रोड ट्रांसपोर्ट में अमुक की पैठ है. थाने-आर.टी.ओ. से कभी कोई तकलीफ नहीं. मंत्री की रिश्तेदारी में शादी-वादी अटेण्ड कर आता है. पत्रकार सम्मेलन भी कर लेता है. लोकल टीवी में बस-ट्रांसपोर्ट एसोसियेशन की ओर से बोलते भी पाया जाता है. सन 2015 तक एम.एल.ए. और 2020 तक मंत्री बनने का लक्ष्य है. कुल मिला कर कैल्कुलेटेड तरीके से चल रहा है. कभी-कभी हमसे भी मिल लेता है. हमसे कभी काम नहीं पड़ा, पर उसके नेचर में मेल-जोल रखना है, सो अपना धर्म निभाता है. यदा-कदा नेम-ड्रापिंग के लिये हमारे नाम का प्रयोग करता है, बस. हमें भी वह पसन्द है क्योंकि मिलते ही चरण-स्पर्श करता है.
नागपुर जाता है तो बस से ही. रिजर्वेशन के लिये भी तंग नहीं करता. बस से क्यों जाता है – पूछने पर काम की बात बताई. बोला - "भैया, ये बस के ड्राइवर-कण्डक्टर जब रूट पर चलते हैं तो पनीर की सब्जी ही खाते हैं. अमिषभोजी हुये तो चिकन के नीचे नहीं उतरते. सभी ढ़ाबे वालों से सेटिंग है. जहां रोकेंगे वहां इनकी खातिरदारी तय है. अब मैं साथ जाऊं तो मेरे लिये भी वही ठाठ रहेगा कि नहीं!"
उसने और बताया – “बस का ड्राइवर जब तक बस चलाता है तब तक डनहिल से नीचे की सिगरेट नहीं पीता. और जब बस से उतार देता हूं तो सिगरेट के टोटे बीन कर पीता है.” मुझे अपने ट्रेन में चलने वाले रेल-कर्मियों की याद आयी. उन्हें दण्डित करने को अगर उनका पास/प्रिविलेज टिकेट या एक आध इंक्रीमेण्ट बन्द कर दो तो सेहत पर कोई असर नहीं होता. पर अगर ट्रेन से उतार दो तो हफ्ते भर में मुंह पर मक्खियां भिनभिनाने लगती हैं. ट्रेन में चलने का रुआब बड़ी चीज है. ठीक बस के ड्राइवर की तरह.
मैने उससे कहता हूं कि कभी हमें भी साथ ले चले. घर में अरहर की दाल और नेनुआ खाते बहुत हो गया. कुछ चेंज हो जाना चाहिये. वह तुरंत हां कर देता है. फिर ऐसा गायब होता है कि महीनों नहीं दिखता.
बस अकस्मात, यदा कदा वह अवतरित हो जाता है – चरण धूलि लेने को! आज के जमाने में जब ‘स्वारथ लाइ करहि सब प्रीती’ ब्राण्ड के हैं तो बिना स्वार्थ के चरण छूने वाला वही भर है. न वह मेरा काम करता है न मैं उसका.
बस वह सदा यही कहता पाया जाता है – भैया किराया-भाड़ा बढ़ाते क्यों नहीं. जैसे की रेल बज़ट बनाने का काम मेरे ही जिम्मे हो!
पाय लागे दद्दा ,कैसन है उ हमार रिजर्भेशन हुई गवा का...:)
ReplyDeleteस्वारथ लाइ करहि सब प्रीती---इसी मद में टिपिया रहे हैं काहे कि अभी नई पोस्ट डालें हैं...:)
ReplyDelete--वैसे मजा आया पढ़कर. :)
Thanks, Sur nar munijan . . .
ReplyDeleteबढ़िया है
ReplyDeleteबढ़िया है दद्दा!!
ReplyDeleteसोचिये आपका वह भक्त किसे किस रुप में देखना चाहता है---- अपने आप को विधायक-मंत्री के रुप में और आपको रेल्वे का बजट बनाते हुए……………
बढि़या है! एक बस खरीद ली जाये क्या! :)
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