"पास के जंगल मे चमकने वाले पौधे का पता चला है। आप जल्दी आ जाइये।" ज्यों ही बरसात का मौसम आरम्भ होता है प्रदेश भर से ऐसे फोन आने शुरु हो जाते हैं। फोन आते ही बिना विलम्ब किराये की गाडी लेकर उस स्थान पर पहुँचना होता है। कभी दो घंटे का सफर होता है तो कभी रात भर का। मैं दस से भी अधिक वर्षो से विचित्र मानी जाने वाली वनस्पतियों की तलाश मे इस तरह भाग-दौड कर रहा हूँ। ज्यादातर मामलो मे निराशा ही हाथ लगती है पर हर यात्रा से नया सीखने को मिलता है।
चमकने वाले पौधे का वर्णन रामायण मे मिलता है। पारम्परिक चिकित्सक भी इस वनस्पति की उपस्थिति का दावा करते रहते हैं। मैने अपने अनुभव से सीखा है कि यदि आप विशेषज्ञ बनकर इन पारम्परिक चिकित्सकों के पास जायेंगे तो आप को बहुत कम जानकारी मिलेगी। आप छात्र बनकर अपने ‘इगो’ को दरकिनार कर जायें तो वे आपको सहर्ष अपना लेंगे। भले ही शहरी मानव समाज मुझे विशेषज्ञ होने का दर्जा दे पर जब मैं जंगल मे पहुँचता हूँ तो ऐसा लगता है जैसे स्कूल का पहला दिन है और सब कुछ नया है।
यह पोस्ट श्री पंकज अवधिया की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट है। आप उनके पिछले लेख पंकज अवधिया पर लेबल सर्च कर देख सकते हैं। |
पारम्परिक चिकित्सको से बात करते समय मै किसी तरह की प्रश्नावली तो दूर कागज का टुकडा रखना भी पसन्द नही करता हूँ। कागज देखकर वे सहम से जाते हैं। संभल के जवाब देते हैं। वानस्पतिक सर्वेक्षण के दौरान मै जो भी सुनता हूँ उसे उसके मूल रुप में लिख लेता हूँ। वे जो कहते हैं सहर्ष मान लेता हूँ। तर्कशील मन कहता है कि मै अपनी विशेषज्ञता झाड़ूं पर जैसे ही आपने यह किया, सूचनाओ का प्रवाह रुक जाता है। वैसे भी मै अपनी चन्द वर्षो की किताबी पढ़ाई को पीढ़ियों पुराने ज्ञान के सामने कम ही आँकता हूँ।
बरसात के आरम्भ होते ही जंगलों मे कई प्रकार के पारम्परिक चिकित्सक मिल जाते हैं। बरसाती रात मे आसमानी बिजली से झुलसे पेड़ों के विभिन्न भागों को एकत्र किया जाता है। बिजली गिरने के बाद जितनी जल्दी हो सके उस पेड़ तक पहुँचना होता है। फिर उपयोगी भाग को एक घोल मे सुरक्षित करना होता है। इन भागो का प्रयोग कम जीवनी शक्ति वाले रोगियो की चिकित्सा मे होता है। इस समय विभिन्न वनस्पतियों से वर्षा का जल एकत्र करते पारम्परिक चिकित्सक भी मिल जाते हैं। पहली वर्षा का जल औषधीय गुणों से परिपूर्ण माना जाता है। विभिन्न वनस्पतियों से जब यह बहकर आता है तो इसके गुणों मे और वृद्धि हो जाती है। जमीन पर गिरने से पहले इसे एकत्र कर लिया जाता है। रानी कीडा या भगवान की बुढिया के एकत्रण मे जुटे पारम्परिक चिकित्सक भी मिलेंगे। दलदली इलाकों मे नाना प्रकार के कन्दों से नव अंकुर निकलने का यही समय है।
मै टाटा इंडिका (बहुत कम स्कार्पियो या इनोवा) का प्रयोग करता हूँ। घने जंगलों मे तो बरसात में गाडी से जाना सम्भव नही है। इसलिये पैदल चलना होता है। मै पेड़ पर चढने मे उतना माहिर नही हूँ इसलिये सुरक्षित जगहों पर ही जाता हूँ। वन्य प्राणियो से दूर रहना पसन्द करता हूँ। उनकी तस्वीरे लेने मे भी कम रुचि है। आमतौर पर साथ में पारम्परिक चिकित्सक और ड्रायवर ही होते हैं।
चमकने वाले पौधे नही मिलने की दशा मे यह कोशिश करता हूँ कि एक दिन में एक से डेढ हजार अच्छे छायाचित्र मिल जायें। पहले तो यह सम्भव नही था पर अब डिजिटल कैमरे के कारण बहुत सुविधा हो गयी है। कुछ वर्षो पहले मुझे एक रंगीन मशरुम मिल गया था घने जंगल में। मैने तस्वीरें उतारी और उसके बारे मे लिखा तो पता चला कि भारत मे इसे पहली बार देखा गया है। दस्तावेजों मे यह मेक्सिको तक ही सीमित था। पिछले वर्ष जंगल में अजगर परिवार से मुलाकात हो गयी। कुछ उपयोगी कीट भी मिल गये।
आने वाले कुछ महीनों मे इन दौरो के कारण व्यस्तता बढ़ेगी और आप मुझे ज्ञान जी के ब्लाग पर नही पढ़ पायेंगे। नये अनुभव के साथ मै दिसम्बर से फिर आपसे मिल सकूंगा। आप दुआ करें कि इस बार चमकने वाला पौधा मिल जाये ताकि देश के बिजली संकट को कुछ हद तक ही सही पर कम किया जा सके।
विभिन्न वनस्पतियो से एकत्र किये गये पहली वर्षा के जल के पारम्परिक उपयोग।
पंकज अवधिया
© सर्वाधिकार पंकज अवधिया।
ऊपर वनस्पतीय चित्र मेरे बगीचे के हैं। वर्षा में आये नये पत्तों से युक्त पौधे। इनमें कोई चमकने वाली वनस्पति तो नहीं, पर रात में इनपर यदा-कदा जुगुनू उड़ते पाये जाते हैं।
कल हमने समय से पहले सॉफ्टपेडिया के यहां से फॉयर फॉक्स ३ डाउनलोड कर इन्स्टाल कर लिया था पर इस आशंका में थे कि यह कुछ पहले का वर्जन न हो। लिहाजा, आज यहां से फिर डाउनलोड किया, चीज वही निकली। खैर दुबारा कर उन लोगों को गिनीज में नाम दर्ज कराने को टेका लगा दिया!
रोचक आलेख है. इन्तजार करेंगे जब भी आपको समय मिले.
ReplyDeleteबड़ी हरी भारी पोस्ट आई इस बार
ReplyDeleteपंकज जी को हमारा हार्दिक आभार
जमाये रहियेजी।
ReplyDeleteचमकने वाला पौधा मिल भी गया तो उससे उजाला होगा भी? सम्भवतः वह रेडियम वाली जमकती वस्तुओं जैसा होगा.
ReplyDeleteयात्राएं जारी रहे. कुछ अन्य उपयोगी जानकारी तो मिलती ही रहेगी.
पंकज जी और हरियाली का गहरा नाता है और आप अवगत कराते रहते है , हम फायदा नुकसान सब दानते जाते है । पंकज जी सहित आप को साभार...
ReplyDeleteरोचक जानकारी, अतिउत्तम !
ReplyDeleteअवधिया जी के लेख रोचक और जानकारी पूर्ण होते है. आदत हो गयी है आपके ब्लॉग पर इन्हें पढने की. शीघ्र लौटें.
ReplyDelete"जब मैं जंगल मे पहुँचता हूँ तो ऐसा लगता है जैसे स्कूल का पहला दिन है और सब कुछ नया है।"
बहुत सुंदर. वास्तव में कुछ सीखने का यही मंत्र है.
सब कुछ हरा भरा है.......आज तो
ReplyDeleteबारिशों मे जंगल कितने सुंदर लगते होगे ……ज्ञान जी ब्लाग का ये रंग अच्छा लग रहा है ।
ReplyDeleteयात्राएं जारी रखें और ऐसे ही ज्ञान वर्धन करते रहिये... आपकी खोज में सफलता की शुभकामनायें !
ReplyDeleteआप चमकने वाले पौधे ढूंढिए।
ReplyDeleteआपकी सफ़लता के लिए कामना करता हूँ।
हमें बस आप जैसे चमकने वाला ब्लॉग्गर मिल ग्या।
इन्तज़ार करेंगे, दिसम्बर बहुत दूर नहीं।
शुभकामनाएं
सच बारिश मे जंगल बहुत सुंदर लगते है।
ReplyDeleteपंकज जी हमारी दुआ है कि आपको चमकने वाला पौधा मिल जाए। इसके लिए शुभकामनाएं।
kya sachmuch chamakne wala paudha hota hai...maine padha hai kaheen inke baare mein. ab utsukta aur badh gayi....
ReplyDeleteबड़िया जानकारी आप के वापस आने का इंतजार रहेगा, भगवान करे आप को चमकने वाली वनस्पति मिल जाए
ReplyDeleteपंकज भाई
ReplyDeleteखोपोली में बारिश है हो सकता है सह्याद्री की पहाडियों में ये पौधा मिल जाए...दोनों मिल के दिन में ढूँढेगे और रात में ना मिलने पर गम ग़लत करेंगे.
नीरज
पन्कज जी
ReplyDeleteबारिशो मे चारो ओर हरियाली का मौसम छा जाता है ऎसे मे जन्गलो की तो बात ही निराली है ।हरा भरा माहौल मन को भी हरियाला कर देता है । आप अपने मिशन को पूरा करने मे लगे रहिए । भगवान आपकी मेहनत सफल करे और आप चमकता पौधा पाने मे कामयाब हो ।हमारी शुभकामनाए आपके साथ है । लेकिन हा चमकता पौधा मिलने पर खबर जरूर करना ।