पत्नी के आधासीसी सिरदर्द के चलते मैं 2-3 महीने में उनके साथ एक बार न्यूरोलॉजिस्ट (तंत्रिका-तंत्र विशेषज्ञ) के पास जाता हूं। काफी डिमाण्ड में हैं इस प्रजाति के लोग। सवेरे मेरे एक सहायक उनसे शाम की विजिट का नम्बर ले लेते हैं; जिससे प्रतीक्षा न करनी पड़े। हर बार मेरी पत्नी की 5 मिनट की मुलाकात के वे ठीकठाक पैसे ले लेते हैं। ब्लड-प्रेशर मात्र देखते हैं। दवा में हेर-फेर भी कुछ खास नहीं करते। एक आध विटामिन कम ज्यादा कर देते हैं और योगासन करने की सलाह दे देते हैं।
विजिट के लिये नम्बर 1 होने पर भी हम प्रतीक्षा करते हैं। प्रतीक्षारत लोगों की किस्म और संख्या देख कर मुझे लगता है कि इस जिन्दगी में डॉक्टर न बन कर गलती कर दी।
डाक्टर साहब आने को हैं। उनके दरवाजे पर खड़ा चपरासी नुमा व्यक्ति मुझे स्वयम तंत्रिका-तंत्र के रोग का मरीज लगता है। पतला दुबला और हाथ पैर के अन कण्ट्रोल्ड मूवमेण्ट वाला। अपने आप में आत्मविश्वास की कमी वाला व्यक्ति। डाक्टर आये नहीं हैं - कार से आयेंगे तो वही रिसीव करेगा। फिर भी वह डाक्टर साहब का चेम्बर खोल कर झांकता है और पुन: लैच लगा कर बन्द करता है। आशंकित ऐसे है, जैसे कि डाक्टर साहब कहीं से अवतरित होकर कमरे में न आ गये हों।
पास में दो नौजवान बैठे हैं। उनमें से एक बार-बार चपरासी नुमा व्यक्ति से अंतरंगता गांठने का प्रयास करता है कि डाक्टर के आने पर उसे सबसे पहले मिलने दिया जाये। चपरासी चुगद है - भाव नहीं खा पा रहा है। दूसरा नौजवान शायद मरीज है। बार-बार अपने हाथ मलता है। सिर इस-उस ओर घुमाता है और कभी कभी अपनी बड़ी-बड़ी आंखें मींजता है। लाल धारीदार टी-शर्ट पहने इस नौजवान से मुझे सहानुभूति होती है। बहुत जिन्दगी है उसके आगे। भगवान करें वह सक्षमता-सफलता से व्यतीत करे।
एक और व्यक्ति है जो 20 मिनट से अकेला बैठा अपने मोबाइल पर कुछ बटन टीप रहा है। बहुत व्यस्त। सिर भी ऊपर नहीं उठाया।
सर्दी नहीं है, पर एक मरीज बैठे हैं पूरा लपेट लपाट कर। सिर पर पूरी तरह गमछा बांधे हैं। उनके साथ दो-तीन लोग आये हैं। उन्हें बिठा कर बाहर लॉन में प्रतीक्षा कर रहे हैं। बैग साथ है - शायद इलाहाबाद के बाहर से हैं। और भी मरीज हैं जो लॉन में या पास के कमरे में इंतजार कर रहे हैं।
मरीजों की प्रतीक्षारत दुनियाँ कम ही देखता हूं। ज्यादातर दफ्तर और रेल की पटरियों के इर्द-गिर्द आपाधापी में देखना-सोचना-चलना रहता है।
आधे घण्टे वहां व्यतीत कर समझ जाता हूं कि यहां ज्यादा समय व्यतीत करने पर या तो मरीज बन जाऊंगा या एक अर्थर हेली छाप उपन्यास लिखने की क्षमता अर्जित कर लूंगा। पहले की सम्भावना ज्यादा है।
न्यूरॉलॉजिस्ट के पास तो फिर भी कम मरीज़ आते होंगे किसी जी पी या डेन्टिस्ट के पास जाकर देखिये कई नमूने मिलेंगे । लिखा आपने सही है ।
ReplyDeleteआयुर्वेद क्यों नहीं आजमाते..
ReplyDeleteसम्भावनाएं तो हैं ही..
मगर फूल.. एक अकेला आखिर में हिलगा.. मुस्कुराता, शर्माता फूल..ह्म्म..
सब तो ठीक पर मरीजों को तो बक्श दें.
ReplyDeleteहर फोटो पर नाम क्या कोई ख़ास कारण ?:)
आप की ये अदा अच्छी नहीं है कि जहां थोड़ी देर रहे उस जैसा होने से डरने लगते हैं। मरीजों के साथ रहे डरने लगे कहीं मरीज न हो जायें। डाक्टर के चैम्बर के बाहर बैठे सोचने लगे डाक्टर क्यों न हुये। कल को आप न जाने कहां-कहां जायेंगे उस जैसा बनने की सोच के डरने लगेगें। फ़ूल अच्छा है। :)
ReplyDelete@ ममताजी - मैं यह स्पष्ट कर दूं कि किसी भी मरीज के प्रति कोई व्यंग भाव नहीं है मेरे मन में। उल्टे, मैं स्वयम दुख पर्याप्त सह चुका हूं और आगे भी उससे पार नहीं पा सकता। यह एक स्थान का वर्णन है, उसके अलावा कुछ नहीं। आपको कष्ट हुआ, उसके लिये क्षमा करें।
ReplyDeleteचित्र पार वाटरमार्क है कि मैने खींचा है। पहले मैने बतौर वाटरमार्क अपने इनीशियल्स GDP रखे थे जो शिवकुमार मिश्र ने कहा कि वे ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट से लगते हैं!
अनूप जी की बात से सहमत.मूली लेने गये तो थूंक से विचलित हो गये आज डॉक्टर और मरीज से.और कहाँ कहाँ जाते हैं आप. :-)
ReplyDeleteसही बात उठाई है काकेश जी ने..:)पहले ब्लोग पर घोषणा कीजीये वोटिंग कराईये फ़िर कही जाईये चाहे तो sms वाला फ़ंडा भी आजमा सकते है घर बैठे कमाई भी हो जायेगी...:) अरूण
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़कर के,
ReplyDeleteज्ञान जी , आपकी वर्णात्मक शैली का जवाब नहीं. बहुत बारीकी से हर कोने को छुआ है. आधे सिर के दर्द से कभी हमारी माँ भी पीड़ित थी. पूछेँगे उनसे तो ज़रूर आप को बताएँगे. हमने एक बात आज सीखी, अपनी खींची हर तस्वीर के कोने पर अपना नाम लिखने का उपाय बहुत बढ़िया. धन्यवाद.
ReplyDeleteज्ञान जी डॉक्टर के आगमन में मरीज़ों के साथ इंतज़ार करते हुए अपन भी बहुत बोर और आतंकित भयाक्रांत खौफ़ज़दा होते हैं । वहां रखी सारी पुस्तकें चाट लीं । मोबाईल पर गेम खेल खेल कर ऊब गये । मरीज़ों के चेहरे पढ़ लिये आपकी तरह । इसके बाद क्या करें ।
ReplyDeleteआपने सीन तो दिखाया पर इलाज नहीं बताया । उस क्रिटिकल समय को कैसे काटें गुरूजी
मुझे तो सारी डाक्टरी ही विकट बोरिंग लगती है, मतलब उसकी उपियोगिता पर कोई शक ना है जी। कुछ दिन पहले मैं एक डेंटिस्ट के पास गया, करीब आधा घंटा मुंह खुलवाकर जाने क्या क्या करता रहा। मैंने कहा बास ये कितना बोरिंग काम दिन भर करते हो। मुंह में झाकना, सुबह से शाम तक, बोर नहीं होते। वो बोला जब शाम को नोट गिनता हूं, तो बोरियत खत्म हो जाती है। ये न्यूरो वाले भी बहुत नोट गिनते होंगे।
ReplyDeleteसबसे इंटरेस्टिंग डाक्टरी बताते हैं कि साइकेट्रिस्ट की होती है, बड़े बड़े इंटरेस्टिंग वाकये सुनने को मिलते हैं। पर साइकेट्रिस्ट वाले सुना है कि कुछ टाइम बाद खुद केस बन जाते हैं।
चलिए,अगले जन्म में आप भी डाक्टर बन जाइये। पर काम भौत बोरिंग है ये ध्यान रखियेगा।
अच्छा लगा पढ़कर , वैसे इस दुनिया में भाँति -भाँति के लोग हैं ज्ञान जी , डरने की कोई ज़रूरत नही!
ReplyDeleteयह सबसे अच्छा है कि आप अपने द्वारा ली गई तस्वीरे उपयोग कर रहे है। आप उसमे कापीराइट का निशान भी लगा ले तो अच्छा होगा।
ReplyDeleteआधा सीसी के लिये मीठा उपाय है कि सुबह-सुबह गरम-गरम जलेबी खायी जाये। कुछ समय तक करिये और फिर बताइये। आजमाया हुआ है।
मुझे लगता है कि आप ब्लाग मीट करवाये ताकि हम आपके शहर आ सके और तन्दुरूस्ती के सस्ते और प्रभावी गुर बता सके।
वाह भइया बढ़िया लिखा आपने. खास कर अंत मे जो कहा कि आधे घंटे और बैठा तो मैं भी मरीज बन जाऊँगा.
ReplyDeleteवैसे आधासीसी का भुगत भोगी मैं भी हूँ. बहुत पीड़ा होती है. जिस घरेलु इलाज से मुझे फायदा हुआ बता रहा हूँ.
सूर्योदय के कुछ समय बाद छलनी मे से सूर्य को देखते हुए दो गर्मागर्म जलेबी अगर ५-७ दिनों तक खाई जाय तो लाभ होना चाहिए. मैंने किया है ये टोटका और मेरी तकलीफ पुरी ठीक होगई. हाँ एक बात है ये करते समय या कुछ दिनों पूर्व मैंने होमियोपथी दावा भी ली थी.
खांटी ब्लॉगर हो गए अब आप!! जिधर जाओ एक पोस्ट की संभावना दिख ही जाती है, फ़टाक से हाथ मोबाईल से तस्वीरें भी खींचने लगता है और दिमाग में पोस्ट की भूमिका तैयार होने लगती है !
ReplyDeleteसही है!!
ज्ञान सर, इन्तजार का अच्छा चित्र खींचा है आपने. पर जरा अलग कार्यालयों में जाकर भी देखिये वहाँ क्या होता है. डॉक्टर के टू यहाँ आप बैठकर इन्तजार कर ही लेते हैं पर जरा उस अनुभव को भी देखिये जब आप खड़े होकर कह रहे हैं- बड़े बाबू ज़रा मेरा काम देखिये ना कहाँ तक पहुंचा ,और बड़े बाबू जवाब देते हैं हो जायेगा कहे इतना परेशान करते हैं. और आप अपनी समस्या लिए वहीं के वहीं रह जाते हैं.
ReplyDeleteबहरहाल, पहली बार टिप्पणी कर रहा हूँ. छोटे को थोड़ी आशीष देंगे. धन्यवाद.
डॉक्टर जो कहे करें, सब ठीक हो जाएगा.....
ReplyDeleteइसे ही सचित्र पोस्ट कहते हैं.....अच्छा बा....भइया
डॉक्टर न होकर आपने सच में कोई गलती की है....पर अभी क्या कर सकते हैं....भाभी जी से कहें कि योग आसन करें और दवा लेंते रहें....
ReplyDeletegoing through your blog for sometime. Whenever i surf, i feel like going to your blog but you write faster than i can read. Don't have patience like you.Still something in your plainspeaking (writing)attracts.Never attempted writing in hindi. Hope, you will bear with me.
ReplyDelete(पंकज अवधिया)जी की बात सही है --
ReplyDeleteमैँने भी सुना है कि १ गिलास गरम गरम दूध और साथ मेँ कुछ जलेबियाँ खाने से , आधासीसी का दर्द दूर हो जाता है -
-आजमा कर देखिये ,
शायद आराम हो जाये भाबी जी को -
-- लावण्या
ये है न सही ब्लॉगिंग.
ReplyDeleteवैसे रामदेव जी को भी एक शाट देने कोई बुराई नहीं. मुझे स्लीप एप्निया में बड़ा फायदा हुआ सिर्फ ५ मिनट रोज देने से. एक हफ्ते के अंदर खर्राटे बंद हो गये.
च्वाईस तो आपने ही बनानी है हम ठहरे भारतीय-आमतौर पर बेवजह सलाह देने वाले. फिर भी बाकियों के बीच ऑड मैन आऊट नहीं लग रहे, हा हा!!!
माईग्रेन से तो मैं भी पीड़ित रहती हूँ । कोई इलाज तो बताये ।
ReplyDeleteबहुत सच कह रहे हैं आप , डाक्टर के केबिन के बाहर इंतजार करना बहुत कष्ट्दायक होता है। कम से कम आप को बैठन की जगह तो मिली, यंहा बम्बई में तो कई बार ख्ड़े ख्ड़े ही इंतजार करना पढ़ता है। खैर भगवान से प्रार्थना है कि भाभी जी की पीड़ा जल्दी दूर हो जाए।
ReplyDeleteज्ञान भैय्या
ReplyDeleteजिस सहजता से आपने इंतज़ार कर रहे मरीजों और वातावरण का खाका खेंचा है उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है, आप् अच्छा ही नहीं बहुत अच्छा लिखते हैं ख़ास तौर पर उन विषयों पर जो मेरी समझ मैं आ जाते हैं.
नीरज
aap logon ke photo kaise le lete hain? Chup-chap yaa bata kar?
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