हिन्दी ब्लॉगरी में लोग हिन्दी को ले कर काफी सेण्टी हैं। बोले तो फिनिकी (finicky - नकचढ़ा, तुनकमिजाज, जिद्दी)। शुरू में हमने काफी रार की। बाद में समझ में आया कि यह कि मामला गहरी जड़ें रखता है। जब तक भाषा पर्याप्त समृद्ध नहीं हो जाती, तब तक अंग्रेजी विरोध ही उसे ऊर्जा प्रदान करेगा। बहुत कुछ वैसे कि आपका प्रतिद्वन्द्वी तगड़ा हो तो आप में उत्कृष्ट प्रदर्शन की सम्भावनायें कई गुणा बढ़ जाती हैं।
इस लिये हिन्दी ब्लॉगरी में हिन्दी में ही लिखा जाये, यह मेरी समझ में (बड़ी अनिच्छा से) आता है। पर यह पोस्ट के विषय में ही लागू होना चाहिये, टिप्पणियों पर नहीं। कुछ समय से मैं यह देख रहा हूं कि ऐसे भी लोग ब्लॉग पढ़ रहे हैं जो हिन्दी लेखन में सहज नहीं हैं पर पढ़ रहे हैं। हिन्दी वालों को इससे प्रसन्नता होनी चाहिये। जो व्यक्ति आज हिन्दी पढ़ने का कष्ट ले रहे हैं, वे देर सबेर लिखेंगे भी। शिवकुमार मिश्र स्वयम एक उदाहरण हैं। वे मेरे ब्लॉग पर अंग्रेजी/रोमन हिन्दी में टिप्पणी करते थे; आज ब्लॉग पर स्तरीय सटायर लेखन के प्रतिमान बनते जा रहे हैं।
और कोई न भी लिखे, हमें तो पाठक की दरकार है। लेखक की बजाय पाठक ज्यादा सहज जीव होने चाहियें। जो शब्दों को जितना घुमाने की क्षमता रखते हैं, वे उतने ही जटिल, दुखी और दम्भी जीव होते हैं। मेरे एक इंजीनियर मित्र थे (अब सम्पर्क नहीं है उनसे) - जो न तो अंग्रेजी ढ़ंग की लिखते थे न हिंन्दी। पर विश्लेषण और तर्कसंगत सोचने में उनका मुकाबला नहीं था। भाषा में हाथ तंग था इसलिये लफ्फाज बिल्कुल नहीं थे। शब्दों का प्रयोग किफायत से करते थे। ऐसे लोग भी पढ़ते हैं। उनकी टिप्पणी भी महत्वपूर्ण है।
इसलिये अगर एग्रेगेटर यह कहता है कि वह केवल हिन्दी में लिखे शीर्षकों की फीड दिखायेगा - तो मैं हुज्जत नहीं करूंगा। पर मैं अंग्रेजी में टिप्पणी करने वालों का भी स्वागत करता हूं। और टिप्पणी करने वाले को हिन्दी या अंग्रेजी की शुद्धता की भी ज्यादा परवाह नहीं करनी चाहिये। सम्प्रेषण हो जाये और कुछ अश्लील न हो - बस!
मैने इस आशय का स्क्रॉल मैसेज भी अपने ब्लॉग पर लगा दिया है (ऊपर लाल आयत में देखें)। अत: मित्र, यदि आपको हिन्दी लेखन में झिझक है, तो भी बेझिझक टिप्पणी कीजिये। सम्प्रेषण कुछ भी न होने से सम्प्रेषण होना बेहतर है - भले ही वह अंग्रेजी में हो!
Thanks dude liked your approach.I wanna say your blog is superb man!! gr8.keep it up.
ReplyDeleteजी मैं तो मजाक कर रहा था.अपना हाथ अंग्रेजी व हिन्दी दोनों में तंग है. बांग्ला में चलेंगीं क्या टिप्पणीयां. :-)
That's cool, man!! U R the Da Man!!!
ReplyDeleteहमेशा ही आती हैं तोमन में टिप्पणी. किसने रोका है. टिप्पणी में तो संख्या का ज्यादा महत्व दिखे है.उत्साह तो बढ़ता है ही.
ग्रेट है जी। सही जा रहे हैं।
ReplyDeleteहिंदी,अंग्रेजी,स्वाजी सारी भाषाओं में टिप्पणियों का स्वागत होना चाहिए।
एक यूनिवर्सिटी में एक प्रोफेसर साहब की शिकायत की बच्चों ने कि गुरुजी ठीक से नहीं पढ़ाते। वाइस चांसलर ने प्रोफेसर को बुलाकर पूछा ये क्या मसला हैजी।
प्रोफेसर ने कहा-मेरी अंगरेजी खऱाब है।
वीसी ने कहा-तो हिंदी में पढ़ाओ।
प्रोफेसर ने कहा-वह तो उससे भी ज्यादा खराब है।
प्रोफेसर को तीन साल के लिए ब्रिटेन भेजा गया किसी फैलोशिप के लिए। आने के फौरन बाद वह रिटायर हो लिये।
कोई इंसेटिव दें आप भी अंगरेजी सीखने का, तो देखिये हम भी अंगरेजी में लिख सकता हूं।
is baat me to hum aap se puri terah sehmat hain.
ReplyDeleteअगर आपको सुझाव स्वीकार्य हों तो - दुनिया की किसी भी भाषा में टिप्पणियों का स्वागत कीजिए। कई भाषाओं से स्वचालित अनुवाद संभव है - आपको इतना तो पता चल ही जाएगा कि क्या कहा जा रहा है। और जवाब आप हिंदी में दे सकते हैं, आपके पाठक हिंदी पढ़ना तो जानते ही हैं, भले ही लिखें जापानी में।
ReplyDelete@ आलोक 9211 - वह मजेदार रहेगा। बस कैच यह है कि मैं कैसे जानूंगा कि टिप्पणी स्पानी में है कि जर्मन/जापानी/चीनी/कोरियाई... में। दूसरे, मुझे नहीं लगता कि मेरा कैचमेण्ट एरिया इन भाषाओं के मजे हुये और हिन्दी के कामचलाऊ जानकार तक जाता है!
ReplyDeleteबात एक दम ठीक है. पाठक की टिपण्णी किसी भाषा में हो, जरूरी है. मैं रोमनागरी में टिपण्णी करता था क्योंकि देवनागरी लिखने का साधन उपलब्ध नहीं था. आज है, तो देवनागरी में करता हूँ. जरूरी है कि हम जैसा सोचते हैं, उसे लिख सकें. हिन्दी में लिखें, या इंग्लिश में. या फिर हिंग्लिश में, क्या फर्क पड़ता है.
ReplyDeleteहम सभी ब्लॉग लिखते हैं, साहित्य नहीं. हमारा लिखा हुआ कोई आलोचक नहीं देखेगा. निर्मल वर्मा और नामवर सिंह जैसा कोई मसला ही नहीं है यहाँ. और यही बात सबसे अच्छी लगती है. इसीलिए लिखते हैं. अन्यथा कोई पढ़कर आलोचना करना शुरू कर दे तो फिर लिखना बंद हो जायेगा.
ಸಹೀ ಕಹಾ ಜೀ ತೊ ಅಬ್ ಹಮ್ ಸ್ವತ್ಂತ್ರ್ ಹೈ ಕಿಸೀ ಭೀ ಭಾಷಾ ಮ್ವ್ ಲಿಖನ್ವೆ ಕೆ ಲಿಯೆ..सही कहा जी तो अब हम सवतंत्र है ना किसी भी भाषा मे टिपियाने के लिये...:)
ReplyDeletethank you so much , i have been advocating this line of thought time and again . every one cant configure the computer time and again to switch between hindi and english . i work with foriegn clients and need to chat and wirte to them continuously in english and so i read hindi time permitting and comment in english and roman . many bloggers have tried to tell me that i dont love hindi and i am not promoting hindi , for me if its chosing between hindi and livelyhood i will chose my lively hood . and the most ironical part is that those bloggers who are settled abroad and who speak english and work in english in the native country they are in , try to show to us {who are in india } that how they love hindi!! those who have no time to live in their country , work in their counrty try to show us that they are more patriotic then us . and sir i have records of blogers who all have an english blog but when they write in hindi they ridicule others who write or comment in english .
ReplyDeletehttp://www.google.com/help/about_blogsearch.html
adding blog here make is more visble to other others in differnt languages
last but not he least happy diwali
और अगर हम मराठी, गुजराती, स्वाहिली, फारसी या स्पेनिश में लिखना चाहें तो ।।।।।
ReplyDeletewow! gr8 idea...
ReplyDeleteवैसे जिनको टिप्पणी करनी होती है वो करते ही हैं। हिंदी समझ में आए जाए तो अग्रेजी में टिप्पणी करने में क्या हर्ज है। ज्यादातर पाठक इसी सोच के हैं।
जी एकदम सही बोले आप हमेशा की तरह। हिन्ग्लिश आज कईयों की मातृ भाषा बन चुकी है और हमें नाक ऊँची रख उसे नकारना नही चाहिए। पोस्ट में भी तो हिन्दी ब्लोगर्स नये नये शब्द इजाद करते रहते है जैसे अनझेलेबल,टेलो,नर्वसिया, कन्फ़्युजिया…तो टिप्पणी हिन्गलिश में क्युं नहीं। लीड लेने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteकिसी को गैर हिन्दी में टिप्पणियॉं पाने से भला क्या असहमति हो सकती है, या गैर देवनागरी वाली हिन्दी में।
ReplyDeleteदरअसल भले ही हिन्दी की प्रिंट या साहित्यिक दुनिया में थोड़ा बहुत अंगेजी विरोध दिखता था पर इंटरनेट की दुनिया में ये लगभग बिल्कुल नहीं है।
बल्कि हम तो कहेंगे कि बाकायदा 'ब्रिज ब्लॉगिंग' करें, यानि एक अंगेजी ब्लॉग बनाएं जो हिन्दी के ब्लॉग जगत के लेखन को अंगेजी के पाठक तक ले जाए, अच्छा रहेगा। हम यदा कदा करते हैं कोशिश, पर अनुशासन के अभाव में हो नहीं पाता।
कैसे जानूंगा
ReplyDeleteचूँकि आपको अंग्रेज़ी आती है, अतः आपको इन बहुभाषियों का इस्तेमाल करने में ज़्यादा दिक्कत नहीं होगी, जो अंदाज़ा लगाते हैं कि भाषा कौन सी है। खास तौर पर ज़ेरॉक्स वाले का तो मैंने खूब इस्तेमाल किया हुआ है, डीमोज़ में संपादन करते हुए।
मुझे नहीं लगता कि मेरा कैचमेण्ट एरिया इन भाषाओं के मजे हुये और हिन्दी के कामचलाऊ जानकार तक जाता है!
यह मुझे जो भाषाएँ आती हैं मेरे पाठकों को भी वही भाषाएँ आती हैं का ही दूसरा रूप है :) अंदाज़े पर मत जाइए, अपने आँकड़ो (जालस्थल के आकड़ों) में देखिए कि किस भाषा और किस इलाके के लोगों का कितना प्रतिशत है। और इन आँकड़ों पर लगातार नज़र रखिए। आश्चर्य होगा आपको।
जोड़ा
ReplyDeleteऊपर की ही एक टिप्पणी में, गिरगिट ने बता दिया कि वास्तव में
ಸಹೀ ಕಹಾ ಜೀ ತೊ ಅಬ್ ಹಮ್ ಸ್ವತ್ಂತ್ರ್ ಹೈ ಕಿಸೀ ಭೀ ಭಾಷಾ ಮ್ವ್ ಲಿಖನ್ವೆ ಕೆ ಲಿಯೆ
का मतलब है
सही कहा जी तॊ अब् हम् स्वत्ंत्र् है किसी भी भाषा म्व् लिखन्वॆ कॆ लियॆ
उपरोक्त औज़ार भारतीय भाषाओं के लिए उतना नहीं चल पाते हैं पर उनके लिए लिप्यंतरण किया जा सकता है। ऊपर वाली टिप्पणी में भाषा तो हिंदी ही थी, केवल लिपि ही तेलुगु थी, पर अगर भाषा तेलुगु ही होती तो भी लिप्यंतरण के बाद ८०-९० फ़ीसदी पता चल ही जाता कि क्या कहा जा रहा है।
ভালো কথা বোলেছেন আপনী .
ReplyDelete@ चौपटस्वामी (ভালো কথা বোলেছেন আপনী .)-
ReplyDeleteधन्यवाद प्रियंकर जी। मुझे बांगला नहीं आती, पर आपकी शुभकामना नजर आ जाती है!
एकदमेच सही कहेस गा सियान!!
ReplyDelete"वाकेरी, कौआ-कैनी, भई भुई आँवला, भूलन, कालमेघ, भुई नीम, सरपटिया, तिनपनिया ---
ReplyDelete"
यह हर्बल भाषा मे साधुवाद है। इसका अनुवाद आम लोग नही कर पायेंगे। अब मै इसी भाषा मे टिपिया दिया करूंगा। कभी तो इसे भाषा का दर्जा मिलेगा। अंत मे एक बार फिर
"काली मूसली, काली हल्दी, काली रत्ती और पुत्रजीवी"
टिप्पणी की कोई भी भाषा किन्तु भाषा सभ्य होनी चाहिऐ, अच्छा लगा किसी आपके ब्लाग पर सभी भाषाऐं चलती है। :)
ReplyDeleteभाषाई बाधाओं को तोड़ने के लिए "Thank you so much sir."
ReplyDeleteदेखिये न आप के अंग्रेज़ी मैं टिप्पणि स्वीकार करने को लेकर हिन्दी टिप्पणीकार कितने खुश दिख रहे हैं. सबकी बांछे खिली सी लग रही हैं. मानता हूँ आप में लोगों को खुश करने की अपार क्षमता है.
ReplyDeleteनीरज
वाह क्या बौछार हुई है टिप्पणियों की। :)
ReplyDeleteवैसे ये सच है कि पाठक भले ही टिप्पणी अंग्रेजी मे करे या हिन्दी मे करे इससे कोई फर्क नही पड़ता है । पर हाँ टिप्पणी जरुर करनी चाहिऐ।
सही है। आपके समर्थन में ये कविता पेश है-
ReplyDeleteभाषा तो पुल है मन के दूरस्थ किनारों पर्,
पुल को दीवार समझ लेना बेमानी है।
इस लिहाज से आप ईमानदार बनने का प्रयास कर रहे हैं। :)