दीना मेरे नियंत्रण कक्ष का चपरासी है। उसका मुख्य काम सवेरे सात-साढ़े सात बजे नियन्त्रण कक्ष की पोजीशन के कागज (कहा जाये तो हमारा गाड़ी नियंत्रण का पिछले दिन का अखबार और वर्तमान के दिन की कार्ययोजना का विवरण) अधिकारियों को घर पर उपलब्ध कराना है। मेरे घर यह पोजीशन नियंत्रण कक्ष से बहुत ज्यादा दूरी के कारण फैक्स की जाती है - लिहाजा मैं दीना को जानता न था।
पर एक दिन दीना मेरे सामने आ कर खड़ा हो गया - "साहब मेरे साथ जबरजस्ती की जा रही है। यह मैं सह नहीं पा रहा। मुझे जबरन साइकल दी जा रही है।"
मुझे समझ नहीं आया। किसी को सरकारी साइकल दी जाये और वह उसे जबरजस्ती कहे! पर कुछ न कुछ बात होगी! उसे मैने कहा कि ठीक है, देखता हूं।
पता किया तो ज्ञात हुआ कि दीना अपनी मॉपेड से पोजीशन बांटता है। अगर साइकल दी गयी तो उसे साइकल से रोज ३० किलोमीटर चलना होगा यह काम करने के लिये। उसकी उम्र है पचपन साल। काठी मजबूत है; पर काम मेहनत का होगा ही। और साइकल मिलने पर भी अगर वह अपने मॉपेड से पोजीशन बांटता है तो उसे वाहन भत्ता नहीं मिलेगा - उसे जेब से खर्च करना होगा। हमारे लिये दिक्कत यह होगी कि उसके साइकल से आने पर सवेरे अधिकारियों को पोजीशन देर से मिलेगी।
निश्चय ही यह न दीना के पक्ष में था और न प्रशासन के, कि दीना को उसके मॉपेड से उतार कर साइकलारूढ़ किया जाये। वह निर्णय बदल दिया गया। साइकल का वैकल्पिक उपयोग किया गया।
पर इस प्रकरण से मेरी दीना में रुचि बनी। पता किया तो उसने बताया कि उसका नाम है दीनानाथ। इसके पहले वह जगाधरी और आलमबाग (लखनऊ) में कार्यरत था। वहां वह स्टोर्स डिपार्टमेण्ट में था और भारी सामान का बोझा ढोता था। काम मेहनत का था पर ओवरटाइम आदि से वह ठीक-ठीक पैसा पा जाता था।
उत्तर-मध्य रेलवे बनने पर अपनी इच्छा से वह यहां आया। पास में उसका गांव है। प्रशासन से बहुत शिकायत है उसे; पर काम में उसकी मुस्तैदी में कोई कमी नहीं है। दो लड़के हैं दीना के - एक नंवीं में और दूसरा दसवीं में। नवीं वाला मजे से फेल हुआ है और दसवीं वाला मजे से पास। जब तक वह रिटायर होगा, यह बच्चे कमाऊ नहीं बन सकते। पर दीनानाथ बड़े सपाट भाव से उनके बारे में बता ले गया। मुझे उसके निस्पृह भाव से बात करने पर ईर्ष्या हुई। वह बात बात में कहता जा रहा था कि भगवान नें उसपर बहुत कृपा कर रखी है।
उम्र पचपन साल, लड़का नवीं कक्षा में फेल हो रहा है और भगवान कृपा कर रहे हैं - जय हो जगदीश्वर!
कर्मठता और निस्पृहता में दीना से सीखा जा सकता है। मैं दीना को प्रशंसा भाव से कुछ बोलता हूं तो वह हाथ जोड़ कर कहता है - "साहब ५ साल की नौकरी और है, ठीक से कट जाये, बस!"
और मेरी पूरी साहबियत आश्चर्य करती है। क्या जीव है यह दीना!
फॉयरफॉक्स ३.० का डाउनलोड देश के हिसाब से यह पेज बताता है। कल शाम तक ईराक में कुल डाउनलोड थे २१८ और सूडान तक में उससे ज्यादा थे - २८८. म्यांमार में भी ईराक से ज्यादा थे - ४०८! अगर डाउनलोड को देश की तकनीकी अगड़ेपन से जोड़ा जाये तो ईराक कहां ठहरता है। तेल पर इतराता देश पर इण्टरनेट में फिसड्डी। युद्ध में ध्वस्त होने के कारण है यह दशा, या सद्दाम ने अपनी तानाशाही में इसे दमित और अन्तर्मुखी बना रखा था?
बहुतेरे दीना ऐसे ही हैं जिन्होंने विषमताओं में इसी तरह से खुशी से जीना सीख लिया है. वाकई कई बार उनके ज़ज्बे को सलाम करने को जी चाहता है. वरना रोते रोते तो सब ही जी रहे हैं.
ReplyDeleteआभार, आपने परिचय कराया. हमारा सलाम भी कह दिजियेगा.
दीनानाथ को सलाम। लेकिन उसे इतना संतोषी नहीं होना चाहिए था।
ReplyDeleteजय हो दीनानाथ की।… संतोषम् परमम् सुखम्।
ReplyDeleteआधा भारत इसी दुनिया मे जीता है जी, कभी गाव जाकर देखियेगा यही सोच मिलेगी
ReplyDeleteजीना तो है उसी का जिसने ये राज जाना, लगता है आपके दीना को ये पता है
ReplyDeleteआधा हिन्दुस्तान ही दीना होता जा रहा है..
ReplyDeleteभारतवर्ष ऐसे ही दीनाओं के सहारे चल रहा है। संतोषी जीव, ना ज्यादा खटराग किसी से ज्यादा शिकायत नहीं। कुछ दिनों पहले एक सर्वे आया था उसमें बताया गया कि बिहार हैपीनेस इंडैक्स सबसे ऊपर है। आत्महत्याएं वहां होती ही नहीं हैं। जैसा है, उसमें मस्ती है।
ReplyDeleteदीनाजी की जय हो।
दीनाजी की स्पिरिट की जय हो।
आर्ट आफ लिविंग यही है जी।
सब सभ्यताएं मिट गई पर हम न मिटे...क्योंकि हम में दीनापन है.
ReplyDeleteफायरफोक्स वहाँ ज्यादा डाउनलोड हुआ है जहाँ अमेरिका से दुश्मनी है. अमेरीका को छोड़ कर.
दीनानाथ जी स्वभावतः संतोषी हैं या परिस्थितियों के बनाये हैं? जो भी हो प्रसन्न रहें और औरों को भी प्रेरित करते रहें.
ReplyDeleteभारत में फायरफॉक्स डाउनलोड का एक लाख का आंकडा पहुँच रहा है. हमने भी किया था पर रिलीज केंडीडेट ३ और फाइनल रिलीज में कोई फर्क नजर नहीं आ रहा.
दीना नाथ से परिचय कराने का शुक्रिया।
ReplyDeleteदीना नाथ खुश है ये अच्छी बात है क्यूंकि दुखी होकर जीवन जीना मुश्किल हो जाता है।
और वो नारद मुनि और तेल वाली कहानी तो आपने सुनी ही होगी ।
ReplyDeleteरोज अनेको दीनानाथ मिलते है.....जुदा चेहरे, जुदा उम्र ओर जुदा तकलीफ लिये.....
ReplyDeleteदीनानाथ जैसे व्यक्ति पर अपनी पोस्ट लिख कर आपने अपनी सरलता का ही परिचय दिया है।
ReplyDeleteऐसे कितने ही दीना हर जगह पड़े हुए हैं अपने देश में... और मजे की बात ये है की समाज का एक तबका ऐसा भी है जिसकी नज़र में दीना खुशहाल लोगों के श्रेणी में आता है... (सरकारी नौकरी है और क्या चाहिए !). धर्म और भगवान् पर अटूट विशवास कहीं-न-कहीं इस देश के करोड़ों लोगो के जीने का सहारा है. धर्म की कई अच्छी बातों में एक ये भी है जो मुझे बहुत अच्छी लगती हैं.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ़ कर विष्णु प्रभाकर का एक लेख याद आ गया 'गोपी चपरसी' हमारे स्कूल की पुस्तक में था... कहीं मिले तो पढियेगा.
जीना किसे कहते है यह दीना जैसे लोग बता सकते है . कर्तव्यनिष्ट लोगो की भावनाओ का आदर किया जाना चाहिए . . बहुत सुंदर आभार
ReplyDeleteदीनानाथ की सोच उस भाग्यवाद का हिस्सा है जिसमें हमारी अधिकांश आबादी जीती है। हमारे सिर पर विपदाओं के पहाड़ टूटते रहते हैं, फिर भी हम कहते हैं कि हरि इच्छा। यह अलग बात है कि यह भाग्यवाद उन लोगों के लिए फायदेमंद होती है, जो धर्म व अध्यात्म का कारोबार करते हैं। यह हमारे राजनेताओं व सेठ-साहूकारों के लिए भी मुफीद होती है, क्योंकि जो आदमी उनकी मार से भी मर रहा होता है, सोचता है हरि इच्छा।
ReplyDeleteफ़ायरफ़ॉक्स का डाउनलोड अपने देश में १२७ हज़ार है अभी.. और ईरान में २६७ हज़ार.. जबकि हमारी और उनकी आबादी में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ है.. इस अन्तर को भी विचारिये..
ReplyDeleteदीना से हमें जलन हो रही है। काश हम भी इतने संतोषी होते तो मजे से मन पसंद काम कर रहे होते। सब टिप्पणी करने वालों ने कहा ऐसे लोग दुनिया में अकसर मिल जाते हैं , कहां है भाई, हमें ऐसे लोग क्युं नही दिखते
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