Friday, November 30, 2007

अतिथि पोस्ट में एक दिन का आराम?(!)


आलोक ९२११ ने ’दांतो की देखभाल - हल्दी का प्रयोग’ पर टिप्पणी की थी - ’चलिए। ज्ञान जी का हफ़्ते में एक दिन तो आराम हो ही गया’। उनका आशय अतिथि पोस्ट में काम का बोझ अतिथि पर शिफ्ट होने से था। मैं उस आराम पर लिखना चाहता हूं। पंकज जी ने अगले सप्ताह की पोस्ट के लिये मसाला भेज दिया है। साथ में चित्र भी हैं। कायदे से तो मुझे वह यथावत टिका देना चाहिये। वह काम मैं १० मिनट में कर सकता हूं।

पर उसमें कैच है। जिस पौधे/औषधि को वे अपने लेख में बता रहे हैं, उसे मैं जानता नहीं। मैं अपने कर्मचारियों को बुला कर पूछता हूं। वे भी कुछ साफ़-साफ़ नहीं बता पाते। फिर मैं और काम में लग जाता हूं। कुछ देर बाद एक वरिष्ठ कर्मचारी फोन पर बताते हैं - यह फलाना पौधा (केवड़ा) है। उसकी पत्तियों में सुगन्ध होती है।

मैं पंकज जी को ई-मेल कर पुष्टि करना चाहता हूं। उनका जवाब आता है - "नहीं यह केवड़ा नही है। मुझसे एक (वाराणसी के) किसान काशी विश्वनाथ के प्रसाद के साथ कुछ वर्षो पहले घर पर आकर मिले थे। वे बडे इलाके में इसे (पौधे को) लगा रहे है। यदि उनका फोन नम्बर मिला तो आपको भेज दूंगा। घर मे बड़ों से पता करियेगा। वैसे आपकी इतनी रूचि देखकर अच्छा लगा।"

मेरे मित्र रायपुर के हैं। श्री दीपक दवे। इलाहाबाद रेल मण्डल के मण्डल रेल प्रबंधक। रायपुर में पंकज जी के पड़ोसी हैं। उनसे इण्टरकॉम पर पूछता हूं। वे बताते हैं कि यह औषध उनके बंगले में है। कुछ देर बाद समय निकाल कर मैं उनके चेम्बर में जा धमकता हूं। वे बताते हैं कि पंकज जी के ब्लॉग पर उनके रायपुर के घर के बगीचे के भी चित्र हैं। अब वे कल सवेरे यह पौधा मुझे ला कर देंगे। उस पौधे को मेरी पत्नी गमले में लगायेंगी। उसके फोटो के साथ अतिथि पोस्ट अगले बुधवार को आपके समक्ष प्रस्तुत करूंगा। साथ में होंगे पौधे के साथ हमारे अनुभव भी।Gyan(237)

« अपने चेम्बर में श्री दीपक दवे, डी.आर.एम., इलाहाबाद रेल मण्डल।

यह जुनून ही है, कि जो प्रस्तुत किया जाय मेरे ब्लॉग पर, उसके बारे में जितना हो सके मैं जानूं और जितना बेहतर बन सके, उस प्रकार से प्रस्तुत करूं। इसलिये अतिथि पोस्ट देने से एक दिन का आराम तो शायद नहीं हुआ। उल्टे इस प्रकार का उद्यम करना पड़ रहा है। पर लाभ यह हुआ कि मेरे ब्लॉग पर विविधता बढ़ी है, और वह उद्यम खलता नहीं है!

मैं नहीं जान पा रहा कि यह अतिथि पोस्ट का प्रयोग आप लोगों को कैसा लग रहा है। पर इसमें एक अलग प्रकार का आनन्द है। मेरी पत्नी पिछली अतिथि पोस्ट पढ़ कर रात में सोने से पहले दांतों में हल्दी लगा कर १०-१५ मिनट मौन धारण करने लगी हैं - बड़ा अच्छा लगता है। Happy         


Shoes मित्रों, कल यह समझा गया कि मैं रेलवे के चमकदार सैलून में चलता हूं; तो शाह-खर्च होऊंगा। तीन बार तल्ला बदलाया जूता तो कदापि नहीं पहनता होऊंगा - केवल अलंकारिक प्रयोग कर रहा होऊंगा। मैं यह अपने तीन बार तल्ला बदलाये जूते का फोटो ही ठेल दे रहा हूं। आप ही देख लें कि कितना फ्रूगल हूं और कितना शाहखर्च। मोजों में भी अधिकांश अंगूठे के पास छेद वाले हो जाते हैं और वही चलते हैं। फ्रूगेलिटी (frugality - मितव्ययता) गरीब की बपौती नहीं होती। वरन गरीब बहुधा गरीब इसलिये होता है कि वह मितव्ययी नहीं होता। सैलून सरकार देती है; जूता सरकार नहीं बांटती।Sad  

13 comments:

  1. अतिथि पोस्ट का अपना मजा है। और यह कहना ही पड़ेगा। नीचे आपने जूते जो दिखा दिये। :)

    ReplyDelete
  2. हरै वाला प्रयोग तो मैंने दो दिनों से शुरू कर दिया है। हल्दी वाला प्रयोग लंबित है। इसका असर देखने के बाद

    ReplyDelete
  3. पोस्ट हमे पसंद आई जूते अनूप जी को,फ़ोरन पोस्ट करे

    ReplyDelete
  4. जैसे मुझे खोया पानी को छापना एक पोस्ट लिखने से ज्यादा मेहनत का काम लगता है.

    ReplyDelete
  5. आप तो पोस्टों को बिग बाजार थे, अब बिगर बाजार हो लिये, हल्दी से लेकर जूता तक, हर्रा से लेकर अध्यात्म तक, सैलून से लेकर सेलरी तक सब झक्कास चल रहा है। फ्रीलांसिंग करने के इच्छुक लेखकों को आपसे सीखना चाहिए। भौत सही है। अतिथि पोस्ट आपकी देखी, बालकिशनजी के यहां। झक्कास थी।
    विषय वासना ऐसी प्रगाढ़ मुश्किल से मिलती है। अधिकांश ब्लागर एक ही तरह की विषय वासना में फंसे हैं. आपने तो विकट वैरायटी मचा दी है। जमे रहिये शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  6. आपका चिट्ठा तो अब रंगबिरंगे महकते फूलों की बगिया बन गई जिसमें एक बार आना तो निश्चित है...
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  7. दीपक जी के विषय मे सब को बताने के लिये धन्यवाद। वे बडे ही कर्मठ और मेहनती है। उनके बागीचे की तस्वीरे इकोपोर्ट पर है।

    यदि सम्भव हो तो लेखो की प्रतियाँ उनके पिताजी को भिजवा दीजियेगा। वे बडी रूचि से इन्हे पढेंगे।

    ReplyDelete
  8. अतिथि देवो भवः, और अगर अतिथि ब्लॉगर भी भवः तो फिर क्या कहने !!आप दिल पे ना लें. अतिथि पोस्ट जारी रखें. आपका और आपके अतिथियों का दोनों का स्वागत है.

    ReplyDelete
  9. "मेरी पत्नी पिछली अतिथि पोस्ट पढ़ कर रात में सोने से पहले दांतों में हल्दी लगा कर १०-१५ मिनट मौन धारण करने लगी हैं - बड़ा अच्छा लगता है."

    अच्छा तो आप इसीलिए अतिथि पोस्ट लिखवा रहे हैं. बढिया तरीका है. अगर आप खुद लिखते तो शायद कभी आपको ऎसी शांति नहीं मिल पाती.

    ReplyDelete
  10. अपन अनुभव है कि अतिथि पोस्ट आराम नही देता बल्कि उसके लिए आपको अपनी खुद की पोस्ट से ज्याद मेहनत, दिमाग और सावधानी लगानी पढ़ती है!!

    दीपक दवे जी के बारे मे जानकर खुशी हुई!!
    देखिए रायपुर का बंदा इलाहाबाद रेल मण्डल के डी आर एम हैं जबकि इलाहाबाद विश्विद्यालय के प्रोडक्ट श्री चंद्रा जी रायपुर रेल मण्डल के डी आर एम है। कल ही उनसे चर्चा के दौरान यह जानकारी मिली!!

    चलो ब्लॉग में ही नही बल्कि वास्तविकता में भी आपके आसपास रायपुरिया बंदे हैं, खुशी हुई!!

    ReplyDelete
  11. वैसे आपका यह अतिथि पोस्ट भी अन्य पोस्ट की तरह मजेदार रहा ,मीनाक्षी जी ने ठीक हीं कहा है कि -आपका चिट्ठा तो अब रंगबिरंगे महकते फूलों की बगिया बन गई . बहुत सुंदर इसे जारी रखें !

    ReplyDelete
  12. बस इतना ही कह रहा हूँ कि आप को पढ़ रहा हूँ.....

    ReplyDelete
  13. बजरिये अवधियाजी हमारा एक नए ज्ञानदा से साबका पड़ने लगा। जूते की तस्वीर तो आपने दिखा दी पर इसमें वह सिर्फ चमकदार दिख रहा है। तल्ले वाली बात साबित करने के लिए उलटी तस्वीर भी भेजी होती :) क्या सचमुच आप ऐसी बातों से घबराते हैं ?

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय