Tuesday, November 20, 2007

कहाँ से कसवाये हो जी!


साइकल ऑफ-द-शेल्फ मिलने वाला उत्पाद नहीं है। आप दुकान पर बाइसाइकल खरीदते हैं। उसके एक्सेसरीज पर सहमति जताते हैं। उसके बाद उसके पुर्जे कसे जाते हैं। नयी साइकल ले कर आप निकलते हैं तो मित्र गण उसे देख कर पूछते हैं - 'नयी है! कहाँ से कसवाये भाई!?'।

नयी चीज, नया प्रकरण या नया माहौल - उसमें 'कसवाना' शब्द का प्रयोग या दुष्प्रयोग बड़ा मनोरंजक हो जाता है।

सोनियाँ गांधी जी से पूछा जा सकता है कि उनकी "स्पीच बहुत धांसू है; किससे कसवाई है?"
पांड़े जी नयी जींस की नीली शर्ट पहने फोटो खिंचाकर अपने ब्लॉग पर फोटो चस्पाँ करते हैं। टिप्पणियाँ आती हैं - "बड़े चमक रहे हो जी। नयी जमाने की शर्ट है। कब कसवाये?"

मेटर्निटी होम से लौटने पर नौजवान से लोग पूछ बैठें (यह जानने को कि क्या हुआ) - "क्या कसवाये जी? लड़का या लड़की?"

बाऊजी के दांत क्षरित हो गये। नयी बत्तीसी के लिये डेण्टिस्ट से अप्वॉइण्टमेण्ट तय कराया लड़के ने। पिताजी को बोला - "संझा को दफ्तर से लौटूंगा तो चलेंगे। आपके नये दांत कसवाने!"

Gyan(202)

Gyan(203) कसवाई जाती नयी साइकल

रविवार को साढ़े इग्यारह बजे मैं कटरा बाजार में पुरानी 4-5 घड़ियों में सेल लगवा रहा था। एक दो में कुछ रिपेयर भी कराना था। मोबाइल पर उपेन्द्र कुमार सिन्ह जी का फोन बजा - "क्या कसवा रहे हैं जी?" कसवाना शब्द मेरी जिन्दगी में इन अर्थों में परिचित कराने का श्रेय उन्हें ही है। पिछले सप्ताह भर से इस शब्द को वे बहुत कस कर प्रयोग कर रहे हैं।Gyan(207) मैने जवाब दिया कि फिलहाल तो घड़ी कसवा रहा हूं। वहीं बगल में साइकल वाले की दुकान थी और उसका कारीगर वास्तव में नयी साइकल कस रहा था।

कसवाने में दूसरे पर निर्भरता निहित है। उदाहरण के लिये अनूप सुकुल को यह नहीं कह सकते कि "आपकी पोस्ट बड़ी मस्त है, किससे कसवाये हो जी!" यह जग जानता है कि वे (भले ही जबरी लिखते हों) अपनी पोस्ट खुद कसते हैं! सोनियाँ गांधी जी से पूछा जा सकता है कि उनकी "स्पीच बहुत धांसू है; किससे कसवाई है?"

'गुरू गुड़ और चेला शक्कर' वाले मामलों में कसवाने का मुक्त हस्त से प्रयोग हो सकता है - कसवाया गुरू से और क्रेडिट चेले ने झटक लिया। मसलन ब्लॉग जगत का टेण्ट कसवाया नारद से और झांकी जम रही है नये एग्रेगेटरों की!

सो मित्रों, कसवाना शब्द मैने उपेन्द्र कुमार सिन्ह से - जो खुद ब्लॉगर नहीं हैं; झटका है। पर असकी कसावट तो आप ला सकते हैं अपनी टिप्पणियों से। Laughing


26 comments:

  1. शब्दों के ऐसे प्रयोग लगातार सुझाते रहें, दिवाली पर होली का मजा आ गया।

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  2. वाह भई वाह अच्छा कस लेते हो आप भी ।
    वैसे आपकी वज़ह से ये नया शब्द प्रयोग सीख लिया ।

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  3. भई ज्ञान जी वाकई पोस्‍ट तो अच्‍छी कसवाई आज है आज आपने । आज आपकी इस कसवाई से हमें वो सारी सायकिलें याद आ गयीं जो हमारे लिए हमारे पिताजी ने कसवाई थीं । और एक वो फैशनेबल सायकल स्‍ट्रीट कैट भी याद आ गयी जो फर्स्‍ट ईयर में हमने आकाशवाणी पर कैजुअल काम कर करके कसवाई थी । फिर बचपन की सायकिलों पर घुटनों का छिलना याद आया । लोगों से भिड़ना याद आया । टकराने पर कान खिंचना याद आया । भोपाल की गलियां याद आईं जहां हमने अपना बचपन कसवाया था ।
    सच मानिए आज जब कोई पूछेगा कि बड़े खुश हो , तो हम यही कहेंगे आज का दिन हमने ज्ञान जी से कसवाया है ।

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  4. बड़ी कसावट है जी आपकी पोस्ट में.

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  5. गजब का लेख कसे हो आप, मजा आ गया।

    वैसे टिप्पणीयों को इस तरह से कसने का तरीका मैने
    समीर जी से सीखा है।

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  6. गाडिया भी कसवाईये जी,सारे नट बोल्ट ढीले हो गये है बहुत ची चा करती है...:)

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  7. ग्वालियर के आसपास

    ** साईकिल कसवाई जाती है
    ** नये जूते "पहने" जाते हैं
    ** अपना मकान बनाने के लिये पडोसी के पात्थर "खीचे" जाते हैं
    ** होली पर पडोसी के फर्नीचर "उठा" लिये जाते हैं

    हिन्दी बहुत रंगबिरंगी भाषा है -- शास्त्री

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  8. वाह! कस के दिए हैं......:-)

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  9. उतना ही कस्काइये की कसक बनी रहे,
    शब्दों की भाषा में महक बनी रहे.
    इधर उधर की बातों से कन्फुसियाएं न हम,
    भाषाओं में हिन्दी की ठसक बनी रहे.
    अच्छा प्रयोग है. साधुवाद

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  10. धीरे धीरे हम भी आप सब महा कसावटी गुरुओं से कसना सीख ही जाएँगे.

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  11. कसवाने से पहले ये देखना जरूरी है की कसने वाला कैसा है उसकी प्रतिष्ठा कैसी है किसी देवगौड़ा जैसे इंसान से कसवाली तो भाई बैठने से पहले ही साईकिल ढेर हो जायेगी.
    कस के मज़ा आया.
    नीरज

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  12. मस्त कसेला लेख है जी!

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  13. अब हम का कसे. पहले तो आपने ने कस दिया बाकी कुछ बचा तो सब ने अपनी-अपनी टिपण्णी मे कस दिया. वैसे हम तो अपनी एक ने पोस्ट कसने के प्रयास मे है. आज बस इतना ही इंतजार कसिये १-२ दिन तक.

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  14. वाह वाह क्या कहने। क्या लिखा है। लाफ्टर क्लब अब भला कौन जायेगा।

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  15. शानदार कसावट है पोस्ट मा!!
    ब्लॉग जगत के कसावट गुरु बनते जा रहे हो आप तो!!

    पहले हमरी एक शंका का निवारण किया जाए, पहले भी हमने पूछा था कि यह ब्लॉगर में याहू की स्माईलीज़ कैसे दिख रही हैं।
    ऊ का है ना कि याहू स्माईलीज़ के हम बड़े पंखे हैं।

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  16. मैं कल देखूंगा की आज की इस पोस्ट पर आपने टोटल कितनी टिप्पणियां कसवाई.

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  17. संजीत> पहले हमरी एक शंका का निवारण किया जाए, पहले भी हमने पूछा था कि यह ब्लॉगर में याहू की स्माईलीज़ कैसे दिख रही हैं।
    संजीत, विण्डो लाइव राइटर का प्रयोग करें। उसके माध्यम से पोस्ट तैयार/पोस्ट करें। विण्डो लाइवराइटर में एमएसएन और याहू स्माइली का प्लग-इन इंस्टॉल कर सकते हैं!

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  18. चलिए आपके कसने कसवाने में हम भी एक कमेन्ट कस ही डालते हैं...

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  19. ओके सर!!
    शुक्रिया!!

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  20. बहुत बढिया पोस्ट है पांडे जी! कहाँ से कसवाए हैं?

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  21. साइकल कसवाई जाती है हमें पता नहीं था। इस संदर्भ में इस शब्द का प्रयोग हमारे लिए भी नया है, कहीं आप शब्दों का सफ़र तो उड़ाने की नहीं सोच रहे, वो भाई को जरा अगाह कर दिया जाए।
    वैसे पोस्ट हमेशा की तरह खूब कसी है। कया टिप्पणीकारों ने इस शब्द को नये नये अर्थ दे दिए है?

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  22. विगत एक सप्ताह में कई कार्यक्रमों में वयस्त रहा , कई शहरों में भटकने के बाद अब लखनऊ आ गया हूँ , लखनऊ से बाहर होने के कारण ब्लॉग के पोस्ट पढ़ने हेतु जैसे-तैसे समय तो निकाल ही लेता था पर प्रतिक्रिया दे पाना सम्भव नहीं हो पाया .वैसे आपके इस कसे हुए पोस्ट के बारे में क्या कहूं , खैर जैसे भी कसा गया हो कसने वाले की जितनी भी तारीफ की जाए कम होगी .पूरी तरह कसा हुआ प्रतीत हो रहा है .

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  23. चलिए थिक है. पोस्ट ओरिजनल है, लिखा ओरिजनल है, पर एक बात टू फ़िर भी हम पूछ ही सकते हैं की भैये ये अपना परम ग्यानी दिमाग कहाँ से कसवाये हो आप? बड़ा झटक कर चलता है. बता दो टू जरा हम भी अपना कसवा लाये.

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  24. मजेदार पोस्ट है। कसके मजा आया। :)

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  25. क्या जबरदस्त कसावट है इस लेख में, नारद की कसती कसाती लाईन ने बाजी मार ली लेकिन।

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  26. मान गये दद्दा,
    इतनी कसी हुई कसावट देख कर हम तो कसमसा के रह गये ! वाह, क्या कसावट है , बाई द वे यह कसावट देखने की उमिर तो नहिंये है फिर इस कसकसाती रचना का प्रेरणाश्रोत सार्वजनिक करने की
    क्रुपा करें । आज्ञा हो तो हमहूं कुछौ जोड़ दें, ई कसावट शब्दै मा गज़ब से़क्स झलकता है, हमको ।
    माफ़ करें, मो सम कौन कुटिल खल कामी ।

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय