सवेरे की सैर के दौरान देखा - एक घर से गृहणी ने सात-आठ रोटियाँ और सड़क पर फेंकीं। पास ही एक गाय खड़ी थी। वह खाने लगी। गली के कुछ कुत्ते दौड़ते हुये आये और रोटियाँ छीनने के लिये गाय पर भौंकने लगे। गाय ने सींगों का सहारा लिया, पर एक बड़ा कुत्ता लगभग आधी रोटियाँ छीनने में सफल हो गया।
बड़ा कुत्ता एक पैर से रोटियाँ सड़क पर दबा कर खाने लगा। बाकी कुत्ते उसकी कद काठी के भय से आस-पास खड़े उसे ताकने लगे। अकेला ही वह छीनी हुयी रोटियाँ खा गया। गाय तीन चार रोटियाँ मुंह में दबा कर अलग हट गयी। कुछ दूर एक दूसरी गाय भी खड़ी थी। वहां उसने रोटियां जमीन पर गिरा दीं। दोनो मिल कर खाने लगीं।
दैवी और आसुरी - दोनो वृत्तियों के उदाहरण देखने को मिल गये। वह भी जानवर में जो उस वृत्ति के प्रति चैतन्य नहीं है।
एक कथा है। पूरी याद नहीं। स्वर्ग और नर्क का अंतर समझाने के लिये बनाई गयी है। एक बड़े कक्ष में बहुत से पकवान मेजों पर रखे थे। ढ़ेरों असुर वहां बैठे थे। उनके हाथों में खपच्चियां बंधी थीं। समने स्वादिष्ट भोजन होने पर भी वे खा नहीं पा रहे थे। खीझ और कुण्ठा के चलते जल्दी ही वे आपस में युद्ध करने लगे। मेज-सामान-पकवान जल्दी ही गिर कर व्यर्थ हो गये। वैर-वैमनस्य बढ़ा, सो अलग।
देखने वाले को दूसरे कक्ष में ले जाया गया। उतना ही बड़ा और वैसा ही कक्ष। वैसी ही मेजें और वैसे ही पकवान। सामने ढ़ेरों देव बैठे थे। उनके भी हाथों में खपच्चियाँ बन्धी थीं। पर वे सभी प्रसन्न मन थे। दो-दो के ग्रुप में वे एक दूसरे को पकवान उठा-उठा कर खिला रहे थे। सभी परस्पर तृप्त कर रहे थे, सभी परस्पर तृप्त हो रहे थे।
वही परिस्थितियां। पर मानसिकता का अंतर। मनस से हम देव बनते हैं; मनस से ही दानव बनते हैं। बस विकल्प हमारे पास है। मानव होने का मुख्य लाभ यही है - देव और दानव बनने का विकल्प हमें मिला हुआ है।
कल नरक चतुर्दशी ने नरक-दर्शन करा दिये! कल सवेरे झांसी-बीना खण्ड पर ट्रेक्शन विद्युत के तार टूटे और एक रेल लाइन 5½ घण्टे बधित रही। फिर, कल शाम को ट्रेक्शन विद्युत के तार नैनी-इलाहाबाद के बीच टूटे और 3½ घण्टे यातायात बाधित रहा। उसके बाद जो पहली गाड़ी पुणे-दरभंगा एक्स्प्रेस चली, उसको उसके पीछे ऑटोमेटिक सिगनलिंग पर चल रही ग्वालियर-हावड़ा चम्बल एक्स्प्रेस ने इलाहाबाद स्टेशन के बाहर टक्कर मार दी। लगभग आधा दर्जन लोग घायल हुये। पूरी रात का जागरण हो गया। उस लाइन पर यातायात आज सवेरे 6 बजे चालू हो पाया। और दुर्घटना के आधे घण्टे में ही टेलीवीजन चैनल स्क्रॉल मैसेज देने लगे थे - 5 मरे, 50 घायल।
कुछ सोने का प्रयास किया, पर सवेरा होते ही जिन्दगी फिर चालू हो जाती है। रात भर जागने के कारण छूट नहीं देती! पोस्ट पब्लिश कर रहा हूं, पर आपकी टिप्पणी दिखाने के पहले छोटी नींद निकालना चाहूंगा!
ज्ञानजी
ReplyDeleteअच्छे से सोइए। अच्छे से पूजा कीजिए और बढ़िया दीपावली मनाइए। शुभ दीपावली
रेल दुर्घटना दुखद थी लेकिन आप का लेख सोचने को मजबूर कर देता है।
ReplyDeleteशुभ दीपावली
मतलब, स्वचालित सिग्नलिंग और बेस्वचालित - दोनो एक ही पटरी पर चलती हैं? यह कैसे?
ReplyDeleteया, दिक्कत आने पर स्वचालित सिग्नलिंग अपने आप बंद नहीं होती?
समझ नहीं आया।
बढ़िया है। नींद निकाल् के आयें। दैवी गुण् से ओत-प्रोत होकर। दीपावली की मंगलकामनायें।
ReplyDeleteआप सोइये. आज समाचार पढ़ा था सुबह तब ही आपके ब्लॉग पर आया था.नयी पोस्ट नहीं दिखी,तब सोचा शायद आप दीवाली मना रहे होंगे और कल की 24 टिप्पणीयों से खुश होंगे. लेकिन आपने ठेल ही दी पोस्ट.
ReplyDeleteशुभकामनाऎं दीपावली की.
@ आलोक - ऑटोमेटिक सिगनलिंग से अभिप्राय यह है कि आगे की गाड़ी की स्थिति के आधार पर पीछे की गाड़ी/गाड़ियों के लिये सिगनल की अवस्था (रुको, धीरे चलो, ध्यान दे कर चलो, फर्राटे से चलो) तय होती है। यह सिगनल लगभग एक-सवा किलोमीटर पर सिगनल पोस्ट पर लगे होते हैं। गाड़ी का चालक अगर इनका पालन नहीं करता तो दुर्घटना सम्भव है।
ReplyDeleteटिप्पणी से शायद यह पूरा स्पष्ट न हो। रेलगाड़ी वाला ब्लॉग सुषुप्त न होता तो उसपर इस बारे में पोस्ट लिखता।
इंडिया में कुछ भी आटोमेटिक नहीं ना होना चाहिए। भौत डेंजरस है। मशीनरी को चलाने वाले आदमी होते हैं। इसलिए आटोमेटिक में खतरे दोगुने हो जाते हैं, एक जो खतरे, मशीन की खुद की गलती से या गड़बड़ी से हो सकते हैं, दूसरे जो मानवीय गलतियों से हो सकते हैं। खतरों को कम करने का एक ही रास्ता है,कम से कम आटोमेटिक होना चाहिए। टीवी पर तो बहुत भयावह दुर्घटना टाइप लग रही थी।
ReplyDeleteदीवाली की शुभकामनाएं जी। आपको भी,आपके परिवार को और आपकी रेल को।
बहुत सुंदर रचना!
ReplyDeleteतम से मुक्ति का पर्व दीपावली आपके पारिवारिक जीवन में शांति , सुख , समृद्धि का सृजन करे ,दीपावली की ढेर सारी बधाईयाँ !
आशा करता हूँ अबतक बहुत बार सो चुके होंगे।
ReplyDeleteसाथ ही दीवाली की शुभकामनायें।
शाम को सागर भाई ने चेट पर बताया दुर्घटना के बारे में...और टी वी पर भी देखी...अफवाह थी..."कई मरे"।
ReplyDeleteअच्छा है ज्यादा गंभीर नही थी...आपकी दिवाली चैन से मन जायेगी :)
सही सुंदर और सटीक बात है ये कि मनस से ही हम देव और दानव बनते हैं । या कहें कि कुछ हिस्सा देव और कुछ हिस्सा दानव । दीपावली देव-पक्ष के बढ़ने और दानव-पक्ष के कम होने का पर्व हो । मंगलकामनाएं ।
ReplyDeleteऐसे समय के लिये तर खसखस का हलवा रखा करिये। तुरंत तनाव से मुक्ति देकर आवश्यक निद्रा ले आता है। माफ करे लगातार सलाह देने के लिये। पर मुझे लगता है कि हमारी पारम्परिक औषधियाँ हमारे परफारमेंस को उच्च स्तर तक पहुँचा सकती है। इन्हे भी मैनेजमेंट ट्रेनिंग का अहम भाग होना चाहिये।
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाए।
आपने बिलकुल सही कहा है, मनस से ही देव और दानव होता है..
ReplyDeleteऔर उस दुर्घटना का समाचार सुनने के बाद सबसे पहले आपकी ही याद आयी थी.. और ये भी सोचा था की आपका तो जागरण हो ही गया होगा...
gyaan jii,aapko saparivaar deepotsav ki shubhkaamnaaye...........
ReplyDeleteबहुत सही!! मनस ही तो है जो हमें बनाता या बिगाड़ता है!!
ReplyDeleteउम्मीद है अब तक आपकी नींद पूरी हो गई होगी और आप अपने रोजमर्रा वाले फ़ार्म में लौट चुके होंगे!!
दुर्घटना हुई दुःख की बात है लेकिन खुशी की बात है की जन हानि नहीं हुई. दुर्घटनाएं तीज त्योहार नहीं देखती. जहाँ तक देव और दानव की बात है तो मेरी समझ मैं ये दोनों ही इश्वर के बनाये हुए हैं दानव कहीं बाहर से टपके नहीं. कई बार सोचता हूँ इश्वर ने दानव बनाये ही क्यों? शायद देवों का मान बढाने के लिए. काला है तभी तो सफ़ेद की सफेदी समझ मैं आती है. किसी ने कहा है की "रावण था इसीलिए राम में गुण नज़र आए" .
ReplyDeleteनीरज
गुरु जी दिवाली कि ढेरों सारी बधाई और शुभ कामना !
ReplyDeleteमानव होने का मुख्य लाभ यही है - देव और दानव बनने का विकल्प हमें मिला हुआ है। ----ऐसी रचना जो चिंतन करने को बाध्य कर दे. मानव प्रकृति ऐसी ही है -- " वर्षा करती हूँ मैं करुणा की, अर्चना भी करती हूँ पाषाण की"
ReplyDeleteदीपावली पर्व मंगलमय हो !