Tuesday, July 31, 2007

सुरियांवां, देवीचरण, टाई और नमकीन!


देवी चरण उपाध्याय तो उम्मीद से ज्यादा रोचक चरित्र निकले! कल की पोस्ट पर बोधिसत्व जी ने जो देवीचरण उपाध्याय पर टिप्पणी की, और उसको ले कर हमने जो तहकीकात की; उससे इस पोस्ट का (हमारे हिसाब से रोचक) मसाला निकल आया है.
कल अनूप सुकुल जी की पोस्ट पर वर्षा के बारे में निराशा के साथ टिपेरा तो शाम को वह पूरे रंग समेत चढ़ दौड़ी. दफ्तर से घर आने में भीषण तेज वर्षा में ड्राइवर के और मेरे पसीने छूट गये. रास्ता दीख नहीं रहा था. सड़क पर टखने के ऊपर पानी था. घर में आने पर बिजली नहीं. घर के पीछे गंगा नदी थोड़ी दूर पर हैं. मूसलाधार बरिश से गंगा के किनारे रहने वाले सियारों की मान्दों में पानी भर गया था. सो बाहर निकल कर खूब हुआं-हुआं कर रहे थे. बिजली न हो, तेज हवा और वर्षा हो और सियारों का समूह गान हो तो क्या समा बन्धता है!
कल शाम से बिजली न होने से आज फिर इंक-ब्लॉगिंग का ही सहारा है.
वैसे पिछली पोस्ट पर आप सब ने इतनी बढ़िया टिप्पणियां की हैं कि मैने उनका टिप्पणी में वनलाइनर जवाब भी देना उचित समझा. उतने में लैपटॉप की बैटरी खतम.
खैर, अब इंक में मेरी मारी हुई मख्खियाँ देखें.
devicharan

7 comments:

  1. बहुत अच्छा। हम सबेरे से आपका ब्लाग रिफ़्रेश कर रहे थे। अब देवीकथा पढ़ के आगे का काम करेंगे। आप बोले थे कि अनूप के जी नहीं लिखेंगे फिर ये वादा खिलाफ़ी काहे! :)

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  2. भई वाह वाह। और आप हाथ से लिखते रहिये। आपकी राइटिंग इश्टाइल और मेरी छोटी चार साल की बेटी की राइटिंग इश्टाइल एक सी है।
    बचपना छूट जाये, तो भी बचपन को दोबारा तलाशा जा सकता है,इंक राइटिंग ब्लागिंग में।
    आपकी रेलवे तो पूरी दुनिया है। तरह-तरह के कैरेक्टर हैं वहां। पोस्टों का सिलसिला चलायें, जिसमें बताया जाये कि बिना टिकट सफलतापूर्वक यात्रा कैसे करें। देवीचरणजी की तरकीब तो मैंने नोट कर ली है।

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  3. अब वो टिकिट के साथ या बिना टिकट चल रहे हों..हमारा नमन और साधुवाद तो स्विकार कर ही लें. बड़ा सटीक रहा आपका संस्मरण और इसके लिये आप नही बोधिसत्व जी साधुवाद के पात्र हैं, खुले आम यह घोषणा करता हूँ.

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  4. बोधितस्व जी यानी आज भी उसी तरीके से चल रहे है..कृ्पया अपना रूट मैप भैजदे ताकी हम उस तरीके से देश के दूसरे भागो मे यात्रा कर सके..तथा देवीचरण जी अभिलाशा को देश भर मे पहुचा सके..:)

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  5. ज्ञान भइया
    देवी चरन चच्चा वाही हिंदी त तोहार नाहीं लगत बा..... लिखावट भले तोहार होई।

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  6. सोच रहे हैं कि देवीचरण जी पर एक अच्‍छी खासी फिल्‍म बन सकती है । मल्‍टीप्‍लेक्‍स और फिल्‍म फेस्टिवल वाली । सारा मसाला है ।

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  7. वैस‌े देवीचरण जी का दर्द शायद ही कोई स‌मझे। मेरे पिताजी बताते हैं कि जब हमारे क्षेत्र की तरफ स‌ड़क आई थी तो खेत जो अधिगृहीत हुए थे उनके बदले कुछ नहीं मिला। ये किस्सा फिर दोहराया जाएगा, अब कई स‌ालों स‌े गाँव में स‌ड़क आने की प्लानिंग हो रही है।

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय