बचपन में जे.बी. मंघाराम एण्ड संस के असॉर्टेड (assorted - मिश्रित, विभिन्न, चयनित) बिस्कुट का डब्बा देखा था। ऊपर लक्ष्मी जी की फोटो वाला टिन का चौकोर डिब्बा, जिसमें तरह तरह के बिस्कुट होते थे। दीपावली पर अचानक उसी की याद हो आयी।1 गिफ्ट पैक में आने वाले वे क्रीम और वेफर्स के बिस्कुट, पोलसन के मक्खन के कैन के साथ बचपन की मधुर यादों का हिस्सा हैं। शायद आपको भी बचपन में दिखे हों। बाद में वे देखने को नहीं मिले। आपको कोलिनॉस टूथ पेस्ट के विज्ञापनों की याद है? ये सब कम्पनियाँ कहां हैं?
कोलिनॉस का 50 के दशक का अमेरिकी विज्ञापन।
इण्टरनेट पर सर्च करने पर आर.बी. मंघाराम फूड्स लिमिटेड के नाम से एक कम्पनी बंगलूर की मिली। जीवनदास मंघाराम (जो स्वतंत्रता सेनानी थे और जिन्होने जे.बी. मंघाराम की स्थापना की थी) भी शायद दक्षिण में बेस्ड थे। इसलिये बहुत सम्भव है कि यह फर्म उनके उत्तराधिकारियों में से किसी की हो। दक्षिण के ब्लॉगर बता सकते हैं कि जे.बी. मंघाराम एण्ड संस का क्या वर्तमान है। वैसे इण्टरनेट सर्च जे.बी. मंघाराम फूड्स के नाम से एक फेक्टरी ग्वालियर में बता रहा है। पर इसके प्रॉडक्ट्स यहां कहीं दिखे नहीं।
पोलसन मक्खन बनाने वाले पेस्तनजी इदुल्जी दलाल थे। पॉली के नाम से जाने जाते इन सज्जन ने अंगेजों के लिये कॉफी की दुकान से 1888 में शुरुआत की थी। कालांतर में इनकी कम्पनी 'पोलसन' ने ब्रिटिश सेना को मक्खन सप्लाई करने के लिये खेरा जिला, गुजरात में एक प्लॉण्ट लगाया था, पिछली सदी के शुरू में। कम्पनी बढ़िया चल रही थी, पर अंतत: त्रिभुवन दास पटेल के गांघीवादी गांधीवादी सहकारी आन्दोलन - जो 'अमूल' बना, ने यह कम्पनी चौपट कर दी। इसी तरह कोलिनॉस सम्भवत: कोलगेट में लीन हो गयी।
कई अच्छी चलती कम्पनियां कुछ पीढ़ियों में डायनासोर बन जाती हैं।
1. वैसे भी डेव वाकर के कार्टून के माध्यम से जीतेन्द्र चौधरी ने कहा है कि मैं ब्लॉगिंग के विषय ताड़ने को लगा रहता हूं! जे. बी. मंघाराम वाला विषय उसी क्रिया का परिणाम है!
और सही में, मैं जीतेन्द्र को क्रेडिट दूंगा। डेव वाकर के कार्टून मैने भी देखे थे पर उनका जीतेन्द्र जैसा क्रियेटिव इस्तेमाल हो सकता है, मेरी मानसिक हलचल में नहीं आया था! ये सज्जन हिन्दी के स्टार ब्लॉगर यूंही नहीं बन गये हैं!
आपको पढ़ कर कुछ कुछ होने लगा है, अच्छा लगा
ReplyDeleteज्ञान जी आपको आश्चर्य होगा ये जानकर कि जे बी मंघाराम कंपनी है तो वाक़ई ग्वालियर में ही । लेकिन इसके प्रोडक्ट इसलिए नहीं दिख रहे हैं क्योंकि आजकल ये ब्रिटेनिया के लिए आउटसोर्सिंग कर रहे हैं । यानी आप ब्रिटेनिया के जो बिस्किट खा रहे हैं हो सकता है कि वो जे बी मंघाराम से बनकर आये हों । ये जानकारियां मेरे भाई यूसुफ के सौजन्य से ।
ReplyDeleteज्ञान जी, आज आप ने मुझे भी बचपन की यादें दिला दी.
ReplyDeleteजे बी मंघाराम की जडें भले ही बेंगलूरू मे रही हों, पर निर्माण ग्वालियर में होता था. फेक्टरी से दो किलोमीटर दूर तक महक आती थी.
स्कूली बच्चों का स्वागत करते थे एवं अपने अद्यापकों एवं साथियों के साथ फेक्टरी घूमते समय वे छक कर बिस्कुटें खा सकते थे. कोई रोक नहीं थी. सारे हिन्दुस्तान में उनकी तूती बजती थी.
अपसोस, लगभ दो दशाब्दी पहले अयोग्यता, आपसी खीचतान आदि के कारण वह कारखाना बन्द हो गया.
पिछले हफ्ते अपने ग्वालियर निवास के दौरान मैं ने उस कम्पनी को याद किया था, लेकिन वह जो बन्द हुआ वैसा ही है. सुना है कि ग्वालियर रेयन, सिमको स्टील, जे सी मिल्स आदि भी बन्द हो गये हैं -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
इस काम के लिये मेरा और आपका योगदान कितना है?
युनुस जी जिस कम्पनी की बात कर रहे हैं वह मूल कम्पनी नहीं है बल्कि उस नाम से कागज पर जानी जाती है.
ReplyDeleteज्ञानदत्तजी युनूस भाई सही कह रहे हैं, उस फैक्टरी में अभी भी पहले की भांति उत्पादन हो रहा है जब भी मैं मुरैना से ग्वालियर वाया सड़क के रास्ते से जाता हूं तो फैक्टरी के पास से निकलते ही ना बिस्किट की मीठी मीठी सुगंध वातावरण में फैली होती है। पर आजकल यह कंपनी अपने नाम से उत्पादन नहीं करती शायद। मेरा एक मित्र जिसके पिताजी पुलिस में हैं, ग्वालियर में पदस्थ थे। तब फैक्टरी वाले उसके यहां बिस्किट दे जाया करते थे। ये हाल ही की बात है पर उसने बताया कि ये बिस्किट यहां कहीं नहीं मिलते।
ReplyDeleteबहुत कुछ है जो गायब हो गया है।
ReplyDeleteअफगान स्नो नामक ब्यूटी क्रीम गायब हो गयी है।
जय नामक साबुन गायब हो गया है।
पासिंग शो नामक सिगरेट जिसे मैं सात- आठ वर्ष की बाली उम्र में धुआंधार फूंका करता था, गायब हो गयी है।
ब्लैक एंड व्हाईट सिगरेट भी उस दौर में बहुत फूंकी है, वो भी अब गायब है।
हाय हाय, क्या याद दिलायी है।
वैसे ऐसे ऐसे विषय आप लाते हैं, आप रेलवे से वीआरएस लें, और किसी अच्छे अखबार के फीचर संपादक बन लें।
जी हमने इस कंपनी का नाम नहीं सुना था. शायद नये जमाने के हैं या फिर बचपन में रोटी का जुगाड़ करना ही मुश्किल था बिस्कुट कहाँ से खाते.
ReplyDeleteबहुत सही कहा है आपने, यूं भी मुल्टी नेशनल कम्पनियाँ बहुत सी देसी कंपनियों को निगल गयी हैं
ReplyDeleteजे बी मंघाराम बैंगलौर की कम्पनी थी, मंघाराम ने बहुत मेहनत से इस कम्पनी को घड़ा किया था। इन्होने ने ही अपने जीते जी, जे बी मंघाराम एंड संस करके एक कम्पनी ग्वालियर मे खोली थी, उनके प्रोडक्ट टिन के डब्बे मे आते थे, जैसे चैना राम हलवाई के आते है। इन्होने कंफ़ेक्शनरी मे भी हाथ आजमाया था, बाद मे कम्पनी कर्जे मे डूब गयी, और धीरे धीरे इनके प्रोडक्ट मार्केट से गायब हो गए। आज मंघाराम की फैक्ट्री तो है, लेकिन ये लोग शायद आउटसोर्सिंग कर रहे है, अब ये ब्रिटेनिया के लिए या किसी और कम्पनी के लिए इसका पक्का विश्वास नही। लेकिन ये बात तो मानने वाली है कि मंघाराम के प्रोडक्ट मेरे बचपन का जबरदस्त हिस्सा थे, क्यों? अमां मेरा ननिहाल ग्वालियर मे ही था, हम जब गर्मियों की छुट्टियों से लौटते तो, बिस्कुट के डब्बे साथ मे लदे रहते थे। इसी तरह जब सर्दियों मे लौटते तो मुरेना वाली गज़क।
ReplyDelete"इसी तरह जब सर्दियों मे लौटते तो मुरेना वाली गज़क"
ReplyDeleteगजक अभी भी जिंदा है. इसी हफ्ते 6 पैकेट मेरे साथ ग्वालियर से आये हैं.
आपके ननिहाल के लोगों का सरनेम क्या है? शायद उस परिवार में मेरा कोई क्लासमेट निकल आये. मैं मिस हिल स्कूल में पढा था -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
इस काम के लिये मेरा और आपका योगदान कितना है?
अपन ने भी नई सुने इन कंपनियों के नाम!!
ReplyDeleteदर-असल हम नए जमाने के चिल्हर है, तो पुराने जमाने के थोक लोग ही जानेंगे इनके नाम जिन्होने अपने बचपन में उपयोग किए होंगे ये उत्पाद!!
वैसे ज्ञान दद्दा, क्यों बुढ़ापे की ओर सरक रहे हो , ये बुढ़ापे की निशानी है, पुराने दिन और पुराने उत्पादों को याद करके नए जमाने और नए उत्पादों को कोसना, हालांकि आपने कोसा तो नही!! ;)
ये कम्पनी आज ब्रिटैनिया की रीढ् बनी हुई है और वेफ़र्स आज पूरे भारत में उनकी सहयोगी कम्पनी हैदराबाद में ही बनाती हैं जो पूरे भारत में एकमात्र है
ReplyDeleteहमारे पिताजी भी इसे याद करते है। हम लोगो ने भी बचपन मे इसे खाया है।
ReplyDeleteशास्त्री जी गजक तो लाये पर हम लोगो को क्यो भूल गये भाई। यह सरासर नाइंसाफी है। वैसे भी इस पोस्ट ने चम्बल वालो को फिर से मिला दिया।
अब तो यही उम्मीद की जा सकती है कि ग्वालियर वाले अगली बार जब मिलेंगे तो गजक या बिस्किट जरूर लायेंगे।:)
सब कुछ अच्छा लगा। लेख भी और टिप्पणियां भी। आलोक पुराणिक की सलाह पर कुछ तव्व्जो दीजिये। :)
ReplyDeletec/गांघीवादी/गांधीवादी
ReplyDelete@ आलोक - धन्यवाद। परिवर्तन कर दिया है।
ReplyDeleteअजी आजकल तो आप किसी भी बड़े शोप्पिंग मॉल में जाकर देखीये, ब्रिटानिया और पारले के साथ साथ कुछ अरबी और फारसी मे लिखे रैपर्स वाली कुकीस भी मिलती हैं. गिफ्ट के तौर पर उन्ही का इस्तेमाल किया जाता है. जो सब कोई पध्ले उसमे नया पं कैसा.. फारसी लिखे हुए बिस्कुट देने में कुछ नया सा लगता है..
ReplyDeleteभई वाह, इधर कई दिनों बाद कुछ अच्छा पढ़ने को मिला...लिखते रहिए। फ़िलिप को याद होगा हम लोग एक हू स्कूल में पढ़े हैं....
ReplyDeleteप्रिय हेमंत,
ReplyDeleteकृपया webmaster@sarathi.info पर मुझ से संपर्क करें, क्योंकि टिप्पणी में आपका ईपता नहीं है -- शास्त्री फिलिप
धन्यवाद ज्ञानजी इस पोस्ट को पढाने के लिये । बाकई मंघाराम के बिस्कुट कभी कभी मिलने वाली ट्रीट हीथे पर फेक्टरी हमने देखी थी और तब मुफ्त बिस्कुट भी खाये थे । इनकी एक जिंगल भी होती थी,
ReplyDeleteआओ बच्चों खाओ बिस्कुट जेबी मंघाराम के
देवे ताकत,उमर बढाये हैं ये बडे काम के
एनर्जी फूड विस्कुट,एनर्जी फू़ड बिस्कुट
छोटे बच्चों के लिये ये ताकत की खुराक है
दूध मलाई और शकर से बैठी इसकी धाक है
करारे, कुरकुरे और बडे रसीले
टाय पिओ और बिस्कुट खाओ
जेबी मंघाराम के
देवे ताकत,उमर बढाये हैं ये बडे काम के
एनर्जी फूड विस्कुट,एनर्जी फू़ड बिस्कुट