शरारती बच्चा - जो अपने कहे की करे, दूसरे पर रोब जमाये और सामने वाले को तौल कर पीट भी दे, उसे कहते हैं - शैतान या गुण्डा। गुण्डा शब्द में लड़की को शामिल नहीं किया गया है। शायद लड़की से दबंग व्यवहार की अपेक्षा ही नहीं होती। पर छोटी सी पलक ऐसी है। उसे क्या कहेंगे? मैने ज्यादा दिमाग नहीं लगाया और नाम रख दिया - गुण्डी। मैं और मेरी पत्नी उसे गुण्डी कहते हैं।
पलक पड़ोस में रहती है। उसके पिता रिलायंस के किसी फ्रेंचाइसी के पास नौकरी करते थे। वह नौकरी छोड़ कर उन्होने किसी अर्ध सरकारी स्कूल में अकाउण्टेण्ट की नौकरी कर ली है। पड़ोस में उसके पिता-माता एक कमरा ले कर रहते हैं। कमरे में पलक की मोबिलिटी के लिये ज्यादा स्थान नहीं है। सो उसकी माता येन-केन उसे हमारे घर में ठेल देती है।
और पलक पूरी ठसक से हमारे घर में विचरण करती है। यह देख कर कभी खीझ होती है कभी विनोद। तीन साल की पलक घर के हर एक वस्तु को छूना-परखना चाहती है। और जो वह चाहती है वह कर गुजरती है। मेरा गम्भीर-गम्भीर सा चेहरा देख कर मुझसे उसकी बातचीत नहीं होती। लेकिन अगर मुझे मोबाइल निकाले देखती है तो दौड़ कर पास चली आती है और इस आशासे ताकती है कि उसका फोटो खींचा जायेगा। फोटो खींचने पर यह उत्सुकता प्रकट करती है कि उसे फोटो दिखाया जाये। मैं अब सोचता हूं कि यदा कदा कैण्डी या टॉफी के माध्यम से उससे सम्वाद कायम करने का भी यत्न करूं।
अपने से कुछ बड़े बच्चों के साथ भी पलक दबंग है। उनकी चलने नहीं देती। कभी-कभी उन्हे पीट भी देती है। उसे देखना एक अनूठा अनुभव है।
एक तीन साल की लड़की जो आज पूरी ठसक के साथ गुण्डी है, को घर समाज धीरे-धीरे परिवर्तित करने लगेगा। उसके व्यवहार में दब्बूपन भरने लगेगा लड़की सुलभ लज्जा के नाम पर। "कमर पर हाथ रख कर लड़कों जैसे नहीं खड़े हुआ करते" या "लड़कों जैसे धपर धपर नहीं चला करते" जैसे सतत दिये जाने वाले निर्देश अंतत: व्यवहार बदल ही देंगे।
यह देखने का विषय होगा कि आजसे 10 साल बाद पलक का व्यवहार कैसा होता है!
मेरे अन्दाज से वह गुण्डी तो नहीं रह पायेगी।
आपकी चिंतायें जायज हैं। कामना है कि बच्ची दस साल बाद भी ऐसी ही ऊर्जावान बनी रहे।
ReplyDeleteज्ञानदत्तजी,
ReplyDeleteडिस्क्लेमर अभी डाल दें तो अच्छा होगा वरना जैसे जैसे आप ब्लागिंग में आगे बढेंगे आपकी पुरानी पोस्ट खोज-खोज कर लोग कहीँ ला-स्यूट न लगाने लग जायें :-)
वैसे भी महिला-जागरण मंच वालों को पता चल गया तो आपकी खैर नहीं :-)
ज्ञान जी, शुक्रवार को मुंबई की लोकल ट्रेन में मैंने एक देहाती-सा नौजवान देखा, जिसकी टी-शर्ट पर लिखा था - I was born intelligent, but education ruined me...आज पलक की बात पढ़कर मुझे यह बात याद आ गई। वाकई हमारी शिक्षा और परवरिश के तौर-तरीके सहज मानव-ऊर्जा को निखारते नहीं, दबाते हैं।
ReplyDeleteआपकी गुंडी अचछी लगी । समस्या ये है कि
ReplyDeleteबेटी के रूप में तो सबको अच्छी लगेगी पर क्या बहू के रूप में आप इसे अपनायेंगे ?
मेरी छोटी बेटी, जो चार साल से कुछ ऊपर की है, ठीक यही है। बड़ी बहन को ठोंक-पीट लेती है. स्कूल में सीनियर बच्चों को ठोंक-पीट लेती है। सही जा रही है। वैसे कम से कम दिल्ली या महानगरों में मुंडियां अब धड़ाधड़ा आगे जा रही हैं। अब से पच्चीस साल पहले जब मैं बीकाम में था, तब एकसौ अस्सी छात्रों के बीच तीनु मुंडियां थीं। अब करीब पैंतीस की एक क्लास में कई बार पुच्चीस मुंडियां होती हैं। और लगातार टाप करने वाली भी वही है। और महानगरों में प्रकारांतर से ऐसी मुंडी-गुंडी पसंद की भी का जारही है कि अपना काम बनाकर घर आये, नौकरी करे। मैरिज मार्केट में ऐसी बहूओं की डि़मांड चकाचक है। सासें भी कमाऊ बहूओं से एडजस्ट करके चलती हैं, आम तौर पर। पर मुझे यह लगता है कि यह सब अभी महानगरों में ही, छोटे शहरों तक यह पहुंचते पहुंचते समय लगेगा। पर होगा जी। आपकी गुंडी को हमारी शुभकामनाएं।
ReplyDeleteजरूरत है इस ऊर्जा के सही उपयोग की। यदि सही दिशा मिल जाये तो क्या कहने। आपके पास आती है तो निश्चय ही सब अच्छा होगा। थोडा उसकी रूचि परखिये।
ReplyDeleteआज की नारी है सब पे भारी!!
ReplyDeleteअच्छी लगी यह पोस्ट।
कुड़ी का गुण्डी बनना दिल्ली में तो महानगरों की आवश्कता है। नहीं तो बसों में छेड़कतरों, मोबाइलचोरों से बचना संभव नहीं है। हम आप भी तो पुलिस के डर से मदद नहीं कर पाते हैं। नवभारत टाइम्स दैनिक अखबार का आज का पाठक सर्वे इसी धारणा और सच्चाई को पुष्ठ करता है।
ReplyDeleteमुण्डी बन रही है गुण्डी, यही है हुण्डी, यही है काक भुसुण्डी।
बनने दो, रोको मत, रूको मत।
अविनाश वाचस्पति
ज्ञान जी,
ReplyDeleteबहुत सुंदर संयोजन किया है भावनापूर्ण. आपकी गुंडी अचछी है,जरूरत है बच्ची की ऊर्जा के सही उपयोग की।
"पूत के पाँव पालने मे नज़र आते है" ये गुड़िया आगे जा कर बहुत आत्मविश्वासी महिला बनेगी ।
ReplyDeleteबच्ची का सुन्दर चरित्र चित्रण किया आपने।
ReplyDeleteज्ञानदत्त जी हमेशा कि तरह आप का लेख और उन पर आई टिप्प्णियां, दोनों ही मजेदार होती हैं।गुन्डी शब्द अकसर इस्तेमाल होता है। आलोक जी ने सच कहा आजकल की लड़कियां दब्बू नहीं होतीं। वैसे उनकी टिप्प्णी में एक पिता का स्नेह और गर्व बोल रहा है, बहुत ही अच्छा लगा ये जानकर कि उनकी ॠद्धी भी इतनी गुन्डी है। आलोक जी, चिन्ता मती किजियो, बड़ी हो कर यही बड़ी बहन का सबल बन ख्ड़ी होगी। ज्ञानजी आप की गुन्डी और आलोक जी की दोनों ग़ुन्डियों के लिए शुभकामनाएं
ReplyDeleteआपके चिट्ठे पर तो खिचड़ी भाषा चल ही जायेगी।
ReplyDeleteवो कहते हैं न कि A picture is worth a thousand words ... सो बिलकुल फ़िट बैठा है यहाँ। आपकी चिंता आपकी परिपक्वता के लिहाज से सहज, सामान्य है तथा गुण्डी का बाल-सुलभ आचरण उसकी वय के लिहाज़ से सामान्य।
इन सब से ऊपर यह चित्र - जो बहुत कुछ कह देता है - कुतूहल भी, शरारत भी, मासूमियत भी और कोमलता भी।
गुंडी शब्द की स्वीकार्यता भले ही कम हो मगर पोस्त बहुत ही सुन्दर है। छोटे उत्साही बच्चों की उपस्थिति मात्र ही उत्साह भरने के लिये काफी है। 20-25 साल पहले के कई उदाहरण याद आ गये। अमेरिका में तकल्लुफ थोडा ज़्यादा है इसलिये बच्चों का ऐसा निर्विघ्न आना जाना नहीं होता।
ReplyDelete"फिर वह गुण्डी नही रह जायेगी"
ReplyDeleteहाँ सचमुच
प्रणाम
गुंडी शब्द की स्वीकार्यता भले ही कम हो मगर पोस्त बहुत ही सुन्दर है। छोटे उत्साही बच्चों की उपस्थिति मात्र ही उत्साह भरने के लिये काफी है। 20-25 साल पहले के कई उदाहरण याद आ गये। अमेरिका में तकल्लुफ थोडा ज़्यादा है इसलिये बच्चों का ऐसा निर्विघ्न आना जाना नहीं होता।
ReplyDeleteज्ञानदत्त जी हमेशा कि तरह आप का लेख और उन पर आई टिप्प्णियां, दोनों ही मजेदार होती हैं।गुन्डी शब्द अकसर इस्तेमाल होता है। आलोक जी ने सच कहा आजकल की लड़कियां दब्बू नहीं होतीं। वैसे उनकी टिप्प्णी में एक पिता का स्नेह और गर्व बोल रहा है, बहुत ही अच्छा लगा ये जानकर कि उनकी ॠद्धी भी इतनी गुन्डी है। आलोक जी, चिन्ता मती किजियो, बड़ी हो कर यही बड़ी बहन का सबल बन ख्ड़ी होगी। ज्ञानजी आप की गुन्डी और आलोक जी की दोनों ग़ुन्डियों के लिए शुभकामनाएं
ReplyDelete