की सड़कें जो चांद की धरती लगती हैं वहां क्या ये गाड़ी चल पाएगी।कितने की है?प्लीज ई मेल में बताए तो और भी अच्छा।
और हां विश्वनाथ जी वो बंदर वाला किस्से का इंतजार रहेगा
ReplyDeleteविश्वनाथजी, आपकी टिप्पणी पढ़कर बहुत अच्छा लगा। आपकी टिप्पणी की लम्बाई और कई बार फ़ुरसतिया शब्द इस्तेमाल करते देख मन खुश हो गया। हमें पक्का भरोसा है कि आप फ़ुरसतिया टाइप लेख लिखने वाले हैं हिंदी में। हिंदी ,वर्तनी, व्याकरण की चिंता तो नको करें। बस लिखने लगें। आप जिसके ब्लाग पर लिखेंगे वह धन्य होगा लेकिन मेरा सुझाव और अनुरोध है कि आप अपने ब्लाग पर ही लिखें। हिंदी ब्लागिंग के फ़ंडे आप यहां से समझ सकते हैं। आपका स्वागत है हिंदी ब्लागिंग में।
ReplyDeleteआज की मुलाकात बस इतनी .. कहकर विश्वनाथजी चल दिये ... अभी ये पूरा किस्सा पढा :)
ReplyDeleteबहोत खुशी हुई ..
स्वागत है आपका
हिन्दी ब्लोग जगत मेँ !
- लावण्या
श्री जी. विश्वनाथ की पोस्ट और उनकी विस्तृत टिप्पणी दोनो पढी । उनके लोहे का स्क्रू रूककर उठाने के वाकये ने दिल को छू लिया ।
ReplyDeleteविश्वनाथजी की टिप्पणी लेने के लिये तो अब प्रयास करने ही पडेंगे । इस सप्ताहांत पर कुछ नये विषयों पर लेखनी चलायेंगे ।
साथ ही दौडते हुये पाडकास्ट रेकार्ड करने के लिये लाजिस्टिक पर भी काम चल रहा है । बस एक दूसरे मित्र धावक को साथ में रखना होगा जो ध्यान रख सके कि रेकार्ड करते हुये दौडते हुये आस पास क्या हो रहा है ।
विश्वनाथ जी से गुजारिश है कि वो तकनीकि विषयों पर लिखें और इन विषयों को प्रेरित करें । ज्ञानदत्तजी आप स्वयं भी इन विषयों पर लिख सकते हैं । इस क्षेत्र में अगर कुछ ब्लागर मिलकर काम करें तो ही सिनर्जी बन सकती है, अकेले करने से बात बनती नहीं दिख रही है ।
अभिभूत हूं। ब्लॉगिंग करते महीना दिन भी नहीं हुआ। इतने कम समय में इतना कुछ, इतने लोगों को जान-समझ पाउंगा, अंदाजा न था। सब कुछ आत्मा को संतृप्त करनेवाला है। खुशी से आंखें नम हो आयीं।
ReplyDeleteविश्वनाथ जी के बारे में जानना बहुत सुखद रहा । सचमुच , विश्वनाथजी इस समय तो टिप्पणीजगत के सुपरस्टार नज़र आ रहे हैं। उड़नतश्तरी तो उनसे पीछे हैं :)
ReplyDeleteविश्वनाथजी को शब्दों के सफर पर भी हम आमंत्रित करते हैं...कभी हमारे चिट्ठे पर भी नज़र पड़ी या नहीं उनकी...
शुक्रिया ज्ञानदा...
आपकी पोस्ट, विश्वनाथजी की पोस्ट व टिप्पणी, और बाक़ी टिप्पणियाँ एक साथ पढीं, अच्छा लगा. बात सच है - अच्छे काम कठिन हो सकते हैं इसीलिये जहाँ कोई भी बेरीढ़ कायर एक बन्दूक लेकर, चार क़त्ल करके जिहाद कर सकता है वहीं एक छोटा सा सत्कर्म करना भी कई बार इतना कठिन और वीरोचित होता है की हर किसी के बस की बात नहीं रहता.
ReplyDeleteश्री जी. विश्वनाथ की पोस्ट और उनकी विस्तृत टिप्पणी दोनो पढी । उनके लोहे का स्क्रू रूककर उठाने के वाकये ने दिल को छू लिया ।
ReplyDeleteविश्वनाथजी की टिप्पणी लेने के लिये तो अब प्रयास करने ही पडेंगे । इस सप्ताहांत पर कुछ नये विषयों पर लेखनी चलायेंगे ।
साथ ही दौडते हुये पाडकास्ट रेकार्ड करने के लिये लाजिस्टिक पर भी काम चल रहा है । बस एक दूसरे मित्र धावक को साथ में रखना होगा जो ध्यान रख सके कि रेकार्ड करते हुये दौडते हुये आस पास क्या हो रहा है ।
विश्वनाथ जी से गुजारिश है कि वो तकनीकि विषयों पर लिखें और इन विषयों को प्रेरित करें । ज्ञानदत्तजी आप स्वयं भी इन विषयों पर लिख सकते हैं । इस क्षेत्र में अगर कुछ ब्लागर मिलकर काम करें तो ही सिनर्जी बन सकती है, अकेले करने से बात बनती नहीं दिख रही है ।
ज्ञान जी आज कल कुछ व्यक्तिगत कारणों से मै आप के ब्लोग पर या किसी भी ब्लोग पर नियमित रूप से टिप्पणी नही कर पा रही, लेकिन पढ़ती जरूर हूँ। जी विश्वनाथ जी की पोस्ट पढ़ कर खुद को रोक नहीं पायी। दो तीन कारण थे।
ReplyDelete1।) इसके पहले वाली पोस्ट में आप ने फ़ुटनोट के रूप में जब इनके बारे में लिखा तो जिज्ञासा और आश्चर्य दोनों थे क्युं कि मैं अभी मई के महीने में इसी जे पी नगर, बेंगलौर में चार दिन रह कर आई हूँ तो उस पते का नाम पढ़ते ही जिज्ञासा जागी।
2) आप की कहानी के साथ खुद को आइडेंटिफ़ाइ कर पाए याद है हम भी अपनी एक सहेली को ढ़ूंढ़ रहे है कॉलेज के जमाने की
3) ज्यादातर हम टिप्पणी करने के बाद वापस जा कर नही देखते, शुरु में वापस जाते थे देखने कि कोई जवाब है क्या, कोई जवाब नही होता था तो हमने एक तरफ़ा कम्युनिकेशन से समझौता कर लिया था। आज विश्वनाथ जी की टिप्पणियां कैसी थी आप की पहली पोस्टस पर ये देखने के लिए आप के दिय लिक पर वापस गये तो देखा कि उन्होनें हमारी टिप्पंणी का जवाब लिखा है, मन मयुर नाच उठा।
वैसे ज्ञान जी आप को बताना चाह्ती हूँ कि आप के ब्लोग पर टिप्पणी देना मेरे लिए काफ़ी टेड़ी खीर है। हिन्दी ठीक से लिखी ही नहीं जाती। मुझे नोट पेड पर लिख कॉपी पेस्ट करना पड़ता है
विश्वनाथ जी
ब्लोग जगत में आप का स्वागत है , आप के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा। मेरे ब्लोग पर लिखने के लिए भी मेरा निमंत्रण स्वीकार करें। आप की पोस्ट मेरे ब्लोग पर आना मेरे लिए फ़क्र की बात होगी। रेवा के बारे में मैने सुना हुआ है, आज आप से विस्तृत जानकारी भी पा ली। सोच रही हूँ , बम्बई की सड़कें जो चांद की धरती लगती हैं वहां क्या ये गाड़ी चल पाएगी।कितने की है?प्लीज ई मेल में बताए तो और भी अच्छा।
वाह जी, क्या तार जुड़े हैं. बस ऐसे ही मेल मुलाकात होती रहे और हिन्दी चिट्ठाकारी की सार्थकता बढ़ती रहे. निश्चय ही हिन्दी में टंकित हर शब्द हिन्दी को अंतर्जाल पर विस्तार देता है एवं सुदृण बनाता है. आपका योगदान और अधिक सराहनीय हो जाता है कि मूलतः गैर हिन्दी भाषी होते हुए भी इस महायज्ञ में आप अपना भरसक योगदान कर रहे हैं. यह बहुत प्रसंशनीय है एवं आप साधुवाद के अधिकारी हैं. मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं.
ReplyDeleteआपका स्वागत है एवं आपसे नियमित लेखन की आशा है.
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आप की यहाँ प्रस्तुत प्रतिटिप्पणी भी रोचक है. बस मात्र कुछ हिस्सों जैसे attendance markers से सहमत होने के लिए असमंजस में हूँ. मुझे लगता है कि न सिर्फ पुराने साथी बल्कि हर नये आने वाले ब्लॉगर को प्रोत्साहन की जरुरत है. प्रोत्साहन के आभाव में बहुतेरे ब्लॉग बंद होते देखे हैं इतने कम समय में. ऐसे वक्त में प्रोत्साहन का एक शब्द भी, फिर चाहे वो "सत्यवचन महाराज", "सही कहा आपने", "जमाये रहिए" "रोचक", "बधाई हो", "साधुवाद" ही हो, प्राणवायु का कार्य करते हैं.
निश्चित ही रचनात्मक टिप्पणी का हमेशा स्वागत है और वह भी अति महत्वपूर्ण हैं किन्तु किसी भी आधार पर मैं “attendance markers” जिन्हें मैं प्राणवायु कह रहा हूँ, की महत्ता को कम नहीं करती.
यह ठीक वैसे ही है जैसे घर में हम छोटे बच्चों से लेकर बड़ो तक को ’आह’, ’वाह’ और ’शाबाश’ कहते रहते हैं प्रोत्साहनवश या यह बताने के लिए हम तुम्हें नोटिस कर रहे हैं. घर पर कभी कभी अपनी प्रतिक्रिया हम बच्चों को विस्तार से भी बताते हैं मगर जयादातर तो ’शाबाश’, ’keep it up” आदि से काम चल जाता है. दोनों ही महत्वपूर्ण हैं. किसी को भी कमतर नहीं आंका जा सकता.
उपरोक्त तथ्य मात्र मेरी सोच हैं. विचार आया तो सोचा आप से भी साझा कर लें. आशा है आप इसे अन्यथा न लेंगे.
अनेकों शुभकामनाऐं.