कुछ दिन पहले मैने पोस्ट लिखी थी उस व्यक्ति के बारे में जो रात में भरे यातायात के बीच राणाप्रताप चौराहे पर रोड-डिवाइडर पर सो रहा था। उसकी गहरी नींद और अपनी नींद की गोली गटकने पर भी न आने वाली नींद की चर्चा मैने उस पोस्ट में की थी। आज सवेरे दफ्तर जाते समय राणाप्रताप चौराहे पर मैने अपने वाहन को रुकवाया। जिस डिवाइडर पर वह व्यक्ति रात में सो रहा था, उसे और ऊंचा कर उसमें क्यारीनुमा स्थान बना दिया गया था। उसमें मिट्टी डाल कर सौन्दर्यीकरण हेतु पौधे लगेंगे। अब तो उसपर कोई सो नहीं सकता।
आप जरा नीचे दोनो चित्र देखें। सामने राणाप्रताप की प्रतिमा है। दाईं ओर उर्ध्व जेब्रा धारियों वाला डिवाइडर पहले का है। उसके ऊपर ईंट की जुड़ाई से ऊंचाई बढ़ाई गयी है। जुड़ाई की गयी ईंटों के बीच नाली जैसा है जिसमें पौधे लगेंगे। ईंटों का मलबा अभी पास में पड़ा भी है। अब वह वहां सोने वाला कैसे सोयेगा?
राणाप्रताप की प्रतिमा लाल अर्ध-वृत्त में घेरी गयी है। |
ऐसा ही हाल वर्षा ऋतु में बेघरबार लोगों के सोने का होता है - आज एक ठौर, कल वह गायब। मुझे तो उस डिवाइडर पर सोने वाले की फिक्र हो रही है।
यह भी सम्भव है मित्रों कि वह बेसुध सोने वाला व्यक्ति कोई और ठिकाना पाकर फिर भी गहरी नींद सोये। और हम उसकी सोने की जगह की फोटो ले, ब्लॉग पर छाप, जगह छिन जाने की तकलीफ से अपनी नींद न आने का एक और निमित्त या बहाना स्थापित कर लें।
उसे तो आखिर नींद आनी ही है और हमें तो आखिर नींद नहीं ही आनी है! :-)
और हमारी नींद आपकी पोस्ट देख के खुल जानी है:-)
ReplyDeleteये रेलवे वालो को जब तक बिस्तर ना हिले नींद आती ही नही है..कोई वाईब्रेटर लगवा लीजिये पक्का आ जायेगी..चाहे तो हम से ठेके पर लगवा सकते है..:)
ReplyDeleteसच मानो या झूठ इसे तुम,
ReplyDeleteगुर सारे जिंदा रहने के,
यह जीवन ही सिखलाता है....
---सब प्रबंध हो जायेगा, महाराज सबका. आपका भी. :)
@ अरुण - बहुत समय बाद दिखे अरुण। टिपणी देख कर अच्छा लगा।
ReplyDeleteसोने वाला वहीं सोयेगा। कुछ दिन बाद देखियेगा जेब्रा
ReplyDeleteऊंचाई से काम भर की जगह बराबर हो जायेगी। :)
एक रात, जब नींद ना आ रही हो, तो -यही कीजिये ना उसकी तलाश कीजिये, कहां है। लगभग हर महानगर में करीब तीस प्रतिशत महानगर सड़क या सड़क जैसी स्थितियों में ही सोता है। उर्दू के प्रख्यात शायर नासिर काजमी में रात में आवारागर्दी करके बहुत अच्छा लिखा है। रात की आवारागर्दी भौत धांसू च फांसू होती है। अपना ही शहर दूसरा दिखता है। कर डालिए, कई धांसू पोस्ट हो लेंगी, फोटू समेत।
ReplyDeleteउस अनजान व्यक्ति पर इतना सब लिखने और विचारने के साथ ही उसके भले की भी सोचते और करते तो अच्छा होता। इसी तरह हर कोई अपने दायरे मे मदद के लिये आगे आयेगा तो इस देश की तस्वीर ही बदल जायेगी। चलिये किसी दिंन आलोक जी के कहे अनुसार उसे खोजिये और हम सब के सहयोग से उसके रात के सोने का प्रबन्ध करिये। मै इस कार्य के लिये 5000 रूपये अपनी जेब से देने को तैयार हूँ। आशा है और लोग भी सामने आयेंगे। यह छोटा ही सही पर मन को संतोष देगा और हम सब की सुकून की नीन्द लौटेगी।
ReplyDeleteबहुत कुछ याद आ गया.... कहीं भी जाओ फुट्पाथ पर सोए आदमी को देख कर एक ही सवाल मन में उठता कि क्या सचमुच चैन की नींद है या भूख के कारण बेहाल बेहोश है या चोरी करके नशा किए हुए बेसुध पड़ा है.
ReplyDelete@ पंकज अवधिया - उस व्यक्ति विशेष को खोजने का कोई प्रॉजेक्ट हाथ में लेने का विचार नहीं है। दरिद्रनारायण के दर्शन तो देश के इस भाग में अत्यंत सुलभ हैं। उनके लिये अपनी सीमाओं मे रह कर सार्थक रूप से क्या किया जा सकता है - हम सब व्यक्तिगत स्तर पर वह करते हैं - कभी कम, कभी ज्यादा। इसलिये कुछ रुपये देने की बात नहीं है। वह तो चलता है पर उसमें यह भाव भी नहीं होता कि भिक्षा दी जा रही है। और उसकी ब्रैगिंग (bragging) भी करने का मन नहीं होता। उसमें जो अर्थ-खर्च होता है उसकी जानकारी मैं केवल पत्नी से शेयर करता हूं। हां इस क्षेत्र में सामुहिक रूप से कुछ करने की फिलहाल कोई योजना नहीं है।
ReplyDeleteआप इस कोण से निश्चिंत रहें कि दरिद्रनारायण के प्रति सेंसिटिविटी है। ब्लॉग लेखन का माध्यम है - सो यहां पर लेखन होता है। अगर यह इम्प्रेशन जा रहा है कि केवल लेखन ही झाड़ा जा रहा है - तो शायद लेखन में कमी है या लिखना भी नहीं चाहिये!
थोड़े कड़े शब्द निकल गये - क्षमा करें।
जिसे भी यह फ़िक्र होती है वह अपने स्तर पर कुछ न कुछ करता ही है।
ReplyDeleteसाधुवाद इस फ़िक्र के लिए!!
बहुतेरे ऐसे है हम मे से जिन्हे यह सब आस-पास देखने के बाद फ़िक्र तक नही होती!!
उपरवाला यह भलमनसाहत कायम रखे!!